कानपुर का पानी

उत्तराखंड के पहाड़ों से उतरकर उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्र में अपने पूरे बहाव में गंगा सर्वाधिक कानपुर डाउनस्ट्रीम में प्रदूषित है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पिछले वर्ष गर्मी के मौसम में मई-जून और इस वर्ष के इसी अवधि के आंकड़े हकीकत को बयान करते हैं।

सूबे में गंगा आठ शहरों-गाजियाबाद, बुलंदशहर, कन्नौज, कानपुर, रायबरेली, इलाहाबाद, वाराणसी और गाजीपुर से होकर बहती है। बोर्ड इस पूरे बहाव में 13 बिंदुओं पर इसकी जल की गुणवत्ता की जांच करता है। एक ही मौसम में 2008 और 2009 दोनो ही में कानपुर डाउनस्ट्रीम में गंगा का जल सबसे अधिक प्रदूषित मिला।

हर शहर में प्रवेश के बाद बाहर निकलते समय डाउनस्ट्रीम में नदी के जल की गुणवत्ता कम होती है, पर कानपुर में गंगा जितनी प्रदूषित होती है उतनी कहीं नहीं। गाजियाबाद, बुलंदशहर, कन्नौज, रायबरेली, इलाहाबाद, वाराणसी और गाजीपुर के अपस्ट्रीम व डाउनस्ट्रीम दोनो में गंगाजल में जहां घुलित ऑक्सीजन की मात्रा साढ़े छह से आठ मिलीग्राम प्रति लीटर के आसपास रहती है, वहीं कानपुर में यह घटकर पांच मिलीग्राम प्रति लीटर तक कम हो जाती है। कानपुर में प्रवेश के बाद प्रदूषण के कारण इसकी जैविक ऑक्सीजन की मांग सर्वाधिक बढ़कर 14 से16 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच जाती है जबकि गाजियाबाद, बुलंदशहर, कन्नौज, रायबरेली, इलाहाबाद, गाजीपुर में बीओडी की मात्रा तीन से पांच मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच बनी रहती है। दूसरे नम्बर पर वाराणसी डाउनस्ट्रीम में गंगा की बीओडी 12 मिलीग्राम प्रति लीटर के आसपास रहती है पर वहां के घाटों पर इसमें स्नान करनेवाले लाखों श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए इसकी वजह साफ है। कानपुर, इलाहाबाद में सामान्य दिनों में स्नान करने वालों की संख्या इतनी ज्यादा नहीं होती। तब कानपुर में नदी की जैविक ऑक्सीजन मांग इतनी अधिक क्यों बढ़ जाती है? जहां तक सीवेज लोड का सवाल है तो कानपुर इलाहाबाद, वाराणसी, गाजियाबाद सभी नगरों में यह लोड नदी में गिराया जाता है पर नदी की इतनी बदतर स्थिति में कहीं नहीं है।

बोर्ड के अफसरों का कहना है कि कानपुर में बरसों की कवायद के बाद बंथर लेदर पार्क में बोर्ड ने बड़ी टेनरियों को तो शिफ्ट कर दिया पर उन्नाव व कानपुर में घर-घर चल रहीं टेनरियां, कारखाने आदि गंगा की इस बदतर स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। जाहिर है, कानपुर में गंगा की इस स्थिति के लिए सीवेज लोड ही अकेले नहीं बल्कि उद्योग भी जिम्मेदार हैं।

भूगर्भ जल में क्रोमियम का जहर


शहर के भूगर्भ जल में क्रोमियम का जहर फैलता जा रहा है। पनकी में डंकन इंडस्ट्रीज के पास पानी में क्रोमियम मिलने से इसकी पुष्टि हुई है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने क्षेत्र में हैंडपंपों के पानी के इस्तेमाल पर रोक लगाकर जल संस्थान से जलापूर्ति करने को कहा है। लेकिन पाइप लाइन न होने और टैंकर न पहुंचने से सैकड़ों लोग हैंडपंपों से निकल रहा प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं।

जाजमऊ, रूमा, नौरेयाखेड़ा व जूही इलाकों में भूगर्भ जल पहले ही क्रोमियम से प्रदूषित है। पानी में बढ़ती क्रोमियम की मात्रा की निगरानी के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुख्यालय ने क्षेत्रीय कार्यालय को जांच के निर्देश दिये थे। इसी के बाद स्थानीय टीम ने कल्याणपुर, पनकी, नौरेयाखेड़ा, जूही, साकेत नगर, जाजमऊ, वाजिदपुर, फूलबाग, जिलाधिकारी कार्यालय, एडीएम आवास, मंडलायुक्त कार्यालय परिसर, किदवई नगर, विकास नगर, रूमा, लखनपुर, शास्त्री नगर, विजय नगर आदि 70 स्थानों पर पानी के नमूने लिये। इनमें सर्वाधिक खतरनाक स्थिति रूमा में मिली। यहां टेनरियों के स्लज डंप करने वाले स्थल से कुछ दूर एक दुकान के पास हैंडपंप से बिल्कुल पीला पानी निकल रहा था। पनकी में डंकन इंडस्ट्रीज के बाहर हैंडपंप में एक लीटर पानी में क्रोमियम की मात्रा 0.061 मिली। यह नया इलाका है, जहां पानी में क्रोमियम चिह्नित किया गया है। नौरेयाखेड़ा में मनोज सिंह के मकान में हैंडपंप में क्रोमियम की मात्रा 7.14 मिलीग्राम प्रतिलीटर मिली। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राधेश्याम ने बताया क्रोमियम त्वचा रोगों के साथ कैंसर तक का कारण है। पनकी नया क्षेत्र है, जहां पानी में क्रोमियम के अंश मिले हैं। यह चिंताजनक है। क्षेत्र के हैंडपंप बंद करा दिये गये हैं।

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