जल संरक्षण एवं पर्यावरण


जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिये विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं वहीं कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। लोग अपनी महँगी गाड़ियों को धोने में न जाने कितने लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं। पीने के लिये लोगों को रोज 3 लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी चाहिए। पृथ्वी पर होने वाली सभी वनस्पतियों से हमें पानी मिलता है। अभी भी हमारे कई गाँवों में पीने के पानी की उचित व्यवस्था नहीं है। महिलाओं को गाँव से मीलों दूर पैदल चलकर पानी लेकर आना पड़ता है। जल है तो जीवन है और जीवन है तो कल है! लेकिन यह कल कैसे सुरक्षित रहे, इसको लेकर बड़ी बहस की, बड़े जतन की जरूरत है। घटते संसाधन और बढ़ती जरूरतों के हिसाब से पानी का संचय वक्त की जरूरत के साथ ही जिम्मेदारी भी बन गई है। बस इसके लिये क्या और कौन सा प्रयोग सरल-सटीक रहेगा यह सोचना और तय करना है। उपयोगिता की दृष्टि से भूजल, सतह पर पीने योग्य उपलब्ध जल संसाधनों के मुकाबले अधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत के लगभग अस्सी प्रतिशत गाँव, कृषि एवं पेयजल के लिये भूजल पर ही निर्भर हैं और दुश्चिंता यह है कि विश्व में भूजल अपना अस्तित्व तेजी से समेट रहा है।

विकासशील देशों में तो यह स्थिति भयावह है ही यहाँ जलस्तर लगभग तीन मीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से कम हो रहा है पर भारत में भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं। केन्द्रीय भूजल बोर्ड के अन्वेषणों के अनुसार भारत के भूजल स्तर में 20 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की औसत दर से कमी हो रही है, जो हमारी भीमकाय जनसंख्या की जरूरतों को देखते हुए गहन चिन्ता का विषय है।

मृदा (धरती की ऊपरी सतह) की अनेक सतहों के नीचे चट्टानों के छिद्रों या दरारों में छिपा आज सबसे कीमती खजाना है- भूजल, जिसके सिमटते ही मनुष्य डायनासोर की भाँति विलुप्त हो सकते हैं। एक समय पर दुनिया पर अधिकार रखने वाले ये डायनासोर, एक शोध के अनुसार, भोजन की कमी के कारण समाप्त हो गए थे, तो यह शंका भी निर्मूल नहीं कि एक दिन मनुष्य बिना पानी के समाप्त हो जाएँगे?

पानी हमारे जीवन के लिये बहुत जरूरी है। लेकिन हमारे आस-पास ऐसे कई लोग होंगे जो पानी की महत्ता को बिना समझे ना जाने कितने लीटर पानी यूँ ही बर्बाद कर देते हैं। विश्व में पानी की बर्बादी का स्तर बहुत ज्यादा है। हममें से हर किसी इस बर्बादी को रोकने के लिये अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए। आँकड़ों के अनुसार विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का पानी भी नहीं मिल रहा है। पानी प्राकृतिक देन है इसलिये हमें प्राकृतिक संसाधनों को दूषित नहीं होने देना चाहिए और ना ही पानी को बर्बाद करना चाहिए।

जब जनसंख्या बढ़ रही है और प्रकृति अपने सीमित संसाधनों के बावजूद स्वयं को मिटाकर अपनी सबसे बुद्धिमान रचना मनुष्य को बचाने में लगी है तो कहीं इस बुद्धियुक्त प्राणी का भी कर्तव्य है कि वह स्वयं के संरक्षण के लिये उठ खड़ा हो और इसके लिये अपने ही भूजल संसाधनों को बढ़ाने में प्रकृति से सहयोग करे। ऐसा भी नहीं है कि प्राकृतिक-वर्षा-जल को भूमिगत स्रोतों तक पहुँचाना कठिन कार्य है।

