महात्मा गाँधी के नाम पर ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। पंचायतों ने पैसा हड़पने के लिए ऐसे–ऐसे तरीके ईजाद किये हैं कि सुनने वाले भी चकित रह जाते हैं। कई पंचायतों में तो सरपंच–सचिव और जनपद के कुछ अफसरों–कर्मचारियों की मिली-भगत से बड़े–बड़े कारनामें हुए हैं। ऐसे ही एक कारनामे का खुलासा सूचना के अधिकार में मिली जानकारी के बाद हुआ। यह कमाल देवास जिले की कन्नौद तहसील में हुआ है, जहाँ मनरेगा के कुएँ कागजों पर ही खुद गए और इनका भुगतान भी सरकारी खजाने से हो गया।
मनरेगा में भ्रष्टाचार का यह अजीबोगरीब मामला सामने आया है देवास जिले में कन्नौद की बहिरावद पंचायत का। कन्नौद से बहिरावद की दूरी महज 8 किमी ही है। यहाँ सरपंच–सचिव ने अफसरों की मिली-भगत से गाँव के एक ऐसे युवक की जमीन पर कुआँ खोदना बताया है, जिसके पास न तो पुश्तैनी जमीन है न ही कोई पट्टा। यानी हवा में ही खोद दिया एक लाख का कुआँ। युवक खुद बीते कई सालों से गाँव में अपना कुआँ ढूँढ रहा है। बड़ी बात यह है कि यह युवक अकेला नहीं है, बल्कि गाँव के कई लोग भी अपना–अपना कुआँ ढूँढने में जुटे हैं। अफसर अब दोषियों पर एफआईआर कराने की बात कर रहे हैं। ताज़ा मामला बहिरावद के 30 वर्षीय अकबर पिता शेर मोहम्मद का है। अकबर ने शिकायत की है कि उसके या उसके परिवार के नाम गाँव में न कोई जमीन है और न ही कभी कोई पट्टा ही मिला है। उसे कुछ महीने पहले पता चला कि गाँव की पंचायत ने वर्ष 2008-09 में (प्रकरण क्र. 1720004026 वीसी) उसके नाम से कुआँ बनाना बताकर 95 हजार रूपये की राशि निकाल ली है। इसका खुलासा सूचना के अधिकार में निकले दस्तावेजों से हुआ है। दस्तावेजों के मुताबिक़ इस कुएँ की खुदाई के लिए अकबर के जॉब कार्ड (क्र. एमपी 20-004-026-001-175) पर प्रतिदिन 85 रूपये के हिसाब से 35 दिन के 2975 रूपये भुगतान करना भी दर्शाया है।
परेशान अकबर कई दिनों तक यहाँ–वहाँ भटकता रहा लेकिन जब कहीं रास्ता नहीं मिला तो उसने इंदौर की वीएस वेलफेयर सोसायटी से सम्पर्क किया। सोसायटी के अध्यक्ष चंचल गुप्ता ने इसकी सप्रमाण शिकायत 12 जून को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्रालय से की। इस पर 15 जून को कार्रवाई करते हुए मन्त्रालय ने प्रदेश ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव को एक माह में जाँच कर प्रतिवेदन माँगा है। श्री गुप्ता ने माँग की है कि कन्नौद क्षेत्र में मनरेगा के तहत हुए काम का भौतिक सत्यापन कराया जाए ताकि बड़े घोटाले का पर्दाफाश हो सके। उन्होंने इस बात की भी आशंका जताई है कि इस पूरे गोरख धंधे के पीछे सरपंच–सचिव के साथ ही एक पूरा संगठित गिरोह शामिल रहा होगा। इसलिए इस मामले की पूरी निष्पक्ष जाँच की माँग हम प्रशासन से कर रहे हैं। हम इस मामले को आगे और भी मंचों पर रखेंगे।
इसी गाँव में 2008-09 के ही करीब आधा दर्जन मामले इसी तरह के सामने आये हैं। अकबर ने बताया कि वह एक भी दिन मजदूरी करने नहीं गया और न ही उसे कभी कोई भुगतान पंचायत ने किया है। पंचायत ने उसके खेत पर कूप निर्माण को पूर्ण भी बता दिया। अकबर ने बताया कि गाँव में अपने कुएँ ढूँढ़ने वाला वह अकेला नहीं है। प्रहलाद पिता देवक्या की भी यही कहानी है। इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए रामदेव पिता रंगलाल के खेत पर पहले से बने कुएँ को ही पंचायत ने कागजों पर फिर से बना डाला। शैतान सिंह पिता गबू ने तो कुआँ बनवाने के लिए भूमि विकास बैंक से ऋण लिया था। ऋण पूरा भी नहीं हुआ कि पंचायत ने भी इसका निर्माण मनरेगा में भी दिखा दिया। ये तो कुछ बानगियाँ हैं, पूरे दस्तावेजों की जाँच हो तो कई बड़े घोटाले सामने आ सकते हैं।
