जल मृदा-पौधे भोजन शृंखला के द्वारा मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन

मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन,Pc-N18
मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन,Pc-N18

प्रस्तावना

आर्सेनिक एक सर्वव्यापी तत्व हैं, जो पृथ्वी की ऊपर की सतह (पपड़ी) में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिसका तत्वों में 20 वां स्थान है तथा यह पिरियोडिक तालिका के समूह-15 से संबंधित धातु के रूप में रासायनिक रूप से वर्गीकृत है। आर्सेनिक की सबसे मुख्य ऑक्सीडेशन अवस्थाएं है (i) -3 (आर्सेनाइड), (ii) +3 (आर्सेनाइट्स) और (ii) +5 (आर्सेनेट्स) आदि। यह अकार्बनिक या कार्बनिक दोनों रूप में मौजूद हो सकता है। आम तौर पर कार्बनिक आर्सेनिक की तुलना में अकार्बनिक आर्सेनिक अधिक विषैला और मानवों के लिये कैंसरजनक माना जाता है। 

महाद्वीपीय परत में आर्सेनिक की औसत सांद्रता 1-5 मिलीग्राम / किग्रा होती है जो यह दोनों एंथ्रोपोजेनिक और भूजनिक स्रोतों से आती है। यद्यपि, आर्सेनिक प्रदूषण के एंथ्रोपोजेनिक स्रोतों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो कि बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हाल ही के प्रकरण में यहाँ यह भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि गंगा- मेघना ब्रह्मपुत्र (GMB) नदियों के मैदानी क्षेत्रों में भूजल का आर्सेनिक प्रदूषण भूजनिक प्रवृति का है जो हजारों वर्षो से हिमालय की पहाड़ियों में उपस्थित तलछट चट्टानों से नदियों द्वारा स्थानांतरित हो रहा है।

आर्सेनिक प्रदूषित भूजल को पीना मानव के लिये एक्सपोजर का प्रमुख साधन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 10 माइक्रोग्राम / लीटर (डब्ल्यूएचओ, 1993) के रूप में पीने के जल के मानक को स्थापित करने के लिये एक पहल की है जबकि भारत ने आर्सेनिक की अधिकतम स्वीकार्य सीमा 50 माइक्रोग्राम / लीटर रखी है। हालांकि, हाल ही की जाँच से पता चला है कि खाद्य फसल विशेष रूप से धान मनुष्यों में आर्सेनिक की जोखिम का एक संभावित मार्ग हो सकता है। लंबी अवधि के लिये आर्सेनिक दूषित खाद्य पदार्थों का उपभोग भोजन श्रृंखला को प्रदूषित करके आर्सेनिकोसिस रोग का मुख्य कारण हैं।

भूजल में आर्सेनिक का प्रदूषण

भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में वर्ष 1983 के दौरान भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण का मामला पहली बार दर्ज किया गया था। इसके अलावा देश के अन्य राज्यों जैसे झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि जो गंगा नदी के मैदानी क्षेत्र में स्थित हैं एवं ब्रह्मपुत्र और इंफाल नदियों की बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों में तथा असम और मणिपुर एवं छत्तीसगढ़ राज्य के कुछ भागों में लंबे समय से वहाँ नलकूपों के पीने के जल में 50 माइक्रोग्राम / लीटर की स्वीकार्य सीमा से अधिक आर्सेनिक उपस्थित होने के कारण आर्सेनिक प्रदूषण की समस्या सामने आई है। देश के बाद ग्रसित मैदानी क्षेत्रों में स्थित और भी अन्य राज्यों में भी भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण होने की संभावना देखो गई है। इन सभी राज्यों में हाथ से संचालित कुल 16969 नलकूपों के जल के नमूनों का विश्लेषण करने से पता चला कि 45.96% और 22.91% जल के नमूनों में आर्सेनिक की उपस्थिति क्रमश: 10 माइक्रोग्राम / लीटर और 50 माइक्रोग्राम लीटर से भी अधिक पायी गई है जो लगभग 50 मिलियन लोगों को आर्सेनिक प्रदूषण की समस्या से प्रभावित करती है (एनआईएच एवं सीजीडब्ल्यूबी, 2010 )

आर्सेनिक के मुख्य स्रोत (स्पायर्स 2005)
आर्सेनिक के मुख्य स्रोत (स्पायर्स 2005)

