लेह में पर्यावरण से खिलवाड ही खलनायक बन गया है। लालची वन ठेकेदारों और उनके राजनीतिक आकाओं व सहयोगियों ने मिलकर पहाडों पर पेड काटते-काटते लेह को गंजा कर दिया है। दुखद है, ऎसा केवल लेह ही नहीं, पूरे देश में हुआ है, खूब पेड काटे गए हैं। न भारत, न पाकिस्तान और न चीन, कोई भी भीषण बाढ से अनजान नहीं है, लेकिन जल प्रलय ने इस बार तीनों देशों में भयावह व झकझोर देने वाले दृश्य पेश कर दिए। सबसे पहले पाकिस्तान में तो स्थितियां असाधारण और अभूतपूर्व हो गई, याद नहीं आता कि ऎसी भारी बारिश कभी पाकिस्तान में हुई होगी। मौत से बात करती बल खाती लहरों ने 1 करोड 20 लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया। कम से कम 1 लाख 40 हजार लोग घर-बार गंवा बैठे। करीब 2000 पुरूष, महिलाएं व बच्चे मारे गए। अकथ विनाश हुआ। हद तो यह कि सिन्धु नदी अब विनाशलीला को दक्षिण मे सिंध की ओर लिए बढ रही है। यह वही क्षेत्र है, जहां पिछले दिनों एक मोहाजिर नेता की हत्या के बाद मोहाजिर और पख्तूनों के बीच जातीय उग्र संघर्ष छिडा हुआ है।
पाकिस्तान में विनाशलीला के बाद दो पक्ष सामने आए। पहला पक्ष, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने मौके की नजाकत समझते हुए पाकिस्तान के लोगों के लिए सहानुभूति व सहायता के संदेश भेजे। लेकिन भारतीय मीडिया एक तरह से चूक गया। उसने न सहानुभूति का प्रदर्शन किया और न पाकिस्तान की त्रासदी को ठीक से स्थान दिया, जबकि पाकिस्तान में जो हुआ है, वह हमारे दौर की एक भयावह त्रासदी है।
दोनों ही देशों में परस्पर सद्भावना रखने वाले लोग हैं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि कई लोग उस जर्मन कहावत 'सडेनफ्रीउडे' को चरितार्थ करते हैं, जिसका अर्थ है : दूसरे के दुर्भाग्य में खुशी पाना। यह प्रवृत्ति समाप्त होनी चाहिए, हां, इस देश में मुंबई हमले पर गुस्सा है, लेकिन मानवता को तमाम भावनाओं से ऊपर रखना चाहिए। आशा है, पाकिस्तानी प्रतिष्ठान उन 28 भारतीय सैनिकों को खोजने का वचन निभाएगा, जिनके लेह में बादल फटने की वजह से भारत से बहकर पाकिस्तानी क्षेत्र में चले जाने की आशंका है।
दूसरा पक्ष, जो ज्यादा महत्वपूर्ण है। जब पाकिस्तान एक महाविपत्ति का सामना कर रहा है, तब वहां चुनी हुई सरकार ने खराब उदाहरण पेश किया। सबसे निराशाजनक और अफसोसजनक भूमिका तो पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की रही है। जब उन्हें आगे बढकर राहत कार्यो का नेतृत्व करना चाहिए था, तब वे यूरोप सैर के लिए निकल गए। फ्रांस में उन्होंने नॉरमेंडी स्थिति अपने सोलहवीं सदी के महल का हेलीकाप्टर से दौरा किया और अपने पुत्र के अनुभवहीन राजनीतिक करियर को बढावा दिया। उनकी मुख्य मंजिल ब्रिटेन में तो उनके देशवासियों ने ही उन्हें अभिशापों से लाद दिया। उन्हें 'मिस्टर 10 परसेंट' कहकर पुकारा गया। उस दौर की याद ताजा की गई, जब अपनी बेगम बेनजीर भुट्टो के मंत्रिमंडल मे जरदारी वरिष्ठ मंत्री हुआ करते थे और प्रत्येक सौदे में 10 प्रतिशत दलाली लेने के लिए कुख्यात थे। उनके खिलाफ ब्रिटेन में हुए अनेक प्रदर्शनों में लोगों ने उन्हें तख्ते दिखाए, जिन पर लिखा था : पाकिस्तान को अमरीका और जरदारी से बचाओ। एक गुस्साए पाकिस्तानी ने तो जूता तक उछाल दिया। अपने ऎसे अस्वीकार्य व्यवहार पर जरदारी ने सफाई दी कि उन्होंने अपनी सारी शक्तियां संसद और प्रधानमंत्री को प्रदान कर दी हैं, अत: उनका स्वदेश में रहना जरूरी नहीं था।