पूरे विश्व में करीब 10 लाख से 20 लाख मौतें दस्त या पेचिश के कारण होती है, जिनमें से नब्बे प्रतिशत पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं। इसका मुख्य कारण दूषित जल ही है। हैजा रोग विबरो क्होल्री नामक जीवाणु से होता है, जो पीड़ित व्यक्ति के मल द्वारा जल या अन्य खाद्य पदार्थों में पहुँचता है। टायफाइड रोग सॉलमोनेला टाइफी नामक जीवाणु से होता है जो दूषित जल एवं भोजन से अन्य व्यक्ति तक पहुँचता है।हमारे सौर मंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिसमें जीवन हर रंग और रूप में मौजूद है। हो सकता है, जैसा जीवन पृथ्वी पर मौजूद है उस तरह का जीवन हमारी आकाश गंगा के अन्य ग्रहों में भी न हो, वैसे अगर हो भी तो अभी तक कुछ भी ज्ञात नहीं है। पृथ्वी पर ही जीवन होने के कई कारण हैं, जैसे सूर्य से सही दूरी, पृथ्वी के वायुमंडल में गैसों का जीवन के लिए आवश्यक और सही अनुपात, पृथ्वी का अपनी धुरी पर एक निश्चित गति से घूमना, एक निश्चित कोण में झुका होना और शायद सबसे महत्वपूर्ण इस धरती पर जल का होना। हमारी धरती पर जल अपनी तीनों अवस्था में पाया जाता है, यानि जल वाष्प, तरल जल और बर्फ। जल या पानी के कारण ही पृथ्वी में इतनी जैव विविधता है, इतनी हरियाली है, इतनी खिलखिलाहट है। अगर देखें तो हर जीव अपने में काफी मात्रा में जल समाए होता है।
उदाहरण के लिए, मानव शरीर में लगभग 60 से 70 प्रतिशत पानी है, पौधों में करीब 90 प्रतिशत तक पानी है, एक वयस्क जेलीफिश में तो करीब 94 से 98 प्रतिशत पानी होता है, यहाँ तक कि एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव जैसे ईश्चैरिशिया कोलाई नामक जीवाणु में भी लगभग 70 प्रतिशत तक पानी ही होता है। यह पानी हमारे शरीर का तापमान सही बनाए रखने के साथ-साथ, कई सारी उपपाचन क्रियाओं में भी सहायक होता है। हमारे जीवन के लिए जरूरी रक्त भी लगभग 90 प्रतिशत तक पानी से ही बना है।
पानी शरीर के रसायनों को इधर से उधर ले जाने में वाहक की भूमिका निभाता है। यह ठीक ही कहा गया है कि जल ही जीवन है, इसीलिए विश्व की सभी सभ्यताएँ वहीं पनपीं जहाँ पानी मौजूद था। स्वच्छ जल हर जीव की आवश्यकता है, परन्तु जिस तेजी से मानव आबादी बढ़ रही है, नये-नये टूटी पाइप-लाइन से बहता गन्दा पानी शहर बन रहे हैं, नये उद्योग लग रहे हैं, अधिक पैदावार के लिए गहन कृषि की जा रही है, इन कारणों से पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता या तो कम होती जा रही है या पानी इतना दूषित हो चुका है कि उसे पीने और सिंचाई के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता।
पूरे विश्व में प्रति वर्ष करीब सवा करोड़ मौतों के लिए दूषित जल जिम्मेदार है। करीब 1.2 अरब लोग सुरक्षित मीठा जल न मिल पाने के कारण भयंकर खतरे में जी रहे हैं। भारत में स्वच्छ पानी तक करोडों लोगों की पहुँच न होना एक गम्भीर समस्या है। विश्व में मानव आबादी के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है और तेजी से आर्थिक विकास की ओर अग्रसर है, लेकिन आज काफी बड़ी आबादी को स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है और उन्हें दूषित जल से ही गुजारा करना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर रोज कम से कम चार हजार बच्चे उन