जल ही जीवन का सम्बल, ‘आपोमयं’ जगत है सारा।
यही प्राणमय अंतर्धारा, यही अमिय है इस पृथ्वी का।
अग्नि सोममय रस है उज्ज्वल, सुजला-सुफला बने धरित्री।
असुख अमंगल दूर रहे सब, देवि यही वर दो सबको तुम।
परस तुम्हारा है गंगाजल, जल जीवन का सम्बल है।
जल ही जीवन, सब कुछ सूना है जल के बिन।
जल जीवन-धन, सुख ही बनकर बरसे बादल।
(ऋग्वेद की एक ऋचा पर आधारित)
यह एक पूर्णतया सत्य है कि जल ही जीवन है, क्योंकि समस्त जीवधारियों और वनस्पतियों की संचालन के लिए यह एक आधारभूत आवश्यकता है। प्राणियों एवं वनस्पतियों की समस्त जैविक क्रियाओं के सम्पन्न होने में जल का महत्वपूर्ण योगदान है। वैज्ञानिक आकलन के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को एक साल में पीने के लिए एक घनमीटर पानी की जरूरत होती है। अपनी साफ-सफाई के लिए वह 100 घनमीटर पानी खर्च करता है। खाने के लिए जरूरी खाद्यान्न उत्पन्न करने के लिए उसे 1000 घनमीटर पानी की आवश्यकता है।
एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण से मिले आंकड़े बताते हैं कि एक अरब से अधिक लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहींं है। दस्त से लेकर डेंगू जैसी जल-जनित बीमारियों से हर साल 4 लाख लोगों की जान चली जाती है। भारत में ही रोज 1000 बच्चे डायरिया के शिकार हो जाते हैं। भारत के 114 शहरों में ही सीवेज की पर्याप्त व्यवस्था है।
गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियां भयानक रूप से प्रदूषण की शिकार हैं। गंगा नदी के प्रति 100 मिलीलीटर जल में 60 हजार फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो नहाने लायक स्वच्छ जल की अपेक्षा 120 गुना प्रदूषित हैं। इसी प्रकार यमुना जल में मानकों के विपरीत 10 हजार फीकल बैक्टीरिया अधिक पाए जाते हैं।
आदिकाल से ही मानव अपशिष्ट पदार्थों को जलस्रोतों में विसर्जित कर रहा है। वर्तमान में जनसंख्या की वृद्धि, औद्योगीकरण एवं जलस्रोतों के बढ़ते दुरुपयोग के कारण जल प्रदूषण एक विकराल स्तर तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय पर्यावरण तकनीकी एवं अनुसंधान संस्थान, नागपुर (NEERI) के अनुसार भारत में उपलब्ध जल का लगभग 70 प्रतिशत जल प्रदूषित हो चुका है। प्रदूषित जल के कारण भारत में लगभग 7 करोड़ 30 लाख जीवन प्रतिवर्ष समाप्त हो रहे हैं तथा जल प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियों के इलाज का खर्च लगभग 600 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष आंका गया है।
विश्व में रह रहे लोग प्रतिवर्ष 3,802,300,000,000,000 (3,802 ट्रिलियन) लीटर जल का उपयोग करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति औसतन एक वर्ष में लगभग 6,33,000 लीटर या 1734 लीटर प्रतिदिन पानी का उपयोग करता है। इसमें से 9 प्रतिशत (156 लीटर) प्रतिदिन घर में, 20 प्रतिशत (347 लीटर) उद्योगों द्वारा एवं 71 प्रतिशत (1231 लीटर) कृषि (सिंचाई) में उपयोग होता है।
देश जो सर्वाधिक जल का उपयोग करते हैं -
देश | लीटर प्रति व्यक्ति | कुल प्रतिवर्ष |
भारत | 6,35,400 | 645,800,000,000,000 |
चीन | 4,94,000 | 630,300,000,000,000 |
सं.रा.अमेरिका | 16,63,000 | 525,300,000,000,000 |
पाकिस्तान | 11,87,000 | 169,400,000,000,000 |
घर में पानी का उपयोग
क्रिया | लीटर |
दातों की सफाई | 2.5 |
टायलेट फ्लश | 5-20 |
फव्वारा (प्रति मिनट) | 22 |
