![प्रो. शांतिलाल चौबीसा, प्राणीशास्त्री एवं लेखक](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/jhinga%20machli_3.jpg?itok=4cZ8IUY_)
जहां मीठे पानी की उपलब्धता वर्षपर्यंत हो वहां खेती व पशुपालन के साथ-साथ जल-कृषि भी की जा सकती है। सतत व दैनिक आमदनी का बेहतरीन जरिया होने के कारण जल-कृषि में मत्स्य-पालन व्यवसाय भारत में काफी तेजी से विकसित हुआ है। विगत दो दशकों में जल-कृषि से संबंधित एक और व्यवसाय, झींगा मछली-पालन भी देश में धीर-धीरे पनपने लगा है। कम समय में अधिक आमदनी देने वाला यह व्यवसाय मत्स्य-पालन के साथ भी किया जा सकता है। आदिवासी क्षेत्रों में उपलब्ध विभिन्न जल स्त्रोतों में झींगा पालन को बढ़ावा देकर इनके आर्थिक पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है।
झींगा खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है लेकिन इसमें पोषक तत्वों की भरमार होने से देश-विदेश में इसकी मांग लगातार रहती है। खुले बाजार में इसका मूल्य 350 से 400 रुपया प्रतिकिलो तक होता है जो मछलियों के मूल्य से अधिक है। एक एकड़ में की गई इस खेती से एक बार में चार लाख तक की शुद्ध आय हो सकती है। इसका पालन पोखर, तालाब, झील व बाँध के अलावा कृतिम तालाबों व धान के खेतों में भी किया जा सकता है। कुशल जल प्रंबंधन होने पर इसकी फसल साल में दो बार ली जा सकती है।
झींगा की प्रजातियाँ
नर व मादा झींगा की पहचान इनके आकार व उपांगों के आधार पर होती है। झींगा की अनेक प्रजातियाँ हैं, जिनमे कुछ समुद्री हैं, तो कुछ मीठे स्वच्छ जल स्त्रोतों में ही जीवित रहती हैं। इन झींगों की लंबाई 10 सेमी. व वजन में 250 ग्राम तक होता है। व्यापारिक महत्त्व की इनकी लगभग 70 प्रजातियाँ हैं जिनकी जल गुणवता एवं स्त्रोतों के प्रकार के आधार पर कृषि की जा सकती है। भारत में मैक्रोब्रेकियम कार्सीनस, मै. रोजनबर्गी, मै. आइडेक, मै. माल्कोमसोनीच और मै. मिराबिलिस जैसी व्यापारिक महत्त्व की प्रजातियाँ थोड़े से प्रयास द्वारा पाली जा सकती है।
ऐसे करें पालन
तालाब तथा जल की गुणवता
झींगा पालन हेतु जिस तालाब (पोंड) को चुने उसमें पानी के ठहराव की क्षमता होनी चाहिए। यानी ऐसे तालाबों का निर्माण सिल्ट या दोमट मिट्टी से हो तो ज्यादा अच्छा रहता हैै झींगा पालन के लिए 0.50 से 1.50 हेक्टर का तालाब जिसकी गहराई 0.75 से 1.5 मीटर हो वो उपयुक्त होता है। इसका स्वच्छ पानी प्रदुषण व परभक्षी मुक्त होना चाहिए। तालाब में जलीय वनस्पतियाँ झींगों को परभक्षियों से सुरक्षित रखती हैं।
तालाब के पानी का पीएच मान के अनुसार इसमें चूना डालना जरुरी होता है। सामान्यतः 100 किलोग्राम चूना व 200 किलोग्राम गोबर प्रति एकड़ के हिसाब से पानी में डालते हैं। झींगों की अधिक उपज हेतु तालाब के जल का तापमान (26 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड), पीएच (7.5 से 8.5), ऑक्सीजन (4 से 10 मिग्रा. लीटर), कठोरता (150 मिग्रा. लीटर), क्षारीयता (0.25 से 0.75 पीपीएम), फोस्फोरस (1 पीपीएम), नाइट्रोजन (0.1 पीपीएम), कैल्शियम (100 पीपीएम), घुलनशील लवण (300 से 500 पीपीएम) व तालाब की गहराई (1 से 1.5 मीटर) के मानक सामान्य स्तर पर होना बेहतर होता है।
बीज संचय हेतु नर्सरी