रोगों से मर जाते हैं जो दूषित जल के कारण होते हैं। हमारे देश में ही दस में से चार व्यक्तियों की स्वच्छ पानी तक पहुँच नहीं है। पानी से होने वाली बीमारियों का मुख्य कारण है पानी का हमारे एवं पशुओं के मल आदि से दूषित होना। पानी से होने वाली मुख्य बीमारियों पर गौर करें तो वह है – हेपेटाइटिस-ए और हेपेटाइटिस-ई, पोलियो, टायफाइड और पैरा-टायफाइड, आंत्रशोथ या आतों के रोग, हैजा। ये रोग जीवाणुओं, विषाणुओं और अन्य सूक्ष्मजीवों से होते हैं, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक दूषित जल द्वारा पहुँचते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर रोज कम से कम चार हजार बच्चे उन रोगों से मर जाते हैं जो दूषित जल के कारण होते हैं। हमारे देश में ही दस में से चार व्यक्तियों की स्वच्छ पानी तक पहुँच नहीं है। पानी से होने वाली बीमारियों का मुख्य कारण है पानी का हमारे एवं पशुओं के मल आदि से दूषित होना।पूरे विश्व में करीब 10 लाख से 20 लाख मौतें दस्त या पेचिश के कारण होती है, जिनमें से नब्बे प्रतिशत पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं। इसका मुख्य कारण दूषित जल ही है। हैजा रोग विबरो क्होल्री नामक जीवाणु से होता है, जो पीड़ित व्यक्ति के मल द्वारा जल या अन्य खाद्य पदार्थों में पहुँचता है। टायफाइड रोग सॉलमोनेला टाइफी नामक जीवाणु से होता है जो दूषित जल एवं भोजन से अन्य व्यक्ति तक पहुँचता है। हेपेटाइटिस-ए विषाणु से हेपेटाइटिस-ए रोग होता है और यह विषाणु भी रोगी के मल से शरीर के बाहर आता है और फिर इन अपशिष्ट का सही निकास न होने पर यह पीने के पानी को दूषित करता है और कई बार अगर हमारे हाथ गन्दे हो तो इससे खाना भी दूषित हो जाता है। यहाँ तक कि मक्खियां आदि भी इन रोगों के सूक्ष्मजीवों को इधर से उधर ले जाती हैं। हेपेटाइटिस-ए का टीका बाजार में उपलब्ध है।
कई बार पीने के पानी की लाइन में सीवर का पानी मिल जाता है, इससे भी कई गम्भीर रोग हो जाते हैं। पोलियो का विषाणु सीवर या नाले में पनपता है। जब पोलियो का विषाणु नाले के अनुपचारित पानी के साथ बहता हुआ पीने के पानी में मिल जाता है और कोई व्यक्ति इस पानी का सेवन कर लेता है तो वह पोलियो से ग्रस्त हो सकता है। ई-कोलाई एक ऐसा जीवाणु है, जो अधिकतर भोजन के विषाक्त होने का कारण माना जाता है। यह दूषित जल में भी होता है और दस्त, उल्टी आदि के लिए आमतौर पर यही जीवाणु जिम्मेदार होता है।
ऐसे ही कई रोग हैं जो स्वच्छता की कमी से फैलते हैं। मानसून में बारिश का आगमन जहाँ एक ओर खुशियां लाता है, वहीं दूसरी ओर बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। असल में जमा पानी पर मच्छर आदि खूब पनपते हैं जो डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसे रोगों के वाहक होते हैं। यानि अगर जल दूषित भी नहीं है तो भी वह रोग फैलाने में सक्षम होता है क्योंकि वह उन वाहकों जैसे मच्छर, घोंघे आदि को जीवन देता है, जो रोग फैलाते हैं। अकेले मलेरिया से ही पूरे विश्व में हर रोज करीब 6 हजार मौतें हो जाती जल-जनित बीमारियों से पीड़ित रोगी हैं।
पानी-जनित रोगों से बचाव सम्भव है। अगर आप इस रेखाचित्र को ध्यान से देखें तो जल या भोजन दूषित होने के कारणों को आसानी से समझ पाएंगे।
