![वानस्पतिक आवरण](https://farm1.staticflickr.com/651/20998203885_03eeeb455d.jpg)
विगत वर्षों में वनस्पति संसाधनों के कुुप्रबन्धन, उत्पादों हेतु बढ़ता दबाव, जंगलों की आग, पशुओं की चराई के दबाव, भूक्षरण एवं विकास कार्यों (सड़क निर्माण, भवन निर्माण, खनन कार्य) में अचानक हुई वृद्धि से भूजल चक्र (Hydrological Cycle) को अत्यधिक नुकसान हुआ है। भूमि पर वन व वानस्पतिक आवरण कम होने से इसमें से ज्यादातर पानी नदी-नालों से बह जाता है। ढालू भूमि से यह पानी उर्वरक मिट्टी को भी बहाकर ले जाता है। भूमि में वर्षा के जल का पर्याप्त अवशोषण नहीं हो पाता है। फलस्वरूप जल स्रोत या तो सूख गये हैं या सिर्फ मौसमी होकर रह गये हैं। मौसमी नदियों व नालों में वर्षा ऋतु में ग्रीष्म ऋतु के जल प्रवाह की तुलना में एक हजार गुना से भी अधिक पानी बहता है जिसको सामान्यतः (Too little and too much water syndrome) बहुत कम या बहुत अधिक पानी कहा गया है।
जल स्रोतों का प्रकार
जल स्रोत वह जगह है जहाँ से पानी धरती से बाहर फूटता है। जल स्रोत की प्रकृति के आधार पर इन्हें स्थानीय भाषा में ताल, धारे, मंगरे, नौले, डोबे, सोते आदि नामों से जाना जाता है। जल स्रोत को लेकर मन में अनेक जिज्ञासायें उत्पन्न होती है जैसेः
1. धरती से पानी सभी जगहों से न निकलकर कुछ खास जगहों से निकलता है।
2. कुछ जल स्रोतों से पानी का बहाव निरन्तर रहता है जबकि अन्य स्रोत मौसमी होते हैं।
3. कुछ जल स्रोतों में अन्य स्रोतों की अपेक्षा अधिक जल बहाव होता है।
4. कुछ स्रोत गर्मी में सूख जाते हैं जबकि अन्य में पानी का बहाव कम हो जाता है।
5. जल स्रोतों में पहले के मुकाबले अब पानी का बहाव कम हो गया है।
उपरोक्त जिज्ञासाओं का समाधान हम निम्न तरह से कर सकते हैं:
यदि किसी पहाड़ी की लम्बवत काट देखें तो उसमेे भूमि की सतह के नीचे विभिन्न चट्टानों की परतें दिखाई देती हैं। वर्षा होने पर, बारिश का पानी सतह की मिट्टी द्वारा सोख लिया जाता है जो कि मिट्टी की सतह के नीचे स्थित अनेक सरन्ध्र (Porous) शिलाओं में रिसता चला जाता है सरन्ध्र शिलाओं के नीचे की चट्टानें कठोर होती हैं। जब पानी ऐसी चट्टानों के तह पर पहुँचता है तो वह चट्टान की सतह के साथ-साथ बहते हुए पृथ्वी की सतह पर स्थित छिद्रों/अपभ्रशों से बाहर निकलता है।
![जल स्रोत](https://farm6.staticflickr.com/5814/21005734271_c4fe10c812.jpg)
जल स्रोत का प्रवाह मापना
जल स्रोतों में वर्षभर पानी का प्रवाह एक समान नहीं होता है। किसी भी स्रोत की धारक क्षमता ज्ञात करने के लिए स्रोत का प्रवाह मापना आवश्यक है। विभिन्न प्रकार के स्रोतों में जल प्रवाह की दर भिन्न-भिन्न होती है, जिनका प्रवाह निम्न विधियों द्वार मापा जाता है।
1. ऐसे जल स्रोत जहाँ पानी किसी जल मुख या टोंटी से निकलता, हो वहाँ उसके नीचे एक लीटर वाला मापक रखते है और मापक के भरने का समय नोट कर लेते हैं।
(पानी का प्रवाह (लीटर/मीनट) =1 लीटर के पात्र को भरने में लगा समय (सेकेंड में)
2. यदि जल स्रोत में कोई मुख नहीं है तो मिट्टी का छोटा बाँध बनाकर पानी को अस्थाई तौर पर एक जल मुख से निकाल कर पानी की प्रवाह दर (विधि 1 के अनुसार) मापते हैं।
3. जल स्रोत से यदि पानी का प्रवाह बहुत ज्यादा है तो ज्ञात आयतन वाले बर्तन (कनस्तर या बाल्टी) का उपयोग अधिक सुविधाजनक होता है इसके लिये पहले मापने वाले बर्तन की क्षमता ज्ञात कर लेते हैं। प्रवाह की दर निम्न समीकरण द्वारा निकाली जाती हैः
(जल का प्रवाह (लीटर/मिनट) = पात्र की क्षमता (लीटर X 60 सेकेंड/पात्र भरने में लगे सेकेंड)
4. जिन नौलों (स्रोतों) से पानी बाहर नहीं बहता है, इन नौलों से निकलने वाले पानी की मात्रा को मापने के लिये पानी की सतह की ऊँचाई पर निशान लगा लेते हैं तथा समय नोट कर लेते हैं। फिर ज्ञात आयतन वाले बाल्टी या कनस्तर की सहायता से कई बार पानी बाहर निकाल लेते हैं अब पानी को पुनः तल पर लगे निशान तक भरने में लगे समय को नोट कर लेते हैं।
(नौले की जल का प्रवाहदर (लीटर/मिनट) = कुल बाहर निकाला गया पानी (लीटर)/नौले को पुनः भरने में लगा समय (मिनट)
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