जुलाई 2017 से जून 2019 तक भूमि क्षरण फोकल क्षेत्र (एलडीएफए) और जीईएफ ट्रस्ट फंड की अन्य संबंधित फंडिंग विंडो से धन के साथ 75 परियोजनाओ और कार्यक्रमों को मंजरी दी गई थी। इन संसाधनों का उपयोग 20 स्टैंड-अलोन एलडीएफए परियोजनाओं के माध्यम से 48.92 मिलियन डॉलर और 55 मल्टी.फोकल एरिया (एमएफए) परियोजनाओं और कार्यक्रमों के जरिए 808.84 मिलियन डॉलर के जीईएफ संसाधनों का उपयोग करके किया गया। जीईएफ की रिपोर्ट में बताया गया है कि जुलाई 2017 से जुलाई 2019 के बीच मरुस्थलीकरण, भूमि और सूखे से संबंधी परियोजनाओं पर करीब 6.4 बिलियन डाॅलर खर्च किए गए।
मरुस्थलीकरण जमीन के उनुपजाऊ होने की प्रक्रिया है, जिसमें जमीन निरंतर बंजर होती चली जाती है। जमीन के बंजर होने से वनस्पतियां विलुप्त हो रही हैं और वन्यजीवों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। मरुस्थलीकरण का प्रभाव खेती पर भी पड़ रहा है। खेती योग्य भूमि के बंजर होने से तेजी से बढ़ती आबादी के लिए अनाज का उत्पादन चुनौती बनता जा रहा है। जिस कारण निकट भविष्य में एक बड़ी आबादी को भोजन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। भूमि के बंजर होने की इस समस्या का सामना केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया कर रही है। इसलिए मरुस्थलीकरण से एकजूट होकर लड़ने के लिए वर्ष 1994 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण प्रतिरोध सभा (यूएनसीसीडी) का गठन किया गया था। इसके तहत मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए दस्तावेजों को जमा करने और इसके लिए कदम उठाने का मकसद तय हुआ था। साथ ही भूमि प्रबंधन के जरिए 196 देशों को साथ लेकर इस समस्या को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन बीते दो वर्षों में यूएनसीसीडी के सदस्य देशों ने मरुस्थलीकरण पर 6.4 बिलियन डाॅलर (46 हजार करोड़) खर्च कर डाले, जिसका धरातल पर उत्साहजनक परिणाम नहीं दिखा।
यूएनसीसीडी हर दो साल के अंतराल में कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (काॅप) का आयोजन कराता है। अभी तक काॅप के 14 सम्मेलन हो चुके हैं। 14वे सम्मेलन यानी काॅप 14 की मेजबानी भारत ने की थी, जो 2 से 13 सितंबर तक ग्रेटर नाॅएडा में आयोजित किया गया था, जबकि काॅप 13 चीन में हुआ था। इस तरह के अधिवेशनों को कराने में करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन आरामदायक जीवशैली में परिवर्तन न लाये जाने के कारण मरुस्थलीकरण घटने के बाजाये और तेज गति से बढ़ रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट की माने तो भारत की 30 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण की चपेट में आ चुकी है, जबकि वर्ष 2003 से वर्ष 2013 के भारत का मरुस्थलीकरण क्षेत्र 18.7 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। तो विश्व भर में करीब 23 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण की चपेट में है और हर मिनट करीब 23 हेक्टेयर जमीन मरुस्थल में तब्दील हो रही है। इसी मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए यूएनसीसीडी सदस्य देशों ने बीते दो वर्षों में 6.4 बिलियन डाॅलर यानी करीब 46 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जिसका खुलासा ग्लोबल एंवायरमेंट फेसिलिटी (जीईएफ) की काॅप 14 में जारी की गई रिपोर्ट में हुआ।
जीईएफ मरुस्थलीकरण, भूमि और सूखे से संबंधित परियोजनाओं और उन पर हो रहे खर्च के लिए एक समिति बनाई गई थी, जिसका नाम लोबल एंवायरमेंट फेसिलिटी (जीईएफ) रखा गया था। जुलाई 2017 से जून 2019 तक भूमि क्षरण फोकल क्षेत्र (एलडीएफए) और जीईएफ ट्रस्ट फंड की अन्य संबंधित फंडिंग विंडो से धन के साथ 75 परियोजनाओ और कार्यक्रमों को मंजरी दी गई थी। इन संसाधनों का उपयोग 20 स्टैंड-अलोन एलडीएफए परियोजनाओं के माध्यम से 48.92 मिलियन डॉलर और 55 मल्टी.फोकल एरिया (एमएफए) परियोजनाओं और कार्यक्रमों के जरिए 808.84 मिलियन डॉलर के जीईएफ संसाधनों का उपयोग करके किया गया। जीईएफ की रिपोर्ट में बताया गया है कि जुलाई 2017 से जुलाई 2019 के बीच मरुस्थलीकरण, भूमि और सूखे से संबंधी परियोजनाओं पर करीब 6.4 बिलियन डाॅलर खर्च किए गए। जिसमें से जीईएफ के माध्यम से 0.86 बिलियन डाॅलर और सह-वितपोषण के माध्यम से 5.67 बिलियन डाॅलर खर्च किए गए हैं, लेकिन यूएनसीसीडी का मानना है कि अभी आवश्यकता के अनुरूप धन एकत्रित नहीं हो पाया है।