इस रेखाचित्र से पता चलता है, कि कैसे संक्रमण हम तक पहुँचता है और सिर्फ थोड़ा सा साफ-सफाई पर ध्यान देना ही काफी हद तक जल-जनित रोगों से छुटकारा दिला सकता है। हमेशा शौच के बाद साबुन से अच्छी तरह हाथ धोएं, खाने से पहले भी हाथ धोएं, ऐसे स्रोत से ही पीने का पानी लें जिनका जल स्वच्छ हो, अगर संदेह है कि पानी दूषित हो सकता है तो पीने के पानी को कम से कम बीस मिनट तक उबालें।
पानी को पीने लायक बनाने के लिए बीस लिटर पानी में एक क्लोरीन की गोली डाल सकते हैं। क्लोरीन की गोली को करीब आधा घण्टे तक पानी में डालकर छोड़ दें और आधे घण्टे बाद ही पानी इस्तेमाल में लाएं। पानी को बीस मिनट उबालने से उसमें मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीव खत्म हो जाते हैं, ऐसे ही क्लोरीन भी आधे घण्टे में जीवाणुओं, विषाणुओं और अन्य सूक्ष्मजीवों को खत्म कर देता है।बारिश आदि के मौसम में जब रोगों का प्रकोप ज्यादा होता है तो हमेशा बीस मिनट उबाला हुआ पानी ही पीएं। हालाँकि आजकल पानी के अच्छे-अच्छे फिल्टर बाजार में उपलब्ध हैं, परन्तु उनकी कीमत अधिक है, जिस कारण हर कोई उन्हें नहीं खरीद सकता। पानी को पीने लायक बनाने के लिए बीस लिटर पानी में एक क्लोरीन की गोली डाल सकते हैं। क्लोरीन की गोली को करीब आधा घण्टे तक पानी में डालकर छोड़ दें और आधे घण्टे बाद ही पानी इस्तेमाल में लाएं। पानी को बीस मिनट उबालने से उसमें मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीव खत्म हो जाते हैं, ऐसे ही क्लोरीन भी आधे घण्टे में जीवाणुओं, विषाणुओं और अन्य सूक्ष्मजीवों को खत्म कर देता है। इसी प्रकार भोजन भी अच्छी तरह पका होना चाहिए और हमेशा गर्म-गर्म भोजन का ही सेवन करना चाहिए। अधिक देर करने से भोजन में बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ने लगती है।
ऐसे किसी भी पदार्थ का सेवन न करें जिसमें बाजार की बर्फ डाली गई है, क्योंकि ज्यादातर बाजार में बिकने वाली लस्सी, शिकंजी आदि में दूषित बर्फ ही डली होती है। घर का बना ताजा खाना ही खाएं। कटे हुए फल बाजार से न खाएं, ऐसे फलों का सेवन करना सुरक्षित रहता है जिन पर छिलके होते हैं, जैसे संतरा, केला आदि। अगर बच्चे को पेचिश या दस्त लग जाएं तो उसे नमक-चीनी का घोल बनाकर दें या फिर दाल का पानी भी दे सकते हैं। रोग से पीड़ित वयस्क भी खूब पानी का सेवन करें। आजकल बाजार में ओआरएस घोल उपलब्ध है, जिसे पानी में घोल कर पीते हैं।
घर के आसपास पानी को जमा न होने दें, इसी पानी में मच्छर पनपते हैं। अपने आसपास सफाई का ध्यान रखें। नहाने-धोने के पानी को पीने के पानी से अलग रखें। पीने के पानी को हमेशा ढक कर रखें। कई बार साफ पानी भी ऊपर से गिरी गंदगी, दूषित हाथों या गन्दे बर्तनों से दूषित हो जाता है, इसीलिए पीने के पानी को निकालने का बर्तन लम्बे हैण्डल का होना चाहिए। बोतल बन्द पानी भी एक बार खुलने के बाद बाहरी गन्दगी से दूषित हो सकता है। शक होने पर या पानी के ज्यादा पुराना होने पर बोतल के पानी को भी बीस मिनट तक उबालें।
