नई दिल्ली, 30 अगस्त (भाषा)। कृत्रिम रूप से नदियों को जोड़ने के महाप्रयोग के तहत केन और बेतवा को जोड़ने की परियोजना को जल संसाधन व नदी विकास मंत्रालय दिसम्बर तक शुरू करना चाहता है। लेकिन मध्य प्रदेश में पर्यावरण व वन्य जीव मंजूरी अभी तक नहीं मिलने से इसमें देरी होने की आशंका है।
जल संसाधन व नदी विकास मंत्री उमा भारती ने कहा कि नदी जोड़ो कार्यक्रम मोदी सरकार की महत्त्वकांक्षी योजना है। इसके तहत केन-बेतवा नदियों से इस साल के अन्त तक इसकी शुरुआत किए जाने की उम्मीद है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश के हिस्से में आने वाले क्षेत्र के लिए पर्यावरण मंजूरी मिल गई है। मध्य प्रदेश के क्षेत्र में पन्ना रिजर्व आता है और इस दिशा में अभी वन व पर्यावरण और वन्य जीव मंजूरी नहीं मिल पाई है।
राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकार (एनडब्ल्यूडीए) ने केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को वन्य जीव मंजूरी के लिये संशोधित प्रस्ताव भेजा है। पहले भेजे गए प्रस्ताव को मध्य प्रदेश के वन्य जीव विभाग की आपत्तियों के बाद वापस ले लिया गया था। मध्य प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि संशोधित प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है।
केन-बेतवा नदी जोड़ो योजना की राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकार की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के अनुसार इसके तहत यहाँ डोढन गाँव के पास एक नया बाँध बनाने का फैसला किया गया है, जहाँ 9000 हेक्टेयर के जलाशय में पानी रोका जाएगा। इस प्रस्तावित जलाशय के डूब क्षेत्र में छतरपुर जिले के 12 गाँव आएँगे। इसमें पाँच आंशिक रूप से और सात गाँव पूर्ण रूप से। यहाँ पर दो बिजली संयंत्र भी बनाने का प्रस्ताव है।
परियोजना के तहत 220 किलोमीटर लम्बी नहर भी निकालने की बात कही गई है जो मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ और उत्तर प्रदेश के महोबा, झाँसी जिलों से गुजरेंगी। डीपीआर में कहा गया है कि इसके पूरा होने पर 60 हजार हेक्टेयर खेतों की सिंचाई हो सकेगी। इसमें पानी के उपयोग के बाद भी केन नदी से बेतवा नदी को पानी देने की बात कही गई है।
केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना इस लिहाज से अहम है कि यह प्रयोग सफल रहा तो देश की विभिन्न नदियों को आपस में जोड़ने की 30 योजनाओं का सपना साकार होने लगेगा। परियोजना को लेकर दो तरह के मत हैं। एक वर्ग का कहना है कि केन में अक्सर आने वाली बाढ़ से बर्बाद होने वाला पानी इससे बेतवा में पहुँचकर हजारों एकड़ खेतों में फसलों को लहलहाएगा। लेकिन यहाँ सवाल उठता है कि क्या केन में इतना पानी है कि रास्ते में उपयोग के बाद अधिशेष पानी बेतवा को दिया जा सकेगा। डीपीआर के मुताबिक उत्तर प्रदेश को केन नदी का अतिरिक्त पानी देने के बाद मध्य प्रदेश करीब इतना ही पानी बेतवा की ऊपरी धारा से निकाल लेगा। परियोजना के दूसरे चरण में मध्य प्रदेश चार बाँध बनाकर रायसेन और विदिशा जिलों में सिंचाई का इन्तजाम करेगा।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एण्ड पीपुल (सैंड्रप) के हिमांशु ठक्कर का कहना है कि सारी परियोजना इस परिकल्पना पर टिकी है कि केन नदी में फालतू पानी है। इसके अलावा पन्ना बाघ अभयारण्य और मौजूदा गंगऊ बाँध की निचली धारा में बने घड़ियाल अभयारण्य को भी खतरा पैदा हो सकता है।
