मेधा ने कहा- ग्रामसभा की अनुमति के बिना हो रहा खनन
हरित अधिकरण ने जाँच कमेटी गठित कर 8 जनवरी तक रिपोर्ट तलब किया
राष्ट्रीय हरित अधिकरण के सेट्रल ज़ोन पीठ ने 11 दिसम्बर को नर्मदा बचाओ आन्दोलन की ओर से दायर जनहित याचिका को गम्भीरता से लेते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अजय गुप्ता की अध्यक्षता में जाँच कमेटी गठित कर दी है।
यह कमेटी अलीराजपुर, खरगौन, धार और बड़वानी में नर्मदा बचाओ आन्दोलन द्वारा बताए गए सभी अवैध खनन के इलाकों की पड़ताल कर रिपोर्ट तैयार करेगी। इस कमेटी के अन्य सदस्य वकील धर्मवीर शर्मा है।
अधिकरण ने यह भी आदेश दिया कि पड़ताल के दौरान ट्रक और डम्पर के पहियों के निशान के भी फोटो लें और प्रत्येक इलाकों की रिपोर्ट अलग से तैयार करें और अगर स्पॉट पर कहीं ट्रक या डम्पर के निशान भी मिलते हैं, तो उनके भी फोटोग्राफ्स लेेकर रिपोर्ट में शामिल करें। उन्हें भी सबूत के तौर पर मान्य किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि यह कमेटी इन जिलों में होने वाले अवैध रेत खनन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आकलन करेगी। एनजीटी ने 8 जनवरी तक रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिये।
दरअसल, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में मध्य प्रदेश के बड़वानी, धार, अलीराजपुर और खरगोन जिलों में सरदार सरोवर परियोजना के जलग्रहण और डूब क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अवैध बालू खनन का आरोप लगाया है।
सुश्री पाटकर ने अधिकरण के समक्ष बहस के दौरान एमपीसीसी, सिया, खनन विभाग, स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने अधिकरण के सामने कहा कि नर्मदा पर बन रहे 30 बाँधों की शृंखला का यह आखिरी छोर है और जलग्रहण क्षेत्र पर इस तरह की अवैध गतिविधि से सरकार की तिजोरी पर तो असर पड़ ही रहा है साथ ही पर्यावरण, मिट्टी की गुणवत्ता, कृषि फसल, भूजल और वायु पर भी इसका विपरीत असर हो रहा है।
इससे मछलियों के जीवन पर भी असर हो रहा है। उन्होंने अधिकरण से कहा कि इसकी क्षतिपूर्ति केवल आर्थिक दंड से नहीं हो सकेगा, बल्कि अवैध खनन करने वालों पर फौजदारी प्रकरण दर्ज होना चाहिए। उन्होंने खनन माफ़िया की ओर से उन्हें तथा उनके कार्यकर्ताओं को धमकी देने की बात भी अधिकरण के सामने रखा।
सुनवाई के दौरान सुश्री पाटकर ने यह भी बताया कि अलीराजपुर में रेत खनन के लिये सिया ने 33 में से 30 को मंजूरी दी है। जबकि कई स्थानों पर लगातार अवैध रेत खनन हो रहा है। स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस को इसकी जानकारी है, लेकिन वे इसकी अनदेखी कर रहे हैं।
यहाँ तक कि नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी और खनन विभाग के अधिकारी भी खनन क्षेत्र का दौरा नहीं कर रहे हैं। इसका असर पर्यावरण पर तो पड़ ही रहा है साथ ही सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है।
उन्होंने कहा कि नर्मदा के 22 लाख हेक्टेयर कैचमेंट में से जिस 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को संरक्षित करने की जरूरत है, सरकार उसी में रेत खनन की मंजूरी दे रही है। अलीराजपुर, खरगौन, धार और बड़वानी में नर्मदा नदी के किनारे लगातार रेत का अवैध खनन हो रहा है।
कई क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहाँ मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल (एमपीपीसीबी) और मध्य प्रदेश स्टेट एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (सिया) ने खनन की मंजूरी दी ही नहीं। यहाँ तक की अलीराजपुर के आदिवासी क्षेत्र में आने के बावजूद रेत खनन के लिये ग्राम सभाओं की भी अनुमति नहीं ली गई है।
उल्लेखनीय है कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन की ओर से यह याचिका उच्च न्यायालय जबलपुर में दायर की गई थी, लेकिन पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा होने के कारण न्यायालय से इसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंप दिया। सोमवार को इस मामले की दूसरी सुनवाई हुई। इससे पहले 22 सितम्बर को सुनवाई के बाद अधिकरण ने मध्य प्रदेश खनन विभाग से जवाब माँगा था।
सुनवाई के बाद पत्रकारों से चर्चा में मेधा पाटकर ने अवैध रेत खनन के लिये राजनीतिक दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं पर भी आरोप लगाए। उनका आरोप है कि भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से रेत खनन की मंजूरी न लेना पड़े इसीलिये टुकड़ों में क्षेत्र बाँटकर स्थानीय स्तर पर ही मंजूरी ली जा रही है।
हरित अधिकरण ने जाँच कमेटी गठित कर 8 जनवरी तक रिपोर्ट तलब किया
