सामुदायिक विकेन्द्रीकृत जल प्रबन्ध व्यवस्था से ही जल सुरक्षा लागू हो: राजेन्द्र सिंह
जल जंगल जमीन की समस्या है। जलचक्र की सुरक्षा के बिना खाद्य सुरक्षा मुमकिन नहीं है। पूरा जल चक्र छिन्न भिन्न हो गया है। देश में 676 जिले हैं। कोई यह दावा नहीं कर सकता है कि उनके यहाँ नदियाँ सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि प्रदूषण लोगों के कारण नहीं है। सरकार इसके लिए जिम्मदेदार है। सरकारी अफसरों के पास जब जलस्रोतों के आँकड़े तक नहीं है तो जल संरक्षण कैसे होगा। नदियाँ सदानीरा से मौसमी हो गई हैं। यदि नदियों, नालों और तालाबों को नहीं बचा सके तो जल सुरक्षा कैसे मुमकिन है? जल हर राज्य सरकार के प्राथमिकता सूची में होना चाहिए। नई दिल्ली। खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु और जलस्रोतों को न केवल खाली किया गया, बल्कि उनके तकनीकि प्रबन्ध के नाम पर नदियों में प्रदूषण, अतिक्रमण और बाजारीकरण कर उसका शोषण किया जा रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या के जरूरत के अनुरूप जलापूर्ति परम्परागत प्रबन्ध तकनीक से ही सम्भव है। 21वीं सदी की नई व्यवस्था ने लोभी और लालची लोगों के जरूरत की ही भोगपूर्ति की है। ठेकेदारी व्यवस्था ने लोकतन्त्र को अपनी पूर्ति का साधन बना दिया।
इसी के परिणामस्वरूप जल का निजीकरण होने लगा। 21वीं सदी के दूसरे दशक में प्रवेश करते—करते देश की दो तिहाई 73 प्रतिशत नदियाँ सूख गईं और 27 प्रतिशत नदियाँ प्रदूषित होकर नाला बन गईं हैं। इसका समाधान सिर्फ तकनीकि और विज्ञान के सहारे खोजा जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप शोषणकारी लाभकारी जल बाजार सामने आया है।
मजे की बात तो यह है कि भारत सरकार और राज्य सरकारें पेयजल संकट का समाधान जल के बाजारीकरण के रूप में देखती है। इन परिदृश्यों पर गौर करते हैं तो पाते हैं कि न्यायपालिका की भूमिका आम जनता के हितों के संरक्षक की है। बावजूद इसके किसी भी स्तर पर सरकारों द्वारा इन निर्णयों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।
इन तथ्यों के मद्देनजर जल—जन जोड़ो अभियान आरम्भ हुआ। इसका मकसद न्यायपालिका द्वारा मिले जल संरचनाओं के अतिक्रमण हटाकर, जलाधिकार सुनिश्चत कराए। पूरे देश के जल विशेषज्ञों की मंशा है कि भारत सरकार जल सुरक्षा बिल लाए, क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा से ज्यादा जरुरी है।
ऐसे समय में एक ओर जहाँ सरकारी स्तर पर भारत सरकार 13 से 17 जनवरी तक भारत जल सप्ताह मना रही है, तो दूसरी ओर नई दिल्ली स्थित गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान में देश के विमिन्न से जलयोद्धा जन जन जोड़ो अभियान द्वारा आयोजित जल सुरक्षा कानून अधिनियम के विमर्श में जुटे थे।
इस बहस में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि भारत में जल सुरक्षा से जुड़े कई कानून है लेकिन उनमें सामुदायिक विकेन्द्रीकृत जल प्रबन्धन व्यवस्था प्रभावशील नहीं है। नतीजतन आज पानी गरीब से दूर होता जा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के गरिमा के साथ पानी उपलब्ध हो, इसके लिए जल सुरक्षा कानून भारत के लिए आवश्यक है।
बहस को आगे बढ़ाते हुए पुणे से आये प्राध्यापक अनुपम सर्राफ ने कहा कि पूरे दुनिया में नदियों के संरक्षण के लिये कोई कानून नहीं है। जल जंगल जमीन की समस्या है। जलचक्र की सुरक्षा के बिना खाद्य सुरक्षा मुमकिन नहीं है। पूरा जल चक्र छिन्न भिन्न हो गया है। देश में 676 जिले हैं। कोई यह दावा नहीं कर सकता है कि उनके यहाँ नदियाँ सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि प्रदूषण लोगों के कारण नहीं है। सरकार इसके लिए जिम्मदेदार है।
सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि सरकारी अफसरों के पास जब जलस्रोतों के आँकड़े तक नहीं है तो जल संरक्षण कैसे होगा। नदियाँ सदानीरा से मौसमी हो गई हैं। यदि नदियों, नालों और तालाबों को नहीं बचा सके तो जल सुरक्षा कैसे मुमकिन है? जल हर राज्य सरकार के प्राथमिकता सूची में होना चाहिए।