कपड़े धोने हेतु मशीन | 120 |
नहाना | 170 |
कार की धुलाई | 200 |
बागवानी हेतु | 600-1500 |
पानी के मामले में हमारे देश की गिनती दुनिया के कुछ एक सम्पन्नतम देशों में है। यहां औसत वर्षा 1,170 मिलीमीटर है। अधिकतम 11,400 मिलीमीटर उत्तर -पूर्वी कोने चेरापूंजी में और न्यूनतम 210 मिलीमीटर उसके बिल्कुल विपरीत पश्चिमी छोर पर जैसलमेर में। मध्य-पश्चिम अमेरिका में, जो आज दुनिया का अन्नदाता माना जाता है, सालाना औसत बारिश 200 मिलीमीटर है। उससे तुलना करके देखें तो हमारी धरती निश्चित ही बहुत सौभाग्यशाली है।
जल प्रदूषण की परिभाषा
जब प्राकृतिक या अन्य स्रोतों से वाह्य पदार्थ जल में मिल जाते हैं तथा जिनका दुष्प्रभाव जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, जल में विषाक्तता होती है, जल के सामान्य स्तर में गिरावट आती है, जल-जनित महामारियां फैलती हैं तथा दुष्प्रभाव पड़ते हैं, तो उसे जल प्रदूषण कहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन
जल में किसी भी प्रकार के अवांछित पदार्थ (कार्बनिक, अकार्बनिक, विकिरण, जैविक आदि) की उपस्थिती, जिनके कारण जल की विशेषताओं में कमी होकर घातक प्रभाव या जल की उपयोगिता में कमी आती हो, जल प्रदूषण कहलाता है।
अमेरिकन जन स्वास्थ्य सेवा
मानव क्रिया-कलापों अथवा प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा प्राकृतिक जल के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते हैं।
जल प्रदूषण के परिणाम
सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र, जो कि जल प्रदूषण से प्रभावित है, मानवीय स्वास्थ्य है। बहुत सी बीमारियां दूषित पानी के कारण ही फैलती है। इनमें हैजा, टाइफाइड (मियादी बुखार), पीलिया (हैपेटाइटिस), दस्त, पेचिस, schitosomiasis -उन मच्छरों के लार्वा, जो कि मलेरिया, पीला बुखार, फाइलेरिया फैलाते हैं, उनकी प्रारंभिक वृद्धि प्रदूषित पानी में ही होती है। हैजे के कीटाणु भी प्रदूषित जल के माध्यम से बहुत शीघ्रता से फैलते हैं। मलेरिया फैलाने वाले मच्छर भी अपने अंडे सीवेज के पानी में देते हैं।
आदिकाल से ही मानव अपशिष्ट पदार्थों को जलस्रोतों में विसर्जित कर रहा है। वर्तमान में जनसंख्या की वृद्धि, औद्योगीकरण एवं जलस्रोतों के बढ़ते दुरुपयोग के कारण जल प्रदूषण एक विकराल स्तर तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय पर्यावरण तकनीकी एवं अनुसंधान संस्थान, नागपुर के अनुसार भारत में उपलब्ध जल का लगभग 70 प्रतिशत जल प्रदूषित हो चुका है। प्रदूषित जल के कारण भारत में लगभग 7 करोड़ 30 लाख जीवन प्रतिवर्ष समाप्त हो रहे हैं तथा जल प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियों के इलाज का खर्च लगभग 600 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष आंका गया है। प्रदूषित जल के द्वारा फैलने वाले संक्रामक रोगों के अतिरिक्त पानी में उपस्थ्ति विभिन्न तत्व अलग-अलग रोगों के हेतु हैं। जैसे पीने के पानी में उपस्थित कीटनाशकों से कैंसर और (नर्वस डिसआर्डर) स्नायु संबंधी रोगों के उत्पन्न होने का खतरा रहता है। भारी धातुएं, लोहा, फ्लोराइड्स पाचन संबंधी बीमारी पैदा करते हैं। यह पाया गया है कि अस्पतालों से निकला अपशिष्ट (MEDICAL HOSPITAL WESTE) जानलेवा यकृत की बीमारी हैपेटाइटिस-बी को फैलाने का प्रमुख कारण है।
