जंगल आधारित विकास योजना जीविका के लिये अनिवार्य हैं, झारखण्ड में ग्रामसभा की सहमति के बिना जंगल की ज़मीन पर निजी कम्पनियों को हक दिलाया जा रहा है, वन ग्रामों को राजस्व ग्राम के रूप में परिणत नहीं किया जा रहा है। झारखण्ड में जंगल 29 प्रतिशत है, जिसका क्षेत्र 24 हजार वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 4 हजार वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन एवं 19 हजार वर्ग किलोमीटर संरक्षित वन है। झारखण्ड जल, जंगल और ज़मीन के लिये जाना जाता है, अब यहाँ के जंगल और ज़मीन पर खतरा मँडराने लगा है। झारखण्ड में जंगल और ज़मीन बचाने के लिये आन्दोलन किया जा रहा है। जंगल बचाओ आन्दोलन के तहत राँची और खुंटी जिला में मुंडारी खुटकट्टी जंगल की वापसी के लिये, आदिवासी आन्दोलनरत हैं।
मुंडारी खुटकट्टी जंगल पर दशकों से मुंडा समुदाय का मालिकाना अधिकार रहा है, जिसे सीएनटी एक्ट भी मान्यता देता है लेकिन वन विभाग अब इस पर अपना दावा जता रहा है। मुंडारी खुटकट्टी गाँव 500 हैं, जहाँ मुंडा समुदाय के लोग वर्षों से निवास करते आ रहे हैं। जंगल बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता जंगल पर अधिकार के लिये हाईकोर्ट में मुकदमा दर्ज करा चुके हैं।
जंगल बचाओ आन्दोलन की शुरुआत पूर्व सांसद स्व. रामदयाल मुंडा, संजय बसु मल्लिक और एलेस्टियर बोदरा ने की थी। वर्तमान में इसके संयोजक जेवियर कुजूर हैं। कुजूर बताते हैं कि झारखण्ड में वनाधिकार कानून को अमल में नहीं लाया जा रहा है। वन अधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन अधिकार पट्टा ग्रामीणों को नहीं दिया जा रहा है, उसे दिलाने की दिशा में संगठन सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
झारखण्ड में सामुदायिक वन अधिकार पट्टा अब तक किसी को नहीं दिया गया है जबकि कर्नाटक के चमरा जिले के बीआर हिल्स में 25 सोलिगा आदिवासी गाँव को सामुदायिक पट्टा दिया गया है, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली सहित अन्य जिलों में 50 से अधिक सामुदायिक वनाधिकार पट्टा दिया गया है, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में भी दर्जनों पट्टे दिये गए हैं।
जंगल आधारित विकास योजना जीविका के लिये अनिवार्य हैं, झारखण्ड में ग्रामसभा की सहमति के बिना जंगल की ज़मीन पर निजी कम्पनियों को हक दिलाया जा रहा है, वन ग्रामों को राजस्व ग्राम के रूप में परिणत नहीं किया जा रहा है। झारखण्ड में जंगल 29 प्रतिशत है, जिसका क्षेत्र 24 हजार वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 4 हजार वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन एवं 19 हजार वर्ग किलोमीटर संरक्षित वन है।
कुजूर बताते हैं कि जंगल क्षेत्र में रह रहे लोग जंगल का संरक्षण, संवर्धन और प्रबन्धन कर रहे हैं, वन विभाग जंगल पर अपना अधिकार जता रहा है। जंगल बचाओ आन्दोलन राँची के बुरमु, चान्हो, मांडर, खेलारी, सरायकेला खरसांवा के कुचाई, हजारीबाग के चौपारण, बोकारो के कसमार व जरीडीह, खुंटी जिला के अडकी प्रखण्ड सहित दर्जनों गाँव में ग्रामसभा कर, ग्रामीण जंगल की ज़मीन पर वन विभाग के तर्ज पर अपना साइन बोर्ड लगा रहे हैं। कुजूर ने बताया कि झारखण्ड बनने के बाद 107 एमओयू हुए हैं, जिसमें 60 प्रतिशत खनिज सम्पदा के दोहन के लिये हैं जो जंगल के इलाके में अवस्थित हैं, ऐसे में जंगलों पर शामत आने वाली है।