मृदा में आर्सेनिक प्रदूषण

चूंकि पिछले कुछ दशकों से आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित क्षेत्रों में फसलों की सिंचाई के लिये बड़े पैमाने पर भूजल का उपयोग हुआ है इसलिये कई शोधकर्ताों ने वहाँ कृषि के उपयोग में ली जाने मृदा में आर्सेनिक के संग्रहण को बताया है। रॉय चौधरी एट आल (2002) ने पश्चिम बंगाल में डोमक्ल ब्लॉक के लिये बताया कि वहाँ परती भूमि की मृदा में 5.31 मिलीग्राम / किग्रा के रूप में आर्सेनिक उपस्थित हैं जबकि पास की सिंचित भूमि में क्रमश: 11.5 और 28.0 मिलीग्राम / किग्रा की आर्सेनिक की मात्रा उपस्थित थी। उन्होंने आर्सेनिक इनपुट की गणना लगभग 1.6-16.8 किलोग्राम / हे. वर्ष के रूप में की। नॉरा एट अल 2005 ने बताया कि पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में धान के खेतों की सबसे ऊपर की मृदा की परतों में आर्सेनिक को सांद्रता (लगभग 38 मिलीग्राम/किलोग्राम) कम सिंचित गेहूँ के खेतों (18 मिलीग्राम/किलोग्राम) की मृदा से दोगुनी और बिना प्रदूषित जल से सिंचित धान के खेतों की मृदा की तुलना में 5 गुना अधिक पायी गयी।

भारत में आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित राज्य
भारत में आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित राज्य

 

खाद्य फसलों में आर्सेनिक प्रदूषण 

वर्तमान के दौरान मृदा और भूजल में आर्सेनिक का प्रदूषण पौधों के लिये एक गंभीर खतरा बना हुआ है। पौधों को अपने ऊतकों में आर्सेनिक को जमा करने के रूप में जाना जाता है और ये पौधे एक निश्चित डिग्री की सहिष्णुता को भी प्रदर्शित करते हैं। आर्सेनिक की उच्च सांद्रता पौधों के लिये जहरीली होती है क्योंकि यह पौधे की उपापचयी प्रक्रियाओं को बाधित कर सकती है इस प्रकार बायोमास उत्पादन और विभिन्न फसलों की पैदावार कम हो जाती है। दास एट अल 2013 ने धान की पत्तियों और जड़ों में आर्सेनिक की विषाक्तता के लक्षणों को 40 मिलीग्राम / किलोग्राम से अधिक के आर्सेनिक के स्तर के उपचार के साथ दर्ज किया जबकि आर्सेनिक के स्तर की मात्रा 10 मिलीग्राम / किलोग्राम से ऊपर होने पर भरे हुए दाने/ पेनीकल और परिपक्व दाने/ पेनीकल की संख्या में काफी कमी हुई। हालांकि, अकार्बनिक आर्सेनिक का पौधे की जड़ों से ऊपरी भागों तक स्थानांतरण आम तौर पर हाइपर एकूमिलैटर्स जैसे कि जौनस टेरिस के कुछ फर्म में होता है। धान की जड़ों में इसकी शूट्स की तुलना में लगभग 28-75 गुना अधिक आर्सेनिक पाया गया है। आर्सेनिक प्रदूषित मृदा में उगाई गई फसलों और आर्सेनिक दूषित भूजल से सिंचित फसलों में बिना कोई लक्षण दिखाई दिये इन फसलों के खाद्य भागों में पर्याप्त मात्रा में आर्सेनिक जमा हो सकता है।

रॉय चौधरी एट अल (2002) ने पश्चिम बंगाल राज्य के मुर्शिदाबाद जिले में किसे गये अपने अनुसंधान से यह निष्कर्ष निकाला कि सब्जियाँ, अनाज वाली फसलों, जड़ी-बूटियों और मसालों में आर्सेनिक की सांद्रता <0.004 से 0.693 मिलीग्राम / किलो के बीच पायी गई। रहमान एट अल 2013 द्वारा पश्चिम बंगाल के माल्दा जिले के सभी ब्लॉकों में आर्सेनिक प्रदूषित सब्जियों की खेती के खेतों के नमूनों का मूल्यांकन किया गया और आर्सेनिक की औसत सांद्रता क्रमशः इस क्रम में पायी गई जैसे कि पत्तीदार सब्जियाँ (0.321 मिलीग्राम / किग्रा) कोल फसलें (0.298 मिलीग्राम / किग्रा), जड़ वाली सब्जियाँ (0.27 मिलीग्राम/ किलो), बल्ब वाली सब्जियाँ (0.227 मिलीग्राम / किग्रा), फल वाली सब्जियाँ (0.105 मिलीग्राम / किग्रा) आदि। जबकि आर्सेनिक की सांद्रता दलहन बाली सब्जियों (0.095 मिलीग्राम / किग्रा) में अपेक्षाकृत कम दर्ज हुईं। उन्होंने यह भी बताया कि विभिन्न फसलों के बीच से कंद फसलों में आर्सेनिक की मात्रा (0.213- 1.464 मिलीग्राम प्रति किग्रा सूखा वजन) अधिक पायी गई, इसके बाद अनाज वाली फसलों (0.097-1.141), कोल फसलों (0.174 - 0.456) और सब्जियों (0.054 -1.079) में पायी गई जबकि फलों वाली फसलों (0.00-0.276), मसालों (0.00-0.231) दालों (0.00- 0.294) और कुकरबिटेसीयस (0.00- 0.076) फसलों में आर्सेनिक की कम मात्रा दर्ज की गईं। 