भारतीय संविधान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 51ए(जी) के तहत् हर नागरिकों का कर्तव्य है कि नदियों की रक्षा करे। इसी प्रकार धारा 262 में अन्तरराज्यीय विवाद है तो सरकार कानून बनाए। धारा 257 में वाटरशेड के बारे में कहा गया है। उन्होंने कहा कि नदी केन्द्र का विषय है, जबकि सिंचाई, जलापूर्ति राज्य का विषय है। संविधान में 73,74 संशोधन हुए।
संविधान की 11वीं और 12वीं अनुसूचि में पंचायतों को अधिकार दिए गए कि वाटरशेड विकसित करे, लेकिन इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। इसी प्रकार नगर निकायों के भी अधिकार है। हर जिला पदाधिकारी का दायित्व है कि पर्यावरण का संरक्षण करे, इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 243 इ में है। नदियों के सरंक्षण के कानून का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 1884 में मद्रास रिवर कन्जरवेशन एक्ट बना और पदाधिकारी नियुक्त किए गए, लेकिन यह सिर्फ लाईसेंसिग के लिए था।
भारतीय संविधान में नदियों के संरक्षण के लिए कोई प्रवधान नहीं है। उन्होंने कहा कि नदी संरक्षण कानून के माध्यम से जल सुरक्षा उपलब्ध होगी। इसके लिए जल संरचनाओं के सीमांकन चिन्हांकन की आवश्यकता है। साथ ही स्थानीय स्वशासन इकाईयों की भूमिका को बढ़ावा दिया जाए जो अपने जलस्रोतों का ऑडिट कर सकें और वर्ष भर की जल उपलब्धता हो सके। विकास के मॉडल की चर्चा करते हुए यमुना जिये अभियान के मनोज मिश्रा ने कहा कि विकास के नाम पर देश को बेचा जा रहा है।
नदी जोड़ पर्यावरणीय दृष्टि से नुकसानदेह है। नदी जोड़ के सन्दर्भ में सरकार जनता से खुलकर बात करे। वहीं किसान नेता बलजीत सिंह ने कहा कि दिल्ली में किसानों का किसानी से विमुख किया जा रहा है। महाराष्ट्र के वर्धा से आए डॉ. सतीश चौहान ने कहा कि जल का कार्य समग्रता के साथ किया जाए। जमीन पर काम करने वालों को सम्मानित किया जाए।
जल-जन जोड़ो के राष्ट्रीय समन्वयक संजय सिंह ने कहा कि जल-जन जोड़ो अभियान देश भर में जल सुरक्षा कानून के निर्माण के लिए वातावरण सृजन का कार्य करेगा। इसके लिए देश भर में नदी पुर्नजीवन यात्राएँ आयोजित होंगी। गंगा जल बिरादरी के पंकज कुमार ने कहा कि भारत अगर महाशक्ति नहीं बन पाया तो जल संकट बड़ा कारण होगा। मेरठ से आए डॉ मेजर हिमांशु ने कहा कि जल संकट के कारण आजीविका संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
वहीं जैन इरिगेशन के प्रबन्ध निदेशक अनिल जैन ने कहा कि जल प्रबन्धन के लिए सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए। जल सुरक्षा कानून के बिना खाद्य सुरक्षा कानून का प्रभावशाली नहीं होगा। विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के अतुल कुमार ने कहा कि जल का सवाल महत्वपूर्ण सवाल है। इसका संरक्षण हरेक की जवाबदेही है। वहीं जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतान्त ने कहा कि जल सुरक्षा का सवाल महत्वपूर्ण सवाल है, लेकिन सरकार इसकी अनदेखी कर रही है।
लोकशक्ति से सरकार को झुकाने का काम किया जाए। बिहार से आए रमेश भाई ने कहा कि नदियाँ बचेंगी तो देश बचेगा। तालाबों के संरक्षण के लिए अलग से अभिकरण के निर्माण की आवश्यकता है। भारत के प्रत्येक सांसद को जल सुरक्षा कानून के प्रारुप सौंपा जाएगा और इस हेतु अभियान चलाया जाएगा। केन्द्रीय रिजर्व भूजल के पूर्व महानिदेशक रवीन्द्र तोमर ने कहा कि जल युद्ध रोकने के लिए जल साक्षरता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर जैन इरिगेशन के सन्तोष देशमुख, विनोद राफतवार, सन्दीप, सुदीप साहू, पलामू के विनोद भाई, मुकेश और कृष्णानन्द के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से आए जलयोद्धाओं में अपने विचार रखे। सभी इस संकल्प से साथ गए कि अपने क्षेत्रों में जल सुरक्षा अधिनियम के लिए वातावरण का निर्माण करना है।
