कार्बन उत्सर्जन पर लगाम


यह दुखद है कि हम विकासशील से विकसित देशों की श्रेणी में आने की तेजी के चक्कर में विकास क्रम को सुपर फास्ट बनाने के लिये बिजली का उपयोग ऊर्जा के रूप में करना चाहते हैं। जरूरतें त्वरित पूरा करने हेतु बड़े-बड़े ताप बिजलीघरों की स्थापना की जा रही है। झुण्ड-के-झुण्ड स्थापित बिजलीघर वायु व जल प्रदूषण की गम्भीर समस्याएँ खड़ी कर रहे हैं।

यह अच्छी खबर है कि हिन्दुस्तान का कार्बन उत्सर्जन हाल के सालों में सन्तोषजनक रूप से घटा है। यानी कि हिन्दुस्तान को ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने का जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। धरती के गर्म होने तथा जलवायु परिवर्तन में यूनाइटेड नेशंस ने हिन्दुस्तान को जो उत्तरदायित्त्व दिया है उसका ईमानदारी से पालन हो रहा है। पिछले साल हुए पेरिस जलवायु समझौते के बाद हिन्दुस्तान ने पिछले दिनों ‘यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट बॉडी-यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन आॅन क्लाइमेट चेंज’ को पहली बाइनियल अपडेट रिपोर्ट- ‘बीयूआर’ सौंपते हुए कहा कि हमारी ओर से कार्बन उत्सर्जन में वैश्विक प्रतिबद्धता का पालन किया जा रहा है। इसमें पिछले 5 सालों में 12 फीसदी की कमी हुई है तथा यह कमी 2020 तक 20-25 फीसदी कटौती करने के वचन के अनुरूप है और कार्बन उत्सर्जन में कमी करने की गति ऐसी ही रही तो हिन्दुस्तान सन् 2030 तक 33-35 फीसदी कटौती आराम से कर सकता है।

पर्यावरण की सुन्दरता पर संस्कृत की एक महत्त्वपूर्ण सूक्ति है-

‘यो देवोग्नों योप्सु यो विश्वं भूवनमाविवेश,
यो औषधिषु यो वनस्पतिषु तस्मै देवाय नमो नम:’।


अर्थात जो अग्नि, जल, आकाश, पृथ्वी, वायु से आच्छादित है तथा जो औषधियों एवं वनस्पति में विद्यमान है, उस पर्यावरणीय देव को हम नमस्कार करते हैं। वेद साक्षी है तथा इतिहास गवाह है कि हमने हमेशा प्राकृतिक पर्यावरण की वन्दना की है। जलस्रोतों गंगा, यमुना, सरस्वती आदि की पूजा की है। पीपल, नीम, बड़ इत्यादि की अर्चना की है। सूर्य, चंद्र आदि को नमन किया है। पृथ्वी माता को प्रणाम किया एवं आकाश में आच्छादित वायुदेव का आह्वान किया है। तब आखिर क्यों हम अब प्रकृति के प्रति क्रूर हो गए हैं। पेड़ों को काट रहे हैं। जल में कूड़ा-करकट, अवशिष्ट, खतरनाक रसायन, मल-मूत्र छोड़ रहे हैं। पर्यावरण स्वच्छ रखने की बजाय आसमान में विस्फोट कर रहे हैं। भूमण्डल तथा नभमण्डल को दूषित कर रहे हैं।

और इसका दुष्परिणाम हमारे सामने असमय भूस्खलन, रोज-रोज होने वाले भूकम्प, बाढ़, सुनामी, अकाल, तूफान आदि अनियमित मौसम के रूप में सामने आ रहा है। और इसीलिये मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस साल 2015 से भी ज्यादा गर्मी पड़ने वाली है। इसकी वजह ग्रीन हाउस गैसों का प्राकृतिक परिस्थितियों पर प्रभाव बढ़ जाना है। पर पिछले 5 वर्षों में कार्बन उत्सर्जन में 12 फीसदी कमी एक सुखद संकेत है और स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने की हिन्दुस्तानी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। पिछले साल 13 दिसम्बर को पेरिस में हुए जलवायु समझौते में 195 देशों ने हिस्सा लिया था। उसमें कहा गया था कि विकासशील देश अपनी पहली ‘बीयुआर’ जल्दी-से-जल्दी सौंपे।

यह दुखद है कि हम विकासशील से विकसित देशों की श्रेणी में आने की तेजी के चक्कर में विकास क्रम को सुपर फास्ट बनाने के लिये बिजली का उपयोग ऊर्जा के रूप में करना चाहते हैं। जरूरतें त्वरित पूरा करने हेतु बड़े-बड़े ताप बिजलीघरों की स्थापना की जा रही है। झुण्ड-के-झुण्ड स्थापित बिजलीघर वायु व जल प्रदूषण की गम्भीर समस्याएँ खड़ी कर रहे हैं। पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म र्इंधनों के अत्यधिक दहन, वनों के नष्ट होने, अक्रियाशील कार्बन यौगिकों तथा खेती में खाद के प्रयोग आदि से वायु मंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का जमाव बढ़ गया है लिहाजा धरती का तापमान बढ़ रहा है।

दुष्परिणाम, उपरोक्त घातक हालातों यानी जलवायु में आपदा लाने वाले परिवर्तनों से हम दो चार हो रहे हैं। परन्तु इसको कम कार्बन उत्सर्जन के उपायों से यानी पर्यावरण स्वच्छता से रोका जा सकता है। हिन्दुस्तान ने यूनाइटेड नेशंस को पहली ‘बीयूआर’ सौंपकर यह किया भी है। अब तक ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, समेत कुल 24 देशों ने ‘बीयूआर’ दिया है जिसमें दुनिया के सबसे बड़े ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जक चीन का नाम नहीं है। पर हिन्दुस्तान अपने कर्तव्य का पालन बखूबी कर रहा है क्योंकि आम हिन्दुस्तानी का मानना है कि प्रकृति ने मनुष्य को अनूठी प्रतिभा, क्षमता, सृजनशीलता, तर्कशक्ति प्रदान कर विवेकशील चिन्तनशील एवं बुद्धिमान प्राणी के रूप में बनाया है। अत: मनुष्य का दायित्त्व है कि वह प्राकृतिक संसाधनों में सन्तुलित चक्र के रूप में बनाए रखते हुए स्वस्थ वातावरण का निर्माण करना अपना पुनीत कर्तव्य समझे।

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