पर्यावरण कार्यकर्ता अरुंधति का कहना है कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना पूरी होने के बाद इसके मध्य में आने वाले माताटीला और राजघाट बाँधो का क्या होगा। राजघाट बाँध का निर्माण तो 2006 में ही पूरा हुआ है। आरटीआई कार्यकर्ता आशीष सागर के आवेदन पर एनडब्लूडीए ने बताया था कि डीपीआर के मुताबिक 10 गाँव प्रभावित गाँव की सूची में हैं। इसमें से चार गाँव के लोगों को दूसरी जगह बसाया जा चुका है और छह गाँव के 806 परिवारों को बसाना शेष है।
डीपीआर में कहा गया है कि पुनर्वास और आर्थिक रूप से बसाने, जिसमें प्रशिक्षण और कालोनियों के लिए भूमि प्रदान करना शामिल है, के लिये 213.11 करोड़ रुपए की वित्तीय जरूरत है। केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के तहत केन नदी जबलपुर के पास कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर 427 किलोमीटर उत्तर की ओर बढ़ने के बाद बांदा जिले में यमुना में मिलती है। बेतवा नदी मध्य प्रदेश के राससेन जिले से निकलकर 576 किलोमीटर बहने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना में मिलती है। इन दोनों की सहायक नदियों पर पहले से ही कई बाँध बने हुए हैं। मध्य प्रदेश में वन्य जीव मंजूरी से जुड़ा एक अहम पहलू यह भी है कि पन्ना टाइगर रिजर्व का एक हिस्सा बाँध के डूब क्षेत्र में आएगा।
गंगऊ बाँध पर डोढऩ गाँव के 40 वर्षीय मुन्नालाल यादव और 70 वर्षीय श्यामलाल आदिवासी मिल गए। श्यामलाल ने केन-बेतवा लिंक के बारे में कहा, ''हाँ, अखबारों में ही कुछ देखा है लेकिन आज तक किसी सरकारी अफसर ने गाँववालों से कोई बात नहीं की। उनके साथ एक किमी. का सफर कर डोढन गाँव पहुँच गए जो पूरी परियोजना का केन्द्र बिन्दु है।
गाँव की चौपाल पर लोगों ने बताना शुरू किया कि उन्हें न तो योजना के बारे में कुछ पता है और न ही यह पता है कि उन्हें कोई मुआवजा भी मिलेगा या नहीं। 24 घंटे बिजली सुविधा के दावे करने वाले मध्य प्रदेश के इस गाँव में बिजली की लाइन नहीं पहुँची है। गाँव पन्ना टाइगर रिजर्व के अन्दर है, लिहाजा इस आदिवासी बहुल गाँव तक आने वाला सड़क मार्ग वर्षों से मरम्मत न होने की वजह से खत्म हो गया है।
जब उनसे पूछा गया कि 2007 में एनडब्ल्यूडीए की तरफ से तैयार प्रावधान के मुताबिक हर विस्थापित होने वाले परिवार को औसतन दो लाख रु. मुआवजा मिलेगा तो 65 वर्षीया पार्वती आदिवासी उखड़ गईं। उन्होंने कोहनी तक हाथ जोड़े और कहा, ''हम अपने गाँव में ठीक हैं। हमें न बाँध चाहिए, न चुटकी भर मुआवजा”
मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का 5,000 हेक्टेयर का बड़ा इलाका पानी में डूब जाएगा। गंगऊ बाँध के नीचे बनी घड़ियाल सेंचुरी को साल भर ताजा पानी उपलब्ध नहीं रहेगा। बेतवा पर पहले से मौजूद माताटीला बाँध और राजघाट बाँध को बहुत कम पानी मिल पाएगा। इससे इन बाँधों पर हुआ हजारों करोड़ रु. का निवेश बेकार हो जाएगा। राजघाट बांध पाँच साल पहले ही बनकर तैयार हुआ है।
