जल के खिलाफ जंग!

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कुसहा (नेपाल) । बिहार की उत्तर-पूर्वी सीमा पर भीषण युद्ध चल रहा है। तलवार-बन्दूक के युद्ध से भी भीषण और खतरनाक। पगलायी सी कोसी के खिलाफ युद्ध। बिहार के जल संसाधन आयुक्त और इस युद्ध के कमांडर शंकर दुबे के शब्दों में- ‘वार अगेंस्ट वाटर !' जल के खिलाफ जंग।

करीब 22 दिनों से जारी इस युद्ध की ताजा सूचना यह है, जो आज सुबह कोसी के पूर्वी एफ्लक्स बाँध और पश्चिमी तटबंध के करीब 40 किलोमीटर लंम्बे मोर्चे में 6 स्थानों से वायरलेस के जरिए वीरपुर मुख्यालय को मिली… 'सर, हमला जारी है, लेकिन कोसी ने हार मान ली। रात बारह बजे से सुबह 6 बजे के बीच एक भी स्पर न क्षतिग्रस्त हुआ और न धँसा । 1 6.80 से 17.34वें किलोमीटर के बीच तटबंध (एफ्लक्स बाँध) पूर्णत: सुरक्षित हैं। 16.46वें किलोमीटर का स्पर स्थिर है और बोल्डर भेजने की जरूरत नहीं। स्टाक पूरा है।’

रात बारह बजे पश्चिमी तटबन्ध के 4.5वें किलोमीटर के मोर्चे से लौटे कमांडर के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। तत्काल उन्होंने वायरलेस से सूचना की पुष्टि की और अगला आदेश दिया…'अब बोल्डर लदे ट्रकों का काफिला 16.80वें किलोमीटर के मोर्चे पर नहीं भेजा जाए। काफिला 6.00वें किलोमीटर के मोर्चे पर पहुँचे। अगले आदेश तक पश्चिमी तटबन्ध की ओर कूच जारी रहेगा। ओवर।’

तटबन्ध से घिरने के बाद कोसी के 40 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि उसने एक साथ 40 किलोमीटर को लम्बाई में आक्रमण किया और सम्भवत: 40 साल में पहली बार बिहार की सरकार और जनता ने कोसी का इतना शानदार मुकाबला किया। एक मुकम्मल युद्ध का दृश्य! एफ्लक्स बाँध एवं पश्चिमी तटबंध के 40 किलोमीटर की लंबाई में कोसी का हमला। 12 संवेदनशील बिंदु यानी स्परों पर कोसी के आक्रमण के खिलाफ सुरक्षात्मक लेकिन अडिग करीब 50 हजार श्रमिक और 300 अभियंताओं एवं अधिकारियों की फौज हर संवेदनशील बिन्दु पर कैम्प, जेनरेटर और वायरलेस। बोल्डर ढोते ट्रकों का काफिला । बोल्डर यूँ पहुँचाये जा रहे हैं, जैसै युद्ध के मोर्चे पर बम-बारूद के गोले पहुँचाये जाते हैं दिन-रात। पिछले 22 दिनों से यह सिलसिला जारी है।

वायरलेस से हर दो-तीन घंटे में सहरसा-सुपौल के जिलाधिकारी एवं एसपी से सम्पर्क किया जा रहा है। टेलीफोन से सुबह-शाम पटना में बिहार सरकार और उधर नेपाल सरकार को सूचना दी जा रही है। स्थिति की समीक्षा की जा रही है और अगली रणनीति निर्धारित कर हर मोर्चे पर आदेश भेजा जा रहा है।

इस युद्ध की भयावहता समझने के लिए कोसी एफ्लक्स बाँध के 16.46वें किलोमीटर पर खड़े अवकाश प्राप्त मुख्य अभियन्ता टीनाथ का यह कथन काफी है- ‘यहाँ कोसी की पागल आक्रमकता से साफ है कि वह करवट बदल चुकी है। उसकी धार नया रास्ता तलाश रही है। इसके लिए वह बेताब है।’

वह कहते हैं - ‘हमने उसको रास्ता बदलने से रोक दिया। फिलहाल हम जीत गए, लेकिन भविष्य के लिए यह स्थायी खतरे की सूचना है।’

आयुक्त दुबे कहते हैं - ‘गत 22 अगस्त को हम हार के कगार पर पहुँच गए थे, जब धार बदलने के लिए बेताब कोसी ने 16.80 से 17.34 वें किलोमीटर के बीच 400 मीटर की लम्बाई में सीधे एफ्लक्स बाँध पर हमला किया। 16.80वें किलोमीटर का 300 मीटर लम्बा स्पर 260 मीटर तक कट गया। 17.35वें किलोमीटर का स्पर भी करीब 20 मीटर कट गया।'

.उन्होंने कहा-‘स्थिति भयावह थी। तेज़ हवाएँ और मूसलाधार बारिश। रात होते-होते कोसी का पागलपन चरम पर पहुँच गया। हार करीब थी। उस स्थान पर एफ्लक्स बाँध कटता तो नेपाल का इनरवा एवं विराट नगर से लेकर बिहार सुपौल से फारबिसगंज (अररिया) तक जल-प्रलय का दृश्य होता। सुपौल-सहरसा से लेकर मधेपुरा, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, खगड़िया और उत्तरी भागलपुर तक बाढ़-विभीषिका का जो दृश्य होता, उसकी कल्पना भी रोंगटे खड़े कर देती है।’