निजी प्रयासों से लेकर सामूहिक प्रयत्नों से इसको सम्भव बनाया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रगति के इस युग में अनगिनत फैक्टरियों के चलते उनके प्रदूषित रसायनों को पृथ्वी पर बहा दिये जाने, विभिन्न कारणों से विभिन्न रसायनों और अस्वास्थ्यकर पदार्थों को जमीन से दफना दिये जाने तथा सफाई व संक्रमण से रोकथाम के लिये वह कीटनाशकों के निरन्तर प्रयोग से भूमिगत जलाशयों के प्रदूषण की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है।

दिल्ली, मुम्बई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों की खराबी के कारण रोज 17 से 44 प्रतिशत पानी सड़कों व नालियों में बेकार बह जाता है। स्वच्छ पानी नहीं मिलने पर दूषित पानी पीने पर मजबूर लोगों में से कई लोग रोगों का शिकार हो जाते हैं। पानीजन्य रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है। नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं।

जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिये विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं वहीं कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। लोग अपनी महँगी गाड़ियों को धोने में न जाने कितने लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं। पीने के लिये लोगों को रोज 3 लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी चाहिए। पृथ्वी पर होने वाली सभी वनस्पतियों से हमें पानी मिलता है। अभी भी हमारे कई गाँवों में पीने के पानी की उचित व्यवस्था नहीं है। महिलाओं को गाँव से मीलों दूर पैदल चलकर पानी लेकर आना पड़ता है।

दुनिया में पानी का संकट कोने-कोने में व्याप्त है। दुनिया विकास कर रही है। औद्योगीकरण की राह पर चल रही है। पर साफ पानी मिलना कठिन हो रहा है। दुनिया भर में साफ पानी की अनुपलब्धता के चलते ही जलजनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं।

एशिया में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लेकर अफ्रीका में केन्या, इथियोपिया और सूडान तक, हर देश साफ पानी की कमी से जूझ रहा है। अगर ये कहा जाये कि तीसरी दुनिया के देशों की खराब हालत के पीछे एक बड़ी वजह साफ पानी की कमी होना है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हम भारत की बात करें, तो गिने-चुने प्रदेश ऐसे हैं, जिन्होंने साफ पानी की उपलब्धता को अपनी प्राथमिकता बनाया है, ऐसे में हालात कैसे सुधरेंगे? संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में लगभग 900 करोड़ लोगों को साफ पानी नहीं मिल पा रहा। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की एक बड़ी आबादी आज भी रोगों के विषाणुओं और औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों से युक्त पानी पीने को मजबूर है।

इसी का परिणाम है कि दुनिया भर में हर दिन लगभग 4,500 बच्चों की मौत जलजनित बीमारियों के कारण होती है। यह संख्या एचआईवी-एड्स, मलेरिया और टीबी से मरने वाले बच्चों की संख्या से भी ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया के विभिन्न महानगर रोजाना 150 से 200 मिलियन प्रति गैलन पानी की कमी से जूझते हैं। इस तरह अगर हर व्यक्ति हर दिन सिर्फ 10 लीटर पानी भी बचाए तो इससे भी बहुत अन्तर पड़ सकता है।

आज की तारीख में प्रतिवर्ष लगभग चार करोड़ भारतीय जलजनित बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। पारितंत्र में जीवन पैदा होगा या नहीं, इसके निर्धारण में सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व पानी है। पृथ्वी पर जीवन है, तो इसलिये कि यहाँ पानी है। पानी है, तो यहाँ जीवन है। जब तक पानी नहीं था, जीवन भी नहीं था। आगे चलकर अगर पानी खत्म हुआ, तो जीवन भी वहीं पर खत्म होगा। पानी जहाँ दूषित हुआ, वहाँ जीवन मिटने लगता है, चाहे आदमी हो या मवेशी हो या फिर घास ही क्यों न हो। पृथ्वी के अलावा उन्हीं ग्रहों पर जीवन की कल्पना की जाती है, जहाँ पानी हो। जो ग्रह तप रहे हैं, वहाँ पानी नहीं बना अभी तक और इसी वजह से वहाँ जीवन भी नहीं है।

