जल संस्कृति जीवन का मूलाधार

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विश्व जल दिवस पर विशेष
'अगली शताब्दी के युद्ध पानी के कारण होंगे।' यह घोषणा विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष इस्माइल सेराबेल्डिन ने 1995 में ही की थी। पानी का संकट भारत, इजराइल, चीन, बोलिविया,कनाडा, मेक्सिको, घाना और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के मीडिया की सुर्खियाँ बन रही हैं। दुनिया में 1993 से हर 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है।

इस दिन संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्धता की है। संयुक्त राष्ट्र ने स्वच्छ पेयजल, पेयजल की उपलब्धता को बनाए रखने, पानी को बचाने, ताजे पानी के स्रोतों को बचाने और इसके सम्बन्ध में विभिन्न देशों में चलाई जाने वाली गतिविधियों को प्रोत्साहित करने की सिफारिश की थी। विश्व जल दिवस के अवसर पर यह स्मरण कराया जाता है कि पानी का महत्व क्या है और कैसे उसके स्रोतों को बचाया जा सकता है।

जल का जीवन में महत्व है। मुंगेर जैसे शहर में कई जगहों पर पानी पिलाने के स्थान होते थे। घड़े में ढँककर रखा पानी लोगों की प्यास बुझानेे के लिए मुफ्त में उपलब्ध होता था। जीवन के संरक्षण के लिये मुफ्त वितरण कर्तव्य माना जाता था। अब इसका स्थान बोतलबन्द पानी ने ले​ लिया है।

यह दो संस्कृतियों के बीच संघर्ष है। एक जल को प्रकृति का उपहार मानता है तो दूसरा सिर्फ बिकाऊ चीज मानता है। इस व्यवस्था ने जगह-जगह प्लास्टिक की बोतलों का अम्बार लगा रहता है। गड्ढों में जमा यह कचरा कितना जल दूषित करेगा। यह अन्दाजा सहज की लगाया जा सकता है। बिहार में सरकार ने इस खतरे को समझा है।

पहले राज्य के वन एवं पर्यावरण विभाग के सचिव विवेक कुमार सिंह ने अपने विभागीय सरकारी आयोजनों में इसके चलन पर रोक लगाई अब राज्य के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने इसके चलन पर रोक का आदेश जारी किया है। यह एक छोटी पहल है। हाबी बाजार अब भी इसे लागू नहीं होने दे रहा है।

भारत में जनसंख्या विस्फोट के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है जिससे जल संकट की समस्या उत्पन्न हो गई है। जलस्रोत, स्थानीय तालाब, ताल-तलैया, नदियाँ और झील प्रदूषित हो रहे हैं और उनका पानी कम हो रहा है। इस समय देश की बढ़ी आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा भारत में खेती की सफलता पानी की उपलब्धता पर ही निर्भर है, जिसमें बारिश के पानी की अहम भूमिका होती है।

अच्छी वर्षा का मतलब अच्छी फसल होता है। वर्षा जल को बचाने की बहुत जरूरत है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसमें कोई तेजाबी तत्व न मिलने पाए क्योंकि इससे पानी और उसके स्रोत प्रदूषित हो जाएँगे। हमारे देश के गाँवों में एक लाख से अधिक घरों में रहने वाले पाँच करोड़ से भी अधिक लोगों के पास आज भी स्वच्छ पेयजल की सुविधा नहीं है।

अधिकारिक आँकडों के अनुसार कम-से-कम 22 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर और उसे भी अधिक दूर पैदल चलना पड़ता है (इसमें अधिकतर बोझ महिलाओं को ढोना पड़ता है)। ऐसे परिवारों का अधिकतर प्रतिशत भाग मणिपुर, त्रिपुरा, उड़ीसा, झारखण्ड, मध्य प्रदेश और मेघालय में है। गाँवों में 15 प्रतिशत परिवार बिना ढके कुओं पर निर्भर करते हैं तो दूसरे अपरिष्कृत पेयजल संसाधनों जैसे नदी, झरने और पोखरों आदि पर निर्भर करते हैं।

गाँवों के 85 प्रतिशत पेयजल संसाधन भूमिगत जल पर आधारित हैं और इनमें कई का पानी दूषित होता है। गाँवों की केवल 30.80 प्रतिशत आबादी के पास ही नल के पानी की सुविधा है। वास्तव में केवल चार ही राज्य ऐसे हैं जो पचास प्रतिशत अथवा उससे अधिक गाँवों के क्षेत्रों को पाईप आपूर्ति की पेयजल व्यवस्था के अन्तर्गत लाने में सक्षम हो पाए हैं।

