जवाहर ने समझी तालाब की जरूरत

जनवरी/२०१४/महोबा जिले के सूपा गांव में अकेला एक जवाहर नहीं है। इस गाँव में दर्जनो ऐसे जवाहर किसान है। जिनके पास अपनी जमीन तो है पर पानी का पुख्ता इंतजाम नहीं है। हर साल बादल घुमड़ते है। वर्षा भी होती है पर यहाँ तो यह मान बैठे है कि ये पानी चौमासे का है। खेत के लिए तो कुंवा,बोरिंग,और नहर का पानी आता है। अचानक नहीं, सीढ़ी-दर सीढ़ी समझते-समझाते, देखते-दिखाते, करते-कराते योजनाबद्ध तरह से जिले के विशेष जल संकट ग्रस्त गाँवों के किसानों को तालाबों के तात्कालिक फायदों को विस्तार से परोसा गया। जिससे तालाबों की उपयोगिता के साथ वर्षा ऋतु में एकत्र पानी का मूल्य समझ में आने लगा है। जवाहर के पड़ोसी किसान जगमोहन के खेत में बन रहे तालाब पर भविष्य की फसलें उगाई जा रही थी। तालाब बनाने वाले श्रमिकों को जब भी थकान उतारनी होती तो पाल पर बैठकर बतियाते और कभी होने वाली वर्षा से लबालब तालाब भर जाने की बात करते हुये सिंचाई के लिए पानी की मात्रा का अनुमान लगाते और कभी किस फसल को कितना पानी चाहिये और कौन सी फसल कम से कम पानी में ज्यादा उत्पादन देगी ।

ऐसी चर्चाओं का होना कोई ख़ास बात नहीं वह तो होती ही रहती थीं । पर किसान जवाहर उन्हें बड़ी गौर से सुनता कभी कुछ सवाल–जवाब भी करता ।जवाहर को समझ में आ गया की मेरी जमीन पर भी तो कुछ फसल नहीं होती खाली पड़ी जमीन पर तालाब बनाने से खेती में फायदा हो सकता है। और खाली समय का उपयोग भी खेती में किया जा सकता है। इसी रस्सा-कस्सी के चलते जवाहर ने अपना तालाब बनाने की इच्छा गाँव के रोजगार सेवक कृष्ण कुमार से साझा की। कृष्ण कुमार भी यही चाहता था कि ज्यादा से ज्यादा तालाब किसानो की सूची बना सकूं सुबह शाम ग्राम विकास अधिकारी भी तो नए किसानो के लिए घंटी करते हैं ।वजह यह थी तालाबों की प्रगति होने की सूचनायें विकास खंड अधिकारी शाम तक जरुर पूंछते थे। अपने लिए नहीं ये सूचनायें मुख्य विकास अधिकारी को रखने की आदत सी बनी है । इसके पीछे की वास्तविकता सिर्फ यह थी की जिले के जिलाधिकारी की दिनचर्या में सभी आवश्यक कार्यों में से एक काम तालाब निर्माण की उत्तरोत्तर प्रगति होते रहने की प्राथमिकता भी थी। आखिर हो भी क्यों नहीं उनके काम का हिस्सा किसान का अपना तालाब उन्हें पता है की महोबा जिले में पानी में संकट से उबरने और ग्रामीण परिवारों के आर्थिक उन्नयन का एक मात्र विकल्प तालाब ही है।

जवाहर का तालाब-गाँधी की सौगात

बहुत ही रोचक बात यह है कि सूपा गाँव के श्रमिक परिवार जो रोजी रोटी का ठिकाना दिल्ली में बना चुके है। वह बड़ी तेजी से गाँव वापस आकर इस समय काम करने के लिए रोजगार सेवक पर दवाब बनाये रहते है। ग्राम विकास अधिकारी कही भी किसी भी कोने में गाँव खेत पर दिख जाये तो बड़े ही सम्मान के नजरिये से ये श्रमिक पूछते हैं कि कब से काम करना है । इस गाँव में अपना तालाब अभियान किसानो के ज़ेहन में उनकी जरुरत बनता दिख रहा है। अब जवाहर को भी अपने खेत की जरुरत का अपना तालाब सौगात में मिल गया है । यह सौगात महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना की तरफ से जवाहर को मिली है । दो एकड़ के भूस्वामी के पास अब खुद के खेत में उसका अपना तालाब बनकर तैयार है। जिसके निर्माण में गाँव के श्रमिको के साथ स्वयं जवाहर ने अपने परिवार को लेकर फावड़ा चलाये हैं। तालाब की एक पाल बरसाती नाले से लगी है। उसे वह और मजबूत करना चाहता है। सभी पालों पर जरुरत के पेड़ भी लगाना चाहता हैं। जवाहर जिनकी जड़ों के फैलाव से तालाब की पाल कभी पानी के दवाब के चलते टूट नहीं सके।

इस तालाब का अनुमानित क्षेत्रफल 25×20×1/1/2मी०है। पर जल भराव के लिये ढाई मी० गहराई की गुंजाइश बन गई है। किसान अभी इस गहराई को बढानॆ की जरूरत महसूस कर स्वतः प्रयासरत है। जवाहर तरह–तरह की फसलों के उत्पादन की योजना का लाभ अपने परिवारी जनों को बता रहा है। किसान को पहलीबार ऐसा महसूस हो रहा है। कि मै किसानी से फायदा ले सकता हूँ ।

किसान -श्री जवाहर पुत्र रघुवा
ग्राम –सूपा

विकास खंड –चरखारी-

जनपद –महोबा (बुंदेलखंड) उत्तर -प्रदेश

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Post By: pankajbagwan
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