राष्ट्रीय हरित अधिकरण के सेट्रल ज़ोन पीठ ने 11 दिसम्बर को नर्मदा बचाओ आन्दोलन की ओर से दायर जनहित याचिका को गम्भीरता से लेते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अजय गुप्ता की अध्यक्षता में जाँच कमेटी गठित कर दी है।
यह कमेटी अलीराजपुर, खरगौन, धार और बड़वानी में नर्मदा बचाओ आन्दोलन द्वारा बताए गए सभी अवैध खनन के इलाकों की पड़ताल कर रिपोर्ट तैयार करेगी। इस कमेटी के अन्य सदस्य वकील धर्मवीर शर्मा है।
अधिकरण ने यह भी आदेश दिया कि पड़ताल के दौरान ट्रक और डम्पर के पहियों के निशान के भी फोटो लें और प्रत्येक इलाकों की रिपोर्ट अलग से तैयार करें और अगर स्पॉट पर कहीं ट्रक या डम्पर के निशान भी मिलते हैं, तो उनके भी फोटोग्राफ्स लेेकर रिपोर्ट में शामिल करें। उन्हें भी सबूत के तौर पर मान्य किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि यह कमेटी इन जिलों में होने वाले अवैध रेत खनन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आकलन करेगी। एनजीटी ने 8 जनवरी तक रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिये।
दरअसल, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में मध्य प्रदेश के बड़वानी, धार, अलीराजपुर और खरगोन जिलों में सरदार सरोवर परियोजना के जलग्रहण और डूब क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अवैध बालू खनन का आरोप लगाया है।
सुश्री पाटकर ने अधिकरण के समक्ष बहस के दौरान एमपीसीसी, सिया, खनन विभाग, स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने अधिकरण के सामने कहा कि नर्मदा पर बन रहे 30 बाँधों की शृंखला का यह आखिरी छोर है और जलग्रहण क्षेत्र पर इस तरह की अवैध गतिविधि से सरकार की तिजोरी पर तो असर पड़ ही रहा है साथ ही पर्यावरण, मिट्टी की गुणवत्ता, कृषि फसल, भूजल और वायु पर भी इसका विपरीत असर हो रहा है।
इससे मछलियों के जीवन पर भी असर हो रहा है। उन्होंने अधिकरण से कहा कि इसकी क्षतिपूर्ति केवल आर्थिक दंड से नहीं हो सकेगा, बल्कि अवैध खनन करने वालों पर फौजदारी प्रकरण दर्ज होना चाहिए। उन्होंने खनन माफ़िया की ओर से उन्हें तथा उनके कार्यकर्ताओं को धमकी देने की बात भी अधिकरण के सामने रखा।
सुनवाई के दौरान सुश्री पाटकर ने यह भी बताया कि अलीराजपुर में रेत खनन के लिये सिया ने 33 में से 30 को मंजूरी दी है। जबकि कई स्थानों पर लगातार अवैध रेत खनन हो रहा है। स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस को इसकी जानकारी है, लेकिन वे इसकी अनदेखी कर रहे हैं।
यहाँ तक कि नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी और खनन विभाग के अधिकारी भी खनन क्षेत्र का दौरा नहीं कर रहे हैं। इसका असर पर्यावरण पर तो पड़ ही रहा है साथ ही सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है।
उन्होंने कहा कि नर्मदा के 22 लाख हेक्टेयर कैचमेंट में से जिस 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को संरक्षित करने की जरूरत है, सरकार उसी में रेत खनन की मंजूरी दे रही है। अलीराजपुर, खरगौन, धार और बड़वानी में नर्मदा नदी के किनारे लगातार रेत का अवैध खनन हो रहा है।
कई क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहाँ मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल (एमपीपीसीबी) और मध्य प्रदेश स्टेट एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (सिया) ने खनन की मंजूरी दी ही नहीं। यहाँ तक की अलीराजपुर के आदिवासी क्षेत्र में आने के बावजूद रेत खनन के लिये ग्राम सभाओं की भी अनुमति नहीं ली गई है।
उल्लेखनीय है कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन की ओर से यह याचिका उच्च न्यायालय जबलपुर में दायर की गई थी, लेकिन पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा होने के कारण न्यायालय से इसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंप दिया। सोमवार को इस मामले की दूसरी सुनवाई हुई। इससे पहले 22 सितम्बर को सुनवाई के बाद अधिकरण ने मध्य प्रदेश खनन विभाग से जवाब माँगा था।
राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं पर भी आरोप
सुनवाई के बाद पत्रकारों से चर्चा में मेधा पाटकर ने अवैध रेत खनन के लिये राजनीतिक दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं पर भी आरोप लगाए। उनका आरोप है कि भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से रेत खनन की मंजूरी न लेना पड़े इसीलिये टुकड़ों में क्षेत्र बाँटकर स्थानीय स्तर पर ही मंजूरी ली जा रही है।
Path Alias
/articles/kaaicamaenta-kasaetara-maen-avaaidha-raeta-khanana-parakarana
Post By: RuralWater