अकबर बताता है कि यह तो मेरे कागज 7 साल बाद भी सामने आ गए, यदि सामने नहीं आते तो आज तक यह गड़बड़ झाला सामने ही नहीं आ पाता। मेरे जैसे कितने ही लोग होंगे जिनके हक़ का पैसा ये लोग उड़ा जाते हैं। अब उसने दोषियों को सजा दिलाने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली है पर अभी भी उसके रास्ते में बहुत सी परेशानियाँ हैं। अकबर ने गाँव से सम्बन्धित कुछ और भी जानकारियाँ स्थानीय ग्राम पंचायत से माँगी है लेकिन इस मामले का खुलासा होने के बाद पंचायत उसे कोई जानकारी नहीं दे रही है। वह बताता है कि डेढ़ महिना हो गए लेकिन अब तक मुझे पंचायत ने मेरी कोई जानकारी नहीं दी है। ग्रामीण जनप्रतिनिधि बताते हैं कि सरपंच–सचिव जो कुछ करते हैं, उसके पीछे कुछ अधिकारियों का संरक्षण ज़रुर रहता होगा। मनरेगा की योजनाओं में काम करवाना तो पंचायत की जिम्मेवारी होती है पर पैसा बैंक से निकलने से पहले उस काम की तस्दीक करना और उसे जमीन पर देखना भी तो अधिकारियों पर ही निर्भर होता है, फिर आखिर ऐसे कारनामे कैसे हो जाते हैं। क्या बहिरावद में हुए महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारण्टी योजना के अन्तर्गत किये गए कामों को तत्कालीन अधिकारियों ने नहीं देखा। क्या बिना उनके हस्ताक्षर के भुगतान सम्भव था। यदि उन्होंने भी हस्ताक्षर किये हैं तो वे भी दोषी नहीं होते। ऐसे कई सवाल है लेकिन फिलहाल इनके जवाब बहिरावद में किसी के पास नहीं है।
अतिरिक्त सीईओ, जिला पंचायत देवास (तत्कालीन जनपद सीईओ, कन्नौद) ब्रजेश पटेल बताते हैं कि इस पंचायत का एक मामला पहले भी इसी तरह का सामने आ चुका है और उसमें सरपंच जमुना बाई तथा सचिव मांगीलाल के खिलाफ प्रशासन ने एफआईआर दर्ज कराई है। अभी इस मामले की शिकायत मेरे पास नहीं आई है, यदि केन्द्रीय विभाग जाँच के लिए कहेगा तो पूरी जाँच कराई जाएगी। दोषियों के खिलाफ अब एक और एफआईआर भी कराई जा सकती है।
इससे साफ़ है कि सरकारों की ग्रामीण विकास योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है। यही वजह है कि ग्रामीणों को इसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है। वर्ष 2008-09 में इस पंचायत ने मनरेगा में लाखों रूपये खर्च कर करीब दो दर्जन से ज्यादा कूप निर्माण और मेड़ बंधान के काम कागजों पर दर्शाये हैं। इस दौरान ग्राम पंचायत में सरपंच पद महिला वर्ग के लिए आरक्षित था और यहाँ की सरपंच जमुनाबाई थी। ग्रामीण बताते हैं कि जमुनाबाई बहुत कम पढ़ी–लिखी थी, इसलिए पंचायत का सारा कामकाज उनका भतीजा देखता था, वे तो सिर्फ हस्ताक्षर भर ही करती थी। बताया जाता है कि तत्कालीन सचिव मांगीलाल और जमुना बाई के भतीजे ने मिलकर गाँव में ऐसे कई काम किये हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि इनमें से कई काम जमीन पर आये ही नहीं, कागजों पर ही सिमट कर रह गए। इसमें शक की सुई जनपद और जिला अधिकारियों पर भी उठती है। मनरेगा के कामों पर जनपद और जिला पंचायत की निरीक्षण व भौतिक सत्यापन की जिम्मेवारी भी होती है। ऐसे में भूमिहीन युवक के नाम पर कूप निर्माण बताता है कि इस ढोल की पोल में कई लोग शामिल थे।
