जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन स्थापित होने के बाद देश के पूर्वी हिस्सों का अंग्रेजों ने प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण करवाया था और इसमें से एक महत्वपूर्ण काम डॉ. फ्रांसिस बुकानन हैमिल्टन ने 1807 से 1816 के बीच किया था। ईस्ट इंडिया कंपनी का मानना था कि, ‘‘डॉ. बुकानन द्वारा इकट्ठी की गई सूचनाएं बहुत ही कीमती हैं और इन पर काम करने के अवसर हिन्दुस्तान में हमारे मुलाजिमों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होंगे खासकर उन लोगों के लिए जो कि राजस्व की वसूली का काम करते हैं।”
डॉ. बुकानन ने जब भी किसी नदी को देखा तो उनकी निगाहें जम कर इन नदियों की नौ-परिवहन क्षमता पर टिकी रहती थीं। कौन सी नदी बारहमासी है और कौन सी मौसमी, उसमें कितनी बड़ी नावें किस मौसम में चल सकती हैं और कब तक तथा कितने वजन तक का माल उनमें ढोया जा सकता है। इन नदियों में अगर लकड़ी के लट्ठे काट कर बहा दिये जायें तो वह कहां तक आसानी से बहेंगे और नदी के किस मोड़ पर जाकर अटक जायेंगे, वगैरह-वगैरह। ऐसी केवल व्यापारिक चीजों के अलावा डॉ. बुकानन कुछ देख ही नहीं पाते थे।
उन्नीसवीं शताब्दी के जाते-जाते तक अंग्रेजों की कुल्हाड़ियां हमारे उत्तर बिहार के जंगलों को साफ कर चुकी थीं और उनकी लूट-पाट का काम पूरा हो चुका था। ओ मैली (1907) लिखते हैं कि, ‘‘ पिछले कुछ वर्षों में उत्तरी इलाकों में जंगल काट डाले जाने के कारण पूर्णियां में बाढ़ों की तीव्रता में बढ़ोत्तरी हुई है। आज से तीस साल पहले तक सीमा पर पत्थरदेवा से इधर जंगल का इलाका काफी घना हुआ करता था। अब वहां नंगे खेत हैं जो कि बाढ़ के पानी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।’’ अब तो यह पूरा जंगल साफ है। देश की आजादी मिलने तक हालात ऐसे बन गये थे कि पूर्णियां जिले में जंगलों की पुर्नस्थापना के लिए डिवीजन खोलना पड़ गया था।
डॉ. बुकानन ने जब भी किसी नदी को देखा तो उनकी निगाहें जम कर इन नदियों की नौ-परिवहन क्षमता पर टिकी रहती थीं। कौन सी नदी बारहमासी है और कौन सी मौसमी, उसमें कितनी बड़ी नावें किस मौसम में चल सकती हैं और कब तक तथा कितने वजन तक का माल उनमें ढोया जा सकता है। इन नदियों में अगर लकड़ी के लट्ठे काट कर बहा दिये जायें तो वह कहां तक आसानी से बहेंगे और नदी के किस मोड़ पर जाकर अटक जायेंगे, वगैरह-वगैरह। ऐसी केवल व्यापारिक चीजों के अलावा डॉ. बुकानन कुछ देख ही नहीं पाते थे।
उन्नीसवीं शताब्दी के जाते-जाते तक अंग्रेजों की कुल्हाड़ियां हमारे उत्तर बिहार के जंगलों को साफ कर चुकी थीं और उनकी लूट-पाट का काम पूरा हो चुका था। ओ मैली (1907) लिखते हैं कि, ‘‘ पिछले कुछ वर्षों में उत्तरी इलाकों में जंगल काट डाले जाने के कारण पूर्णियां में बाढ़ों की तीव्रता में बढ़ोत्तरी हुई है। आज से तीस साल पहले तक सीमा पर पत्थरदेवा से इधर जंगल का इलाका काफी घना हुआ करता था। अब वहां नंगे खेत हैं जो कि बाढ़ के पानी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।’’ अब तो यह पूरा जंगल साफ है। देश की आजादी मिलने तक हालात ऐसे बन गये थे कि पूर्णियां जिले में जंगलों की पुर्नस्थापना के लिए डिवीजन खोलना पड़ गया था।
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