हरित क्रांति के दिनों यानी 1960 के दशक के मध्य से ही पंजाब के गेहूं और चावल के खेत भारतीयों के पेट भर रहे हैं। लेकिन भारत के जल संसाधनों को सुखाए बिना इन फसलों के लिए पानी उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। भारत और अमेरिका के कृषि विज्ञानी और अध्येता मिलकर इसी चुनौती के समाधान में जुटे हैं।
न्यू यॉर्क स्थित कोलम्बिया यूनिवर्सिटी का वाटर सेंटर पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर ऐसे नए तरीके के हल ढूंढ रहा है जिनका लक्ष्य पानी के अतिउपयोग और कमी से निपटना है। यह टिकाऊ उत्पादकता और लोगों की खुशहाली पर गहरे प्रभाव डालने वाला पर्यावरणीय मुद्दा है।
वर्ष 2010 में होने वाली रोपाई में नए तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है और अलग-अलग प्रयोगों में 500 से भी अधिक किसान भाग ले रहे हैं।
कोलम्बिया वाटर सेंटर के उप निदेशक डैन स्टेलर बताते हैं, ‘‘हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि खेती भूजल को कैसे प्रभावित करती है और भूजल स्तर गिरने की गति को धीमा करने के लिए, हो सके तो उसे स्थिर करने और समय के साथ-साथ भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए क्या बदलाव लाए जाएं।’’
वर्ष 2008 में स्थापित कोलम्बिया वाटर सेंटर कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टिट्यूट का हिस्सा है जो संसारभर में टिकाऊ विकास पर काम करता है। अपने काम के एक हिस्से के तौर पर, मार्च 2010 में सेंटर ने संसारभर में पानी की कमी से जूझने में सहायक सिद्घ हो पाने वाली उभरती प्रौद्यौगिकियों की पहचान के लिए नासा, यू.एस.एड, अमेरिकी विदेश मंत्रालय और नाइकी इन्कॉर्पोरेटेड के साथ लाँच पहल पर सहयोग किया।
अपनी स्थापना के बाद से ही वाटर सेंटर ऐसी प्रौद्यौगिकियों को पंजाब लाने के लिए प्रयासरत रहा है। पंजाब और गुजरात में विकसित हो रही परियोजनाओं के लिए उसे पेप्सिको फा़उंडेशन से 3 वर्ष के लिए 60 लाख डॉलर का अनुदान मिला है।
पंजाब में खेती के वैकल्पिक तरीके
कोलम्बिया वाटर सेंटर के अनुसार भारत सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले अनाज में से लगभग आधा भारत के अनाज भंडार के तौर पर जाना जाने वाला पंजाब उपजाता है। इसका परिणाम यह है कि किसानों को फसल के लिए एक सुनिश्चित बाज़ार उपलब्ध होता है। आर्थिक वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए कोलम्बिया वाटर सेंटर और पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी अपने प्रयास ऐसी विधियों पर केन्द्रित कर रहे हैं जो पानी की अपेक्षाकृत कम खपत के बाद भी गेहूं और चावल की अच्छी फ सल दें।
ऐसे एक पानी बचाने वाले हल की खोज में धान के किसानों द्वारा हर फ सल की सिंचाई के दौरान खेतों में पानी भरने के अवसरों की संख्या को कम करने पर प्रयोग किया जाएगा।स्टेलर कहते हैं, ‘‘सिंचाई के दिनों में भूजल से जुड़े पंप 35-40 बार तक पानी खींचकर खेतों से जुड़ी नहरों में डालते हैं। क्या 35 की जगह 27 बार सिंचाई करने से काम चलेगा? ऐसा हो तो पानी की काफी बचत हो जाए।’’
खेतों की कम भराई के कारण बचा पानी मनुष्यों की और कई ज़रूरतों क ो पूरा करने के काम आ सकता है। स्टेलर कहते हैं, ‘‘एक या दो भराइयों की बचत भी बहुत महत्वपूर्ण है, खासतौर पर जब आप इसे घरेलू इस्तेमाल के लिए पानी के उपयोग में बदल लें।’’
कुछ अन्य किसान सीधे रोपाई नाम की एक विधि आजमा रहे हैं: इस विधि में किसान रोपाई से पहले खेत को पानी से भरने के बजाय पौधों को सीधे मिट्टी में रोपते हैं और फि र जरूरत पड़ने पर सिंचाई करते हैं। स्टेलर कहते हैं कि इस प्रयोग में भाग लेने वाले किसान खेत को सींचने से पहले मिट्टी में नमी का स्तर मापने के लिए टैन्सियोमीटर नाम का उपकरण इस्तेमाल करेंगे ताकि मिट्टी के सचमुच सूखे होने पर ही सिंचाई की जाए। फि लहाल किसान खेत की मिट्टी के सूखा दिखते ही उसे पानी से भर देते हैं।
