- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण अधिनियम, 1974
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण के लिए बोर्ड
- राष्ट्रीय अधिकरण का गठन
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण उपकर अधिनियम, 1977
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण उपकर नियमावली, 1978
- प्रदूषण की रोकथाम तथा नियंत्रण जल अधिनियम, 1974
- पर्यावरण संरक्षण नियम, 1981
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980
- वायु प्रदूषण (निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981
- राष्ट्रीय पर्यावरण अधिकरण अधिनियम, 1995
- भोपाल गैस विभीषिका (दावा कार्यवाही) अधिनियम 1985
- लोक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991
- कीटनाशी अधिनियम, 1968
- परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (सुसंगत प्रावधान)
- पर्यावरण (प्रतिरक्षण) अधिनियम, 1985
जल एक विश्वसनीय भेषज (दवा) है। -अथर्ववेद
जलाशय निर्माण करने वाले व्यक्ति को स्वर्ग में स्थान मिलता है। -स्कंदपुराण
बावड़ी, पोखर और तालाब आदि से पाँच मुट्ठी मिट्टी बाहर निकाले बिना उसमें स्नान करना शुभ नहीं हैं। -स्कंद पुराण
नाप्सु मूत्रं पुरीषं वा स्तोवनं समुत्सृजेत।अमेध्यलिप्तमन्यद्धा लोहिंत वा विषाणि वा।।
नदियों और तालाबों आदि में मल-मूत्र, थूक अथवा अन्य दूषित पदार्थ विसर्जन अशुभ कार्य है। -मनु स्मृति
जल को देवता स्वरूप मानते हुए नदियों को जीवनदायिनी कहा गया है। - सभी ग्रंथ
दस कुओं के बराबर एक बावड़ी,
दस बावड़ी के बराबर एक तालाब,
दस तालाब के बराबर एक पुत्र और
दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है। -श्वेतश्वरोपनिषद्
‘जन-जीवन की अजस्त्र प्रवाहमयी नदी जिसके नीचे बहती है, मुड़ती, बलखाती, नये मार्ग को फोड़ती, नये कगारे तोड़ती, चिर परिवर्तनशील, सागर की ओर जाती, जाती-जाती, मैं वहाँ हूँ, दूर-दूर-दूर।’- अज्ञेय
‘प्राचीन काल से ही इस देश में नदियों के प्रति अत्यन्त श्रद्धा और भक्ति का भाव रहा है और क्षेत्र विशेष के निवासियों के लिये तो ये नदयाँ माता अन्नपूर्णा का प्रत्यक्ष रूप हैं।’ -पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी
जैंसे जीके बाप मताई, ऊसै ऊके लरका,
जैसे जीके नदी नारे, वैसई ऊके भरका।
(एक बुन्देली कहावत)
तीर सा, वर्ष फिर गुजरा नदी के नीर सा।
-सीताराम ‘पथिक’
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण के लिए बोर्ड
- राष्ट्रीय अधिकरण का गठन
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण उपकर अधिनियम, 1977
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण उपकर नियमावली, 1978
- प्रदूषण की रोकथाम तथा नियंत्रण जल अधिनियम, 1974
पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित अन्य नियम-कानून
- पर्यावरण संरक्षण नियम, 1981
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980
- वायु प्रदूषण (निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981
- राष्ट्रीय पर्यावरण अधिकरण अधिनियम, 1995
- भोपाल गैस विभीषिका (दावा कार्यवाही) अधिनियम 1985
- लोक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991
- कीटनाशी अधिनियम, 1968
- परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (सुसंगत प्रावधान)
- पर्यावरण (प्रतिरक्षण) अधिनियम, 1985
जल ही जीवन है-
जल एक विश्वसनीय भेषज (दवा) है। -अथर्ववेद
जलाशय निर्माण करने वाले व्यक्ति को स्वर्ग में स्थान मिलता है। -स्कंदपुराण
बावड़ी, पोखर और तालाब आदि से पाँच मुट्ठी मिट्टी बाहर निकाले बिना उसमें स्नान करना शुभ नहीं हैं। -स्कंद पुराण
नाप्सु मूत्रं पुरीषं वा स्तोवनं समुत्सृजेत।अमेध्यलिप्तमन्यद्धा लोहिंत वा विषाणि वा।।
नदियों और तालाबों आदि में मल-मूत्र, थूक अथवा अन्य दूषित पदार्थ विसर्जन अशुभ कार्य है। -मनु स्मृति
जल को देवता स्वरूप मानते हुए नदियों को जीवनदायिनी कहा गया है। - सभी ग्रंथ
दस कुओं के बराबर एक बावड़ी,
दस बावड़ी के बराबर एक तालाब,
दस तालाब के बराबर एक पुत्र और
दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है। -श्वेतश्वरोपनिषद्
‘जन-जीवन की अजस्त्र प्रवाहमयी नदी जिसके नीचे बहती है, मुड़ती, बलखाती, नये मार्ग को फोड़ती, नये कगारे तोड़ती, चिर परिवर्तनशील, सागर की ओर जाती, जाती-जाती, मैं वहाँ हूँ, दूर-दूर-दूर।’- अज्ञेय
‘प्राचीन काल से ही इस देश में नदियों के प्रति अत्यन्त श्रद्धा और भक्ति का भाव रहा है और क्षेत्र विशेष के निवासियों के लिये तो ये नदयाँ माता अन्नपूर्णा का प्रत्यक्ष रूप हैं।’ -पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी
जैंसे जीके बाप मताई, ऊसै ऊके लरका,
जैसे जीके नदी नारे, वैसई ऊके भरका।
(एक बुन्देली कहावत)
तीर सा, वर्ष फिर गुजरा नदी के नीर सा।
-सीताराम ‘पथिक’
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