संसार में उपलब्ध जल की मात्रा का मात्र 3 प्रतिशत ही पीने योग्य है तथा उसे भी पीने योग्य बनाने में करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष व्यय होते हैं तथा सहेजने में अरबों रुपए। फिर भी हम इस कीमती वस्तु की कीमत कुछ रुपयों में तय कर भूल जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि हमें जो पीने योग्य जल प्राप्त होता है यह वर्षा से होता है जो भारत में कुल 50-60 दिनों में ही होती है तथा वर्ष के 10 माह सरकार पानी को सहेजने के लिए बांध, तालाब, कुएं आदि बनाकर इनको सम्हालती हैं तथा वर्ष भर उपलब्ध कराती है। जल, पानी, नीर, पय, अम्ब यह नाम आते ही हमारी नजर में एक तरल पदार्थ आता है जिसके बिना जीवन संभव नहीं है। चूंकि हमें यह बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध है, अतः हम इसका मूल्य (कीमत नहीं) नहीं समझ पाते हैं।
माना कि हमें पानी प्रतिमाह 200-300 रुपए प्रतिमाह की कीमत में उपलब्ध है परंतु हम जो भुगतान करते हैं वह तो नाममात्र ही है। आइए याद करें कि हम यात्रा के दौरान एक लीटर पानी के ले 15-20 रुपए का भुगतान करते हैं। शायद वह दिन दूर नहीं जब इस पानी की कीमत दूध से भी अधिक होगी।
क्या हम मात्र दृष्टा बनकर देखते ही रहेंगे? क्या हम जल का संरक्षण करने में असमर्थ हैं? या हम ऐसा करना नहीं चाहते हैं?
संसार में उपलब्ध जल की मात्रा का मात्र 3 प्रतिशत ही पीने योग्य है तथा उसे भी पीने योग्य बनाने में करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष व्यय होते हैं तथा सहेजने में अरबों रुपए। फिर भी हम इस कीमती वस्तु की कीमत कुछ रुपयों में तय कर भूल जाते हैं।
क्या आप जानते हैं कि हमें जो पीने योग्य जल प्राप्त होता है यह वर्षा से होता है जो भारत में कुल 50-60 दिनों में ही होती है तथा वर्ष के 10 माह सरकार पानी को सहेजने के लिए बांध, तालाब, कुएं आदि बनाकर इनको सम्हालती हैं तथा वर्ष भर उपलब्ध कराती है। शहरी निवासियों को ज्ञात होगा कि फरवरी से मार्च-जून के मध्य पानी की कमी से त्राहि-त्राहि मच जाती है तथा व्यक्ति खून-खराबा करने से भी पीछे नहीं रहता तथा जैसे ही वर्षा का पानी प्राप्त होता है। हम फिर से भूल जाते हैं।
यदि आप पानी का मूल्य समझना चाहते हैं तो गुजरात, राजस्थान क्षेत्र में जाकर देखें कि पानी के लिए व्यक्ति अपना सब कुछ छोड़कर गर्मियों में दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होता है या पानी खरीद कर पीने को मजबूर हैं। सरदार सरोवर परियोजना तथा नर्मदा नहर द्वारा गुजरता, राजस्थान क्षेत्र में पानी मिलना प्रारंभ हो गया है तो स्थिति में परिवर्तन अवश्य हुआ है, परंतु उसके लिए भी गुजरात एवं राजस्थान सरकार द्वारा करोड़ों रुपए व्यय कर पानी गुजरात एवं राजस्थान के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचाया है तथा वहां के नागरिक जल की कीमत समझते हैं।
जिस तरह हम अपने पैसों को बैंक, भविष्य निधि, शेयरों, बीमा आदि में जमा/निवेस कर सुरक्षित रखते हैं क्यों नहीं हम जल को भी सहेजने का कार्य करें और उसे भी संरक्षित रखें। क्योंकि जल की बचत ही जल का उत्पादन है। आइए, हम गंभीरतापूर्वक जल को सहेजने का प्रयत्न करें।
1. कम से कम जल से नहाना, कपड़े, वाहन आदि धोना प्रारंभ करें।
2. ताजा पानी आते ही गत दिवस भरा पानी फेंके नहीं उन्हें पौधों, कपड़े धोने या अन्य कार्य में उपयोग करें।
3. पोछे-बर्तन का पानी पौधों में डालें।
4. कपड़े-बर्तन धोने में कम से कम सर्फ, साबुन का उपयोग करें।
5. वाहन ऐसे स्थान पर धोए जहां पौधे आदि या कच्ची जमीन हो ताकि पानी वापस भूमि में चला जाए।
6. पौधे वे लगाएं जो कम पानी में जीवित रहते हैं।
7. वर्षा के जल को सहेजने के लिए वाटर रिचार्ज पद्धति से पुनः उपयोग हेतु भंडारण करें।
8. नया घर बनाते समय एवं अपने घर में वाटर रिचार्ज पद्धति अवश्य अपनाएं तथा वर्षा के जल को सहेंजें जो भूजल के रूप में सुरक्षित रहता है तथा उसे हम बाद में पुनः उपयोग कर सकते हैं।
9. वाशिंग मशीन क्षमतानुसार धोने लायक कपड़े उपलब्ध होने पर ही उपयोग करें।
10. जल बचाने को अपना कर्तव्य समझें और अन्य को प्रेरित करें।
11. जल को रुपए से भी अधिक मू्ल्यवान समझें।
12. अपने परिवार के सदस्यों को जल बचाव के लिए अवश्य शिक्षित करें।
यदि आप उपरोक्त बातों पर ध्यान देते हैं तो इस बात में कोई शक नहीं है कि आज नहीं तो कल हमारे जल के भंडारण क्षमता में वृद्धि निश्चित ही होगी तथा हमारी आने वाली पीढ़ी को जल के लिए तरसना नहीं पड़ेगा।
माना कि हमें पानी प्रतिमाह 200-300 रुपए प्रतिमाह की कीमत में उपलब्ध है परंतु हम जो भुगतान करते हैं वह तो नाममात्र ही है। आइए याद करें कि हम यात्रा के दौरान एक लीटर पानी के ले 15-20 रुपए का भुगतान करते हैं। शायद वह दिन दूर नहीं जब इस पानी की कीमत दूध से भी अधिक होगी।
क्या हम मात्र दृष्टा बनकर देखते ही रहेंगे? क्या हम जल का संरक्षण करने में असमर्थ हैं? या हम ऐसा करना नहीं चाहते हैं?