जल संसाधन व नदी विकास मंत्री उमा भारती ने कहा कि नदी जोड़ो कार्यक्रम मोदी सरकार की महत्त्वकांक्षी योजना है। इसके तहत केन-बेतवा नदियों से इस साल के अन्त तक इसकी शुरुआत किए जाने की उम्मीद है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश के हिस्से में आने वाले क्षेत्र के लिए पर्यावरण मंजूरी मिल गई है। मध्य प्रदेश के क्षेत्र में पन्ना रिजर्व आता है और इस दिशा में अभी वन व पर्यावरण और वन्य जीव मंजूरी नहीं मिल पाई है।
राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकार (एनडब्ल्यूडीए) ने केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को वन्य जीव मंजूरी के लिये संशोधित प्रस्ताव भेजा है। पहले भेजे गए प्रस्ताव को मध्य प्रदेश के वन्य जीव विभाग की आपत्तियों के बाद वापस ले लिया गया था। मध्य प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि संशोधित प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है।
केन-बेतवा नदी जोड़ो योजना की राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकार की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के अनुसार इसके तहत यहाँ डोढन गाँव के पास एक नया बाँध बनाने का फैसला किया गया है, जहाँ 9000 हेक्टेयर के जलाशय में पानी रोका जाएगा। इस प्रस्तावित जलाशय के डूब क्षेत्र में छतरपुर जिले के 12 गाँव आएँगे। इसमें पाँच आंशिक रूप से और सात गाँव पूर्ण रूप से। यहाँ पर दो बिजली संयंत्र भी बनाने का प्रस्ताव है।
परियोजना के तहत 220 किलोमीटर लम्बी नहर भी निकालने की बात कही गई है जो मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ और उत्तर प्रदेश के महोबा, झाँसी जिलों से गुजरेंगी। डीपीआर में कहा गया है कि इसके पूरा होने पर 60 हजार हेक्टेयर खेतों की सिंचाई हो सकेगी। इसमें पानी के उपयोग के बाद भी केन नदी से बेतवा नदी को पानी देने की बात कही गई है।
केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना इस लिहाज से अहम है कि यह प्रयोग सफल रहा तो देश की विभिन्न नदियों को आपस में जोड़ने की 30 योजनाओं का सपना साकार होने लगेगा। परियोजना को लेकर दो तरह के मत हैं। एक वर्ग का कहना है कि केन में अक्सर आने वाली बाढ़ से बर्बाद होने वाला पानी इससे बेतवा में पहुँचकर हजारों एकड़ खेतों में फसलों को लहलहाएगा। लेकिन यहाँ सवाल उठता है कि क्या केन में इतना पानी है कि रास्ते में उपयोग के बाद अधिशेष पानी बेतवा को दिया जा सकेगा। डीपीआर के मुताबिक उत्तर प्रदेश को केन नदी का अतिरिक्त पानी देने के बाद मध्य प्रदेश करीब इतना ही पानी बेतवा की ऊपरी धारा से निकाल लेगा। परियोजना के दूसरे चरण में मध्य प्रदेश चार बाँध बनाकर रायसेन और विदिशा जिलों में सिंचाई का इन्तजाम करेगा।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एण्ड पीपुल (सैंड्रप) के हिमांशु ठक्कर का कहना है कि सारी परियोजना इस परिकल्पना पर टिकी है कि केन नदी में फालतू पानी है। इसके अलावा पन्ना बाघ अभयारण्य और मौजूदा गंगऊ बाँध की निचली धारा में बने घड़ियाल अभयारण्य को भी खतरा पैदा हो सकता है।