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री गिलानी भी शुरू में लगभग गैर-हाजिर थे। उन्होंने बस इतना किया कि अपने मंत्रियों को राहत कार्य तेज करने के लिए कहा। मंत्रियों ने प्रधानमंत्री की सलाह पर काम किया, इसका कोई सबूत नहीं है। पाकिस्तान में सारी शक्तियों से ऊपर सेना है, उसने तत्काल 50,000 सैनिकों और पर्याप्त संख्या मे हेलीकॉप्टरों को राहत कार्य में लगा दिया, लेकिन सेना की कार्यवाही बाढ पीडितों को बचाने तक ही सीमित थी। इसके परिणामस्वरूप हाफिज सईद के आतंककारी धर्मार्थ संगठन जमात-ए-दावा ने राहतकर्मियों की शून्यता को भरा। इससे जाहिर है, आतंककारी संगठनों को पाकिस्तान में और मजबूती मिलेगी।
चीन का अपना तरीका है, वह आम तौर पर चुपचाप काम करता है। वह स्थितियों को संभाल लेता है, कभी-कभी तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सीधे दिशानिर्देश पर स्थितियों को संभाला जाता है। इस बार भी चीन में बाढ आई है, तो वैसा ही हो रहा होगा। जहां तक लेह का सवाल है, तो सेना राहत कार्य में जुटी है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री सबसे पहले मौके पर पहुंचे, उसके बाद केन्द्रीय मंत्री पहुंचे। फिर भी लेह में पीडितों को सही जगह पहुंचाना और आम जनजीवन की वापसी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि इस क्षेत्र को जोडने वाली ज्यादातर सडकें नष्ट हो चुकी हैं।
इस क्षेत्र में पर्यावरण से खिलवाड ही खलनायक बन गया है। लालची वन ठेकेदारों और उनके राजनीतिक आकाओं व सहयोगियों ने मिलकर पहाडों पर पेड काटते-काटते लेह को गंजा कर दिया है। दुखद है, ऎसा केवल लेह ही नहीं, पूरे देश में हुआ है, खूब पेड काटे गए हैं। यह एक ऎसा सच है, जिसकी चिंता भारत, चीन और पाकिस्तान को समान रूप से करनी चाहिए। लेह जैसी अनेक जगहों पर बहुत तेजी और बेचैनी के साथ ऎसा मूलभूत ढांचा खडा किया जा रहा है, जो मात्र एक जलप्रलय के आते ही पूरी तरह बह गया। इससे एक बडी चिंता पैदा हुई है।
पाकिस्तान में विनाशलीला के बाद दो पक्ष सामने आए। पहला पक्ष, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने मौके की नजाकत समझते हुए पाकिस्तान के लोगों के लिए सहानुभूति व सहायता के संदेश भेजे। लेकिन भारतीय मीडिया एक तरह से चूक गया। उसने न सहानुभूति का प्रदर्शन किया और न पाकिस्तान की त्रासदी को ठीक से स्थान दिया, जबकि पाकिस्तान में जो हुआ है, वह हमारे दौर की एक भयावह त्रासदी है।
दोनों ही देशों में परस्पर सद्भावना रखने वाले लोग हैं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि कई लोग उस जर्मन कहावत 'सडेनफ्रीउडे' को चरितार्थ करते हैं, जिसका अर्थ है : दूसरे के दुर्भाग्य में खुशी पाना। यह प्रवृत्ति समाप्त होनी चाहिए, हां, इस देश में मुंबई हमले पर गुस्सा है, लेकिन मानवता को तमाम भावनाओं से ऊपर रखना चाहिए। आशा है, पाकिस्तानी प्रतिष्ठान उन 28 भारतीय सैनिकों को खोजने का वचन निभाएगा, जिनके लेह में बादल फटने की वजह से भारत से बहकर पाकिस्तानी क्षेत्र में चले जाने की आशंका है।