धान की फसल में आर्सेनिक के संचय को एक आपदा के रूप में देखा गया है क्योंकि धान से प्राप्त चावल का मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। धान की फसल को आमतौर पर बाढ़ की स्थिति में उगाया जाता है जो मृदा में आर्सेनिक की जैव उपलब्धता को प्रभावित करती है जिससे अन्य सुखी भूमि की फसलों की तुलना में धान के दानों में आर्सेनिक का अधिक संचय होता है। बाढ़ या एनेरोबिक स्थितियों में धान के खेत की मृदा में आर्सेनिक आर्सेनेट की तुलना में आर्सेनाइट की अधिकता बढ़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप आर्सेनिक की जैव उपलब्धता बढ़ने से इस धातु का धान के दानों में अत्यधिक संचय बढ़ जाता है। जावला और डक्सबरी (2008) ने बताया कि धान की विभिन्न किस्मों में आर्सेनिक की सांद्रता सूखे वजन के आधार पर 10:005 से 0.710 मिलीग्राम / किग्रा के बीच रहती है। धान के दाने में आर्सेनिक की सांद्रता 2.0 मिलीग्राम / किग्रा तक पाई गई है जो कि धान में डब्लूएचओ को अनुमत सीमा (1 मिलीग्राम / किलोग्राम) के दिशा निर्देशों से अधिक है। बोरी धान (शीतकालीन मौसम) की अधिक सिंचाई जल की आवश्यकता के कारण इसके दाने में अमन धान (मॉनसून मौसम) की तुलना में अधिक आर्सेनिक की सांद्रता दर्ज हुई है।

आर्सेनिक का मानव के लिये एक्सपोजर

पीने का जल जानवरों और मनुष्यों में आर्सेनिक के ग्रहण का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। पीने के जल के साथ- साथ भोजन भी आर्सेनिक ग्रहण का एक अन्य प्रमुख स्रोत माना जाता है जो कि मानव में आर्सेनिक एक्सपोजर के लिये जिम्मेदार है। वर्ष 1983 में फूड एडिटिव्ज पर एफएओ / डब्ल्यूएचओ की संयुक्त एक्सपर्ट कमेटी (JECAFA) ने मानवों के लिये 0.002 मिलीग्राम / किग्रा शरीर वजन के रूप में अकार्बनिक आर्सेनिक का अधिकतम संतोषजनक दैनिक सेवन निधारित किया था और वर्ष 1998 में अधिकतम संतोषजनक साप्ताहिक सेवन (पीटीडब्लूआई) को 0.015 मिलीग्राम / किग्रा निधारित किया गया। प्रभावित क्षेत्रों में कई अनुसन्धानों ने कई जगहों पर आर्सेनिक का मनुष्यों द्वारा सेवन करने की पुष्टि की। रॉय चौधरी एट अल (2002) ने आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्र यानि पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में अपने अनुसंधान से बताया कि खाद्य पदार्थों के माध्यम से बच्चों एवं व्यस्कों में आर्सेनिक का सेवन क्रमश: 97 माइक्रो ग्राम / दिन एवं 180 माइक्रो ग्राम /दिन था और पीने के जल के माध्यम से 400 और 200 माइक्रो ग्राम / दिन था। खाद्य पदार्थों में से धान (ओराइना सैटिया) को इसके अधिक उपभोग के कारण आम तौर पर आर्सेनिक सेवन का मुख्य योगदानकर्ता माना जाता हैं। ग्रामीण लोगों के आहार में लगभग 400 ग्राम धान का उपभोग आम बात है जो वहाँ अपेक्षाकृत अधिक आर्सेनिक सेवन का कारण हो सकता है। इसके अलावा, आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में दूषित जल से चावल को उबालने के कारण पके हुये चावल में कच्चे चावल की तुलना में अधिक आर्सेनिक हो सकता है। जब पशुधन आर्सेनिक के संपर्क में आता है तो पशु उत्पादों जैसे दूध और मांस आदि में आर्सेनिक जैविक उत्पाद के रूप में जमा हो जाता है स्वीकार्य सीमा के मुकाबले आर्सेनिक का सेवन मनुष्यों में कई बीमारियों जैसे त्वचा की बीमारी तथा त्वचा, फेफड़े, मूत्राशय, यकृत और गुर्दे के कैंसर के साथ-साथ कई अन्य कार्डियोवास्कुलर न्यूरोलॉजिकल व श्वसन रोगों आदि का कारण बन जाता है जिससे मानव के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। जल और भोजन दोनों के लिये अंतराष्ट्रीय सुरक्षा मानक हमारे देश के आर्सेनिक प्रदूषित क्षेत्रों में जल और सिंचाई जानवर भोजन की मात्रा के उपभोग के अनुसार पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। अतः ऐसे मानक जो हमारे देश के लिए अधिक प्रासंगिक हैं हमें उन्हें स्थापित करने की बहुत ही आवश्यकता है।

