पचासवें दशक के मध्य में भारत के सहयोग से भूटान में 21 जल-मौसम विज्ञान केन्द्रों की स्थापना की गई। हाइड्रोमेट तन्त्र की क्षमता को सुधारने के लिये मई 1979 में दोनों तरफ से एकल नेताओं के साथ एक संयुक्त विशेषज्ञ टीम का गठन किया गया।
जल संसाधन क्षेत्र में भारत-भूटान का सहयोग का दौर 50वें दशक के मध्य से ही आरम्भ हो जाता है जब भारत द्वारा भूटान को प्रमुख नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं की व्यापक योजना पर सहयोग दिया गया था, इसके बाद 60वें दशक में भूटान में लघु जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण व अनुसंधान में भारत द्वारा सहयोग दिया गया। मार्च 1974 में इस सहयोग में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि तब मिली जब भारत तथा भूटान को सरकारों के बीच ‘चुश्खा’ में बांगचू नदी के ऊपर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के लिये एक संधि पर हस्ताक्षर किया गया। इस परियोजना की कुल उत्पादन क्षमता 350 मेगावाट है। इस परियोजना के लिये आर्थिक सहायता प्रदान करने के साथ-साथ भारत सरकार ने भूटान को परियोजना की रूपरेखा तथा तकनीकी विशेषज्ञों को उपलब्ध करवाने में सहायता की। वर्तमान स्थिति में इस परियोजना के सभी विद्युत संयंत्र काम कर रहे हैं तथा इस परियोजना को भूटान सरकार को सौंपा जा चुका है।संकोष बहुउद्देशीय परियोजना
जनवरी 1993 में संकोष बहुउद्देशीय परियोजना के अनुसंधान के लिये आपसी समझौते पर हस्ताक्षर भारत-भूटान सहयोग में एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना थी। इस परियोजना के अन्तर्गत केराबारी में संकोष नदी पर 239 मीटर ऊँचा बाँध, 37 मीटर ऊँचा लिफ्ट बाँध, मुख्य बाँध पर लगभग 1,400 मेगावाट (7×200 मे.वा.) जल विद्युत उत्पादन में सहायतार्थ 11 किलोमीटर लम्बी नहर तथा लिफ्ट बाँध पर 125 मे.वा. (5×25 मे.वा.) विद्युत उत्पादन की परिकल्पना की गई है। इस परियोजना से लगभग 13.8 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की योजना है। इस परियोजना के लिये अनुसंधान अभी जारी है जिसकी दिसम्बर 1995 तक पूर्ण हो जाने की आशा है।
भूटान की कुल जल-विद्युत क्षमता को पूर्ण रूप से विकसित करने के लिये भारत सरकार ने फरवरी 1991 में भूटान, में ताला, वांगचु तथा कुरोचु जल विद्युत परियोजनाओं के लिये तथा विद्युत परामर्श सेवा (भारत) लिमिटेड द्वारा अनुसंधान प्रारम्भ करवाया। इन परियोजनाओं के प्रति अनुसंधान अभी जारी है जिसकी विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है-
ताला जल-विद्युत परियोजना
इस परियोजना के अंतर्गत होकां में वांगचु नदी के ऊपर 75 मीटर ऊँचा विशाखन बाँध, ताला में लगभग 1,000 मेगावाट (4×250 मे.वा.) बिजली उत्पादन के लिये भूमिगत विद्युत केन्द्र तक जल पहुँचाने वाली 22.5 कि.मी. लम्बी टनल बनाने की योजना रखी गई है। अनुसंधान पूर्ण होने पर अगस्त 1993 में एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई जिसमें सम्बन्धित संस्थाओं की टिप्पणियाँ व विचार भी शामिल किये गए। यह विस्तृत परियोजना रिपोर्ट दिसम्बर 1993 में पूर्ण हो गई।
बांगचू जलाशय योजना
इस परियोजना के अंतर्गत वांगचू नदी पर बइकिजां के पास 265 मीटर ऊँचा बाँध तथा नदी से जल प्रवाह को 900 मेगावाट (6×150 मे.वा.) क्षमता वाले विद्युत केन्द्र तक ले जाने के लिये लगभग 4.5 कि.मी. लम्बी टनल बनाने की योजना है। इस परियोजना के लिये अनुसंधान अभी जारी है तथा परियोजना रिपोर्ट को 1994 के मध्य तक पूरी कर लिये जाने की आशा व्यक्त की गई है।
कुरीचु जल विद्युत परियोजना
इसके अंतर्गत मुख्य कार्य 1987 में तैयार की गई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को पूर्ण करना है। इस परियोजना के अंतर्गत गायपोशिंग गाँव के नजदीक कुरीचु नदी पर 57 मीटर ऊँचे बाँध का निर्माण करने की योजना है जिससे लगभग 60 मेगावाट (4×15 मे.वा.) जल विद्युत उत्पादन किया जाएगा। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट जनवरी 1992 में तैयार कर ली गई थी तथा इस परियोजना का निर्माण राष्ट्रीय जल विद्युत ऊर्जा निगम को सौंपा गया है। जल तथा विद्युत परामर्श सेवा (भारत) लिमिटेड को इस परियोजना के निर्माण कार्य में सहयोग के लिये कहा गया है।
लघु जल विद्युत परियोजनाएँ
भूटान द्वारा भारत पर पूर्ण विश्वास इस बात से व्यक्त होता है जब उन्होंने मार्च 1992 में भारत सरकार से 70 दशक के आरम्भ से शुरू हुई लघु जल परियोजनाएँ पुनः स्थापित करने के लिए सहायता माँगी।
थिम्पू | 4×90 कि. वाट |
ग्यास्तसा | 3×500 कि. वाट |
लहुनतशो | 1×20 कि. वाट |
चिनांग | 3×250 कि. वाट |
इन परियोजनाओं का निरीक्षण भारत के केन्द्रीय जल आयोग तथा केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण के विशेषज्ञों द्वारा किया जा चुका है तथा पुनः स्थापित करने के तरीकों को भी खोजा जा चुका है।
पचासवें दशक के मध्य में भारत के सहयोग से भूटान में 21 जल-मौसम विज्ञान केन्द्रों की स्थापना की गई। हाइड्रोमेट तन्त्र की क्षमता को सुधारने के लिये मई 1979 में दोनों तरफ से एकल नेताओं के साथ एक संयुक्त विशेषज्ञ टीम का गठन किया गया। अभी तक इसकी चार बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं तथा इस टीम ने भूटान स्थित हाइड्रोमेट संयंत्रों में क्षमता सुधार हेतु पुनर्गठन के लिये सिफारिशें दी हैं।
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