जन-सहयोग और कोसी परियोजना

पृष्ठभूमि


जब से योजना आयोग की स्थापना हुई तभी से यह महसूस किया जा रहा था कि देश की विशाल जनसंख्या और उपलब्ध श्रमशक्ति को देखते हुये यदि किसी गैर-सरकारी और गैर-राजनीतिक संस्था की स्थापना की जा सके तो विकास के इन उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है। आम आदमी की तरक्की के लिए यह संस्था उन संसाधनों को काम में लायेगी जिनका अभी तक उपयोग नहीं हो पाया है।

कोसी योजना पर बात करते समय अगर जन-सहयोग के प्रयोग का जिक्र न हो तो सारी चर्चा अधूरी रह जाती है। 1950 के दशक के पूर्वार्द्ध में देश में आजादी की लड़ाई के संघर्षशील नेताओं की लगभग पूरी कतार मौजूद थी और आम जनता में भी इस आजादी के प्रति उत्साह था। एक अच्छे सुघड़, समृद्ध और ताकतवर भारत की कल्पना करीब-करीब हर भारतीय के मन में थी और वह इसे विकसित करने की कल्पना अपने मन में सजाये हुए था। सदियों की गुलामी के बाद आजादी की ठंडी बयार के झोंके तब तक थमे नहीं थे। हर कोई अपने देश के विकास में अपनी भूमिका देखता था और उसमें योगदान करना चाहता था। लगभग साथ-साथ चीन में हुए सत्ता परिवर्तन और माओ त्से तुंग द्वारा कमान संभालने और उसके बाद वहां के उत्साहजनक माहौल और विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी की कहानियां भी तब फिजां में खुश्बू बिखेरती थीं। एक नहीं सुबह की तलाश में भारत सरकार के बीच एक कड़ी का काम कर सके जिसके माध्यम से वह न योजनाओं में रुचि ले और उनसे अपनत्व स्थापित कर सके। इसी बुनियाद पर 1952 में भारत सेवक समाज की स्थापना हुई।

भारत सेवक समाज-उद्देश्य और भूमिका


जब से योजना आयोग की स्थापना हुई तभी से यह महसूस किया जा रहा था कि देश की विशाल जनसंख्या और उपलब्ध श्रमशक्ति को देखते हुये यदि किसी गैर-सरकारी और गैर-राजनीतिक संस्था की स्थापना की जा सके तो विकास के इन उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है। आम आदमी की तरक्की के लिए यह संस्था उन संसाधनों को काम में लायेगी जिनका अभी तक उपयोग नहीं हो पाया है। जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि “...कुछ हद तक हम अपने सारे संसाधनों का अनुमान लगा सकते हैं। परन्तु अपने सबसे महत्वपूर्ण संसाधन, मानवीय शक्ति तथा उसको महान उद्देश्यों की ओर प्रेरित करने वाले दर्शन का अनुमान करना मुश्किल है। जब तक हम इन विशाल मानवीय संसाधनों का उपयोग न करें और उनमें वह जोश पैदा न करें जो कि कठिनाईयों को देख कर मुस्कराये तब तक हमें कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं मिलेगी। ...इसलिए हम को अपने लोगों की ओर मुड़ना होगा, उनके पास जाकर उनसे वार्तालाप करना होगा और उनके साथ काम करना होगा। समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हमें मित्र और सहयोगी की तरह काम करना होगा। हो सकता है कि हमें उनको कुछ सिखाना पड़े पर हमें उनसे भी बहुत कुछ सीखना है। अतः हमें उनके पास अपने ज्ञान के अभिमान के साथ नहीं बल्कि पूरी विनम्रता के साथ इस तीव्र आकांक्षा को लेकर जाना होगा कि हम अपने पारस्परिक श्रम से जड़ता के पहाड़ों को झकझोरें और उन्हें तोड़ दें।”