प्रकृति ने सभी जीवों को इस धरती पर जीने का पूरा मौका दिया है और मानव को इन सभी जीवों में सबसे अक्लमन्द और जागरूक बनाया है। हम अपनी ही नासमझी से इन रोगों की चपेट में आ जाते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुन्ध दोहन के लालच से हमें बचना होगा और जल संरक्षण की अपनी परम्परा को हमें फिर से अपनाना होगा। जल हमेशा से जीवन का आधार रहा है परन्तु हमारी ही गलतियों से यह जल हमारे जीवन के लिए घातक हो जाता है। पानी को न खुद गन्दा करें और न ही किसी और को गन्दा करने दें, स्वच्छ पानी की जिम्मेदारी हमारी अपनी है। हमें हर तरह से अपने जल स्रोतों जैसे भूमिगत जल, तालाब, नदियों आदि को दूषित होने से बचाना होगा। अपने लिए, अपने बच्चों के लिए, इस नीले जीवन भरे ग्रह यानि धरती पर सतत जीवन के लिए।
(लेखक विज्ञान विषय पर लेखन कार्य करते हैं।)
ई-मेल: anurag2472@gmail.com
उदाहरण के लिए, मानव शरीर में लगभग 60 से 70 प्रतिशत पानी है, पौधों में करीब 90 प्रतिशत तक पानी है, एक वयस्क जेलीफिश में तो करीब 94 से 98 प्रतिशत पानी होता है, यहाँ तक कि एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव जैसे ईश्चैरिशिया कोलाई नामक जीवाणु में भी लगभग 70 प्रतिशत तक पानी ही होता है। यह पानी हमारे शरीर का तापमान सही बनाए रखने के साथ-साथ, कई सारी उपपाचन क्रियाओं में भी सहायक होता है। हमारे जीवन के लिए जरूरी रक्त भी लगभग 90 प्रतिशत तक पानी से ही बना है।
पानी शरीर के रसायनों को इधर से उधर ले जाने में वाहक की भूमिका निभाता है। यह ठीक ही कहा गया है कि जल ही जीवन है, इसीलिए विश्व की सभी सभ्यताएँ वहीं पनपीं जहाँ पानी मौजूद था। स्वच्छ जल हर जीव की आवश्यकता है, परन्तु जिस तेजी से मानव आबादी बढ़ रही है, नये-नये टूटी पाइप-लाइन से बहता गन्दा पानी शहर बन रहे हैं, नये उद्योग लग रहे हैं, अधिक पैदावार के लिए गहन कृषि की जा रही है, इन कारणों से पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता या तो कम होती जा रही है या पानी इतना दूषित हो चुका है कि उसे पीने और सिंचाई के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता।
दूषित जल और रोग
पूरे विश्व में प्रति वर्ष करीब सवा करोड़ मौतों के लिए दूषित जल जिम्मेदार है। करीब 1.2 अरब लोग सुरक्षित मीठा जल न मिल पाने के कारण भयंकर खतरे में जी रहे हैं। भारत में स्वच्छ पानी तक करोडों लोगों की पहुँच न होना एक गम्भीर समस्या है। विश्व में मानव आबादी के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है और तेजी से आर्थिक विकास की ओर अग्रसर है, लेकिन आज काफी बड़ी आबादी को स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है और उन्हें दूषित जल से ही गुजारा करना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर रोज कम से कम चार हजार बच्चे उन रोगों से मर जाते हैं जो दूषित जल के कारण होते हैं। हमारे देश में ही दस में से चार व्यक्तियों की स्वच्छ पानी तक पहुँच नहीं है। पानी से होने वाली बीमारियों का मुख्य कारण है पानी का हमारे एवं पशुओं के मल आदि से दूषित होना। पानी से होने वाली मुख्य बीमारियों पर गौर करें तो वह है – हेपेटाइटिस-ए और हेपेटाइटिस-ई, पोलियो, टायफाइड और पैरा-टायफाइड, आंत्रशोथ या आतों के रोग, हैजा। ये रोग जीवाणुओं, विषाणुओं और अन्य सूक्ष्मजीवों से होते हैं, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक दूषित जल द्वारा पहुँचते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर रोज कम से कम चार हजार बच्चे उन रोगों से मर जाते हैं जो दूषित जल के कारण होते हैं। हमारे देश में ही दस में से चार व्यक्तियों की स्वच्छ पानी तक पहुँच नहीं है। पानी से होने वाली बीमारियों का मुख्य कारण है पानी का हमारे एवं पशुओं के मल आदि से दूषित होना।