केन

केन नदी बुन्देलखण्ड की जीवनदायिनी है। केन और सोन विन्ध्य कगारी प्रदेश की प्रमुख नदियाँ हैं। केन मध्यप्रदेश की एकमात्र ऐसी नदी है जो प्रदूषण मुक्त है। केन नदी मध्यप्रदेश की 15 प्रमुख नदियों में से एक है। इसका उद्गम मध्यप्रदेश के दमोह की भाण्डेर श्रेणी/कटनी जिले की भुवार गाँव के पास से हुआ है। पन्ना जिले के दक्षिणी क्षेत्र से प्रवेश करने के बाद केन नदी पन्ना और छतरपुर जिले की सरहद पर बहती हुई उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर यमुना नदी में मिल जाती है। दमोह से पन्ना जिला के पण्डवन नामक स्थान पर इसमें तीन स्थानी नदियाँ पटना, व्यारमा और मिढ़ासन का मनोहारी संगम होता है। संगम पन्ना और छतरपुर के सीमावर्ती स्थान पर होता है। इन तीन नदियों के मिलन बिन्दु से पण्डवन नामक नयनाभिराम जल प्रताप का निर्माण हुआ है। जल प्रवाह के कारण यहाँ के पत्थरों में गोलाई आकार के विचित्र कटान की संरचना का दृश्य देखते ही बनता है। तीनों सरिताओं के परिवार के मिलने के कारण यहाँ शिव मंदिर का निर्माण कराया गया है। जहां प्रतिवर्ष शिवराज्ञि पर मेले का आयोजन किया जाता है। यहाँ बुन्देली लोकराग लमटेरा की तान वातावरण में गूँजती सुनाई देती है।

दरस की तो बेरा भई,
बेरा भई पट खोलो छबीले भोलेनाथ हो........

यह संगम स्थल इस अंचल की आस्था का केन्द्र बिन्दु माना जाता है। पटना, व्यारमा औऱ मिढ़ासन नदियों के महामिलन से पण्डवन जल प्रताप के अग्रधामी भाग से केन की चौड़ाई विस्तार पाने लगती है। इतना ही नहीं छतरपुर और पन्ना जिले के नागरिकों के आवागमन हेतु यहाँ एक पुल का भी निर्माण कराया गया है।

उड़ला का पण्डवन प्रपात


ऐसी जनश्रुति है कि पाण्डवों के अज्ञातवास के समय पाण्डव यहाँ वन भ्रमण करते हुए आये थे। इस कारण इस जल प्रपात एवं स्थान विशेष को पण्डवन की संज्ञा दी गई है। इस स्थान पर निर्मित सेतु ग्रामीणों के आवागमन में विशेष योगदान देता है। इस स्थान के समीप ही छतरपुर के दूरस्थ आदिवासी अंचल का गाँव किशनगढ़ बसा हुआ है और पन्ना जिला का कुछ ही दूरी पर अमानगंज नामक कस्बा है।

केन नदी आगे चलकर पन्ना के मड़ला गाँव के समीप अपने पूरे आवेग के साथ प्रवाहमान होती है। केन की सहायक नदियों में उर्मिल, श्यामरी, बन्ने, पटना, व्यारमा, मिढ़ासन, कैल, कुटने, खुराट, बराना, कुसैल, बघनेरी, तरपेर, और मौमरार आदि हैं। पन्ना से 60 किमी एवं छतरपुर से 100 किमी दूर पन्ना जिले के उड़ला नामक स्थान पर एक सुरम्य जल प्रापत है, जिसे पण्डवन प्रपात कहते हैं। यहां केन नदी, यह प्रपात अनेक नदियों के संगम स्थल पर बनाती है। यह स्थान अमानगंज से भी समीप पड़ता है। केन, मिढ़ासन, व्यारमा, पटना और सोनार नदियाँ जहां मिलती हैं, उसी स्थान पर यह रोमांचक जल प्रपात मौजूद है। इस जल प्रपात से एक किलोमीटर दूर तक केन नदी लुप्त-सी रहती है। यह एक विचित्र सत्य किन्तु आश्चर्यजनक बात है। यहीं समीप में सिंगौरा नामक ग्राम है जहाँ से सात नदियाँ बहती हैं। इस कारण यहाँ एक बुन्देली कहावत प्रचलित है कि ‘कहू से जैहों, सिंगौरा तरे से जैहों।’ सभी नदियाँ पण्डवन जल प्रपात में केन नदी में समाहित होकर अपना अस्तित्व खो देती हैं। यहाँ प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर मेला लगता है।

