जल संरक्षण तथा जल विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षा एवं प्रशिक्षण

‘जल’ प्रकृति का मानव को अमूल्य उपहार एवं प्राणी और प्रकृति जगत का जीवन है। यद्यपि पृथ्वी के तीन-चौथाई भाग में जल किसी न किसी रूप में विद्यमान है। समुद्र की विशाल जल राशि, पहाड़ों पर जमी बर्फ, भूमि के जलस्रोत, उफनती नदियाँ, ऐसा प्रतीत होता है कि अपार जलराशि की उपलब्धता से चिन्ता की कोई बात नहीं है। किन्तु वास्तविकता इससे बिल्कुल भिन्न है।

समुद्र का ‘जल’ लवणयुक्त होने के कारण न तो पीने योग्य है न ही सिंचाई के लिए उपयोगी है। अर्थात ग्रीष्म ऋतु में समुद्र तल के वाष्पीकरण से वर्षा के रूप में प्राप्त होने वाला जल तथा पहाड़ों से बर्फ पिघलने से प्राप्त ‘जल’ एवं भूगर्भीय जल ही मानव एवं प्रकृत्ति जगत के लिए उपयोग करने योग्य है। किंतु बढ़ती जनसंख्या, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ता उद्योगीकरण, उद्योगों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण, रसायनों का नदियों में प्रवाह से उपयोगी जल का प्रदूषण एक भयावह दृश्य उपस्थित करता है। इसके लिए सतत शिक्षा एवं प्रशिक्षण की नितान्त आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियों को हम शुद्ध पेयजल उपलब्ध करा सकें।

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