कचरे निपटाने की ठोस कार्ययोजना नहीं

यमुना में दिल्ली के 18 छोटे-बड़े नाले का कचरा गिर रहा है। सोनीपत और पानीपत की औद्योगिक इकाइयों की रसायन युक्त दूषित पानी भी यमुना में बहाया जाता है, जिससे यमुना नदी में कई बार अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है और दिल्ली के ट्रीटमेंट प्लांट भी काम करना बंद कर देते हैं। यमुना में हैवी मेटल और रसायन पदार्थों की वजह से भू-जल की गुणवत्ता भी खतरे में है। इसके अलावा, औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला ठोस अपशिष्ट पदार्थों को निपटाने के लिए कार्य योजना तो बनाई गई है लेकिन अमल नहीं हो पा रहा है। यमुना सफाई के नाम पर पांच हजार करोड़ रुपये पानी में बहा दिए गए। लेकिन सरकार के पास औद्योगिक और घरेलू कचरे को निपटाने के लिए कोई ठोस कार्य योजना नहीं है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ठीक ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। औद्योगिक इकाइयां उत्सर्जित दूषित पानी और रासायनिक कचरे को शोधित किए बिना प्रवाहित कर रही हैं। ऐसे में यमुना को प्रदूषण मुक्त करना कठिन चुनौती है। ठोस और तरल कचरे से केवल यमुना नदी ही नहीं बल्कि दिल्ली की आबोहवा भी दूषित हो चुकी है। दिल्ली में रोज़ाना आठ हजार मीट्रिक टन कचरा घरेलू और औद्योगिक इकाइयों से निकल रहा है। यमुना में प्रतिदिन 3296 मिलियन लीटर दूषित कचरा प्रवाहित हो रहा है। दिल्ली भर में 23 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं, जिनकी क्षमता 512 एमजीडी की है। इसके अलावा 15 औद्योगिक क्षेत्रों में 13 ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। 1200 औद्योगिक इकाइयों ने दिल्ली सरकार को आश्वस्त किया है कि वे उत्सर्जित दूषित पानी को शोधित करने के लिए प्लांट लगाए हुए हैं। दिल्ली समेत 21 शहरों से होकर यमुना गुजरती हैं। 1993 में यमुना एक्शन प्लान तैयार हुआ। 15 शहरों के एक्शन प्लान के लिए जापान सरकार ने वर्ष-2010 में 700 करोड़ रुपये दिए। अन्य छह शहरों में एक्शन प्लान केंद्र और राज्य सरकार की मदद से लागू की गई। इसके बावजूद यमुना नदी गंदा नाला बनकर रह गई है।

यमुना में दिल्ली के 18 छोटे-बड़े नाले का कचरा गिर रहा है। सोनीपत और पानीपत की औद्योगिक इकाइयों (कपड़े की रंगाई करने वाली फैक्टरियां) की रसायन युक्त दूषित पानी भी यमुना में बहाया जाता है, जिससे यमुना नदी में कई बार अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है और दिल्ली के ट्रीटमेंट प्लांट भी काम करना बंद कर देते हैं। यमुना में हैवी मेटल और रसायन पदार्थों की वजह से भू-जल की गुणवत्ता भी खतरे में है। इसके अलावा, औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला ठोस अपशिष्ट पदार्थों को निपटाने के लिए कार्य योजना तो बनाई गई है लेकिन अमल नहीं हो पा रहा है। भलस्वा लैंडफिल पर रोज़ाना 500 मीट्रिक टन अपशिष्ट पदार्थ गिराया जाता है। ओखला लैंडफिल पर 200 मीट्रिक टन रोज़ाना अपशिष्ट पदार्थ गिराया जाता है। औद्योगिक इकाइयों से उत्सर्जित ठोस कचरे से बिजली पैदा करने की योजना थी। लेकिन अभी तक केवल ओखला में वेस्ट एनर्जी प्लांट स्थापित किया गया है। ओखला वेस्ट एनर्जी प्लांट में 1950 टन कचरा रोजाना खपत हो रही है और 16 मेगावाट बिजली पैदा की जा रही है।

गाजीपुर और नरेला में वेस्ट एनर्जी प्लांट का निर्माण कार्य चल रहा है। गाजीपुर में 1300 टन रोजाना कचरे की खपत कर 10 मेगावाट और नरेला में रोजाना 1200 टन कचरे से 24 मेगावाट बिजली पैदा करने की योजना है। यह दोनों एनर्जी प्लांट चालू हो जाने के बाद ठोस कचरे की निपटाने में सहूलियत होगी और बिजली भी पैदा हो सकेगी। दिल्ली सरकार गाजीपुर बेस्ट एनर्जी प्लांट को इस साल चालू करने की तैयारी में है। सबसे बड़ी चुनौती ई-कचरे की निपटान को लेकर है। घरेलू और औद्योगिक इकाइयों से भारी मात्रा में ई-कचरा जनरेट हो रहा है। ई-कचरा स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। ई-कचरे से रेडिएशन फैलने का भी खतरा है। सीमापुरी इलाके में ई-कचरा के धंधे में हजारों नाबालिग मजदूर लगे हुए हैं। ई-कचरे की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग रूल्स-2011 बनाए। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसे लागू भी किया। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी ने भी गाइड लाइन को फॉलो करना शुरू किया। ई-कचरा, मसलन खराब कंप्यूटर, टेलीफोन, मोबाइल, प्रिंटर, लैपटाप, बैटरी इत्यादि सामानों को रिसाइकलिंग करने वाले अधिकृत एजेंसी को बेचने की हिदायत दी गई। इसके लिए चेतन इंवायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप और एचआरए ई-वेस्ट प्राइवेट लिमिटेड को ठेका दिया गया।