भविष्य में ये ग्रह कभी ठंडे होंगे, तब वहाँ पानी निर्मित होगा और जीवन पनपेगा उसके ही बाद। हमारी धरती इस मामले में धनी है। इसका सत्तर फीसदी भाग जलमंडल है। थलमंडल के पाताल में भी पानी है। इसके अलावा धरती को घेरे हुए, जो हवामण्डल है, वहाँ भी पानी भरपूर है। यह पानी जलवाष्प के रूप में है। यहाँ पानी ज्यादा हुआ, तो बादल बन जाते हैं और धरती के आकाश में यहाँ-वहाँ विचरते हैं। हाँ, ये हर जगह बरसते नहीं, जाते वहीं हैं, जहाँ हवा ले जाये।

ध्यान से देखें, तो पृथ्वी पर जल का एक चक्र अनवरत चलता रहता है। पानी एक रूप से दूसरे रूप में रूपान्तरित होता रहता है और इधर-से-उधर प्रवाहित होता है। कुछ पहाड़ों और मरुस्थलों को छोड़कर लगभग पूरी पृथ्वी पानी से तर है। पाताल हो या धरातल या फिर आकाश ही क्यों न हों, पानी की धाराएँ चलती हैं।

शहरों की बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती माँग से कई दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। जिन लोगों के पास पानी की समस्या से निपटने के लिये कारगर उपाय नहीं हैं उनके लिये मुसीबतें हर समय मुँह खोले खड़ी हैं। कभी बीमारियों का संकट तो कभी जल का अकाल, एक शहरी को आने वाले समय में ऐसी तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते। अगर सही ढंग से पानी का संरक्षण किया जाये और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाये तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा।यह पानी का भण्डार है, जो तरह-तरह की भौतिक चोटों का धरती पर प्रभाव नहीं पड़ने देता। भूकम्प कितने भी बड़े हों, उनका बड़ा हिस्सा पानी द्वारा सन्तुलित कर लिया जाता है। इस तरह यह रबर की भाँति शॉक एब्जॉर्बर का काम करता है। ज्वालामुखियों से पैदा हुई अतिशय गर्मी भी यदि पानी द्वारा न सोखी जाये, तो उसका प्रभाव न जाने कितना अधिक होगा। इसी प्रकार, सूर्य से आने वाली गर्मी या इनसोलेशन को भी बादल और वायमुण्डल में व्याप्त वाष्प कम कर देते हैं, जिस कारण गर्मी कट-छनकर ही धरातल तक पहुँचती है।

भूजल पेड़-पौधों की जड़ों, नदी, झरनों और ताल-तलैयों आदि के द्वारा पहले धरातल और फिर वायुमण्डल तक चला जाता है, जहाँ से वह वापस वर्षा के माध्यम से इन्हीं स्रोतों तक पहुँचता है। समुद्र के खारे पानी और भूमण्डल के ताजे पानी के बीच भी नदियों और वर्षा के माध्यम से आदान-प्रदान चलता रहता है। इस प्रकार के सम्पूर्ण आवागमन और आदान-प्रदान से जल की गतियों का जो चक्र बनता है, वही जलचक्र है।

विश्व जल दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य, जल बचाने का संकल्प करने, पानी के महत्त्व को जानने और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत रहना है। प्रत्येक वर्ष विश्व जल दिवस मनाने के लिये एक अलग थीम होती है। विश्व जल दिवस को पानी बचाने के संकल्प का दिन कहा जाता है। यह दिन जल के महत्त्व को जानने का और पानी के संरक्षण के विषय में जागरुकता का दिन है।

आँकड़ों के मुताबिक विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। कहने के लिये धरती पर 70 प्रतिशत से ज्यादा भाग में सिर्फ जल ही पाया जाता है। लेकिन यह पानी पीने के योग्य नहीं है। शहरीकरण की वजह से अधिक सक्षम जल प्रबन्धन और बढ़िया पेयजल और सेनिटेशन की जरूरत पड़ती है। लेकिन शहरों के समक्ष यह एक गम्भीर समस्या है।