इस प्रपात तक जाने के लिए एक कच्चा मार्ग है। लेकिन यह मार्ग बरसात में अवरुद्ध हो जाता है। इस प्रपात की ऊँचाई लगभग 50 फुट है। प्रपात के स्थान पर यह नदी बहुत सँकरी है। पत्थरों के कारण यह स्थान रमणीक लगता है। पास की किशनगढ़ (छतरपुर) से पन्ना जिले के जंगल लगे हुए हैं। अगर आवागमन की पर्याप्त सुविधा हो जाय तो यह स्थान पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हो सकता है।

पाण्डव जल प्रपातपाण्डव जल प्रपात

पाण्डव जल प्रपात


प्रपात या झरना प्रकृति का एक ऐसा तोहफा है जो हमेशा से सभी को आकर्षित करता आया है। पाण्डव प्रपात भी एक ऐसी ही खूबसूरत जगह है। 30 मीटर की ऊँचाई से गिरते प्रपात के नीचे बना पानी का विशाल प्राकृतिक कुण्ड और आसपास बनी प्राचीन गुफाएँ प्रपात की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती हैं। बारिश के मौसम में अपने यौवन पर रहने वाला पाण्डव प्रपात क्षेत्र के प्रमुख प्रपातों में से एक है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि पौराणिक पाण्डवों ने इस प्रपात के किनारे बनी गुफाओं में कुछ समय तक निवास किया था। इसी आधार पर इस प्रपात का नाम पाण्डव प्रपात पड़ा।

केन की सहायक नदी श्यामरी बड़ामलहरा के पास से उद्गमित होती है। इस नदी पर मलहरा से 3 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरि स्थित है। जहाँ जैन मुनि गुरू दत्रादि ने कठोर साधना की थी। 225 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद द्रोणगिरि की इस पहाड़ी में 27 जिनालयों के दर्शन होते हैं। यहाँ भगवान आदिनाथ की संवत् 1949 की सबसे प्राचीन प्रतिमा के दर्शन होते हैं। मन्दिरों के अलावा यहाँ नवनिर्मित चौबीसी (चौबीस तीर्थकारों का मंदिर), धर्मशाला, जैन धर्म प्रशिक्षण विद्यालय आदि जैन धर्मावलम्बियों के तीर्थ स्थल में चार चाँद लगाते हैं।

सिद्ध क्षेत्र


जिस जैन तीर्थ स्थल में दिगम्बर मुनियों ने तप किया हो- और तप करने के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति हुई हो, उस स्थल को सिद्ध क्षेत्र कहते हैं।

अतिशय क्षेत्र


अतिशय क्षेत्र का अर्थ है जहाँ चमत्कार हुआ हो, अर्थात् चमत्कारी प्रतिमा हो। कहीं न कहीं कोई चमत्कार इस क्षेत्र में अवश्य हुआ होगा।

द्रोणगिरि क्षेत्र में चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी को प्रसिद्ध मेले का आयोजन किया जाता है। इसी के पास हिन्दू धर्म के अनुयायियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल कुड़ी धाम भी शोभायमान है। यहाँ हनुमान मंदिर के अलावा आश्रम और पवित्र कुण्ड हैं।

जगदीश्वर


केन नदी के किनारे वनों का नैसर्गिक सौन्दर्य मन को मुग्ध करने वाला है। इस नदी के समीप ही प्रसिद्ध पाण्डव प्रपात है जो पाण्डवों के अज्ञातवास की याद दिलाता है। पन्ना शहर से लगभग 10 किलोमीटर एवं खजुराहों से 25 किलोमीटर दूरी से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान प्रारम्भ हो जाता है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 543 वर्ग किलोमीटर है। इसकी स्थापना 1981 में हुई थी यह उद्यान पन्ना और छतरपुर दो जिलों में विस्तारित है। प्राचीन भौगोलिक स्थिति के आधार पर यह पन्ना, छतरपुर और बिजावर रियासत में विस्तीर्ण है।

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Post By: tridmin
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