जल संरक्षण कार्यक्रम में अवसाद की भूमिका

प्रस्तुत शोध-प्रपत्र में जल संरक्षण कार्यक्रम में अवसाद की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है। जल ही जीवन है। लेकिन दुःख तो इस बात का है कि हमें उपलब्ध पेयजल इतना प्रदूषित हो गया है कि विश्व भर में लगभग डेढ़ करोड़ बच्चे 5 वर्ष की आयु पूरा करने के पूर्व ही कालकवलित हो जाते हैं। विश्व के निर्धन देशों में आधे से भी अधिक लोग शुद्ध पेयजल के लिए तरस रहे हैं। भारत में भी उपलब्ध जल का 90 प्रतिशत भाग अपेय है। जल को शुद्ध बनाए रखने के किसी भी कार्यक्रम में इसके भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्मों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु अवसाद जो जलीय तंत्र का अभिन्न अंग है, के अध्ययन को महत्ता प्रदान नहीं की जाती है। घरेलू-कूड़े-कचरों, शहरी-मलजल, औद्योगिक बहिःस्राव व उच्छिष्टों के नदी जल में प्रवेश करने के बाद उसमें उपस्थित धातुओं एवं हानिकारक पदार्थों का अवसाद में जमाव होता है।

जलीय तंत्र में होने वाली भौतिक, रासायनिक जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप उपर्युक्त पदार्थों का अवसाद से जल में प्रवेश संभव है। मुख्य प्रक्रियाएं हैं-जलीय माध्यम में लवणीय सांद्रता में वृद्धि, रेडाक्स स्थिति में परिवर्तन, पी.एच. में कमी एवं जीवाणुओं की क्रिया; फलतः जल में इन पदार्थों की मात्रा में वृद्धि होती है और वह अपेय हो जाता है। अवसाद प्रदूषण मुख्यतया अनिम्नीकरणीय कार्बनिक एवं अकार्बनिक रसायनों के निक्षेपण के फलस्वरूप होता है। अवसाद से जल में आई या प्रवेश हुई धातुओं का जैव भू-रासायनिक चक्र द्वारा मनुष्य में समावेश सम्भव है। अतः जल संरक्षण के किसी भी कार्यक्रम में अवसादों के अध्ययन को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।

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