लेकिन बिहार के अभियंताओं ने चमत्कार किया। हजारों श्रमिकों के साथ उनके संकल्प के सामने कोसी को झुकना पड़ा। उन श्रमिकों में 50 प्रतिशत महिलाएं थीं और सैकड़ों बच्चे। वे रात भर वर्षा में भींगते हुए बोल्डर ढोते रहे। उनमें दुबली-पतली युवती फल्गुनिया ही नहीं, उसकी 11 वर्ष की बच्ची मुनियां भी शामिल थी।

इस संघर्ष की भयावहता और रोमांच को आज भी 16.46वें किलोमीटर के स्पर पर देखा और महसूस किया जा सकता है। कल सुबह पत्रकारों की टीम इसी स्पर पर खड़ी थी। सैकड़ों औरत-मर्द और बच्चे बोल्डर ढो रहे थे। क्रेट्स के क्रेट्स कोसी के पानी में समाते जा रहे थे। कोसी की धार समुद्र की लहरों सी उथल-पुथल मचा रही थी। परसों से कल सुबह तक कोसी करीब 40 हजार घन फुट बोल्डर पचा चुकी थी, फिर भी आक्रमक मुद्रा में थी। अलबत्ता स्पर अपनी 265 मीटर की लम्बाई में सलामत है।

17.35वें किलोमीटर के स्पर को बचाने में तत्पर अधीक्षण अभियन्ता बताते हैं- ‘रात को हमने इस स्पर के अग्रभाग को, करीब 1 5 फीट ऊँचाई तक बोल्डर डालकर, मज़बूत किया था। आज सुबह वह पूरा का पूरा हिस्सा कोसी में विलीन हो गया। पिछले चार दिन में इस स्पर को बचाने में करीब 1.30 लाख घन फुट बोल्डर खर्च ही गए।'

अभियन्ता टीनाथ बताते हैं - 'इन स्परों का अर्थ समझते हैं ? यह तो अपनी सीमाओं को बचाने के लिए दुश्मन के क्षेत्र में घुसकर युद्ध का मोर्चा खोलने जैसा है। हमारे स्पर कट गए। लगातार क्षतिग्रस्त हो रहे हैं, लेकिन कोसी का आक्रमण विफल हो रहा है। तटबन्ध सुरक्षित है।’

कोसी के पूर्वी एफ्लक्स बाँध के 2.8वें किलोमीटर से 30वें किलोमीटर के बीच एक दर्जन से अधिक स्पर हैं। सबकी लम्बाई 265 से 400 मीटर तक है। 2.8वें किलोमीटर के स्पर की लम्बाई तो एक किलोमीटर है। नदी के अन्दर तक धँसे हुए स्पर, जो पानी को तटबंध तक पहुँचने नहीं देते।

श्री दुबे कोसी से चल रही लड़ाई को स्ट्रैटजी बताते हैं - ‘19 अगस्त को कोसी का हमला तेज़ हुआ। कोसी एफ्लक्स बाँध के करीब 8 स्परों के अग्रभाग एक ही वार में ध्वस्त हो गए। 22-23 अगस्त को अचानक कोसी का प्रवाह 1.34 लाख क्यूसेक से बढ़कर 2.44 लाख क्यूसेक पर पहुँच गया। 16.80वें किलोमीटर का स्पर 260 मीटर कट गया। नदी की धार सिर्फ पूर्व की ओर खिसकी नहीं, बल्कि सीधे बाएँ घूमकर स्परों को तोड़ते हुए दो स्परों के बीच एफ्लक्स बांध पर हमला करने लगी। सिर्फ दो घंटे का खेल था। उस दो घंटे में सब कुछ समाप्त हो जाता। हमने समय के विरुद्ध युद्ध करने की ठानी। तत्काल 400 मीटर की लंबाई में स्टड बनाने का फैसला हुआ। हम दो घंटे के खेल को दो दिन लंबा करने में कामयाब हुए। स्पर टूट गए, लेकिन 400 मीटर लंबाई के तटबंध को बचा लिया।’

23-24 अगस्त से चली उस लड़ाई का परिणाम कल भी देखने को मिला। सामने कोसी उफन रही थी, गरज रही थी। उसका बेशुमार गाद जो पहले 16.8 से 17.35वें किलोमीटर पर जमा था, अब 16.46वें किलोमीटर के सामने आ गया। कोसी अब इसी बिन्दु पर लगातार आक्रमण कर रही है।

पिछले 22 दिनों की लड़ाई में अब तक करीब पाँच लाख घनफुट बोल्डर खर्च हुए।

विश्व की अद्भुत नदी कोसी अब सिर्फ अल्हड़ नहीं रही। वह पागल हो गई है। पागल और आक्रामक। तटबन्धों को तोड़कर मुक्त होने को बेताब। अपने पहले दौर के आक्रमण में उसने बिहार सरकार की फौज़ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। लेकिन उसके तेवर में स्पष्ट चेतावनी है कि वह धार बदलना चाहती है। यह स्थायी खतरा है।

पूर्वी एफ्लक्स बाँध से सिर्फ आधा किलोमीटर के फासले पर लाखों धन मीटर गाद के टीले और सैकडों जड़ से उखड़े बड़े-बड़े वृक्षों के शव भविष्य की उस चेतावनी के प्रमाण हैं।

(8 सितम्बर, 1993)

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