मनरेगा में भ्रष्टाचार का यह अजीबोगरीब मामला सामने आया है देवास जिले में कन्नौद की बहिरावद पंचायत का। कन्नौद से बहिरावद की दूरी महज 8 किमी ही है। यहाँ सरपंच–सचिव ने अफसरों की मिली-भगत से गाँव के एक ऐसे युवक की जमीन पर कुआँ खोदना बताया है, जिसके पास न तो पुश्तैनी जमीन है न ही कोई पट्टा। यानी हवा में ही खोद दिया एक लाख का कुआँ। युवक खुद बीते कई सालों से गाँव में अपना कुआँ ढूँढ रहा है। बड़ी बात यह है कि यह युवक अकेला नहीं है, बल्कि गाँव के कई लोग भी अपना–अपना कुआँ ढूँढने में जुटे हैं। अफसर अब दोषियों पर एफआईआर कराने की बात कर रहे हैं। ताज़ा मामला बहिरावद के 30 वर्षीय अकबर पिता शेर मोहम्मद का है। अकबर ने शिकायत की है कि उसके या उसके परिवार के नाम गाँव में न कोई जमीन है और न ही कभी कोई पट्टा ही मिला है। उसे कुछ महीने पहले पता चला कि गाँव की पंचायत ने वर्ष 2008-09 में (प्रकरण क्र. 1720004026 वीसी) उसके नाम से कुआँ बनाना बताकर 95 हजार रूपये की राशि निकाल ली है। इसका खुलासा सूचना के अधिकार में निकले दस्तावेजों से हुआ है। दस्तावेजों के मुताबिक़ इस कुएँ की खुदाई के लिए अकबर के जॉब कार्ड (क्र. एमपी 20-004-026-001-175) पर प्रतिदिन 85 रूपये के हिसाब से 35 दिन के 2975 रूपये भुगतान करना भी दर्शाया है।
परेशान अकबर कई दिनों तक यहाँ–वहाँ भटकता रहा लेकिन जब कहीं रास्ता नहीं मिला तो उसने इंदौर की वीएस वेलफेयर सोसायटी से सम्पर्क किया। सोसायटी के अध्यक्ष चंचल गुप्ता ने इसकी सप्रमाण शिकायत 12 जून को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्रालय से की। इस पर 15 जून को कार्रवाई करते हुए मन्त्रालय ने प्रदेश ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव को एक माह में जाँच कर प्रतिवेदन माँगा है। श्री गुप्ता ने माँग की है कि कन्नौद क्षेत्र में मनरेगा के तहत हुए काम का भौतिक सत्यापन कराया जाए ताकि बड़े घोटाले का पर्दाफाश हो सके। उन्होंने इस बात की भी आशंका जताई है कि इस पूरे गोरख धंधे के पीछे सरपंच–सचिव के साथ ही एक पूरा संगठित गिरोह शामिल रहा होगा। इसलिए इस मामले की पूरी निष्पक्ष जाँच की माँग हम प्रशासन से कर रहे हैं। हम इस मामले को आगे और भी मंचों पर रखेंगे।
इसी गाँव में 2008-09 के ही करीब आधा दर्जन मामले इसी तरह के सामने आये हैं। अकबर ने बताया कि वह एक भी दिन मजदूरी करने नहीं गया और न ही उसे कभी कोई भुगतान पंचायत ने किया है। पंचायत ने उसके खेत पर कूप निर्माण को पूर्ण भी बता दिया। अकबर ने बताया कि गाँव में अपने कुएँ ढूँढ़ने वाला वह अकेला नहीं है। प्रहलाद पिता देवक्या की भी यही कहानी है। इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए रामदेव पिता रंगलाल के खेत पर पहले से बने कुएँ को ही पंचायत ने कागजों पर फिर से बना डाला। शैतान सिंह पिता गबू ने तो कुआँ बनवाने के लिए भूमि विकास बैंक से ऋण लिया था। ऋण पूरा भी नहीं हुआ कि पंचायत ने भी इसका निर्माण मनरेगा में भी दिखा दिया। ये तो कुछ बानगियाँ हैं, पूरे दस्तावेजों की जाँच हो तो कई बड़े घोटाले सामने आ सकते हैं।
