जल व पर्यावरण संरक्षण की योजना सिरे नहीं पकड़ सकी

स्कूली स्तर पर जल और पर्यावरण संरक्षण का लक्ष्य लेकर बनाई गई लाखों रुपयों की योजनाएं धूल चाट गई है। विडम्बना की बात है कि करीब दो वर्ष पहले सरकारी स्कूलों में लाखों रुपये खर्च कर बरसाती पानी का संग्रह करने के लिए खुदवाए गए जल कुण्डों का अब नामोनिशान भी नहीं बचा है। इतना ही नहीं शिक्षा विभाग ने जिस लक्ष्य के लिए सरकारी स्कूलों में इन कुण्डों की खुदाई करवाई थी, वह भी अब तक पूरा नहीं हो पाया है।

शिक्षा विभाग ने लगातार मौसम के बिगड़ते हालातों और पर्यावरण सुरक्षा के मद्देनजर सरकारी स्कूलों में जल संग्रहण की एक योजना बनाई थी। इसके लिए शिक्षा विभाग ने बाकायदा प्रत्येक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय को एक लाख रुपये का बजट भी भेजा। लेकिन अब हालात यह बन गए है कि अनेक स्कूलों में तो इन टैकों के निशान ढूंढे से भी नहीं मिल रहे है। शिक्षा विभाग के अधिकारी भी इस मामले में पुरी तरह चुप्पी ही साधे हुए है, क्योंकि इस योजना का बजट स्कूलों को जारी करने के बाद न तो निदेशालय ने इसकी कोई खोज खबर ली और न ही विभागीय अधिकारियों ने इस बारे में स्कूलों में जाकर कोई तस्दीक की। योजना के अनुसार पूरे स्कूल भवन परिसर के चारों ओर बरसाती नाले खोद कर उनका पानी इन जलकुण्डों तक पहुंचाना निश्चित किया गया था, परन्तु जब कुण्ड ही नहीं होंगे तो जल संग्रहण कहां होगा। शायद यह बात शिक्षा विभाग के अधिकारियों की समझ में नहीं आ रही है।

विभागीय आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जिला भिवानी में 144 राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में कुण्डों के निर्माण की योजना बनी। जिला में 158 उच्च विद्यालय व 150 मिडिल स्कूलों के अलावा 695 प्राइमरी स्कूल चल रहे है। प्रदेश भर में इस योजना के तहत करीब 1200 राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों को शामिल किया गया। विभाग द्वारा लाखों रुपये खर्च कर राजकीय विद्यालयों में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को जल संरक्षण के व्यावहारिक ज्ञान से अवगत करवाने और पानी के सदुपयोग का महत्व बताने के लिए कुण्डों का निर्माण करवाया गया था। प्रत्येक स्कूल को इस काम के लिए एक लाख रुपया दिया गया, जिसके तहत विद्यालय परिसर के चारों ओर बरसाती नाले खोद कर उनको परिसर में ही निर्मित करीब दस फूट गहरे कुण्ड से जोड़ा गया। स्कूल परिसर में बने इन कुण्डों की स्थिति ऐसी थी कि छतों व मैदान सहित स्कूल परिसर में बरसात के दौरान जितना पानी गिरता, वह कुण्ड तक आसानी से पहुंच जाता, ताकि इस पानी का बाद में पर्यावरण संरक्षण के लिए इस्तेमाल कर सदुपयोग हो सके। इन कुण्डों का निर्माण इस तरह करवाया गया कि इसमें 25 हजार लीटर तक पानी संग्रहण आसानी से किया जा सके। शिक्षा विभाग ने इस योजना के शुरूआती दौर में तो तत्परता से कदम उठाए और कुण्डों का निर्माण भी करवा डाला।

हिसार मण्डल के आयुक्त ने भी स्कूल मुखियाओं की बैठक लेकर उन्हे सीधे तौर पर निर्देश जारी किए, परंतु समय के बढ़ते प्रवाह के साथ ही स्कूलों में बने इन कुण्डों का अस्तित्व भी धीरे-धीरे समाप्त ही हो गया।
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