कैसे पूरा होगा स्वच्छ पेयजल का सपना

कैसे पूरा होगा स्वच्छ पेयजल का सपना
कैसे पूरा होगा स्वच्छ पेयजल का सपना

देश की राजधानी दिल्ली में पेयजल की गुणवत्ता को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। आम आदमी पार्टी जहां दिल्ली में सप्लाई किए जा रहे पानी को शुद्ध बता रही है, वहीं भाजपा इसे अशुद्ध बता रही है। दरअसल इस घमासान के पीछे भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट है। इसने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दिल्ली से लिए गए पानी के सभी 11 नमूने जल की गुणवत्ता मापने वाले 19 मापदंडों पर खरे नहीं उतर पाए और दिल्ली का पानी 21 राज्यों की राजधानियों में से सबसे असुरक्षित है। तब से भाजपा और आप के बीच वाक्युद्ध जारी है, लेकिन सवाल है कि ऐसे गंभीर मुद्दे पर राजनीति करने के बजाय उसके समाधान पर संजीदगी से पहल नहीं करनी चाहिए?

जलजनित रोगों की समस्या  

यह वाक्युद्ध भले ही दिल्ली में छिड़ी हो, लेकिन कहने की जरूरत नहीं कि देश के कोने-कोने में प्रदूषित पेयजल की समस्या का सामना किया जा रहा है। विडंबना है कि इसके उचित समाधान के बजाय हमेशा आरोपों पर लीपापोती और बयानबाजियां ही होती आई हैं। सभी सरकारें इससे मुंह चुराती नजर आती हैं। पिछले ही साल केंद्रीय जल संसाधन मंत्रलय ने बताया था कि प्रदूषित जल के कारण मौतों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जल प्रदूषण एवं जलजनित रोगों की समस्या नई नहीं है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में जिस तीव्रता से एक घनी आबादी जलजनित रोगों से प्रभावित हो रही है वह राष्ट्रीय नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता का विषय है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 75 फीसद शहरी, जबकि 40 फीसद ग्रामीण क्षेत्रों में ही स्वच्छ पेयजल उपलब्ध है। ऐसे में सवाल है कि 25 फीसद शहरी और 60 फीसद ग्रामीण क्षेत्रों में दूषित जल का उपयोग करने वालों के स्वास्थ्य का जवाबदेह कौन है? खुद नागरिक या सरकार? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21, 39 (2) एवं 40 (4) में नागरिकों को स्वच्छ एवं शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने का प्रावधान है, लेकिन अमली तौर पर हकीकत कुछ और ही है।

हैरान करते आंकड़े  

जल संसाधन मंत्रलय के आंकड़े बताते हैं कि देश के 276 जिले फ्लोराइड से, 387 जिले नाइट्रेट से, 86 जिले आर्सेनिक से, 297 जिले लौह से और 113 जिले भारी धातुओं (सीसा, कैडमियम, क्रोमियम) से खासा प्रभावित हैं। जैसे राजस्थान, तमिलनाडु एवं मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के आधे से ज्यादा जिले फ्लोराइड से प्रभावित हैं। वहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश के सभी जिले नाइट्रेट की चपेट में हैं। यदि विषैला तत्व आर्सेनिक की बात करें तो यह धीरे-धीरे अपना दायरा बढ़ा रहा है। सात के बजाय अब 10 राज्यों को यह अपना शिकार बना चुका है। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, असम एवं पश्चिम बंगाल सर्वाधिक प्रभावित हैं। गौरतलब है कि जल में उपरोक्त तत्वों का होना समस्या की बात नहीं है, बल्कि इन तत्वों की तय सीमा से ज्यादा मौजूदगी परेशानी का सबब है। भारतीय मानक ब्यूरो ने प्रत्येक तत्वों की प्रति लीटर पानी में मौजूदगी के एक स्तर का निर्धारण किया है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित माना गया है। इसके अनुसार प्रति लीटर पीने के पानी में फ्लोराइड 1.5 मिलीग्राम, नाइटेट 45 मिलीग्राम, लौह एक मिलीग्राम, आर्सेनिक 0.05 मिलीग्राम, सीसा 0.01 मिलीग्राम और कैडमियम 0.003 मिलीग्राम से अधिक की मौजूदगी स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