देश में झींगा पालन नया व प्रारम्भिक अवस्था तथा स्तर पर होने के कारण झींगा के प्रजनन की समुचित व्यवस्था व्यापक स्तर पर नहीं है, लेकिन इसके बीज समुद्र-तटीय क्षेत्रों में उपलब्ध हेचरियों से क्रय किये जा सकते है। तालाब के एक एकड़ जल क्षेत्र में झींगा के पालन हेतु 0.04 एकड़ जल क्षेत्रफल की नर्सरी झींगा बीज संग्रह के लिए उपयुक्त है। इसको जल रहित कर सूर्य की तेज धूप में अच्छी तरह सुखाकर इसे 1.0 मीटर तक प्रदुषण रहित स्वच्छ जल से पुनः भरकर इसमे 20 कि.ग्रा. चुना (लाइम), 4.0 कि.ग्रा. सुपर फोस्फेट व 2.0 कि.ग्रा. यूरिया डालना जरुरी होता है। बीजों की अच्छी वृद्धि हेतु पूरक आहार में सूजी, मैदा व अण्डों को एकसाथ मिलाकर गोला बनाकर दिया जा सकता है।
एक एकड़ जल क्षेत्रफल में झींगा पालन के लिए लगभग २० हजार बीजों का संचय नर्सरी में किया जाता है। संचय करने के पूर्व इन्हें अनुकूलन करना जरुरी होता है। इसमें सिर्फ बीजों के पैकेटों में नर्सरी तालाब का पानी भर कर लगभग 15 मिनट तक रखना होता है। बाद में इन्हें खोल कर नर्सरी तालाब के किनारे पानी में तबतक इन्हें डूबो के रखना चाहिए जबतक ये लार्वा पैकेटों से निकलकर तैरते हुए पानी में न आ जाए। नर्सरी में इन्हें 45 से 60 दिन तक रखा जाता है।
तरुण झींगों का तालाब में विसर्जन
पांच सेमी. लंबे व 3-4 ग्राम वजन और लगभग 60 दिन की आयु के तरुण झींगाओं को पालने हेतु पहले से तैयार तालाब में विसर्जित कर देना चाहिए। इसके साथ कतला या सिल्वर कार्प व रोहू मछलियों का पालन भी किया जा सकता है। लेकिन कोमन कार्प, ग्रास कार्प व मृगल मछली का पालन भूलकर भी झींगा पालन के साथ न करें।
झींगे सर्वभक्षी होते हैं। दिन में ये अक्सर छिपकर आराम करते हैं और रात्री को ये सक्रीय हो कर भोजन तलाशते रहते हैं। व्यावासायिक स्तर पर उत्पादन हेतु इनकों पूरक आहार की जरुरत होती है, जिसमे 4 फीसदी सरसों की खली, 4 फीसदी राईस ब्रान एवं 2 फीसदी फिशमील दिया जाता है। पूरक आहार में कत्लखानों का बायोवेस्ट भी शामिल किया जा सकता है। भूखे होने पर झींगे एक दूसरे को खा जाते हैं, इसलिए सुबह और शाम इन्हें पूरक आहार देना आवश्यक है। पांच से छह माह में इनकी वृद्धि लगभग 100 ग्राम तक हो जाती है। 40-50 ग्राम के होने पर इन्हें बाजार में बेचा जा सकता है।
ध्यान देना जरुरी
- किसी भी जल स्त्रोत में कम से कम एक वर्ष तक पर्याप्त मात्रा में जलराशि होनी चाहिए। इन्हें भरने की व्यवस्था भी जरुरी है।
- कुशल जल प्रंबधन पर विशेष ध्यान आवश्यक।
- कृषि भूमि व भूजल का उपयोग जल-कृषि में नहीं करना चाहिए।
- जल स्त्रोत स्वच्छ एवं प्रदूषण रहित हो तथा इनमें कोई कीटनाशक नहीं होना चाहिए। झींगे सिर्फ स्वच्छ जल में ही फलते-फूलते व जीवित रहते हैं।
- पालन के लिए स्वस्थ, शुद्ध, प्रामाणिक एवं संक्रमण रहित बीजों को ही काम में लेना चाहिए।
- पालन के पूर्व ही जल स्त्रोतों के अनुसार झींगा की प्रजाति का चयन पूर्व में ही कर लेना चाहिए।
- झींगों को परभक्षियों से बचाने के उपाय जरुरी।
- झींगा पालन की सम्पूर्ण जानकारी, प्रशिक्षण व पर्याप्त साधन उपलब्ध होना आवश्यक है।
- यदि जरुरत पड़े, तो मत्स्य वैज्ञानिक को सलाहकार के रूप में रखना भी उचित रहता है।
- झींगा पालन संबंधित प्रशिक्षण एवं तकनीकी जानकारियाँ कृषि विश्वविद्यालयों, मात्सिकीय महाविद्यालयों, राजकीय मत्स्य विकास अधिकारियों, मात्सिकीय शोध संस्थानों व आईसीएआर, नई दिल्ली से भी प्राप्त की जा सकती है।
प्रो. शांतिलाल चौबीसा, प्राणीशास्त्री एवं लेखक
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