किले के चारों कोनों पर चार कुएं बने हुए हैं, जो अब सूख चुके है। ये कुएं किले की दीवार के अंदर इस प्रकार से बने हुए है कि दुश्मनों को इनका पता न चल सके। किले की दीवार के ऊपरी हिस्से से ही सैनिक इन कुओं से पानी खींच लेते थे। वर्तमान में इस बावड़ी की देख-रेख न होने के कारण जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। पुरातत्व विभाग व अन्य संबंधित विभाग को इसकी तनिक भी चिन्ता नहीं है। जिस कारण ये ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने के कगार पर है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल में स्थित जिला बिजनौर एक ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। इस जिले में महाभारतकालीन एवं मुगलकालीन कई ऐतिहासिक प्रसिद्ध इमारते एवं जल स्रोत है। जिले में गंगा एवं रामगंगा बारहमासी बहने वाली नदियां हैं। इसके अतिरिक्त पीली, मालिन, गागन, छोइयां , करूला, धारू बनाली, पावंधोई इसकी मौसमी नदियां हैं। इस जिले के कस्बे नजीबाबाद जो कि मुगल शासक नजीबुद्दौला द्वारा बसाया गया था। इनके द्वारा बनाये गये किले एवं ऐतिहासिक जल स्रोत आज भी यहां विद्यमान है जो कि अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। ऐसा ही यहां एक किला है डाकू सुल्तान का किला जो लगभग 70 एकड़ में फैला हुआ है। इस किले में दो प्रवेश द्वार है। यह किला पत्थर गढ़ के नाम से भी जाना जाता है। इसके विषय में कहा जाता है कि जब इस किले का निर्माण हुआ तो आस-पास के क्षेत्रो से पत्थरों को एकत्र कर यह किला बनाया गया था।यह किला मुगल काल में बनाया गया था। मुगल काल के पतन के बाद इस किले में अंग्रेजों ने डेरा डाल लिया था अंग्रेजों ने यहां रहकर भारतीयों पर जुल्म ढाये इस कारण डाकू सुल्ताना ने इसका विरोध किया तथा भारतीयों के हक के लिए लड़ाई लड़ी। इस किले के नजदीक एक मौसमी नदी गांगड़ बहती है जो अपनी छोटी-छोटी शाखाओं को मिलाकर एक बड़ी नदी का रूप लेती है। यहीं पर गांगड़ का मंदिर भी है जिसमें श्रद्धालु काफी दूर-दूर से आते है। वर्तमान में यह किला निजामतपुर गांव के पास है। इस किले के बीचों-बीच एक प्राचीन बावड़ी है जिस पर नहाने के लिए सीढ़ी भी बनी हुई है और इस बावड़ी के दोनों ओर सुरंग भी बनी हुई है जिनका प्रयोग संभवतः इस बावड़ी को जल से भरने के लिए किया जाता रहा होगा अथवा दुश्मनों के आक्रमण के समय घेराबंदी में किया जाता होगा।
यह सुरंग बावड़ी से होकर एक किलोमीटर तक बनी हुई है। उस समय इस बावड़ी के जल का प्रयोग सेना के लिए स्वच्छ जल के रूप में पीने के लिए किया जाता था। दुश्मनों को झांसा देने के लिए भी इस बावड़ी का प्रयोग किया जाता था। यह बावड़ी पत्थरों एवं ईटों से चारों ओर से पक्का बनाया गया था। सुरंगें भी पक्की बनी हुई हैं। इस बावड़ी की खासियत यह है कि कितनी भी भयंकर गर्मी पड़े आज तक यह बावड़ी सूखी नही है। हर समय इस बावड़ी में पानी रहता है। इस बावड़ी की लंबाई व चौड़ाई लगभग 40-50 मीटर हैं। पुराने जमाने में इस किले में यह एक मात्र जल का स्रोत था जो प्यास बुझाने एवं अन्य तरीकों के प्रयोग में लाया जाता था। किले के पास के गांव के बच्चे अब भी इस बावड़ी में नहाने के लिए आते है।
कुछ बुजुर्ग ग्रामीणों ने बताया कि यह बावड़ी पर्दाफाश व दलदल की स्थिति बनी हुई है। हाल ही में एक बच्चा इस बावड़ी में डूब गया जिससे बड़ी मुश्किल से निकाला गया। किले के चारों कोनों पर चार कुएं बने हुए हैं, जो अब सूख चुके है। ये कुएं किले की दीवार के अंदर इस प्रकार से बने हुए है कि दुश्मनों को इनका पता न चल सके। किले की दीवार के ऊपरी हिस्से से ही सैनिक इन कुओं से पानी खींच लेते थे। वर्तमान में इस बावड़ी की देख-रेख न होने के कारण जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। पुरातत्व विभाग व अन्य संबंधित विभाग को इसकी तनिक भी चिन्ता नहीं है। जिस कारण ये ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने के कगार पर है। क्षेत्रीय ग्रामीण डॉ. अतुल नेगी ने इस क्षेत्र से संबंधित कई तथ्यों को अपने पास संजो कर रखा है और वे लगातार क्षेत्र के पुरातात्विक चीजों में काफी रूचि रखते हैं।
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