जल प्रबंधन का अभाव

दरअसल हमारे यहां जल प्रबंधन की खामियों के कारण परिस्थितियां ऐसी हैं कि आमजन के हिस्से या तो जबर्दस्त जल संकट है या दूषित पानी पीने का अभिशाप। देश के अधिकतर हिस्सों में पेयजल की शुद्धता ही नहीं प्रबंधन भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। 2011 के एक सर्वे के अनुसार 20 प्रतिशत लोगों को पीने का पानी लेने घर से आधा किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। दूर-दराज के गांवों में तो यह दूरी और बढ़ जाती है। जीवन की अहम जरूरत को जुटाने के लिए भारत के कई प्रांतों में महिलाएं घंटों पैदल चलती हैं। पहाड़ी इलाकों से लेकर रेगिस्तानी मैदानों तक महिलाएं हर दिन परिवार की जरूरत भर का पानी जुटाने को संघर्ष करती हैं। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र के एक अध्ययन में भी सामने आ चुका है कि देश के 71 बड़े शहरों में पानी की सही आपूर्ति की व्यवस्था और योजना नहीं है। इन शहरों में वितरित किया जाने वाला पानी का एक तिहाई हिस्सा तो लीकेज और खराब पाइपों से बह जाता है। आवास और शहरी मंत्रलय के आंकड़े बताते हैं कि देश के लगभग दो सौ शहरों में जल प्रबंधन की ओर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। जब बड़े शहरों में जल प्रबंधन के ऐसे हालात हैं तो गांवों-कस्बों में पेयजल आपूर्ति के इंतजामों में बरती जा रही लापरवाही को समझना मुश्किल नहीं है। कारखानों के अवशिष्ट पदार्थो को डालकर नदियों और तालाबों के पानी को जहरीला बना दिया गया है। साथ ही घरेलू कचरा भी इन जल स्नेतों में डाला जाता है। औद्योगीकरण के कारण तो 70 प्रतिशत नदी प्रवाहित जल प्रदूषित हो चुका है। मसलन कानपुर में स्थित 151 चमड़े के कारखानों से प्रतिदिन 58 लाख लीटर दूषित जल गंगा में बहा दिया जाता है।

गौरतलब है कि नागरिकों को दूषित पेयजल उपलब्ध कराने के मामले में विश्व के 122 देशों के समूह में भारत बेल्जियम एवं मोरक्को के बाद तीसरे स्थान पर है। समझना होगा कि जल में विषैले प्रदूषकों के मिले होने से कैंसर, लीवर की समस्या, डायरिया, हैजा, पीलिया, क्षय रोग जैसे रोगों से दो चार होना पड़ता है जो कई अवसरों पर मौत का कारण बनते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक औसतन तीन करोड़ 77 लाख व्यक्ति हर साल जलजनित बीमारियों से प्रभावित होते हैं। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत एक बड़ा कारण प्रदूषित पानी ही है। हार साल 15 लाख बच्चे केवल डायरिया के कारण अपनी जान गंवाते हैं।

स्वच्छ पेयजल हर नागरिक का मूलभूत अधिकार

सवाल यह है कि जनता को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित रखने के लिए जिम्मेदार कौन है? बच्चों का विभिन्न रोगों से ग्रसित होना उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या है? एक अनुमान के अनुसार यदि स्वच्छ पेयजल और बेहतर सफाई व्यवस्था मुहैया कराई जाए तो प्रत्येक 20 सेकेंड में एक बच्चे की जान बचाई जा सकती है, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी के कारण हमारी सरकारें इन मौतों को रोकने में असफल हैं। यह सरकार की प्रतिबद्धता में कमी को दर्शाता है कि एक तरफ तो आप जल प्रदूषण को दूर करने के लिए विभिन्न कदम उठाते हैं और दूसरी ओर हालात बदतर होते जा रहे हैं। सरकारों द्वारा स्वच्छ पेयजल आपूर्ति का प्रावधान, अलग से पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रलय का निर्माण, राष्ट्रीय जल नीति का निर्माण जैसी कई पहलें की गई हैं, लेकिन धरातल पर कोई उत्साहजनक नतीजे देखने को नहीं मिलते।

विडंबना है कि नदियों को पूजने वाला देश होने के बावजूद भारत जल प्रदूषण की ऐसी भयावह स्थिति से गुजर रहा है। आजादी के 69 वर्ष बाद भी हम अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित हैं। एक बात और, समुदाय यदि ठान लें कि उन्हें सुरक्षित पेयजल हर कीमत पर चाहिए तो सूरत-ए-हाल केन्या जैसा बन सकता है। केन्या में नागरिक संगठनों ने हुकूमत पर ऐसा दबाव बनाया कि स्वच्छ पेयजल हर नागरिक का मूलभूत अधिकार बन गया है।

 

लेखक -  रिजवान अंसारी

अध्येता, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली

सोर्स - दैनिक जागरण, 27 नवम्बर 2019

 

 

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Post By: Shivendra
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