पूरे विश्व में करीब 10 लाख से 20 लाख मौतें दस्त या पेचिश के कारण होती है, जिनमें से नब्बे प्रतिशत पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं। इसका मुख्य कारण दूषित जल ही है। हैजा रोग विबरो क्होल्री नामक जीवाणु से होता है, जो पीड़ित व्यक्ति के मल द्वारा जल या अन्य खाद्य पदार्थों में पहुँचता है। टायफाइड रोग सॉलमोनेला टाइफी नामक जीवाणु से होता है जो दूषित जल एवं भोजन से अन्य व्यक्ति तक पहुँचता है। हेपेटाइटिस-ए विषाणु से हेपेटाइटिस-ए रोग होता है और यह विषाणु भी रोगी के मल से शरीर के बाहर आता है और फिर इन अपशिष्ट का सही निकास न होने पर यह पीने के पानी को दूषित करता है और कई बार अगर हमारे हाथ गन्दे हो तो इससे खाना भी दूषित हो जाता है। यहाँ तक कि मक्खियां आदि भी इन रोगों के सूक्ष्मजीवों को इधर से उधर ले जाती हैं। हेपेटाइटिस-ए का टीका बाजार में उपलब्ध है।
कई बार पीने के पानी की लाइन में सीवर का पानी मिल जाता है, इससे भी कई गम्भीर रोग हो जाते हैं। पोलियो का विषाणु सीवर या नाले में पनपता है। जब पोलियो का विषाणु नाले के अनुपचारित पानी के साथ बहता हुआ पीने के पानी में मिल जाता है और कोई व्यक्ति इस पानी का सेवन कर लेता है तो वह पोलियो से ग्रस्त हो सकता है। ई-कोलाई एक ऐसा जीवाणु है, जो अधिकतर भोजन के विषाक्त होने का कारण माना जाता है। यह दूषित जल में भी होता है और दस्त, उल्टी आदि के लिए आमतौर पर यही जीवाणु जिम्मेदार होता है।
ऐसे ही कई रोग हैं जो स्वच्छता की कमी से फैलते हैं। मानसून में बारिश का आगमन जहाँ एक ओर खुशियां लाता है, वहीं दूसरी ओर बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। असल में जमा पानी पर मच्छर आदि खूब पनपते हैं जो डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसे रोगों के वाहक होते हैं। यानि अगर जल दूषित भी नहीं है तो भी वह रोग फैलाने में सक्षम होता है क्योंकि वह उन वाहकों जैसे मच्छर, घोंघे आदि को जीवन देता है, जो रोग फैलाते हैं। अकेले मलेरिया से ही पूरे विश्व में हर रोज करीब 6 हजार मौतें हो जाती जल-जनित बीमारियों से पीड़ित रोगी हैं।
जल-जनित रोगों से बचाव
पानी-जनित रोगों से बचाव सम्भव है। अगर आप इस रेखाचित्र को ध्यान से देखें तो जल या भोजन दूषित होने के कारणों को आसानी से समझ पाएंगे।
इस रेखाचित्र से पता चलता है, कि कैसे संक्रमण हम तक पहुँचता है और सिर्फ थोड़ा सा साफ-सफाई पर ध्यान देना ही काफी हद तक जल-जनित रोगों से छुटकारा दिला सकता है। हमेशा शौच के बाद साबुन से अच्छी तरह हाथ धोएं, खाने से पहले भी हाथ धोएं, ऐसे स्रोत से ही पीने का पानी लें जिनका जल स्वच्छ हो, अगर संदेह है कि पानी दूषित हो सकता है तो पीने के पानी को कम से कम बीस मिनट तक उबालें।
