इन दिनों दुनिया भीषण जल संकट का सामना कर रही है। पानी के संकट से ऑस्ट्रेलिया भी अछूता नहीं रह गया है। ऑस्ट्रेलिया में दिसंबर से फरवरी के दौरान पड़ी भीषण गर्मी की वजह से नदियों का जलस्तर खतरनाक ढंग से नीचे आ रहा है। सिडनी में हालात बदतर हैं। जल स्रोत 1940 के बाद से अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए न्यू साउथ वेल्स प्रशासन (एनएसडब्ल्यू) को एक बार फिर से कड़े प्रतिबंध लागू करने पड़े हैं।
भारत में बड़ी दिक्कत गंदे पानी को साफ करने की है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में गंदे पानी का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा साफ किया जाता है और बाकी पानी नदी या तालाब में गिरा दिया जाता है जिससे भूजल प्रदूषित हो जाता है। सबसे ज्यादा जल संकट नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद के लोगों को सामना करना पड़ता है। भारत में 70 प्रतिशत पानी गंदा है, जिसको 4 में से 3 भारतीय पीने को मजबूर हैं। सबसे गंदा पानी पीने वाले देशों में भारत 121वें पायदान पर है।
प्रशासन ने जो नियम तय किए हैं, उनके मुताबिक अब से नल को खुला छोड़ना भी अपराध की श्रेणी में शामिल होगा। इसके अतिरिक्त अगर किसी ने अपने बगीचे में पानी डालने के लिए स्प्रिंकल सिस्टम का इस्तेमाल किया तो उसे जुर्माना भरना होगा। नए नियमों के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति ने पानी बर्बाद किया तो उस पर 10,613 रुपये और संस्थान पर 26,532 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। ये प्रतिबंध 1 जून से लागू हो जाएगा।
भीषण संकट
कुछ साल पहले सिडनी की मरे-डार्लिंग नदी में पानी की कमी से बहुत सारी मछलियां मर गई थीं। चुनाव में भी ये बात मुद्दा बनी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी में पानी का बहाव कम होने से ऑक्सीजन की मात्रा भी घट गई। मछलियों के मरने की वजह उनका दम घुटना रहा। साउथ-ईस्टर्न स्टेट की जल मंत्री मेलिंडा पवे का कहना है कि इस समस सारा इलाका भीषण सूखे से जूझ रहा है। पानी की बर्बादी रोकने के लिए न्यू साउथ वेल्स प्रशासन ने 2009 में प्रतिबंध लागू किए थे। सिडनी के कुछ इलाकों में यह दशकों बाद आज भी लागू है। उस दौरान भी पानी की बर्बादी करने पर लोगों पर जुर्माने का प्रावधान रखा गया था।
पृथ्वी की सतह 75 प्रतिशत जल से भरी है। इसमें 97 प्रतिशत पानी समुद्र में है यानी कि खारा पानी। केवल 3 प्रतिशत पानी ही पीने लायक है और अब वो पानी और कम होता जा रहा है। तस्वीर बेहद भयावह है। लगभग 100 करोड़ से ज्यादा लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता। 270 करोड़ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें पूरे साल में एक महीने पानी ही नहीं मिलता। 2050 तक पानी की कमी का सामना कर रहे लोगों की संख्या 5.7 अरब पहुंच जाएगी। जल ही जीवन है। हम भोजन के बिना एक महीने से ज्यादा जीवित रह सकते हैं, लेकिन जल के बिना एक सप्ताह से अधिक जीवित नहीं रह सकते। कुछ जीवों (जैसे जैली फिश) में उनका 90 प्रतिशत से अधिक शरीर का भार जल से होता है। मानव शरीर में लगभग 60 प्रतिशत जल होता है- मस्तिष्क में 85 प्रतिशत जल है, रक्त में 79 प्रतिशत जल है तथा फेफड़ों में लगभग 80 प्रतिशत जल होता है।
भारत का हाल
भारत में बड़ी दिक्कत गंदे पानी को साफ करने की है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में गंदे पानी का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा साफ किया जाता है और बाकी नदी या तालाब में गिरा दिया जाता है जिससे भूजल प्रदूषित हो जाता है। सबसे ज्यादा जल संकट नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद के लोगों को सामना करना पड़ता है। भारत में 70 प्रतिशत पानी गंदा है, जिसको 4 में से 3 भारतीय पीने को मजबूर हैं। सबसे गंदा पानी पीने वाले देशों में भारत 121वें पायदान पर है। वाॅटरएड इंडिया के अध्यक्ष वीके माधवन ने बताया, भारत में भूजल इतना प्रदूषित हो चुका है कि इससे कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं। पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा पाई गई है।
अफ्रीका के लोगों की हालत बुरी
पीने के साफ पानी के मामले में अफ्रीका के लोगों की स्थिति सबसे दयनीय है। दुनिया भर में जितने लोग असुरक्षित पानी पीते हैं, उनमें से आधे लोग अफ्रीका में रहते हैं। सहारा अफ्रीका में केवल 24 प्रतिशत लोगों के पास पीने का सुरक्षित पानी उपलब्ध है और केवल 28 प्रतिशत लोग के पास स्वच्छता से संबंधित सुविधाएं हैं। सहारा अफ्रीका के आधे लोग असुरक्षित स्रोतों से पानी पीते हैं और यहां पानी का इंतजाम करने की जिम्मेदारी महिलाओं और लड़कियों की होती है। उन्हें हर बार पानी ढोकर लाने में 30 मिनट से ज्यादा वक्त लगता है। असुरक्षित पानी पीने के कारण यहां के लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और शिक्षा के अभाव से जूझ रहे हैं।
पानी को तरसता केपटाउन
दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर में पिछले तीन साल से चला आ रहा सूखा अब खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। यहां होने वाली पानी की किल्लत से भारत जैसे देशों को सीख लेने की सख्त जरूरत है क्योंकि शहर में सिर्फ कुछ दिन का पानी बचा है। इसके चलते यहां डे-जीरो के तहत सारे नलों से पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई। हालात ऐसे हो गए हैं कि लोगों को सप्ताह में सिर्फ दो बार नहाने और शौचालय में फ्लश के लिए टंकी के पानी का उपयोग करने पर रोक लगा दी गई है।
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