कचरा बीनने वालों का मसीहा बना इंजीनियर

गुड़गांव : पिछले पंद्रह सालों से गुड़गांव तथा यूपी व बिहार के कई क्षेत्रों में कचरा बीनने वालों का मसीहा बने आरसी विद्यार्थी ने ऐच्छिक रिटायरमेंट लेकर इन्हीं लोगों के लिए काम कर रहे हैं व इन्हीं के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसी लड़ाई जिसमें न तो पैसा है और न ही नाम। हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, भारत एलुमिनियम कंपनी, इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड , डेटामेशनल रिसर्च एनालिस्ट, नई दिल्ली जैसी दर्जनों सरकारी तथा मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर चुके इस प्रिंटिंग इंजीनियर को जब लगा कि उनके पारिवारिक दायित्व पूरे हो गए हैं व अब देश व समाज का दायित्व पूरा करने का समय आ गया है तो उन्होंने 90 के दशक में पांच साल पहले ही ऐच्छिक रिटायरमेंट लेकर सामाजिक सेवा का बीड़ा उठाया। उनकी निगाहें पहले ही कचरा बीनने वालों पर थी सो इसी तबके पर काम करना शुरू कर दिया। कचरा बीनने वालों के घरों में चूल्हा जलाने से लेकर उनके बच्चों को मुफ्त तथा क्वालिटी शिक्षा देने का बीड़ा उठाया। वह अपने खर्च पर बच्चों को पढ़ाते हैं।

दुनिया के लगभग सभी देशों में घूम लेने के बाद उन्हें लगा कि जो स्थिति हमारे देश में कूड़ा बीनने वालों की है उससे कहीं ज्यादा अच्छी स्थिति में मोक्टम (मिश्र) के गधे हैं जो कि दिन में मात्र दो घंटे के लिए कूड़े वाली गाड़ी खींचते हैं और उन्हें वहां के अस्पतालों में वीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है। उनका कहना है कि विदेशों में कचरा बीनने वालों को स्पेशल आवास मिले हुए हैं लेकिन हमारे देश में झुग्गियों में दयनीय अवस्था में जीने को मजबूर इन कबाड़ियों को मात्र तीन हजार रुपये प्रति माह की औसत कमाई पर रहना पड़ रहा है। इन कूड़ा बीनने वालों की इस हालत पर तरस खाकर उन्होंने इनके लिए काम करना शुरु किया। शुरुआत में उनके बच्चों को भोजन तथा बच्चों व महिलाओं को मुख्त शिक्षा व पठन सामग्री अपने पैसों से उपलब्ध करवाई। उनके घरों में दो जून की रोटी की व्यवस्था अपने स्तर पर की। सेक्टर पांच स्थित इन बच्चों के लिए एख स्कूल बनाया है जिसमें मुफ्त शिक्षा देते हैं। सरकार से किसी भी प्रकार का अनुदान नहीं लेते। कड़ी धूप में भी दूर दराज की कंस्ट्रक्शन साइटों पर जाकर जागरूकता फैलाने का काम करते हैं। कंपनियों में जाकर इन बच्चों को पढ़ाने के लिए कर्मचारियों व अधिकारियों से आग्रह करते हैं। जरूरत पड़ने पर इनकी आर्थिक सहायता भी करते हैं। कई बार इन्हें इसके लिए पद यात्रा भी करनी पड़ती है लेकिन यह उफ तक नहीं करते।

इतना ही नहीं उन्होंने इन झुग्गी निवासियों को ऐसा इंधन बनाना सिखाते हैं जो कि प्रदूषण रहित धुंआ देता है। इसके लिए वह कई अन्य जगहों पर भी डेमोंस्ट्रेशन दे चुके हैं।

बिजनौर के संस्कृत अध्यापक पिता के घर जन्म लेने वाले आरसी विद्यार्थी की प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल से हुई और अपने लगन व मेहनत के बूते वह ऊंचाइयों पर पहुंचे। दुनिया का लगभग हर देश घूम चुके प्रिंटिंग इंजीनियर विद्यार्थी हाल ही में अपने चार बच्चों में से एक बेटे व उसके परिवार को एक दुर्घटना में खो चुके हैं। यह बताते हुए आंखें नम हो आने पर वह फिर से अपने मिशन की बात करने लगते हैं। इतना जज्बा व इस उम्र में भी इतनी ऊर्जा कहां से लाते हैं, इस बारे में वह कहते हैं कि वह अभी तक रिटायर नहीं हुए हैं और बस एक ही बार होंगे। विद्यार्थी का कहना है कि उन्हें पता है कि उनके पास समय बहुत कम है व काम बहुत ज्यादा है। वह कहते हैं कि अगर उनके हाथ में बागडोर दे दी जाए तो वह शहर की शक्ल बदल देंगे वह भी मात्र एक साल में बशर्ते उन्हें उनके तरीके से काम करने दिया जाए। वह कहते हैं कि वह लोगों को कचरे को रिसाईकिल करना सिखाते हैं। उनके मुताबिक घरों तथा कारखानों से निकलने वाले मात्र 18 प्रतिशत कचरे को ही रिसाईकिल किया जा सकता है तथा अगर लोग इसमें रुचि लें तो इस प्रतिशत मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। वह बताते हैं कि किसी के कहने पर उन्होंने चार बार गैर सरकारी संगठन बनाए लेकिन उसमें लोगों को जोड़ने के बाद लगा कि इससे लालच व भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है तो उन्होंने उसे बंद करके पूरी तरह से अपने स्तर पर काम शुरू कर दिया। उनका कहना है कि अब भी उनके साथ कई संगठन जुड़े हुए हैं लेकिन वह सभी अच्छे पदों पर अच्छी कंपनियों में कार्यरत हैं।

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