झारखण्ड के गुमला, लोहरदगा, लातेहार, पलामू में बॉक्साईट है जहाँ निजी कम्पनी आ रही है, सारंडा के जंगलों में मित्तल, वेदान्ता लोहा लेने आ चुकी है। लातेहार में अभिजित ग्रुप कोयला लेने आ रही है, सन्ताल परगना में जिंदल, अडानी, यूपी बिजली निगम, हजारीबाग के बरकाकाना में कोयला लेने एनटीपीसी सहित निजी कम्पनी आ रही है। ग्रामीण किसी भी सूरत में अपनी ज़मीन पर खनन नहीं होने दे रहे हैं, ऐसे में तनाव बढ़ने की सम्भावना बढ़ रही है।
आदिवासी जंगल में निवास करते हैं, जंगल ही उनके जीने का सहारा है। सरकार एमओयू के तहत निजी कम्पनी को ज़मीन दिलाने के लिये जोर लगा रही है, ग्रामीण सरकार के खिलाफ गोलबन्द हो रहे हैं। सरकार की नीति के खिलाफ आदिवासी संगठन भी मुखर हैं, एमओयू के तहत सरकार खदान के लिये भूमि व जंगल निजी कम्पनी को उपलब्ध कराने की तैयारी में है।
विस्थापन का दंश झेल रहे आदिवासी अब विस्थापित होना नहीं चाहते, लेकिन सरकार उनकी ज़मीन का अधिग्रहण करने पर उतारू है। झारखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में निजी कम्पनी के खिलाफ आदिवासी गोलबन्द हो रहे हैं और वह किसी सूरत में अपनी ज़मीन से बेदखल होना नहीं चाहते, जंगल बचाओ आन्दोलन का समर्थन ग्रामीण कर रहे हैं, जंगल बचाओ आन्दोलन के पक्ष में झारखण्ड वन अधिकार मंच, इज्जत से जीने दो व एकता परिषद खड़ी है।
पूर्व से झारखण्ड में विस्थापन विरोधी आन्दोलन, स्वशासन आन्दोलन, सीएनटी, एसपीटी एक्ट बचाओ आन्दोलन, 5वीं अनुसूची बचाओ आन्दोलन, ग्राम स्वराज आन्दोलन, स्थानीय नीति लागू कराने को लेकर आन्दोलन जारी है।
मुंडारी खुटकट्टी जंगल पर दशकों से मुंडा समुदाय का मालिकाना अधिकार रहा है, जिसे सीएनटी एक्ट भी मान्यता देता है लेकिन वन विभाग अब इस पर अपना दावा जता रहा है। मुंडारी खुटकट्टी गाँव 500 हैं, जहाँ मुंडा समुदाय के लोग वर्षों से निवास करते आ रहे हैं। जंगल बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता जंगल पर अधिकार के लिये हाईकोर्ट में मुकदमा दर्ज करा चुके हैं।
जंगल बचाओ आन्दोलन की शुरुआत पूर्व सांसद स्व. रामदयाल मुंडा, संजय बसु मल्लिक और एलेस्टियर बोदरा ने की थी। वर्तमान में इसके संयोजक जेवियर कुजूर हैं। कुजूर बताते हैं कि झारखण्ड में वनाधिकार कानून को अमल में नहीं लाया जा रहा है। वन अधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन अधिकार पट्टा ग्रामीणों को नहीं दिया जा रहा है, उसे दिलाने की दिशा में संगठन सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
झारखण्ड में सामुदायिक वन अधिकार पट्टा अब तक किसी को नहीं दिया गया है जबकि कर्नाटक के चमरा जिले के बीआर हिल्स में 25 सोलिगा आदिवासी गाँव को सामुदायिक पट्टा दिया गया है, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली सहित अन्य जिलों में 50 से अधिक सामुदायिक वनाधिकार पट्टा दिया गया है, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में भी दर्जनों पट्टे दिये गए हैं।
