डॉ हेम श्रीवास्तव / 21 मार्च09/ हिन्दुस्तान
ताजा अध्ययन के मुताबिक झारखंड के सभी प्रमुख शहरों में पानी का संकट भयावह है। मैदानी क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान जहां मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं, वहीं झारखंड में जमीन के धंसने और बेतरह तपने की घटनाएं घटने लगती हैं। अधिक ऊंचाई के कारण हवा में जलवाष्प कम है, इस कारण से भी जलस्रोत जल्दी सूख जाते हैं। अंडरग्राउंड वाटर लेबल इस कदर गिरा है कि हर बरस और गहरी खुदाई की जरूरत पड़ती है। ज्यादा गहराई वाली जगहों पर पानी में भारी धातुओं और हानिकारक तत्वों के मिले होने की संभावना रहती है, फिर भी इन गहराई वाली जगहों का पानी भी पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस जल संकट के तात्कालिक कारणों में सबसे महत्वपूर्ण है जलस्रोत का असुरक्षित होना। सबसे बड़े ‘एक्वीफर’ जंगल और मिट्टी अब बरसात के पानी का उतनी मात्रा का संचय नहीं कर पा रहे, जितना कुछ साल पहले तक किया करते थे। मिट्टी की ऊपरी सतह की भी सुरक्षा सही ढंग से नहीं हो पा रही है। ऊपरी सतह पर प्लास्टिक, रासायनिक खाद और सीमेंट के कारण मानसून में आने वाले पानी का भी कुछ हिस्सा सोखे जाने के बजाय बह कर बरबाद होता है। इसलिए भी पहले जहां भीषण गर्मियों में ही मिट्टी सूखा करती थी, अब मार्च में ही मिट्टी तपकर जेठ के समान सूख रही है।
मिट्टी का गठन राज्य में ऐसा है कि ज्यादा सूखने से भू-धंसान हो सकता है। राजधानी रांची के प्रमुख क्षेत्रों रातू, कांके, बरियातू, मेन रोड, धुर्वा, लालपुर, बहू बाजार, हिनू आदि सभी जगहों पर भयंकर जल संकट दिख रहा है। डोरंडा तो वास्तव में ‘ड्राई-जोन’ बन गया है। कचहरी जैसी महत्वपूर्ण जगह में भी पेयजल के लिए हाहाकार है। प्रतिवर्ष पांच-सात फीट नीचे ज्ल-स्तर का जाना नयी बात नहीं रह गयी है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब मरुभूमीकरण के साथ-साथ हर गांव-शहर ‘सूखा’ क्षेत्र होगा। जलस्रोतों के संरक्षण और विकास पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो गया है।
साभार - हिन्दुस्तान
Tags- Water crisis in the cities of Jharkhand
ताजा अध्ययन के मुताबिक झारखंड के सभी प्रमुख शहरों में पानी का संकट भयावह है। मैदानी क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान जहां मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं, वहीं झारखंड में जमीन के धंसने और बेतरह तपने की घटनाएं घटने लगती हैं। अधिक ऊंचाई के कारण हवा में जलवाष्प कम है, इस कारण से भी जलस्रोत जल्दी सूख जाते हैं। अंडरग्राउंड वाटर लेबल इस कदर गिरा है कि हर बरस और गहरी खुदाई की जरूरत पड़ती है। ज्यादा गहराई वाली जगहों पर पानी में भारी धातुओं और हानिकारक तत्वों के मिले होने की संभावना रहती है, फिर भी इन गहराई वाली जगहों का पानी भी पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस जल संकट के तात्कालिक कारणों में सबसे महत्वपूर्ण है जलस्रोत का असुरक्षित होना। सबसे बड़े ‘एक्वीफर’ जंगल और मिट्टी अब बरसात के पानी का उतनी मात्रा का संचय नहीं कर पा रहे, जितना कुछ साल पहले तक किया करते थे। मिट्टी की ऊपरी सतह की भी सुरक्षा सही ढंग से नहीं हो पा रही है। ऊपरी सतह पर प्लास्टिक, रासायनिक खाद और सीमेंट के कारण मानसून में आने वाले पानी का भी कुछ हिस्सा सोखे जाने के बजाय बह कर बरबाद होता है। इसलिए भी पहले जहां भीषण गर्मियों में ही मिट्टी सूखा करती थी, अब मार्च में ही मिट्टी तपकर जेठ के समान सूख रही है।
मिट्टी का गठन राज्य में ऐसा है कि ज्यादा सूखने से भू-धंसान हो सकता है। राजधानी रांची के प्रमुख क्षेत्रों रातू, कांके, बरियातू, मेन रोड, धुर्वा, लालपुर, बहू बाजार, हिनू आदि सभी जगहों पर भयंकर जल संकट दिख रहा है। डोरंडा तो वास्तव में ‘ड्राई-जोन’ बन गया है। कचहरी जैसी महत्वपूर्ण जगह में भी पेयजल के लिए हाहाकार है। प्रतिवर्ष पांच-सात फीट नीचे ज्ल-स्तर का जाना नयी बात नहीं रह गयी है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब मरुभूमीकरण के साथ-साथ हर गांव-शहर ‘सूखा’ क्षेत्र होगा। जलस्रोतों के संरक्षण और विकास पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो गया है।
साभार - हिन्दुस्तान
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