जल जंगल जमीन की समस्या है। जलचक्र की सुरक्षा के बिना खाद्य सुरक्षा मुमकिन नहीं है। पूरा जल चक्र छिन्न भिन्न हो गया है। देश में 676 जिले हैं। कोई यह दावा नहीं कर सकता है कि उनके यहाँ नदियाँ सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि प्रदूषण लोगों के कारण नहीं है। सरकार इसके लिए जिम्मदेदार है। सरकारी अफसरों के पास जब जलस्रोतों के आँकड़े तक नहीं है तो जल संरक्षण कैसे होगा। नदियाँ सदानीरा से मौसमी हो गई हैं। यदि नदियों, नालों और तालाबों को नहीं बचा सके तो जल सुरक्षा कैसे मुमकिन है? जल हर राज्य सरकार के प्राथमिकता सूची में होना चाहिए। नई दिल्ली। खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु और जलस्रोतों को न केवल खाली किया गया, बल्कि उनके तकनीकि प्रबन्ध के नाम पर नदियों में प्रदूषण, अतिक्रमण और बाजारीकरण कर उसका शोषण किया जा रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या के जरूरत के अनुरूप जलापूर्ति परम्परागत प्रबन्ध तकनीक से ही सम्भव है। 21वीं सदी की नई व्यवस्था ने लोभी और लालची लोगों के जरूरत की ही भोगपूर्ति की है। ठेकेदारी व्यवस्था ने लोकतन्त्र को अपनी पूर्ति का साधन बना दिया।
इसी के परिणामस्वरूप जल का निजीकरण होने लगा। 21वीं सदी के दूसरे दशक में प्रवेश करते—करते देश की दो तिहाई 73 प्रतिशत नदियाँ सूख गईं और 27 प्रतिशत नदियाँ प्रदूषित होकर नाला बन गईं हैं। इसका समाधान सिर्फ तकनीकि और विज्ञान के सहारे खोजा जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप शोषणकारी लाभकारी जल बाजार सामने आया है।
मजे की बात तो यह है कि भारत सरकार और राज्य सरकारें पेयजल संकट का समाधान जल के बाजारीकरण के रूप में देखती है। इन परिदृश्यों पर गौर करते हैं तो पाते हैं कि न्यायपालिका की भूमिका आम जनता के हितों के संरक्षक की है। बावजूद इसके किसी भी स्तर पर सरकारों द्वारा इन निर्णयों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।
इन तथ्यों के मद्देनजर जल—जन जोड़ो अभियान आरम्भ हुआ। इसका मकसद न्यायपालिका द्वारा मिले जल संरचनाओं के अतिक्रमण हटाकर, जलाधिकार सुनिश्चत कराए। पूरे देश के जल विशेषज्ञों की मंशा है कि भारत सरकार जल सुरक्षा बिल लाए, क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा से ज्यादा जरुरी है।
ऐसे समय में एक ओर जहाँ सरकारी स्तर पर भारत सरकार 13 से 17 जनवरी तक भारत जल सप्ताह मना रही है, तो दूसरी ओर नई दिल्ली स्थित गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान में देश के विमिन्न से जलयोद्धा जन जन जोड़ो अभियान द्वारा आयोजित जल सुरक्षा कानून अधिनियम के विमर्श में जुटे थे।
इस बहस में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि भारत में जल सुरक्षा से जुड़े कई कानून है लेकिन उनमें सामुदायिक विकेन्द्रीकृत जल प्रबन्धन व्यवस्था प्रभावशील नहीं है। नतीजतन आज पानी गरीब से दूर होता जा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के गरिमा के साथ पानी उपलब्ध हो, इसके लिए जल सुरक्षा कानून भारत के लिए आवश्यक है।
बहस को आगे बढ़ाते हुए पुणे से आये प्राध्यापक अनुपम सर्राफ ने कहा कि पूरे दुनिया में नदियों के संरक्षण के लिये कोई कानून नहीं है। जल जंगल जमीन की समस्या है। जलचक्र की सुरक्षा के बिना खाद्य सुरक्षा मुमकिन नहीं है। पूरा जल चक्र छिन्न भिन्न हो गया है। देश में 676 जिले हैं। कोई यह दावा नहीं कर सकता है कि उनके यहाँ नदियाँ सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि प्रदूषण लोगों के कारण नहीं है। सरकार इसके लिए जिम्मदेदार है।
सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि सरकारी अफसरों के पास जब जलस्रोतों के आँकड़े तक नहीं है तो जल संरक्षण कैसे होगा। नदियाँ सदानीरा से मौसमी हो गई हैं। यदि नदियों, नालों और तालाबों को नहीं बचा सके तो जल सुरक्षा कैसे मुमकिन है? जल हर राज्य सरकार के प्राथमिकता सूची में होना चाहिए।