पारा मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र को गंभीर क्षति पहुंचाने में सक्षम है। जैसा कि ‘मिनमाता रोग’ से प्रभावित व्यक्तियों के विश्लेषण से मालूम हुआ। मिनमाता, जापान में एक खाड़ी है, जिसमें एक रासायनिक उद्योग द्वारा पारा छोड़ दिया गया। यह सोचा गया था कि यह पानी में नीचे बैठकर निष्क्रिय रहेगा। ऐसा सोचा गया था कि पारा पानी में नहीं घुलेगा। लेकिन जब भारी मात्रा में स्थानीय लोगों के बीच मस्तिष्क संबंधी, स्नायु संबंधी और गुर्दे की बीमारियां उत्पन्न हुई, तब इसकी जाँच हुई। जाँच के परिणाम अत्यंत विस्मयकारी थे। यह पाया गया कि समुद्र तल में उपस्थित अतिसूक्ष्म जीवाणुओं ने पारे को मिथाइल पारे में बदल दिया था, जो कि पानी में घुलनशील है।
इस तरह पारा मछालियों के माध्यम से, जो कि वहाँ के लोगों का भोजन था, उन तक पहुंच गया। पारा मानवीय भ्रूण के लिए भी अत्यंत घातक है। इसी प्रकार कैडमियम की भी ऐसी ही स्थिति है।
कैडमियम फेफड़ों को भी खराब करता है, जिससे कि श्वसन संबंधी बीमारी पैदा होती है। यह यकृत, गुर्दे और पित्ताशय (Pancreas) को हानि पहुंचाता है। कैडमियम Cladding उद्योगों में पाया जाता है।
थोड़ी मात्रा में फ्लोराइड्स दंत-क्षय को रोकते हैं, लेकिन फ्लोरीन द्वारा Treated पानी लम्बे समय तक उपयोग करने पर दंत-क्षय का कारण बनता है। फ्लोरीन का एक बड़ा हिस्सा रक्त में घुल कर हड्डियों के रोग तथा एलर्जी पैदा करती है।
क्लोरीन, जो कि कीटाणुनाशक; (Disinfectant) मानी जाती है, पानी में उपस्थित जैवीय पदार्थों से मिलकर कैंसर उत्पन्न करने वाले रसायन बनाती है।
मानवीय स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावों के अतिरिक्त जल प्रदूषण के कारण पानी में रहने वाले जीवों (मछली इत्यादि) पर पड़ता है। कई जलीय प्रजातियां इस कारण नष्ट हो चुकी हैं और इसके कारण जैव विविधता को सदैव के लिए हानि भी हो चुकी है।
समुद्र में पाए जाने वाली मूंगे की चट्टानों; (Coral reefs) को प्रदूषण के कारण हुआ भारी नुकसान इसका जीता जागता उदाहरण है।
प्रस्तुत तालिका में जल प्रदूषण के प्रभावों को दर्शाया गया है तथा चित्र में दर्शाया गया है कि मनुष्य किस प्रकार जलीय रोगाणुओं के संपर्क में आता है।
पानी में घुले मुख्य रासायनिक अवयवों के संभावित स्रोत एवं पेयजल की गुणवत्ता का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
क्र.सं. | रासायनिक अवयव (मिग्रा/ली.) | बीआईएस द्वारा निर्धारित सीमा आईएस: 10500,1991
| संभावित स्रोत | संभावित प्रभाव | |
वांछनीय सीमा | अधिकतम सीमा | ||||
1 | कुल घुलनशील | 500 | 2000 | मिट्टी व प्राकृतिक चट्टानों से पानी के संपर्क में आने पर | स्वाद में अरूचिकर, आंतों में जलन, दस्तावर |
2 | क्लोराइड | 250 | 1000 | प्राकृतिक स्रोतों से, औद्योगिक अपशिष्ट से। | हृदय व गुर्दे की बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए हानिकर, स्वाद व पाचन क्रिया का प्रभावित होना। |
3 | कुल कठोरता (कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में) | 300 | 600 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे डोलोमाइट, जिप्सम से। | जलापूर्ति तंत्र में परतों का जमना, साबुन की ज्यादा खपत, धमनियों में कैल्शियम का जमना, मूत्र तंत्र में पथरी का बनना, पित्ताशय तथा पेट की बीमारियां। |
