जल प्रबन्धन का पुराना नज़रिया


सन् 1929 से पहले कावेरी नदी के ऊपर जो नया बाँध बनाया गया है उसकी खुदाई में टीपू सुल्तान के समय का फारसी अक्षरों में खुदा एक शिलालेख मिला। 1797 ई. में टीपू सुल्तान ने इसी जगह बाँध की बुनियाद रखते समय यह शिलालेख लगवाया था। यह शिलालेख हमारे पुराने जल प्रबन्धन की एक झलक दिखाता है।

इस बाँध की तैयारी में जो लखूखा रुपए सरकार खुदादाद ने खर्च किये, वे अल्लाह की राह में खर्च किये गए हैं। सिवाय इस समय की पुरानी या नई खेतीबाड़ी के, जो कोई मनुष्य परती जमीन में (इस नए जलाशय के जल की सहायता से) खेती-बाड़ी करेगा, अपनी ज़मीन के फलों या अनाज की पैदावार का जो भाग आमतौर पर नियम के अनुसार दूसरी प्रजा सरकार को देती है, उस भाग का वह केवल तीन-चौथाई खुदादाद सरकार को दे और बाकी एक-चौथाई अल्लाह की राह में माफ है और जो कोई मनुष्य नई ज़मीन में खेती-बाड़ी करेगा, उसकी औलाद और उसके वारिसों के पास वह ज़मीन पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस समय तक कायम व बहाल रहेगी, जिस समय तक कि ज़मीन और आसमान कायम है। अगर कोई शख्स इसमें रुकावट डाले या इस अनन्त खैरात में बाधक हो, तो वह कमीना, शैतान-ए-मलऊन के समान, मनुष्य जाति का दुश्मन और किसानों की नसल का बल्कि समस्त प्राणियों की नसल का दुश्मन समझा जाएगा।

लिखा सय्यद जाफर
श्री सुंदर लाल की पुस्तक ‘‘भारत में अंग्रेजी राज’’ (प्रथम खण्ड) से साभार। यह पुस्तक अंग्रेजों द्वारा ज़ब्त कर ली गई थी।

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