जल की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग

विकसित तथा विकासशील देशों के समुदायों में जनसंख्या में वृद्धि, आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति के कारण उपभोग दर में वृद्धि तथा विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती हुई मांग के कारण जल की कमी की समस्या प्रमुख हो गई है या होने वाली है। पुराने रूढ़िवादी तरीकों को फिर से छांटकर तथा स्वच्छ जलाशयों के नियतन का इष्टतमीकरण करके समुदाय अपने जल के कुछ और वैकल्पिक स्रोतों को खोजने के कार्यक्रम को टाल सकता है परन्तु कुछ समय बाद इसकी जरूरत अति आवश्यक हो जाएगी।

अपशिष्ट जल को उचित उपचार के साथ पुनः प्रयुक्त करना बढ़ती हुई मांग की पूर्ति के अनुरूप पाया गया है तथा कई विकसित देशों में परम्परागत ढंग से इसके प्रयोग जैसे कि कृषि, नगरपालिका आदि जगहों में सफलतापूर्वक अभ्यस्त पाया गया है। आधुनिक तकनीकी विकास एक अन्य पहलू है जो कि अपशिष्ट जल को पुनः प्रयुक्त करने की दिशा में आकर्षित करता है विशेषकर शहरी, शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में ऐसे कार्यक्रम बनाते समय वे लोग जो इस जल को प्रयोग करेंगे ही उन्हें पूर्ण विश्वास में लिया जाना चाहिए तथा जिससे वे इसके गुणों एवं श्रेष्ठता से अवगत हो सकें।

इस लेख में अपशिष्ट जल के विभिन्न सर्वव्यापी प्रयोगों जैसे कि नगरपालिका, औद्योगिक, भूमि कृष्य, मनोरंजन, जल पुनःपूरण आदि को पुनः प्रयुक्त हेतु रूपरेखा तैयार करने की कोशिश की गई है। इस लेख में अपशिष्ट जल को पुनः प्रयुक्त करने वाली तकनीक को अपनाने से उत्पन्न लाभ तथा हानि का भी विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है।

ऐसे दो आवश्यक विषय है जिन पर केंद्रीभूत होना चाहिए। प्रथम तो यह कि विकसित देशों द्वारा प्राप्त अनुभव एवं तकनीकी ज्ञान का भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप विकास करना तथा दूसरा कि अपशिष्ट जल को पुनः प्रयुक्त करने के कार्यक्रमों में जनमानस की भागीदारी।

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