संसार में उपलब्ध जल की मात्रा का मात्र 3 प्रतिशत ही पीने योग्य है तथा उसे भी पीने योग्य बनाने में करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष व्यय होते हैं तथा सहेजने में अरबों रुपए। फिर भी हम इस कीमती वस्तु की कीमत कुछ रुपयों में तय कर भूल जाते हैं।
क्या आप जानते हैं कि हमें जो पीने योग्य जल प्राप्त होता है यह वर्षा से होता है जो भारत में कुल 50-60 दिनों में ही होती है तथा वर्ष के 10 माह सरकार पानी को सहेजने के लिए बांध, तालाब, कुएं आदि बनाकर इनको सम्हालती हैं तथा वर्ष भर उपलब्ध कराती है। शहरी निवासियों को ज्ञात होगा कि फरवरी से मार्च-जून के मध्य पानी की कमी से त्राहि-त्राहि मच जाती है तथा व्यक्ति खून-खराबा करने से भी पीछे नहीं रहता तथा जैसे ही वर्षा का पानी प्राप्त होता है। हम फिर से भूल जाते हैं।
यदि आप पानी का मूल्य समझना चाहते हैं तो गुजरात, राजस्थान क्षेत्र में जाकर देखें कि पानी के लिए व्यक्ति अपना सब कुछ छोड़कर गर्मियों में दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होता है या पानी खरीद कर पीने को मजबूर हैं। सरदार सरोवर परियोजना तथा नर्मदा नहर द्वारा गुजरता, राजस्थान क्षेत्र में पानी मिलना प्रारंभ हो गया है तो स्थिति में परिवर्तन अवश्य हुआ है, परंतु उसके लिए भी गुजरात एवं राजस्थान सरकार द्वारा करोड़ों रुपए व्यय कर पानी गुजरात एवं राजस्थान के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचाया है तथा वहां के नागरिक जल की कीमत समझते हैं।
जिस तरह हम अपने पैसों को बैंक, भविष्य निधि, शेयरों, बीमा आदि में जमा/निवेस कर सुरक्षित रखते हैं क्यों नहीं हम जल को भी सहेजने का कार्य करें और उसे भी संरक्षित रखें। क्योंकि जल की बचत ही जल का उत्पादन है। आइए, हम गंभीरतापूर्वक जल को सहेजने का प्रयत्न करें।
जल संरक्षण के प्रयास एवं उपाय
1. कम से कम जल से नहाना, कपड़े, वाहन आदि धोना प्रारंभ करें।
2. ताजा पानी आते ही गत दिवस भरा पानी फेंके नहीं उन्हें पौधों, कपड़े धोने या अन्य कार्य में उपयोग करें।
3. पोछे-बर्तन का पानी पौधों में डालें।
4. कपड़े-बर्तन धोने में कम से कम सर्फ, साबुन का उपयोग करें।
5. वाहन ऐसे स्थान पर धोए जहां पौधे आदि या कच्ची जमीन हो ताकि पानी वापस भूमि में चला जाए।
6. पौधे वे लगाएं जो कम पानी में जीवित रहते हैं।
7. वर्षा के जल को सहेजने के लिए वाटर रिचार्ज पद्धति से पुनः उपयोग हेतु भंडारण करें।
8. नया घर बनाते समय एवं अपने घर में वाटर रिचार्ज पद्धति अवश्य अपनाएं तथा वर्षा के जल को सहेंजें जो भूजल के रूप में सुरक्षित रहता है तथा उसे हम बाद में पुनः उपयोग कर सकते हैं।
9. वाशिंग मशीन क्षमतानुसार धोने लायक कपड़े उपलब्ध होने पर ही उपयोग करें।
10. जल बचाने को अपना कर्तव्य समझें और अन्य को प्रेरित करें।
11. जल को रुपए से भी अधिक मू्ल्यवान समझें।
12. अपने परिवार के सदस्यों को जल बचाव के लिए अवश्य शिक्षित करें।
यदि आप उपरोक्त बातों पर ध्यान देते हैं तो इस बात में कोई शक नहीं है कि आज नहीं तो कल हमारे जल के भंडारण क्षमता में वृद्धि निश्चित ही होगी तथा हमारी आने वाली पीढ़ी को जल के लिए तरसना नहीं पड़ेगा।
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