4 | मैग्नीशियम | 30 | 100 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे मैग्नेसाइट, डोलोमाइट द्वारा। | इसके लवणों से बहुमूत्र व दस्त की संभावना इसकी कमी शारीरिक विकास व क्रियाओं को प्रभावित करती है। एन्जाइम तंत्र को क्रियाशील बनाने में सहायक। |
5 | कैल्शियम | 75 | 200 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे लाइमस्टोन, जिप्सम, हाइपोक्लोराइट, कैल्शियम कार्बाइड से। | कैल्शियम की कमी से हड्डियों में मुड़ाव व शारीरिक विकास में कमी तथा अधिकता से पथरी बनने की सम्भावना। |
6 | सल्फेट | 200 | 400 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे जिप्सम, डिटर्जेन्ट व औद्योगिक प्रदूषण से। | आंतों में जलन अधिक मैग्नीशियम के साथ मिलकर दस्तावर। |
7 | नाइट्रेट | 45 | 100 | उर्वरक, सूक्ष्म जीवों द्वारा सड़े-गले पदार्थ, जीवों द्वारा उत्सर्जित पदार्थ | अधिक मात्रा में नवजात शिशुओं में मेथमोग्लो, बिनिमियां रोग आंतों का कैंसर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र व हृदय तंत्र प्रभावित होता है। |
8 | फ्लोराइड | 1.0 | 1.5 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे फ्लोराइड क्रायोलाइट फ्लोरोएपेटाइट , माइका व उर्वरकों से। | अधिकता से दंत क्षरण व हड्डियों में विकृति 1 मिग्रा. प्रति ली. से कम मात्रा में शरीर के लिए आवश्यक |
9 | बोरोन | 1.0 | 5.0 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे बोरेक्स,केरेनाइट, कोलामानाइट ,ग्लास व आभूषण उद्योग | केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव, हाथ पैरों में कंपन, गहरी निद्रा संभावित |
10 | आयरन (लोहा) | 0.3 | 1.0 | प्राकृतिक स्रोतों हेमेटाइट, मैग्नेटाइट, लिमोनाइट, आयरन व पायराइट से। | कडवा, मीठा, स्वाद अल्पमात्रा में आवश्यक |
11 | कॉपर | 0.05 | 1.5 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे क्यूप्राइट, मालाकाइट, एज्यूराइट, चालको, पायराइट व औद्योगिक प्रदूषण से | रूचिकर स्वाद लेकिन शरीर की मेटाबोलिक क्रियाओं में सहायक। इसकी कमी से बच्चों में कुपोषण व अधिकता से यकृत विकृति, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का प्रभावित होना |
12 | कैडमियम | 0.01 | कोई छूट नहींं | गैल्वेनाइज्ड, पाइपों से प्राकृतिक स्रोतों से बैट्री सिरामिक, फोटोग्राफी व कीटनाशक उद्योगों से | गुर्दे की बीमारी, फेफड़ों का कैंसर, हाथों में कंपन, उच्च रक्तचाप, इताई इताई रोग |
13 | लेड | 0.05 | कोई छूट नहींं | प्राकृतिक स्रोतों जैसे गेलेना रंग, बैटरी उद्योगों से | मुँह व आँतों में जलन, उदर पीड़ा, लकवा, भुलक्कड़पन, दृष्टि रोग,व खून की कमी |
14 | जिंक | 5.0 | 15 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे जिंक सल्फाइट, जिंक कार्बोंनेट, जिंक खनन उद्योग | मानव शरीर के मेटाबोलिज्म के लिए आवश्यक तत्व, अधिक मात्रा में स्वाद अरूचिकर |
15 | क्रोमियम | 0.05 | कोई छूट नहींं | प्राकृतिक स्रोतों जैसे क्रेमाइट, स्टील, चर्म रंग कागज सिरामिक उद्योगों से | छह संयोजकता वाला क्रोमियम फेफडों में गाँठ बनाता है। नासिका की श्लेष्मा झिल्ली में अल्सर व त्वचा रोग |
16 | आर्सेनिक | 0.05 | कोई छूट नहींं | प्राकृतिक स्रोतों जैसे आर्सेनो, पायराइट, हाई ग्लास, सिरामिक | त्वचा रोग, रक्त परिसंचरण तंत्र में समस्या। कीटनाशक इलेट्रानिक उद्योगों से |
17 | एल्यूमीनियम | 0.03 | 0.2 | प्राकृतिक स्रोतों एल्यूमिना, बाक्साइट, एल्यूमिनोसिलिकेट | नाडी तंत्र में खराबी |