दूसरा पक्ष, जो ज्यादा महत्वपूर्ण है। जब पाकिस्तान एक महाविपत्ति का सामना कर रहा है, तब वहां चुनी हुई सरकार ने खराब उदाहरण पेश किया। सबसे निराशाजनक और अफसोसजनक भूमिका तो पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की रही है। जब उन्हें आगे बढकर राहत कार्यो का नेतृत्व करना चाहिए था, तब वे यूरोप सैर के लिए निकल गए। फ्रांस में उन्होंने नॉरमेंडी स्थिति अपने सोलहवीं सदी के महल का हेलीकाप्टर से दौरा किया और अपने पुत्र के अनुभवहीन राजनीतिक करियर को बढावा दिया। उनकी मुख्य मंजिल ब्रिटेन में तो उनके देशवासियों ने ही उन्हें अभिशापों से लाद दिया। उन्हें 'मिस्टर 10 परसेंट' कहकर पुकारा गया। उस दौर की याद ताजा की गई, जब अपनी बेगम बेनजीर भुट्टो के मंत्रिमंडल मे जरदारी वरिष्ठ मंत्री हुआ करते थे और प्रत्येक सौदे में 10 प्रतिशत दलाली लेने के लिए कुख्यात थे। उनके खिलाफ ब्रिटेन में हुए अनेक प्रदर्शनों में लोगों ने उन्हें तख्ते दिखाए, जिन पर लिखा था : पाकिस्तान को अमरीका और जरदारी से बचाओ। एक गुस्साए पाकिस्तानी ने तो जूता तक उछाल दिया। अपने ऎसे अस्वीकार्य व्यवहार पर जरदारी ने सफाई दी कि उन्होंने अपनी सारी शक्तियां संसद और प्रधानमंत्री को प्रदान कर दी हैं, अत: उनका स्वदेश में रहना जरूरी नहीं था।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री गिलानी भी शुरू में लगभग गैर-हाजिर थे। उन्होंने बस इतना किया कि अपने मंत्रियों को राहत कार्य तेज करने के लिए कहा। मंत्रियों ने प्रधानमंत्री की सलाह पर काम किया, इसका कोई सबूत नहीं है। पाकिस्तान में सारी शक्तियों से ऊपर सेना है, उसने तत्काल 50,000 सैनिकों और पर्याप्त संख्या मे हेलीकॉप्टरों को राहत कार्य में लगा दिया, लेकिन सेना की कार्यवाही बाढ पीडितों को बचाने तक ही सीमित थी। इसके परिणामस्वरूप हाफिज सईद के आतंककारी धर्मार्थ संगठन जमात-ए-दावा ने राहतकर्मियों की शून्यता को भरा। इससे जाहिर है, आतंककारी संगठनों को पाकिस्तान में और मजबूती मिलेगी।
चीन का अपना तरीका है, वह आम तौर पर चुपचाप काम करता है। वह स्थितियों को संभाल लेता है, कभी-कभी तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सीधे दिशानिर्देश पर स्थितियों को संभाला जाता है। इस बार भी चीन में बाढ आई है, तो वैसा ही हो रहा होगा। जहां तक लेह का सवाल है, तो सेना राहत कार्य में जुटी है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री सबसे पहले मौके पर पहुंचे, उसके बाद केन्द्रीय मंत्री पहुंचे। फिर भी लेह में पीडितों को सही जगह पहुंचाना और आम जनजीवन की वापसी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि इस क्षेत्र को जोडने वाली ज्यादातर सडकें नष्ट हो चुकी हैं।
इस क्षेत्र में पर्यावरण से खिलवाड ही खलनायक बन गया है। लालची वन ठेकेदारों और उनके राजनीतिक आकाओं व सहयोगियों ने मिलकर पहाडों पर पेड काटते-काटते लेह को गंजा कर दिया है। दुखद है, ऎसा केवल लेह ही नहीं, पूरे देश में हुआ है, खूब पेड काटे गए हैं। यह एक ऎसा सच है, जिसकी चिंता भारत, चीन और पाकिस्तान को समान रूप से करनी चाहिए। लेह जैसी अनेक जगहों पर बहुत तेजी और बेचैनी के साथ ऎसा मूलभूत ढांचा खडा किया जा रहा है, जो मात्र एक जलप्रलय के आते ही पूरी तरह बह गया। इससे एक बडी चिंता पैदा हुई है।
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