तत्कालीन योजना मंत्री गुलजारी लाल नन्दा ने इसकी पुरजोर हिमायत करते हुए एक ऐसी संस्था की कल्पना की थी जो सारे देश में स्वयं-प्रयासों से सामूहिक कल्याण के कार्यक्रम चलायेगी और इसे पूरा सरकारी समर्थन तथा सहयोग प्राप्त होगा। जन साधारण के आर्थिक उत्थान के लिए यह संस्था उन संसाधनों तथा क्षमताओं का उपयोग करेगी जो कि उपलब्ध तो हैं पर अभी तक उनका उपयोग नहीं हुआ। सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध यह संस्था जन मानस तैयार करेगी, पारस्परिक सहयोग से जन साधारण तथा सरकारी तंत्रा के बीच तादाम्य स्थापित करने का प्रयास करेगी। सामुदायिक केन्द्रों का विकास, युवा शक्ति का समाज कल्याण के लिए विकास, सामाजिक चेतना, बीमारियों की रोक-थाम, मलेरिया उन्मूलन आदि भी इस संस्था के कार्यक्रमों में शामिल होगा। प्रशासन, व्यापार तथा सामाजिक आचार-विचार में निष्ठा एवं ईमानदारी का प्रसार, ऐसे वातावरण की सृष्टि जिससे इन उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके, सामाजिक दुराचार के विरुद्ध जनमत तैयार करना तथा दुर्नीति के खिलाफ कार्यवाई, जनता में सामाजिक चेतना जगाना तथा उसे अपने दायित्वों का बोध कराना, कर्तव्य और पारस्परिक सौहाद्र तथा सहयोग के लिए मानस तैयार करना, आदि इस संस्था के उद्देश्य होंगे। सरकारी तथा गैर-सरकारी संसाधनों का समुचित उपयोग, सभी कार्यक्रमों में फजूलखर्ची रोकना, बरबादी तथा अक्षमता पर प्रतिबन्ध तथा उत्पादकता में उत्थान आदि अन्य बहुत सी बातें भी इस संस्था के उद्देश्यों में थीं।

इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत सेवक समाज की स्थापना 1952 में राष्ट्रीय नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा अन्य सहृदय लोगों के प्रयास से हुई। तभी एक राष्ट्रीय समिति का भी गठन किया गया था जिसमें पण्डित नेहरू के अतिरिक्त गुलजारी लाल नन्दा, मौलाना अबुल कलाम आजाद, घनश्याम दास बिड़ला, सतीश चन्द्र दासगुप्ता, खण्डूभाई देसाई, फादर डिसूजा, सी. डी. देशमुख, कैलाश नाथ काटजू, आचार्य कृपलानी, हरेकृष्ण माहताब, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, वी. टी. कृष्णमाचारी, जी. वीमावलंकर, अशोक मेहता, जय प्रकाश नारायण, जी. एल. मेहता, पी. ए. नारियलवाला, एन. जी. रंगा, ज्ञानी गुरुमुख सिंह मुसाफिर, आर. केपाटिल, लाला श्री राम, ए. जॉन मथाई, राजकुमारी अमृत कौर, दुर्गाबाई देशमुख तथा रामेश्वरी नेहरू आदि अनेक स्वनामधन्य लोग शामिल थे। इस समय भारत सेवक समाज के एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की रूप रेखा भी तैयार की गई, जिसके अनुसार भा.से.स. का काम- (क) भवन, सड़क, बाँध व सामूहिक कार्यों के लिए या अन्य कोई भी निर्माण कार्य, (ख) पंचायतों तथा सहकारी समितियों का विकास, (ग) ग्रामीण तथा कुटीर उद्योगों का विकास, (घ) बचत को बढ़ावा और फिजूलखर्ची पर रोक, (घ) फसल की रक्षा तथा (च) पशु-धन का विकास आदि आर्थिक मुद्दों पर सरकार व जनता के बीच सहयोग करना था।

भ्रष्टाचार तथा मिलावट के विरुद्ध आंदोलन करना संस्था के सामाजिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का अंग था। नागरिक तथा स्वास्थ्य, शिक्षा योजनाओं के बारे में जानकारी देना, सामूहिक मनोरंजन, महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य कार्यक्रम, खेल-कूद, गंदी बस्तियों के सुधार तथा सड़कों की सफाई आदि के बारे में कार्यक्रम लेने का प्रस्ताव भी था जिससे सामाजिक समस्याओं को अच्छी तरह समझा जा सके और उनके निदान सुझाए जा सकें।

Path Alias

/articles/jana-sahayaoga-aura-kaosai-paraiyaojanaa

Post By: tridmin
×