नई दिल्ली: देश के भीतर स्थित जलमार्गों से होकर यातायात संचालन (नदियों, नहरों आदि से गुजरने वाली यातायात) अब तक सड़कों और रेलमार्गों की तुलना में उपेक्षित ही रहा, लेकिन अब इसमें एक नई लहर आने वाली है। सरकार माल की ढुलाई के लिए सड़कों और रेलमार्गों के अलावा अब जलमार्गों को वैकल्पिक रास्ता बनाने की तैयारी कर रही है। तेल की ऊंची कीमतों की वजह से सड़क परिवहन की लागत बढ़ती जा रही है, इसलिए सरकार अब देश की विस्तृत समुद्री सीमा का फायदा उठाते हुए आंतरिक जल परिवहन को विकसित करने की योजना बना रही है। देश में तीन प्रमुख जलमार्गों गंगा, ब्रह्मपुत्र और पश्चिमी तट के पीपीपी द्वारा विकास के लिए सरकार 800 करोड़ रुपए का निवेश करेगी।
देश में कई नदियां जाकर समुद्र में मिलती हैं जिसे देखते हुए सरकार ने निजी लॉजिस्टिक प्रतिष्ठानों को यह आमंत्रण दिया है कि वह कच्चे माल एवं औद्योगिक वस्तुओं की आंतरिक जलमार्गों से होकर आवाजाही के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे का विकास करें। रिलायंस और ओएनजीसी जैसी कंपनियों ने तो कच्चे माल एवं औद्योगिक वस्तुओं की ढुलाई के लिए इस सस्ते और पर्यावरण अनुकूल यातायात का उपयोग करना शुरू भी कर दिया है। मुख्यत: कच्चे तेल एवं गैस को बंदरगाहों से आंतरिक क्षेत्रों में भेजने के लिए जलमार्ग का उपयोग किया जाता है।
देश में विकसित होने वाला पहला राष्ट्रीय जलमार्ग गंगा-भागीरथी-हुगली नदी से होते हुए इलाहाबाद से हल्दिया के बीच 1,620 किलोमीटर लंबा होगा। दूसरा राष्ट्रीय जलमार्ग ब्रह्मपुत्र नदी में डुब्री से सादिया तक करीब 891 किलोमीटर लंबा होगा। तीसरा राष्ट्रीय जलमार्ग पश्चिमी तट के कोट्टापुरम-कोलम क्षेत्र में चंपकारा और उद्योगमंडल नहरों के बीच करीब 205 किलोमीटर लंबा होगा। तीनों जलमार्गों से संचालन मार्च 2010 तक शुरू हो जाने की उम्मीद है। इन जलमार्गों का इस्तेमाल बांग्लादेश से फ्लाइऐश के आयात और देश के भीतर कोयला, जिप्सम, क्लिंकर और सीमेंट की ढुलाई के लिए किया जाएगा।
इन जलमार्गों का विकास शुरू करने के लिए इनलैंड वाटरवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईडब्ल्यूएआई) ने एसकेएस लॉजिस्टिक्स और विवडा इनलैंड वाटरवेज के साथ जॉइंट वेंचर (जेवी) बनाया है। इसने एसकेएस लॉजिस्टिक्स के साथ 2 जेवी पर हस्ताक्षर किए हैं। पहले जेवी के द्वारा कोलकाता और पांडू (असम) में 6 आंतरिक बैराज का निर्माण किया जाएगा, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 2,000 डीडब्ल्यूटी (डेड वेट टन) की होगी। दूसरे जेवी के द्वारा कोलकाता और मोंगला (बांग्लादेश) में 8 बैराज का निर्माण किया जाएगा, इनकी क्षमता भी 2,000 डीडब्ल्यूटी (डेड वेट टन) की होगी।
इन दोनों जॉइंट वेंचर्स में आईडब्ल्यूएआई की हिस्सेदारी 30 फीसदी की होगी, जबकि शेष 70 फीसदी हिस्सेदारी एसकेएस की होगी। दूसरे जेवी में आईडब्ल्यूएआई 44 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। आईडब्ल्यूएआई ने एक तीसरा जेवी विवडा इनलैंड वाटरवेज के साथ बनाया है। इस जेवी के द्वारा कोलकाता और डुब्री (असम) में प्रत्येक 1,500 डीडब्ल्यूटी क्षमता के 2 बैराज का निर्माण किया जाएगा। आईडब्ल्यूएआई ने आईसीएम के साथ भी एक जेवी बनाया है जिसके द्वारा पश्चिम बंगाल में 3 घाटों (जेट्टी) का विकास किया जाएगा। इसके अलावा आईडब्ल्यूएआई ने एनटीपीसी के साथ मिलकर भी पीपीपी के आधार पर एक परियोजना का विकास शुरू किया है जिसके माध्यम से हर साल हल्दिया बंदरगाह पर आयातित 10 लाख टन कोयले को फरक्का बिजली संयंत्र में उपयोग के लिए फरक्का तक पहुंचाया जा सकेगा।
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