18 | मर्करी (पारा) | 0.001 | कोई छूट नहींं | प्राकृतिक स्रोतों जैसे सिनेबारा, रासायनिक, इलेक्ट्रिक, प्लास्टिक, कागज व दवाई उद्योगों से | नाडी व गुर्दा तंत्र में खराबी |
19 | मैगनीज | 0.1 | 0.3 | प्राकृतिक स्रोतों जैसे पायरोलुसाइट सेडोक्रोसाइट, बैटरी ग्लास ,सिरामिक उद्योग,मैगजीन उर्वरक | एन्जाइम व मेटाबोलिक क्रियाओं में सहायक। इसकी अधिकता भूख व हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आयरन के मेटा बोलिज्म में कमी करती है |
20 | सेलेनियम | 0.01 | कोई छूट नहींं | सिरामिक रबर, पिगमेंट, दवाई, ग्लास, कवकनाशक, उद्योगों से। प्राकृतिक स्रोत शैल चट्टानें | बालों व नाखूनों का क्षरण, हाथ पैर की उंगलियों का सुन्न हो जाना। |
21 | निकल | 0-02 | (विश्व स्वास्थ्य संगठन मानक) | मिश्र धातु, धातुलेपन, स्टील, आभूषण सिरामिक, बैटरी उद्योगों से | साधारणतया अल्पमात्रा में अहानिकारक लेकिन अधिकता से कैंसर संभव व डी एन ए को हानिकारक |
22 | कीटनाशक | 0 | कोई एक 0.001कुल अवशेष 0.005 | जीवाणुनाशक रसायनों के कृषि में प्रयोग से | मानव अंगों में एकत्रित होने पर घातक होकर शरीर की प्रतिरक्षण क्षमता तथा तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। कैंसर भी संभावित। |
23 | पी.एच. | 6.5 | 8.5 | अम्लीय या क्षारीय पदार्थ से | अम्लीयता या क्षारीयता का सूचक, स्वाद को प्रभावित करना, जलापूर्ति तंत्र को खराब करना। |
24 | रोगकारक जीवाणु (पेथोजेन्स)/100 टायफाइड, हैजा एम.एल. कुल कोलिफॉर्म फिकल कोलिफॉर्म | 1 0 | 10 0 | जीवधारियों द्वारा उत्सर्जित मलमूत्र से | जल जनित रोग जैसे पीलिया इत्यादि। |
निगरानी गुणवत्ता की
पानी की गुणवत्ता की निगरानी एक महत्वपूर्ण कार्य है जिससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि किस प्रकार के और किस सीमा तक प्रदूषण नियंत्रण की आवश्यकता है। पहले से मौजूद प्रदूषण नियंत्रण उपाय कितने कारगर रहे हैं इसका भी पता चलता है। इससे पानी की गुणवत्ता की प्रवृत्तियों का भी पता चलता है और प्रदूषण नियंत्रण उपायों की प्राथमिकता भी तय की जाती है। भारत के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जलीय संसाधनों की शुद्धता की बहाली और संधारण के लिए उत्तरदायी है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि पानी की गुणवत्ता अपेक्षित स्तर पर बनी रहे। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नियमित रूप से पानी की गुणवत्ता पर नजर बनाए रखने की जरूरत है ।
उद्देश्य -
पानी की गुणवत्ता की निगरानी निम्नलिखित मुख्य उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए की जाती है।
1. प्रदूषण नियंत्रण रणनीतियां और उनकी प्राथमिकताओं के निर्धारण की युक्तिसंगत योजना तैयार करने के लिए।
2. विभिन्न जलीय निकायों अथवा उनके किसी भाग में आवश्यक प्रदूषण नियंत्रण की प्रकृति और सीमा के आंकलन के लिए।
3. पहले से मौजूद प्रदूषण नियंत्रण उपायों की प्रभाविकता का मूल्यांकन करने के लिए।
4. समय-समय जलीय गुणवत्ता प्रवृत्ति का मूल्यांकन करने हेतु।
5. किसी जलीय निकाय की समावेशिक क्षमता का मूल्यांकन करने तथा उससे प्रदूषण नियंत्रण की लागत को कम करने के लिए।
6. विभिन्न प्रदूषकों के पर्यावरणीय नियति को समझने के लिए।
7. विभिन्न उपयोगों हेतु पानी की दुरूस्ती का मूल्यांकन करने के लिए।
राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश भर में नदियों पर निगरानी केन्द्रों की स्थापना की है। इस नेटवर्क में 1700 केन्द्र हैं जो 27 राज्यों और 6 केन्द्रशासित प्रदेशों में फैले हुए हैं। सतही जल पर तिमाही आधार पर निगरानी की जाती है और भूगर्भ जल के मामले में अर्धवार्षिक आधार पर निगरानी नेटवर्क में 353 नदियां (979) केन्द्र 107 झीलें (117 केन्द्र) 9 जलाशय, 44 तालाब, 15 संकरी खाडियां/समुद्री जल,14 नहरें (44 केन्द्र) 18 नाले और 491 कुएं शामिल हैं। जल नमूनों का विश्लेषण 28 मानकों पर किया जाता है। इनमें मैदानी इलाकों के अवलोकन के अलावा आसपास के जल नमूनों का भौतिक रासायनिक और कीटाणु वैज्ञानिक मानक शामिल है। इसके अलावा कुछ चुनिंदा नमूनों में 28 धातुओं के पुट और 28 कीटाणुनाशकों का भी विश्लेषण किया जाता है। कुछ विशिष्ट स्थानों में जैव निगरानी भी की जाती है।
भारत में जल गुणवत्ता प्रबंधन की अवधारणा
भारत में जल गुणवत्ता प्रबंधन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 के प्रावधान के तहत किया जाता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण के जरिए राष्ट्रीय जल संसाधनों की शुद्धता को बहाल करना और उसे बनाए रखना है। अधिनियम के शुद्धता के स्तर की कोई परिभाषा नहींं दी गयी है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने मानव उपयोग के संरक्षण के संदर्भ में शुद्धता को परिभाषित करने का प्रयास किया है और इस प्रकार देश के विभिन्न जल निकायों की गुणवत्ता की पहिचान के लिए जल के मानवीय उपयोग को ही आधार बनाया है।
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समस्त प्राकृतिक जल निकायों का मौलिक (शुद्ध) स्तर बनाए रखना अथवा उसको बहाल करना एक महत्वाकांक्षा ही कहा जा सकता है। इस तरह के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण गतिविधियां विकास गतिविधियों में बाधक हो सकतीं है और लागत भी बूते से बाहर हो सकती है। चूंकि प्राकृतिक जल निकायों का विभिन्न प्रतिस्पर्धी और परस्पर विरोधी मांगों के लिए इस्तेमाल होता है इसलिए इस उद्देश्य का अर्थ प्राकृतिक जल निकायों अथवा उनके किसी हिस्से में आवश्यक गुणवत्ता को बहाल करना और उसे बनाए रखना है। इस प्रकार अभिहीत सर्वोत्तम उपयोग (डी.बी.यू.) की अवधारणा का विकास (तालिका 1 में हुआ) इस अवधारणा के अनुसार, जल निकायों के विभिन्न उपयोगों में से जिसमें पानी की सर्वोत्तम गुणवत्ता की मांग होती है उसे अभिहीत सर्वोत्तम उपयोग कहा जाता है। इस जल निकाय को उसी प्रकार नामित कर दिया जाता है। विभिन्न उपयोगों के लिए जल गुणवत्ता के मानकों का निर्धारण किया गया है।
तालिका - 1
सर्वोत्तम उपयोगों हेतु प्राथमिक जल गुणवत्ता मानक
सर्वोत्तम उपयोग | वर्ग | मानक |
पेयजल स्रोत, बिना पारंपरिक उपचार के परन्तु कीटनाशक दवा डालने के बाद | क | · - कुल कोलिफॉर्म अवयव एम.पी.एन./100मिली. 50 या उससे कम होना चाहिए। -पी.एच. 6.5 और 8.5 के बीच। - घुला हुआ ऑक्सीजन 6 मिग्रा प्रति लीटर या अधिक - जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग 2 मिग्रा. प्रति ली. या कम |
खुले में स्नान | ख | - कुल कोलिफॉर्म अवयव एमपीएन/100मिली. 500 या उससे कम होना चाहिए। - पी.एच. 6.5 और 8.5 के बीच। - घुला हुआ ऑक्सीजन 5 मिग्रा. प्रति ली. या अधिक - जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग 3 मिग्रा. प्रति ली. या कम |
पेयजल स्रोत - कीटनाशक | ग | - कुल कोलिफॉर्म अवयव एमपीएन/100मिली.। |
