कैसे हो भूजल सस्टेनेबल

“…चेन्नई के लोगों ने रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाकर भूजल की बढ़ोत्तरी में उल्लेखनीय योगदान दिया है। लेकिन इतने मात्र से ही अपनी समस्याओं की इतिश्री नहीं मान लेनी चाहिए।…” चेन्नई वासियों की कोशिशों और भविष्य की जरूरतों पर प्रकाश डाल रहे हैं शेखर राघवन और इन्दुकान्त रगाड़े…
चेन्नई में पिछले कुछ सालों से पानी की जो संतोषजनक स्थिति रही है। उसमें अच्छे मानसून, आंध्रप्रदेश से पानी की लगातार पूर्ति और वीरानम झील का बड़ा हाथ तो है ही, लेकिन मुख्य भूमिका चेन्नई के नागरिकों की है, जिंहोंने रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाकर भूजल की बढ़ोत्तरी में उल्लेखनीय योगदान दिया है। लेकिन इतने मात्र से ही समस्याओं की इतिश्री नहीं मान लेनी चाहिए।

शहर के उत्तर में बहने वाली अरनियार-कोर्तालयार नदियों से शहर को पानी मिलता है लेकिन दुर्भाग्य से इनकी भंडारण क्षमता जरूरत के मुकाबले कम है। अनुमानतः एक साल की जलापूर्ति बहकर समुद्र में चली जाती है। आंध्रप्रदेश और वीरानम झील के पानी की मात्रा का कोई भरोसा नहीं है। इसलिये चेन्नई वासियों को भविष्य में पानी के लिए आने वाले किसी भी खतरे से निपटने के लिये खुद ही आत्मनिर्भर बनना होगा। भूजल स्रोतों का उचित और स्थाई उपयोग करना समझना होगा।
विभिन्न भूजल विशेषज्ञों और अनुभवी लोगों के मुताबिक भूजल सामान्यतः दो सतहों पर पाया जाता है- धरती की उथली सतह (कम गहराई) पर यानी कुंए और ट्यूबवेल और धरती की गहराई में चट्टानों के बीच मौजूद परतों में जिसे बोरवेल के जरिये निकाला जाता है।

चट्टानों के बीच पानी की मौजूदगी स्थान विशेष पर निर्भर करती है, जैसे चेन्नई में लिटिल माउंट इलाके में पानी सिर्फ़ 5 फ़ुट खोदने पर ही मिल जाता है, जबकि बसन्त नगर में 60 फ़ुट पर और नगर के अन्य इलाकों में 150 फ़ुट पर।
पिछले तीन दशकों में अत्यधिक दोहन से परम्परागत छोटे कुंए और कम गहराई वाले ट्यूबवेल सूख गये हैं। अब डीप बोरवेल्स फैशन में है जिसके कारण पिछले दो दशकों से धरती की उथली और कम गहराई वाली ज़मीन में स्थित पानी की अनदेखी हो रही है। जबकि कुंए हमारी भविष्य की धरोहर हैं, क्योंकि ये बोरवेल की तरह अस्थायी नहीं बल्कि पानी के स्थाई स्रोत हैं।

चेन्नई में औसतन 125 सेमी बारिश होती है जो यहां के उथले कुंओं को रीचार्ज करने के लिए पर्याप्त है। इन कुओं को बनवाने का खर्च भी कम होता है और इसमें पानी की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है, जबकि चट्टानों में छेद करके गहरे खोदे गये बोरवेल महंगे भी हैं और पानी की गुणवत्ता के बारे में हमेशा संदेह बना रहता है। एक फ़ायदा ये भी है कि इन कुओं को बारिश के समय रीचार्ज करना बेहद आसान है, जबकि बोरवेल को वर्षाजल से रीचार्ज नहीं किया जा सकता, साथ ही गहराई में से पानी खींचने के लिये मोटर/डीज़ल का अतिरिक्त खर्च भी करना पड़ेगा। इसलिये अगर खुले स्थान पर कोई कुँआ मौजूद हो तो उसे बचाना चाहिये और जरूरत पड़े तो दुरुस्त कर लेना चाहिये। आसपास बने घरों की छतों से पाइप का इससे कनेक्शन किया जाना चाहिये ताकि बारिश के दिनों में यह पूरी तरह भर जायें। यदि कोई कुंआ मौजूद नहीं है तब निश्चित ही इस बारे में प्रयास करना चाहिये और सभी छतों के पाइप से इसे जोड़ना चाहिये।

अगर लगभग 30 फ़ुट गहराई तक की मिट्टी की जांच रिपोर्ट हमारे पास हो तो पता लगाया जा सकता है कि कितनी गहराई का कुंआ खोदना है। रिपोर्ट न होने की स्थिति में मात्र कुछ हजार रुपये की लागत से ही अच्छा कुंआ बन जाएगा।शुरुआत में मानसून के बाद कुंए का पानी कुछ महीनों के लिए ही पर्याप्त होगा, जब यह कुंआ सूख जाये तो उस दौरान बोरवेल का पानी उपयोग करना चाहिये।

वर्षाजल संग्रहण से जल स्तर ऊपर आ जाने के कारण आसपास का ट्यूबवेल भी स्वतः रीचार्ज हो जाएगा। भवन में कुंए की जगह न हो तो ट्यूबवेल ही खुदवाना चाहिये और मानसून के बाद के समय में इसे उपयोग में लाया जा सकता है।

अक्सर देखा गया है कि जब नया बोरवेल खोदा जाता है उस समय खुदाई करने वाली एजेंसी अक्सर मजबूत चट्टानों के आने की गहराई तक पीवीसी के प्लेन पाईप लगाती है। धरती की सतह से लेकर चट्टान आने तक की गहराई पर यदि इस प्रकार के पीवीसी पाइपों की जगह छेदों वाले नालीदार पीवीसी पाईप लगाये जायें तो यह अधिक उपयोगी होगा। इन छिद्रदार पाईपों की वजह से मानसूनी बारिश में उथली ज़मीन का पानी भी इन छिद्रों से होकर नीचे बोरवेल के मुख्य स्रोत तक पहुँचेगा और बोरवेल हमेशा पानीदार और जीवित रहेगा। हम उम्मीद करते हैं कि पाठक इन लाभकारी सुझावों का उपयोग करेंगे ताकि पानी के मामले में वे आत्मनिर्भर बन सकें।

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