आसैनिक का बायोकेमिकल चक्र
आसैनिक का बायोकेमिकल चक्र

कृषि प्रबंधन विकल्पः

आर्सेनिक विषाक्तता के प्रभाव को कम करने के लिए हमारे देश के विशाल उपजाऊ मैदानों में रहने वाले मनुष्यों के लिये कई कृषि संबंधी गतिविधियों को अपनाया जा सकता है जिससे देश में कृषि के तहत जल एवं मृदा को आर्सेनिक से प्रदूषित होने से बचाया जा सके।

  •  रासायनिक संशोधन :- - कार्बनिक पदार्थ या खनिज पौषक तत्वों जैसे आयरन, सल्फर और सिलिकोन का मृदा में प्रयोग पौधों के खाद्य भागों में हुये आर्सेनिक संचय को काफी कम कर सकता है जिससे इसका ग्रहण कम हो जाता है और खाद्य फसलों में स्थानान्तरण भी कम हो जाता है।
  •  जल प्रबंधन और सिंचाई की विधियाँ:-सिंचाईं जल के उपयोग में कमी मृदा में आर्सेनिक के इनपुट को कम करेगी। जिससे पौधों में आर्सेनिक का हस्तांतरण कम होगा। इसके अलावा, उथली जलभृत से पम्पिंग की बजाय सिंचाई के स्रोत के रूप में सतही जल संसाधनों का चयन करने से भी आर्सेनिक प्रदूषण कम हो सकता है।
  •  फसल का चयन :- फसल पद्धतियाँ जिनको कम सिंचाई जल की आवश्यकता होती है वो फायदेमंद होगी। इसके अलावा, उन किस्मों जिनको आर्सेनिक के प्रति सहिष्णु माना जाता है और और जो एक सीमित मात्रा में आर्सेनिक का ग्रहण करती हों उनकी सिफारिश की जानी चाहिये या चयन करना चाहिये।

छोटे पैमाने पर मृदा से आर्सेनिक को कम करने के लिये  फाइटोरेमेडियसन का सुझाव भी दिया जा सकता है। लेकिन इसकी कई समस्याएँ हैं जो व्यापक पैमाने पर इसके उपयोग को सीमित करती हैं।

निष्कर्ष

गंगा-मेघना-ब्रह्मपुत्र नदियों के क्षेत्रों में सिंचाई, पीने का जल और अन्य संबन्धित गतिविधियों के उपयोग के लिये आर्सेनिक प्रभावित दूषित भूजल मुख्य स्रोत हैं। अतः इन प्रदूषित क्षेत्रों में पीने के जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये आर्सेनिक मुक्त गहरी भूजल जलभृत एवं कम लागत वाली निस्पंदन तकनीकों की पहचान की जानी चाहिये। इसके अलावा, संचित वर्षा जल का सिंचाई के लिये अधिक उपयोग आर्सेनिक प्रदूषित भूजल के उपयोग को कम कर सकता है और इसके साथ-साथ कृषि संबंधी प्रबंधन विकल्पों को अपनाने से निश्चित रूप से जहरीले तत्वों का खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कम हो जाएगा जो अंततः लाखों लोगों के लिये आर्सेनिक प्रदूषण के खतरे को कम करेगा।

संदर्भ - 

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Post By: Kesar Singh
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