दवा के साथ पारंपरिक उपचार |
| - 5000 या उससे कम होना चाहिए। - पी.एच. 6 और 9 के बीच। - घुलित ऑक्सीजन 4 मिग्रा. प्रति ली. या कम। |
वन्यजीवन, मत्स्य पालन का प्रसार | घ | - पी.एच. 6.5 और 8.5 के बीच। - घुला हुआ ऑक्सीजन 4 मिग्रा. प्रति ली. या अधिक - मुक्त अमोनिया (जैसे N) 1.2 मिग्रा./ली.या कम |
सिंचाई, औद्योगिक, प्रशीतन नियंत्रित कचरा निपटान | च | - पी.एच. 6.0 और 8.5 के बीच। - विद्युतीय चालन क्षमता 2,250 माइक्रो ओम्स प्रति सेमी से कम। - सोडियम अवशोषण अनुपात 26 से कम। - बोरॉन 2 मिग्रा. प्रति ली. से कम |
देश के समस्त जल संसाधनों का वर्गीकरण उनके अभिहीत सर्वोत्तम उपयोग के अनुसार किया गया था और जल उपयोग मानचित्र तैयार किया गया था। जिन स्थानों पर पानी की गुणवत्ता निर्धारित मानक से भिन्न है उन जल निकायों अथवा उनके भागों की पहचान के लिए उनकी गुणवत्ता को मापना महत्वपूर्ण समझा गया। इससे भारत का जल गुणवत्ता मानचित्र तैयार करने में मदद मिलेगी। यह सोचा गया था कि जिन जल निकायों में सुधार (बहाली) की आवश्यकता है उनकी पहचान के लिए उनके जल उपयोग मानचित्र के ऊपर जल गुणवत्ता मानचित्र को चस्पा कर दिया जाए। इसके बाद जल गुणवत्ता निगरानी के व्यापक नेटवर्क के जरिए जलीय गुणवत्ता का पता लगाया जाता है। अनेक जल निकायों के प्रदूषित भागों को चिन्हित किया गया ताकि उनकी गुणवत्ता में सुधार के लिए उपयुक्त कदम उठाये जा सकें। वर्तमान में गंगा कार्य योजना और राष्ट्रीय नदी कार्य योजनाओं सहित जल गुणवत्ता प्रबंधन की प्रायः सभी नीतियाँ और कार्यक्रम इसी अवधारणा पर आधारित है। देश के विभिन्न भागों में सामूहिक स्नान के तमाम अवसरों के मद्देनज़र, स्नान के लिए जल की गुणवत्ता के मानकों पर विशेष जोर दिया गया है। देखें तालिका नं. - 2
तालिका -2
स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता मानक
क्र.सं. | मानक | औचित्य | |
1 | विष्ठा कोलिफॉर्म एमपीएन/100मिली. | 500 (वांछित) 2500 (अधिकतम स्वीकार्य) | मल जल का कम संदूषण सुनिश्चित करने हेतु फिकल कोलिफॉर्म और फेकल स्ट्रेप्टो कोक्साइ पर विचार किया जाता है क्योंकि उनसे कीटाणु जनित रोग का प्रसार होता है। |
2 | फेकल स्टेप्टो कोक्साई एमपीएन/100मिली. | 100 (वांछित) 500 (अधिकतम स्वीकार्य) | मौसमी परिवर्तन बहाव की स्थितियों में परिवर्तन आदि जैसे पर्यावरणीय स्थितियों में उतार चढ़ाव की गुंजाइश के लिए वांछित और स्वीकार्य सीमाओं का सुझाव दिया जाता है। |
3 | पी.एच. | 6.5 से 8.5 के बीच | यह सीमा त्वचा और आँख, नाक, कान, आदि अन्य कोमल अंगों की सुरक्षा के लिए तय की गई है। ये अंग खुले में/बाहरी स्थान से सीधे सम्पर्क में आते हैं। |
4 | घुला हुआ ऑक्सीजन | 5 मिग्रा. प्रति ली. या अधिक | 5 मिग्रा./ली. सांद्रता का न्यूनतम घुलित ऑक्सीजन उसकी खपत वाले जैविक प्रदूषण से तुरंत मुक्ति सुनिश्चित करता है जो कि तलहटी से हानिकारक गैसों के उत्पादन को रोकने के लिए आवश्यक है। |
5 | जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग 3 दिन 27 डिग्री सेल्सियस | 3 मिग्रा. प्रति ली. या कम | पानी को 3 मिग्रा./ली0 या कम की जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग करने वाले प्रदूषकों से पर्याप्त छुटकारा दिलाते हैं और हानिकारक गैसों का उत्पादन रोकते है। |
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