शहरों की बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती माँग से कई दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। जिन लोगों के पास पानी की समस्या से निपटने के लिये कारगर उपाय नहीं हैं उनके लिये मुसीबतें हर समय मुँह खोले खड़ी हैं। कभी बीमारियों का संकट तो कभी जल का अकाल, एक शहरी को आने वाले समय में ऐसी तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते। अगर सही ढंग से पानी का संरक्षण किया जाये और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाये तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा। लेकिन इसके लिये जागरुकता की जरूरत है। एक ऐसी जागरुकता की जिसमें दुनिया के हर इंसान पानी को बचाना अपना धर्म समझे।

भारत में सालाना लाखों लोगों की मौत दूषित पानी और खराब साफ-सफाई की वजह से होती है। दूषित जल के सेवन की चपेट में आने वाले लोगों के चलते हर साल देश की अर्थव्यवस्था को अरबों रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है। जहाँ तक श्रीलंका की बात है तो वहाँ सुनामी के प्रलय से पहले तक सिर्फ 40 फीसद ग्रामीण आबादी के पीने का पानी सरकार मुहैया करा रही थी और सुनामी के बाद ऐसी स्थिति बन गई है कि ग्रामीण और शहरी दोनों तबकों को पेयजल के नाम पर खारा पानी मिल रहा है। जल के बिना जीवन की कल्पना बेमानी है, लेकिन इसके अविवेकपूर्ण दोहन से दुनिया में जल संकट का खतरा बढ़ गया है।

जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। हम सब जानते हैं हमारे लिये जल कितना जरूरी है, लेकिन ये बात हम भूल जाते हैं, जब अपनी टंकी के सामने मुँह धोते हुए पानी को बर्बाद करते रहते हैं और तब जब हम कई लीटर मूल्यवान पानी अपनी कीमती कार को नहलाने में बर्बाद कर देते हैं। किताबी दुनिया और किताबी ज्ञान को हममें से बहुत कम ही असल जिन्दगी में उतार पाते हैं और इसी का नतीजा है कि आज भारत और विश्व के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। जल का अविवेकपूर्ण दोहन नहीं रुका तो आने वाले समय में एक शहरी को ऐसी तमाम समस्याओं से रूबरू होना पड़ सकता है।

पानी का हमारे जीवन में कितना महत्त्व है, यह इसी बात से पता चलता है कि हमारे शरीर का अधिकतर भाग भी जल ही है। इसके बावजूद पानी के प्रति हमारा दृष्टिकोण गैर-जिम्मेदाराना है। कहने को यूँ तो पृथ्वी पर 70 फीसदी से ज्यादा में पानी का साम्राज्य है, लेकिन वह पानी पीने योग्य नहीं है।

पीने योग्य मात्र कुछ प्रतिशत पानी है, जो नदियों, झरनों और तालों आदि के रूप में हैं, लेकिन इस पानी को हम पहले ही रसायनों की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा-खुचा है उसे भी अन्धाधुन्ध खर्च कर रहे हैं। पानी की अहमियत उन लोगों से समझी जा सकती है, जहाँ लोग पानी की बूँद-बूँद को पैसे से भी ज्यादा सोच समझकर खर्च करते हैं। इससे ज्यादा विडम्बना क्या होगी कि देश के कई ग्रामीण इलाकों में स्त्रियों का पूरा जीवन पानी का इन्तजाम करने में ही चला जाता है।

दुनिया में गिरता हुआ भूजल स्तर भी चिन्ता का विषय है। अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार कैलिफोर्निया राज्य पानी के अभाव में प्यासा है। यदि बारिश नहीं हुई तो यहाँ के लाखों नागरिकों को या तो अपना घर-बार छोड़कर कहीं दूसरी जगह जाकर बसना होगा या फिर उन्हें पानी के अभाव में मृत्यु से लड़ना होगा। यही हालात चीन, अफ्रीका और कई यूरोपीय देशों के हैं।

भारत में भी उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात जैसे कई राज्यों में लोग पानी के अभाव से लड़ रहे हैं। इसराइल में औसतन मात्र 10 सेंटीमीटर वर्षा होती है, इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है।