पानी को पीने लायक बनाने के लिए बीस लिटर पानी में एक क्लोरीन की गोली डाल सकते हैं। क्लोरीन की गोली को करीब आधा घण्टे तक पानी में डालकर छोड़ दें और आधे घण्टे बाद ही पानी इस्तेमाल में लाएं। पानी को बीस मिनट उबालने से उसमें मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीव खत्म हो जाते हैं, ऐसे ही क्लोरीन भी आधे घण्टे में जीवाणुओं, विषाणुओं और अन्य सूक्ष्मजीवों को खत्म कर देता है।बारिश आदि के मौसम में जब रोगों का प्रकोप ज्यादा होता है तो हमेशा बीस मिनट उबाला हुआ पानी ही पीएं। हालाँकि आजकल पानी के अच्छे-अच्छे फिल्टर बाजार में उपलब्ध हैं, परन्तु उनकी कीमत अधिक है, जिस कारण हर कोई उन्हें नहीं खरीद सकता। पानी को पीने लायक बनाने के लिए बीस लिटर पानी में एक क्लोरीन की गोली डाल सकते हैं। क्लोरीन की गोली को करीब आधा घण्टे तक पानी में डालकर छोड़ दें और आधे घण्टे बाद ही पानी इस्तेमाल में लाएं। पानी को बीस मिनट उबालने से उसमें मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीव खत्म हो जाते हैं, ऐसे ही क्लोरीन भी आधे घण्टे में जीवाणुओं, विषाणुओं और अन्य सूक्ष्मजीवों को खत्म कर देता है। इसी प्रकार भोजन भी अच्छी तरह पका होना चाहिए और हमेशा गर्म-गर्म भोजन का ही सेवन करना चाहिए। अधिक देर करने से भोजन में बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ने लगती है।
ऐसे किसी भी पदार्थ का सेवन न करें जिसमें बाजार की बर्फ डाली गई है, क्योंकि ज्यादातर बाजार में बिकने वाली लस्सी, शिकंजी आदि में दूषित बर्फ ही डली होती है। घर का बना ताजा खाना ही खाएं। कटे हुए फल बाजार से न खाएं, ऐसे फलों का सेवन करना सुरक्षित रहता है जिन पर छिलके होते हैं, जैसे संतरा, केला आदि। अगर बच्चे को पेचिश या दस्त लग जाएं तो उसे नमक-चीनी का घोल बनाकर दें या फिर दाल का पानी भी दे सकते हैं। रोग से पीड़ित वयस्क भी खूब पानी का सेवन करें। आजकल बाजार में ओआरएस घोल उपलब्ध है, जिसे पानी में घोल कर पीते हैं।
घर के आसपास पानी को जमा न होने दें, इसी पानी में मच्छर पनपते हैं। अपने आसपास सफाई का ध्यान रखें। नहाने-धोने के पानी को पीने के पानी से अलग रखें। पीने के पानी को हमेशा ढक कर रखें। कई बार साफ पानी भी ऊपर से गिरी गंदगी, दूषित हाथों या गन्दे बर्तनों से दूषित हो जाता है, इसीलिए पीने के पानी को निकालने का बर्तन लम्बे हैण्डल का होना चाहिए। बोतल बन्द पानी भी एक बार खुलने के बाद बाहरी गन्दगी से दूषित हो सकता है। शक होने पर या पानी के ज्यादा पुराना होने पर बोतल के पानी को भी बीस मिनट तक उबालें।
प्रकृति ने सभी जीवों को इस धरती पर जीने का पूरा मौका दिया है और मानव को इन सभी जीवों में सबसे अक्लमन्द और जागरूक बनाया है। हम अपनी ही नासमझी से इन रोगों की चपेट में आ जाते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुन्ध दोहन के लालच से हमें बचना होगा और जल संरक्षण की अपनी परम्परा को हमें फिर से अपनाना होगा। जल हमेशा से जीवन का आधार रहा है परन्तु हमारी ही गलतियों से यह जल हमारे जीवन के लिए घातक हो जाता है। पानी को न खुद गन्दा करें और न ही किसी और को गन्दा करने दें, स्वच्छ पानी की जिम्मेदारी हमारी अपनी है। हमें हर तरह से अपने जल स्रोतों जैसे भूमिगत जल, तालाब, नदियों आदि को दूषित होने से बचाना होगा। अपने लिए, अपने बच्चों के लिए, इस नीले जीवन भरे ग्रह यानि धरती पर सतत जीवन के लिए।
(लेखक विज्ञान विषय पर लेखन कार्य करते हैं।)
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