दरअसल वर्ष 2015 में टर्की में हुए यूएनसीसीडी काॅप 12 में 300 मिलियन डाॅलर जुटाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अभी तक करीब 100 मिलियन डाॅलर ही जुटाए जा सके हैं, लेकिन मेरा मानना है कि मरुस्थलीकरण, सूखा या जलवायु परिवर्तन को विभिन्न परियोजनाओं आदि में बड़ी मात्रा में धन खर्च करके नहीं बल्कि इंसानों द्वारा अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करके रोका जा सकता है। जिसमें सबसे पहले हमें आबादी को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम बनाने होंगे और हर व्यक्ति को उन सभी वस्तुओं का त्याग करना होगा जिससे पर्यावरण को सबसे अधिक क्षति पहुंचती है। अधिक संख्या में पौधारोपण कर, इन पौधों की देखभाल अपने बच्चों की तरह करनी होगी। सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। कम दूरी तय करने के लिए मोटर व्हीकल के स्थान पर साइकिल का उपयोग ज्यादा कारगर रहेगा। तालाब, कुंआ, पोखर, नौले आदि की संस्कृति को वापस लाना होगा, ताकि भूजल स्तर बना रहे। नदी के मार्ग पर बने सभी निर्मार्णों को ध्वस्त करने की आवश्यकता है। बड़े बड़े बांधों की अपेक्षा छोटे बांध बनाए जाए और अधिक अधिक सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाए, ताकि नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बना रहे और वे न ही प्रदूषित हों और न ही विलुप्त। पर्यावरण संरक्षण और वर्षा जल संग्रहण को बच्चों के पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल जाए, ताकि बच्चों में पर्यावरण के प्रति प्रेम का संस्कार बाल्यावस्था से घर कर जाए। इसके अलावा विकास की परिभाषा को पुनः लिखा जाए और उसमें कंक्रीट के जंगलों की बजाए पर्यावरण को प्राथमिकता दी जाए, जिससे पर्यावरण और विकास दोनों में ही संतुलन बना रहे। यदि हम इन सभी उपायों में से कुछ नहीं करेंगे तो यूएनसीसीडी के सदस्य देश खरबों रुपया खर्च करते रहें और धरातल पर परिणाम शून्य ही दिखेगा तथा धरती के अंत तक केवल इन बैठकों का ही आयोजन होता रहेगा। इसलिए बैठकों से कहीं ज्यादा अधिक खुद में बदलाव की जरूरत है।
TAGS |
cop in hindi, cbd cop 15, cop 25, COP 14 in hindi, COP 14, unccd cop 14, UN cop 14, the conference of the parties, unfccc, unfccc hindi, the conference of the parties in hindi, the conference of the parties hindi, unccd in hindi, unccd cop 14, unccd cop 14 news, unccd cop reports, unccd cop 14 hindi news, desertification causes, desertification effects, desertification meaning in hindi, overgrazing soil erosion, unccd full form in hindi, desertification definition, desertification is caused by, desertification in hindi, desertification meaning in hindi, desertification can lead to, desertification meaning in english, desertification in india, desertification upsc, desertification solutions, desertification examples, what is cop 14, what is conference of the parties, what is global warming answer, what is global warming and its effects, global warming essay, global warming project, global warming speech, global warming in english, global warming in hindi, global warming wikipedia, global warming and economics, global warming affects economy, global warming images, global warming poster, pollution and global warming, pollution essay, pollution introduction, types of pollution, causes of pollution, pollution paragraph, environmental pollution essay, 4 types of pollution, pollution drawing, air pollution in english, air pollution causes, air pollution effects, air pollution project, air pollution essay, air pollution in india, types of air pollution, sources of air pollution, water pollution effects, water pollution project, types of water pollution, water pollution essay, causes of water pollution, water pollution drawing, water pollution causes and effects, water pollution introduction, noise pollution essay, sources of noise pollution, noise pollution in hindi, noise pollution control, types of noise pollution, noise pollution introduction, noise pollution images, noise pollution diagram, ozone layer depletion in english, what is ozone layer depletion and its effects?, ozone layer depletion pdf, effects of ozone layer depletion, causes of ozone layer depletion, ozone layer depletion in hindi, ozone layer depletion ppt, ozone layer in english, indian economy 2018, indian economy in english, indian economy pdf, history of indian economy, indian economy in hindi, money spent on desertification, money spent to combat desertification, future of indian economy,india's economy today, branches of economics, economics class 12, importance of economics, economics book, simple definition of economics, economics subject, what is economics in english, scope of economics, essay on economics, global warming taking you towards the darkness, prime minister on cop 14, global warming hindi, global warming in hindi, prime minister narendra modi on cop 14, pm modi on cop 14. |
/articles/kaaenpa-14-dao-saala-maen-marausathalaikarana-para-kharaca-kaie-64-bailaiyana-daaenlara