भूगर्भ में घट रही जलराशि को देखते हुए बारिश की एक-एक बूँद सहेजना जरूरी है। पहले कहा जाता था कि भारत ऐसा देश है, जिसकी गोदी में हजारों नदियाँ खेलती थी, आज इनकी संख्या सैकड़ों में ही बची है। ताल-तलैया और कितनी ही बावड़ियाँ सूख रही है। जरूरत है ऐसे जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने की।

लगभग 88 करोड़ लोगों को दुनिया में पानी नसीब नहीं हो पा रहा है। 35 लाख से अधिक लोग हर साल दूषित पानी के कारण मरते हैं। भारत में हर रोज लगभग 1600 व्यक्ति हैजा से मरते हैं। जलजनित बीमारियों के कारण हर वर्ष दुनिया में 22 लाख मौतें होती हैं। विश्व में प्रति 10 लोगों में से 2 लोगों को साफ पानी नहीं मिल पाता है। विश्व में 20 सेकेंड में एक बच्चा पानी सम्बन्धी बीमारी के कारण दम तोड़ देता है। 4 करोड़ भारतीय जलजनित बीमारियों से ग्रस्त होते हैं हर साल।

पिछले 50 वर्षों में पानी के लिये 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं। भारत में लगभग 20 प्रतिशत लोगों को डेढ़ किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। भारतीय महिला पीने के पानी के लिये रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती है। पानी जन्य रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है। प्रतिवर्ष 3 अरब लीटर बोतल पैक पानी पीने के लिये प्रयुक्त किया जाता है। पृथ्वी पर पैदा होने वाली सभी वनस्पतियों से हमें पानी मिलता है।

जिस तरह पानी को बर्बाद करना बेहद आसान है, उसी तरह पानी को बचाना भी बेहद आसान है। अगर हम अपने दैनिक जीवन की छोटी-छोटी बातों पर गौर करें तो काफी हद तक पानी की बर्बादी को रोक सकते हैं। पानी के बँटवारे को लेकर पूरी दुनिया में मारामारी मची है। कहा भी जाता है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिये लड़ा जाएगा। कई देशों के बीच जल बँटवारे को लेकर तनातनी चल रही है, तो हमारे भी कई राज्य नदी जल बँटवारे को लेकर बँटे हुए हैं।

इस समय पृथ्वी ग्रह पर जीवन को बचाए रखने के लिये सबसे बड़ी जरूरत पानी को बचाने की है। भारत की बात की जाये तो यहाँ प्रचुर मात्रा में बारिश होती है, लेकिन आबादी बढ़ने के कारण देश में पानी की कमी महसूस की जा रही है। आबादी बढ़ने के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अधिक इस्तेमाल होता है। जलस्रोत, स्थानीय तालाब, ताल-तलैया, नदियाँ और जलाशय प्रदूषित हो रहे हैं और उनका पानी कम हो रहा है।

इस समय देश की बड़ी आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा भारत में खेती भी बारिश के भरोसे ही होती है। भारत में खेती की सफलता पानी की उपलब्धता पर ही निर्भर है, जिसमें बारिश के पानी की अहम भूमिका होती है। अच्छी वर्षा का मतलब अच्छी फसल होता है। वर्षाजल को बचाने की बहुत जरूरत है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसमें कोई तेजाबी तत्व न मिलने पाये, क्योंकि इससे पानी और उसके स्रोत प्रदूषित हो जाएँगे।

इन बातों के आधार पर आमतौर पर यह कहा जा सकता है कि देश में जल संरक्षण एक बड़ी आवश्यकता है। इससे सम्बन्धित प्रमुख मुद्दों को इस प्रकार चिन्हित किया जा सकता है- शहरी और ग्रामीण घरों में सुरक्षित पेयजल को सुनिश्चित किया जाना, सुरक्षित पेयजल सुविधाओं को बनाए रखना, शहरों और गाँवों में स्वच्छ जलस्रोतों को सुरक्षित और पुनर्स्थापित करना एवं जल संरक्षण।