जंगल आधारित विकास योजना जीविका के लिये अनिवार्य हैं, झारखण्ड में ग्रामसभा की सहमति के बिना जंगल की ज़मीन पर निजी कम्पनियों को हक दिलाया जा रहा है, वन ग्रामों को राजस्व ग्राम के रूप में परिणत नहीं किया जा रहा है। झारखण्ड में जंगल 29 प्रतिशत है, जिसका क्षेत्र 24 हजार वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 4 हजार वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन एवं 19 हजार वर्ग किलोमीटर संरक्षित वन है।
कुजूर बताते हैं कि जंगल क्षेत्र में रह रहे लोग जंगल का संरक्षण, संवर्धन और प्रबन्धन कर रहे हैं, वन विभाग जंगल पर अपना अधिकार जता रहा है। जंगल बचाओ आन्दोलन राँची के बुरमु, चान्हो, मांडर, खेलारी, सरायकेला खरसांवा के कुचाई, हजारीबाग के चौपारण, बोकारो के कसमार व जरीडीह, खुंटी जिला के अडकी प्रखण्ड सहित दर्जनों गाँव में ग्रामसभा कर, ग्रामीण जंगल की ज़मीन पर वन विभाग के तर्ज पर अपना साइन बोर्ड लगा रहे हैं। कुजूर ने बताया कि झारखण्ड बनने के बाद 107 एमओयू हुए हैं, जिसमें 60 प्रतिशत खनिज सम्पदा के दोहन के लिये हैं जो जंगल के इलाके में अवस्थित हैं, ऐसे में जंगलों पर शामत आने वाली है।
झारखण्ड के गुमला, लोहरदगा, लातेहार, पलामू में बॉक्साईट है जहाँ निजी कम्पनी आ रही है, सारंडा के जंगलों में मित्तल, वेदान्ता लोहा लेने आ चुकी है। लातेहार में अभिजित ग्रुप कोयला लेने आ रही है, सन्ताल परगना में जिंदल, अडानी, यूपी बिजली निगम, हजारीबाग के बरकाकाना में कोयला लेने एनटीपीसी सहित निजी कम्पनी आ रही है। ग्रामीण किसी भी सूरत में अपनी ज़मीन पर खनन नहीं होने दे रहे हैं, ऐसे में तनाव बढ़ने की सम्भावना बढ़ रही है।
आदिवासी जंगल में निवास करते हैं, जंगल ही उनके जीने का सहारा है। सरकार एमओयू के तहत निजी कम्पनी को ज़मीन दिलाने के लिये जोर लगा रही है, ग्रामीण सरकार के खिलाफ गोलबन्द हो रहे हैं। सरकार की नीति के खिलाफ आदिवासी संगठन भी मुखर हैं, एमओयू के तहत सरकार खदान के लिये भूमि व जंगल निजी कम्पनी को उपलब्ध कराने की तैयारी में है।
विस्थापन का दंश झेल रहे आदिवासी अब विस्थापित होना नहीं चाहते, लेकिन सरकार उनकी ज़मीन का अधिग्रहण करने पर उतारू है। झारखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में निजी कम्पनी के खिलाफ आदिवासी गोलबन्द हो रहे हैं और वह किसी सूरत में अपनी ज़मीन से बेदखल होना नहीं चाहते, जंगल बचाओ आन्दोलन का समर्थन ग्रामीण कर रहे हैं, जंगल बचाओ आन्दोलन के पक्ष में झारखण्ड वन अधिकार मंच, इज्जत से जीने दो व एकता परिषद खड़ी है।
पूर्व से झारखण्ड में विस्थापन विरोधी आन्दोलन, स्वशासन आन्दोलन, सीएनटी, एसपीटी एक्ट बचाओ आन्दोलन, 5वीं अनुसूची बचाओ आन्दोलन, ग्राम स्वराज आन्दोलन, स्थानीय नीति लागू कराने को लेकर आन्दोलन जारी है।
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Post By: RuralWater