इन कंपनियों ने दिल्ली में कई जगह कलेक्शन सेंटर लगाने का दावा किया लेकिन हकीकत देखना होतो सीमापुरी इलाके में चले जाइए। पोल खुल जाएगा। इसी तरह प्लास्टिक पर वैन लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया लेकिन औद्योगिक इकाइयां दिल्ली हाईकोर्ट की शरण में चली गई। औद्योगिक और घरेलू कचरे का निपटान सही तरीके से नहीं होने से जहां दिल्ली में गंदगी व्याप्त है वहीं प्रदूषण को नियंत्रित करना मुश्किल हो रहा है। चाहे यमुना एक्शन प्लान की बात हो, चाहे औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला कचरे के निष्पादन की बात हो या कचरे से ऊर्जा पैदा करने की बात हो, सरकार के पास स्कीम की कोई कमी नहीं है। लुभावने स्कीम को दिखाकर ही विश्व बैंक से धन प्राप्त कर लिया जाता है। लेकिन हकीकत कुछ और है। इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। सरकार को अध्यादेश लाकर इस दिशा में मजबूती के साथ काम करने की जरूरत है। जिस तरह आबादी को अभिशाप नहीं अवसर के तौर पर देखा जाने लगा है, ठीक उसी प्रकार कचरे को समस्या न मानकर संसाधान मानकर इस्तेमाल करने की जरूरत है। कचरे से पॉवर, गैस और ऑर्गेनिक खाद बनाने की योजना कागजों में सिमट कर रह गई है। चुनावी घोषणा पत्र और सरकार की प्राथमिकता में जब तक ये बातें शामिल नहीं होंगी, तब तक मूल समस्या को निपटाना मुश्किल होगा। इसके लिए इच्छा शक्ति और जनजागरूकता की भी जरूरत है।

जल में गिरता जहर


दिल्ली में रोज़ाना आठ हजार मीट्रिक टन कचरा घरेलू और औद्योगिक इकाइयों से निकलता है।
यमुना में प्रतिदिन 3296 मिलियन लीटर दूषित कचरा 18 छोटे-बड़े नालों से गिरता है। 23 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगे हैं जिनकी क्षमता 512 एमजीडी की है। इसके अलावा, 15 औद्योगिक क्षेत्रों में 13 ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं।
1200 औद्योगिक इकाइयों ने दिल्ली सरकार को आश्वस्त किया है कि वे उत्सर्जित दूषित पानी को शोधित करने के लिए प्लांट लगाए हुए हैं।

यमुना एक्शन प्लान


1993 में 15 शहरों के लिए यमुना एक्शन प्लान तैयार हुआ। जापान सरकार ने वर्ष-2010 में 700 करोड़ रुपये दिए।
अन्य छह शहरों में एक्शन प्लान केंद्र और राज्य सरकार की मदद से लागू की गई।
सफाई के नाम पर पांच हजार करोड़ रुपये पानी में बहा दिए गए।

कचरे से बिजली


ठोस कचरे से बिजली पैदा करने की योजना थी। भलस्वा लैंडफिल पर रोज़ाना 500 मीट्रिक टन अपशिष्ट पदार्थ गिराया जाता है। ओखला लैंडफिल पर 200 मीट्रिक टन रोज़ाना अपशिष्ट पदार्थ गिराया जाता है।
अभी तक केवल ओखला में वेस्ट एनर्जी प्लांट स्थापित किया गया है। इसमें 1950 टन कचरा की रोज़ाना खपत पर 16 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है।
गाजीपुर और नरेला में वेस्ट एनर्जी प्लांट का निर्माण कार्य चल रहा है। गाजीपुर में 1300 टन रोज़ाना कचरे की खपत कर 10 मेगावाट और नरेला में रोज़ाना 1200 टन कचरे से 24 मेगावाट बिजली पैदा करने की योजना है।
सबसे बड़ी चुनौती ई-कचरे (मसलन खराब कम्प्यूटर, टेलीफोन, मोबाइल, प्रिंटर, लैपटॉप, बैटरी इत्यादि) का निपटान है। घरेलू और औद्योगिक इकाइयों से भारी मात्रा में ई-कचरा जनरेट हो रहा है। यह स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। इससे रेडिएशन फैलने का भी खतरा।

(आलेख रविशंकर तिवारी की बातचीत पर आधारित)

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