हर वर्ष विश्व जल दिवस के अवसर पर ताजे जल के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया जाता है। वर्तमान विश्व जल दिवस की विषयवस्तु ‘जल और ऊर्जा’ है। चूँकि जल और ऊर्जा एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं, इसलिये हमारे ग्रह के जीवन के लिये दोनों आवश्यक हैं। बिजली पैदा करने के लिये, खासतौर से पनबिजली और ताप बिजली के लिये जल संसाधनों की जरूरत होती है। पानी और ऊर्जा के सम्बन्ध को बनाए रखने के लिये जल संरक्षण को बढ़ाने और प्राकृतिक जलस्रोतों को बचाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि यह भावी ऊर्जा उत्पादन के लिये भी बहुत जरूरी हैं।

बिजली उत्पादन के सम्बन्ध में भी जल की कार्य क्षमता बढ़ाने की भी जरूरत है। बिजली उत्पादन के लिये पानी की जरूरत होती है और पानी उपलब्ध करने के लिये बिजली की जरूरत होती है। पानी और बिजली के इस आपसी सम्बन्ध के कारण अगर दोनों में से किसी एक की भी कमी हो गई तो दूसरे के लिये समस्या पैदा हो जाती है। अगर बिजली उत्पादन से सम्बन्धित जलस्रोतों की कमी हो जाये तो बिजली उत्पादन में निश्चित तौर पर कमी आ जाएगी। इस समय बिजली बचाने वाले उपकरणों की बेहद आवश्यकता है।

यदि उपकरण बिजली बचाएँगे तो इसका मतलब यह हुआ कि पानी भी बचेगा। हममें से ज्यादातर लोग यही सोचते हैं कि पानी बचाने के लिये एक अकेला आदमी क्या कर सकता है। इस तरह के विचार से हम लोग रोज पानी नष्ट कर देते हैं। आज की दुनिया में सभी लोग इस दौड़ में लगे हैं कि हम अपने घरों में बड़े-बड़े गुसलखाने बनवाएँ, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि पानी के बिना वे सब बेकार हैं। हम अपनी जरूरत से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करते रहते हैं। कम-से-कम हममें से हर व्यक्ति अपने घरों और कार्यस्थलों में पानी का उचित इस्तेमाल तो कर ही सकता है।

कई बार ऐसा देखा जाता है कि सड़क किनारे लगे हुए नलों से पानी बह रहा है और बेकार जा रहा है, लेकिन हम वहाँ से गुजर जाते हैं और नल को बन्द करने की चिन्ता नहीं करते। हमें इन विषयों पर सोचना चाहिए और अपने रोज के जीवन में जहाँ तक सम्भव हो पानी बचाने की कोशिश करनी चाहिए। बिजली का इस्तेमाल भी जरूरत के हिसाब से करना चाहिए न कि इच्छा के अनुसार। बिजली के उपकरणों को भी जब जरूरत हो तभी इस्तेमाल करना चाहिए। एक बल्ब से ही हमें पर्याप्त रोशनी मिल जाती है, तो इस बात की क्या जरूरत है कि हम कई लाइटें जलाएँ। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जब जरूरी न हो तब लाइट और बिजली के अन्य उपकरणों को कम-से-कम इस्तेमाल किया जाये। ऐसा करके हम न सिर्फ बिजली बचाएँगे, बल्कि पानी भी बचाएँगे।

यह संयोग ही है कि धरती पर 70 फीसदी पानी है और करीब इतने ही फीसदी पानी से बना होता है स्वस्थ शरीर।

इतना पानी भीतर है, फिर भी हम प्यासे हैं, इतना पानी बाहर है फिर भी पीने योग्य नहीं। वक्त है इस जलरूपी अमृत को सहेजने का... नहीं तो सिर्फ आँखों में ही बचेगा पानी। नासा के एक वैज्ञानिक ने अपने ताजा शोध में खुलासा किया है कि अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया में सिर्फ एक वर्ष का संचित जल शेष है। विकसित होने के बावजूद कैलिफोर्निया उजड़ने के कगार पर है, क्या हम भी तब तक नहीं चेतेंगे, जब तक ऐसा संकट नहीं आ जाता...! सहेजें जल।

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