भारत तेजी से जल का दबाव झेलने वाला देश बन रहा है और सबसे ऊपर और पहले पेयजल स्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए जागृति पैदा करने, पेयजल स्रोतों के नियमित परीक्षण, वर्षाजल का टैंकों और तालाबों में संरक्षण, जल पुनर्भरण और जल बचत उपकरणों की आवश्यकता है। जिससे कि देश में हर कोई पेयजल की बुनियादी सुविधा प्राप्त करने में सक्षम हो सके।कई राज्यों को अभी भी उच्चतम न्यायालय के सरकारी विद्यालयों में पीने योग्य पानी की आपूर्ति के आदेश का अनुपालन करना है। नवीनतम उपलब्ध आँकड़े दर्शाते हैं कि गाँवों के 44 प्रतिशत से भी कम सरकारी विद्यालयों में पेयजल की सुविधा है।

काफी पहले 1972 में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 40 लीटर पानी देने का मानक तय किया गया था । गुणात्मक पेयजल की उपलब्धता एक प्रमुख चिन्ता का विषय है, देश के कई भाग विषाक्त और फ्लोराइड दूषण से प्रभावित हैं जो कि स्वास्थ्य पर प्रभाव की दृष्टि से सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है।

देश में अभी 2000 विषाक्त और 12000 फ्लोराइड प्रभावित ग्रामीण आवास है। तब भी लौह, स्लेनिटी यूरेनियम और कीटनाशक जैसा दूषण भी है। केन्द्र उन राज्यों को जो कि रासायनिक पेयजल दूषण और वह राज्य जो कि जापानी और गहन एन्सेफ्लाईटिस सिंड्रोम के केस है।

विषाक्त और फ्लोराइड प्रभावित आवासों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का प्रावधान है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मन्त्रालय द्वारा पहचाने गए जापानी और गहन एन्सेफ्लाईटिस सिन्ड्रोम के बड़े मामलों की प्राथमिकता वाले जिलों को आवंटन का एक हिस्सा बैक्टीरिया दूषण से निपटने के लिए भी उपलब्ध कराया जाएगा।

दुनिया भर में पेयजल और स्वच्छता की कमी के कारण होने वाली बीमारियों और मौतों का आँकड़ा 9 प्रतिशत और 6 प्रतिशत है। वहीं हमारे देश में आधी से अधिक आबादी खुले में शौच पर आश्रित है, जो कि कहीं अधिक बदतर हालात हैं। ग्रामीण पेयजल आपूर्ति और ग्रामीण स्वच्छता को मजबूत करने के लिए गाँवों को पाईप जल आपूर्ति और खुले में शौच से मुक्त करने की स्थिति को प्राप्त करने की ओर अभिमुख होने की प्राथमिकता है।

सरकारी योजना का दस्तावेज़ प्रारूप कहता है कि सभी सरकारी ईमारतों और सामुदायिक भवनों में विद्यालयों और आँगनवाड़ियों को पेयजल के लिए जलापूर्ति और शौचालय राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम में निर्धारित गुणवत्ता मानकों के अनुरूप उपलब्ध कराए जाएँगे जो कि वर्तमान विद्यालयों और सर्व शिक्षा अभियान एवं सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत स्थापित नए विद्यालयों के लिए भी हैं।

निजी विद्यालयों के लिए यह शिक्षा अधिकारों के प्रावधानों के तहत अमल में लाया जाएगा। सभी सामुदायिक शौचालय सरकारी धनराशि से बनेंगे और इनका जनता के उपयोग के लिए रख-रखाव राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अन्तर्गत चल रही जलापूर्ति द्वारा किया जाएगा। इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि नाईट्रेट दूषण से बचाव के लिए शौचालयों और जल स्रोतों के बीच एक न्यूनतम अन्तर रखा जाएगा।

भारत तेजी से जल का दबाव झेलने वाला देश बन रहा है और सबसे ऊपर और पहले पेयजल स्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए जागृति पैदा करने, पेयजल स्रोतों के नियमित परीक्षण, वर्षाजल का टैंकों और तालाबों में संरक्षण, जल पुनर्भरण और जल बचत उपकरणों की आवश्यकता है। जिससे कि देश में हर कोई पेयजल की बुनियादी सुविधा प्राप्त करने में सक्षम हो सके।

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