कोलम्बिया वाटर सेंटर कम सिंचाई और टैन्सियोमीटर के उपयोग से हुई पानी की बचत की गणना करके उत्पादकता के सन्दर्भ में इन आंकड़ों का आकलन करेगा। स्टेलर स्पष्ट करते हैं कि प्रयोग का लक्ष्य उपज या फ सलों की गुणवत्ता में कमी लाए बिना पानी की खपत कम करना है।
विभिन्न फसलें, कम पानी
एक और परियोजना में किसानों को एकदम ही अलग किस्म की ऐसी फ सलें उगाने के लिए राजी किया जाएगा जो प्राकृतिक रूप से, कम पानी मांगती हैं। भारत के भारती इंटरप्राइज़ेज़ और अमेरिका के डेल मॉंटो फूड्स के साझे उद्यम फी़ल्ड फ्रेश फूड्स की साझेदारी में कोलम्बिया वाटर सेंटर और पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लगभग 100 किसानों को चावल और गेहूं के बजाय मक्का, बेबी कॉर्न और हरी सेम सहित सब्जियों की फसलें लेने में मदद कर रहे हैं।फ सलों में बदलाव लाने से पानी की बचत तो होगी। कोलम्बिया वाटर सेंटर इस मौसम में बचत की मात्रा की गणना कर पाने की आशा कर रहा है। लेकिन बाज़ार की उपलब्धता नई फसलों की सफ लता की राह में बाधक बनी हुई है।
स्टेलर स्पष्ट करते हैं,‘‘हम कंपनियों के साथ ठेकों की दिशा में प्रयास कर रहे हैं ताकि किसानों को भरोसा रहे कि वे अपनी फ सलें बेच पाएंगे। हम किसानों को उसी स्तर की सुनिश्चितता उपलब्ध करवाना चाहते हैं जैसी उन्हें गेहूं और चावल के मामले में सरकार से मिली हुई है। अगर किसानों को अधिक पैसे मिल पाएं और वे इन फ सलों को उगाने के लिए कम पानी का उपयोग करें तो सभी का फायदा ही फायदा है।’’
अगर ये प्रयास सफल रहे तो कोलम्बिया वाटर सेंटर और उसके भारतीय साझेदारों को आशा है कि वे पंजाब में फ सलों की किस्में बढ़ा पाएंगे और चावल और गेहूं की खेती को देश के उन हिस्सों में स्थानान्तरित कर पाएंगे जहां भूजल अधिक मात्रा में उपलब्ध है ताकि उन्हें आर्थिक रूप से लाभ हो सके।
स्टेलर कहते हैं, ‘‘हम चावल और गेहूं के सकल उत्पादन में कमी नहीं चाहते।’’इधर पंजाब में रोपाई का प्रयोग शुरू हो रहा है और उधर कोलम्बिया वाटर सेंटर का लक्ष्य है - छह से नौ महीनों में, आजमाई जा रही पानी बचाऊ प्रौद्यौगिकियों की कारगरता के बारे में पुष्ट किए जा सकने वाले आंकड़े संकलित कर लेना।
स्टेलर कहते हैं,‘‘ यह हमारे लिए बहुत उत्साहपूर्ण मौसम है क्योंकि इसमें हम कई प्रश्नों के उत्तर मिल जाने की आशा कर रहे हैं।’’
गुजरातः पानी की भयंकर कमी
स्टेलर के अनुसार गुजरात में भूजल के स्तर गिरने की स्थिति भयंकर है। स्टेलर चेताते हैं,‘‘पानी खींचने के लिए इतनी गहराई तक खुदाई की जा रही है कि भूजल प्रणाली में खारा पानी मिल जाने का खतरा मंडराने लगा है। अगर खारा पानी भूजल प्रणाली में मिल गया तो पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए नहीं हो पाएगा।’’
इस समस्या के समाधान के लिए तीन चरणों वाला हल तैयार करने के लिए कोलम्बिया वाटर सेंटर ने गुजरात सरकार और सरदार कृषिनगर दन्तीवाडा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साथ साझेदारी की है जो इसी वर्ष शुरू हो जाएगी। इस प्रक्रिया में किसानों को भूजल की स्थिति के बारे में बताने, अपूरणीय क्षति की संभावना स्पष्ट करने और खारे पानी के भूजल प्रणाली में मिलने से उनकी आजीविका को खतरे पर जोर देने के लिए एक जागरूकता अभियान का संचालन शामिल है।
इसके बाद, अमेरिकी और भारतीय साझेदार संभावित पानी बचाऊ प्रौद्यौगिकियों की समीक्षा करेंगे और उन आंकड़ों का उपयोग हर प्रौद्यौगिकी के लाभ किसानों को समझाने के लिए करेंगे।आखिर में, कोलम्बिया वाटर सेंटर और उसके साझेदार किसानों को पानी खींचने के लिए मिलने वाली ऊर्जा सब्सिडी में बदलाव पर काम करेंगे। स्टेलर कहते हैं कि फि लहाल, राज्य चावल की फ सल बेचने से मिली राशि के दोगुने से अधिक सब्सिडी के रूप में किसानों को भुगतान करता है। कोलम्बिया वाटर सेंटर एक ऐसी प्रोत्साहन-आधारित प्रणाली तैयार करना चाहता है जिससे सभी पक्षों को लाभ हो - किसान पानी और ऊर्जा बचाते हुए अधिक लाभ कमाएं और राज्य को पैसों की खासी बचत हो।
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