अकबर बताता है कि यह तो मेरे कागज 7 साल बाद भी सामने आ गए, यदि सामने नहीं आते तो आज तक यह गड़बड़ झाला सामने ही नहीं आ पाता। मेरे जैसे कितने ही लोग होंगे जिनके हक़ का पैसा ये लोग उड़ा जाते हैं। अब उसने दोषियों को सजा दिलाने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली है पर अभी भी उसके रास्ते में बहुत सी परेशानियाँ हैं। अकबर ने गाँव से सम्बन्धित कुछ और भी जानकारियाँ स्थानीय ग्राम पंचायत से माँगी है लेकिन इस मामले का खुलासा होने के बाद पंचायत उसे कोई जानकारी नहीं दे रही है। वह बताता है कि डेढ़ महिना हो गए लेकिन अब तक मुझे पंचायत ने मेरी कोई जानकारी नहीं दी है। ग्रामीण जनप्रतिनिधि बताते हैं कि सरपंच–सचिव जो कुछ करते हैं, उसके पीछे कुछ अधिकारियों का संरक्षण ज़रुर रहता होगा। मनरेगा की योजनाओं में काम करवाना तो पंचायत की जिम्मेवारी होती है पर पैसा बैंक से निकलने से पहले उस काम की तस्दीक करना और उसे जमीन पर देखना भी तो अधिकारियों पर ही निर्भर होता है, फिर आखिर ऐसे कारनामे कैसे हो जाते हैं। क्या बहिरावद में हुए महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारण्टी योजना के अन्तर्गत किये गए कामों को तत्कालीन अधिकारियों ने नहीं देखा। क्या बिना उनके हस्ताक्षर के भुगतान सम्भव था। यदि उन्होंने भी हस्ताक्षर किये हैं तो वे भी दोषी नहीं होते। ऐसे कई सवाल है लेकिन फिलहाल इनके जवाब बहिरावद में किसी के पास नहीं है।
अतिरिक्त सीईओ, जिला पंचायत देवास (तत्कालीन जनपद सीईओ, कन्नौद) ब्रजेश पटेल बताते हैं कि इस पंचायत का एक मामला पहले भी इसी तरह का सामने आ चुका है और उसमें सरपंच जमुना बाई तथा सचिव मांगीलाल के खिलाफ प्रशासन ने एफआईआर दर्ज कराई है। अभी इस मामले की शिकायत मेरे पास नहीं आई है, यदि केन्द्रीय विभाग जाँच के लिए कहेगा तो पूरी जाँच कराई जाएगी। दोषियों के खिलाफ अब एक और एफआईआर भी कराई जा सकती है।
इससे साफ़ है कि सरकारों की ग्रामीण विकास योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है। यही वजह है कि ग्रामीणों को इसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है। वर्ष 2008-09 में इस पंचायत ने मनरेगा में लाखों रूपये खर्च कर करीब दो दर्जन से ज्यादा कूप निर्माण और मेड़ बंधान के काम कागजों पर दर्शाये हैं। इस दौरान ग्राम पंचायत में सरपंच पद महिला वर्ग के लिए आरक्षित था और यहाँ की सरपंच जमुनाबाई थी। ग्रामीण बताते हैं कि जमुनाबाई बहुत कम पढ़ी–लिखी थी, इसलिए पंचायत का सारा कामकाज उनका भतीजा देखता था, वे तो सिर्फ हस्ताक्षर भर ही करती थी। बताया जाता है कि तत्कालीन सचिव मांगीलाल और जमुना बाई के भतीजे ने मिलकर गाँव में ऐसे कई काम किये हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि इनमें से कई काम जमीन पर आये ही नहीं, कागजों पर ही सिमट कर रह गए। इसमें शक की सुई जनपद और जिला अधिकारियों पर भी उठती है। मनरेगा के कामों पर जनपद और जिला पंचायत की निरीक्षण व भौतिक सत्यापन की जिम्मेवारी भी होती है। ऐसे में भूमिहीन युवक के नाम पर कूप निर्माण बताता है कि इस ढोल की पोल में कई लोग शामिल थे।
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