पर्यावरण कार्यकर्ता अरुंधति का कहना है कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना पूरी होने के बाद इसके मध्य में आने वाले माताटीला और राजघाट बाँधो का क्या होगा। राजघाट बाँध का निर्माण तो 2006 में ही पूरा हुआ है। आरटीआई कार्यकर्ता आशीष सागर के आवेदन पर एनडब्लूडीए ने बताया था कि डीपीआर के मुताबिक 10 गाँव प्रभावित गाँव की सूची में हैं। इसमें से चार गाँव के लोगों को दूसरी जगह बसाया जा चुका है और छह गाँव के 806 परिवारों को बसाना शेष है।
डीपीआर में कहा गया है कि पुनर्वास और आर्थिक रूप से बसाने, जिसमें प्रशिक्षण और कालोनियों के लिए भूमि प्रदान करना शामिल है, के लिये 213.11 करोड़ रुपए की वित्तीय जरूरत है। केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के तहत केन नदी जबलपुर के पास कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर 427 किलोमीटर उत्तर की ओर बढ़ने के बाद बांदा जिले में यमुना में मिलती है। बेतवा नदी मध्य प्रदेश के राससेन जिले से निकलकर 576 किलोमीटर बहने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना में मिलती है। इन दोनों की सहायक नदियों पर पहले से ही कई बाँध बने हुए हैं। मध्य प्रदेश में वन्य जीव मंजूरी से जुड़ा एक अहम पहलू यह भी है कि पन्ना टाइगर रिजर्व का एक हिस्सा बाँध के डूब क्षेत्र में आएगा।
गंगऊ बाँध पर डोढऩ गाँव के 40 वर्षीय मुन्नालाल यादव और 70 वर्षीय श्यामलाल आदिवासी मिल गए। श्यामलाल ने केन-बेतवा लिंक के बारे में कहा, ''हाँ, अखबारों में ही कुछ देखा है लेकिन आज तक किसी सरकारी अफसर ने गाँववालों से कोई बात नहीं की। उनके साथ एक किमी. का सफर कर डोढन गाँव पहुँच गए जो पूरी परियोजना का केन्द्र बिन्दु है।
गाँव की चौपाल पर लोगों ने बताना शुरू किया कि उन्हें न तो योजना के बारे में कुछ पता है और न ही यह पता है कि उन्हें कोई मुआवजा भी मिलेगा या नहीं। 24 घंटे बिजली सुविधा के दावे करने वाले मध्य प्रदेश के इस गाँव में बिजली की लाइन नहीं पहुँची है। गाँव पन्ना टाइगर रिजर्व के अन्दर है, लिहाजा इस आदिवासी बहुल गाँव तक आने वाला सड़क मार्ग वर्षों से मरम्मत न होने की वजह से खत्म हो गया है।
जब उनसे पूछा गया कि 2007 में एनडब्ल्यूडीए की तरफ से तैयार प्रावधान के मुताबिक हर विस्थापित होने वाले परिवार को औसतन दो लाख रु. मुआवजा मिलेगा तो 65 वर्षीया पार्वती आदिवासी उखड़ गईं। उन्होंने कोहनी तक हाथ जोड़े और कहा, ''हम अपने गाँव में ठीक हैं। हमें न बाँध चाहिए, न चुटकी भर मुआवजा”
मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का 5,000 हेक्टेयर का बड़ा इलाका पानी में डूब जाएगा। गंगऊ बाँध के नीचे बनी घड़ियाल सेंचुरी को साल भर ताजा पानी उपलब्ध नहीं रहेगा। बेतवा पर पहले से मौजूद माताटीला बाँध और राजघाट बाँध को बहुत कम पानी मिल पाएगा। इससे इन बाँधों पर हुआ हजारों करोड़ रु. का निवेश बेकार हो जाएगा। राजघाट बांध पाँच साल पहले ही बनकर तैयार हुआ है।
Path Alias
/articles/kaena-baetavaa-sae-haogai-nadaiyaon-kae-jaodanae-kai-paraiyaojanaa-kai-saurauata
Post By: RuralWater