भारतीय संविधान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 51ए(जी) के तहत् हर नागरिकों का कर्तव्य है कि नदियों की रक्षा करे। इसी प्रकार धारा 262 में अन्तरराज्यीय विवाद है तो सरकार कानून बनाए। धारा 257 में वाटरशेड के बारे में कहा गया है। उन्होंने कहा कि नदी केन्द्र का विषय है, जबकि सिंचाई, जलापूर्ति राज्य का विषय है। संविधान में 73,74 संशोधन हुए।
संविधान की 11वीं और 12वीं अनुसूचि में पंचायतों को अधिकार दिए गए कि वाटरशेड विकसित करे, लेकिन इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। इसी प्रकार नगर निकायों के भी अधिकार है। हर जिला पदाधिकारी का दायित्व है कि पर्यावरण का संरक्षण करे, इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 243 इ में है। नदियों के सरंक्षण के कानून का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 1884 में मद्रास रिवर कन्जरवेशन एक्ट बना और पदाधिकारी नियुक्त किए गए, लेकिन यह सिर्फ लाईसेंसिग के लिए था।
भारतीय संविधान में नदियों के संरक्षण के लिए कोई प्रवधान नहीं है। उन्होंने कहा कि नदी संरक्षण कानून के माध्यम से जल सुरक्षा उपलब्ध होगी। इसके लिए जल संरचनाओं के सीमांकन चिन्हांकन की आवश्यकता है। साथ ही स्थानीय स्वशासन इकाईयों की भूमिका को बढ़ावा दिया जाए जो अपने जलस्रोतों का ऑडिट कर सकें और वर्ष भर की जल उपलब्धता हो सके। विकास के मॉडल की चर्चा करते हुए यमुना जिये अभियान के मनोज मिश्रा ने कहा कि विकास के नाम पर देश को बेचा जा रहा है।
नदी जोड़ पर्यावरणीय दृष्टि से नुकसानदेह है। नदी जोड़ के सन्दर्भ में सरकार जनता से खुलकर बात करे। वहीं किसान नेता बलजीत सिंह ने कहा कि दिल्ली में किसानों का किसानी से विमुख किया जा रहा है। महाराष्ट्र के वर्धा से आए डॉ. सतीश चौहान ने कहा कि जल का कार्य समग्रता के साथ किया जाए। जमीन पर काम करने वालों को सम्मानित किया जाए।
जल-जन जोड़ो के राष्ट्रीय समन्वयक संजय सिंह ने कहा कि जल-जन जोड़ो अभियान देश भर में जल सुरक्षा कानून के निर्माण के लिए वातावरण सृजन का कार्य करेगा। इसके लिए देश भर में नदी पुर्नजीवन यात्राएँ आयोजित होंगी। गंगा जल बिरादरी के पंकज कुमार ने कहा कि भारत अगर महाशक्ति नहीं बन पाया तो जल संकट बड़ा कारण होगा। मेरठ से आए डॉ मेजर हिमांशु ने कहा कि जल संकट के कारण आजीविका संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
वहीं जैन इरिगेशन के प्रबन्ध निदेशक अनिल जैन ने कहा कि जल प्रबन्धन के लिए सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए। जल सुरक्षा कानून के बिना खाद्य सुरक्षा कानून का प्रभावशाली नहीं होगा। विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के अतुल कुमार ने कहा कि जल का सवाल महत्वपूर्ण सवाल है। इसका संरक्षण हरेक की जवाबदेही है। वहीं जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतान्त ने कहा कि जल सुरक्षा का सवाल महत्वपूर्ण सवाल है, लेकिन सरकार इसकी अनदेखी कर रही है।
लोकशक्ति से सरकार को झुकाने का काम किया जाए। बिहार से आए रमेश भाई ने कहा कि नदियाँ बचेंगी तो देश बचेगा। तालाबों के संरक्षण के लिए अलग से अभिकरण के निर्माण की आवश्यकता है। भारत के प्रत्येक सांसद को जल सुरक्षा कानून के प्रारुप सौंपा जाएगा और इस हेतु अभियान चलाया जाएगा। केन्द्रीय रिजर्व भूजल के पूर्व महानिदेशक रवीन्द्र तोमर ने कहा कि जल युद्ध रोकने के लिए जल साक्षरता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर जैन इरिगेशन के सन्तोष देशमुख, विनोद राफतवार, सन्दीप, सुदीप साहू, पलामू के विनोद भाई, मुकेश और कृष्णानन्द के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से आए जलयोद्धाओं में अपने विचार रखे। सभी इस संकल्प से साथ गए कि अपने क्षेत्रों में जल सुरक्षा अधिनियम के लिए वातावरण का निर्माण करना है।
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Post By: Shivendra