जल जागरूकता बढ़ाने के प्रयास

उदयपुर जिले में जल बिरादरी की ताकत बढ़ रही है। यहां के 80 गांव उदयपुर आधारित एक गैर सरकारी संगठन `झील संरक्षण समिति´ (जेएसएस) के साथ जुड़ गए हैं और ये वर्षाजल प्रबंधन को लेकर लोगों में जागरूता बढ़ाने के प्रयास कर रहे हैं।

इस बिरादरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि किस प्रकार से लोगों को अपने जल संसाधन के प्रबंधन का महत्व समझाया जाए। जेएसएस ने जागरूकता अभियान की एक विस्त्रत रणनीति तैयार की। इसके तहत इनका कार्यक्रम करीब सुबह पांच बजे से शुरु हो जाता है, जिसमें ढोलक, शंख और हार्मोनियम की ताल पर गीत गाए जाते हैं। करीब छः बजे वे कठपुतली नाच शुरु कर देते हैं, खासकर बच्चों के लिए, जिससे वे पानी संरक्षण के महत्व को समझ सकें। इस कार्यक्रम में सीधी वार्ता होती है, जिसमें मछलीनुमा एक कठपुतली होती है, जो बच्चों से सीधे बात करती है। यह मछली उन्हें बताती है कि किस प्रकार पानी घट रहा है और प्रदूषित भी हो रहा है और इसकी आवाज धीरे-धीरे रूंधने लगती है। इस प्रदर्शन के अंत में यह मछली मानव की उपेक्षा के कारण मरती दिखाई जाती है।

इस नाटक से बड़े बुजुर्गों का भी दिल दहल जाता है। इसी दौरान जेएसएस एक व्यंग रचना और एक नुक्कड़ नाटक `छप्पनिया अकाल´ का आयोजन करते हैं। (यह 18वीं सदी की एक घटना के बारे में है) जिस दौरान देश के कई हिस्सों में भीषण सूखा पड़ा था, जिससे काफी बुरी स्थिति बन गई थी। जेएसएस के निदेशक तेज राजदान ने बताया कि “इस व्यंग रचना से वे भीड़ में अपना परिचय देते हैं। हम सवालों का जवाब देने से पहले सवाल पूछते हैं,जैसे: हम कौन हैं? हम इस गांव में क्यों हैं? ऐसा करते समय हम उन्हें एहसास दिलाते हैं कि हम न तो यहां काम करने के लिए आए हैं और न हमारे पास उनका अमल करने के लिए काई बड़ा फंड है। हम तो उन्हें सिर्फ इतना बता सकते हैं कि वर्षाजल संग्रहण के लिए क्या कुछ किया जा सकता है, किस प्रकार से भूजल का पुनर्भरण किया जा सकता है और कैसे उसकी गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है? बाद में हम उन्हें बताते हैं कि अगर वे इस दिशा में पहल करने के लिए तैयार हैं, तो हम उसका तरीका बता सकते हैं।“

यह कार्यक्रम करीब 11 बजे तक समाप्त होता है, जिसके अंत में एक नदी पुनर्जीवन की गाथा सुनाई जाती है। राजदान अपने अनुभवों के बारे में बड़े मजे से बताते हुए कहते हैं कि किस प्रकार लोग इस कार्यक्रम में इतने रम जाते हैं कि वे इसमें नाचने लगते हैं और यही संकेत है कि उन्होंने इस संदेश को समझ लिया है। जेएसएस द्वारा पूछे गए अंतिम सवाल के साथ इस कार्यक्रम का समापन होता है कि “क्या आप भी अपने जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना चाहेंगे?” अगर गांव वालों का `हाँ´ में जवाब होता है तो वह गांव जल बिरादरी के साथ जुड़ जाता है। गांव वाले अपने संसाधनों का संरक्षण करने की शपथ लेते हैं और फिर जेएसएस की सहायता से गांव वाले अपने गांव में किए जाने वाले कार्यों की पहचान करते हैं।

जेएसएस ने सन् 2001 के मानसून से अब तक 80 गांवों को `जल बिरादरी´ के साथ जोड़ लिया है। इनके अधिकांश गांवों में मेड़बंदी, नालाबंदी, कच्चे बंधा और रेत की बोरी के बंधा बनाने जैसे काम किए गए हैं।

पहली बैठक के बाद गांव वालों ने सामग्री खरीदने के लिए 46,000 रुपए एकत्रित किए। साथ ही वे इसके पुर्ननिर्माण में स्वैच्छिक श्रमदान करने के लिए भी राजी हुए। 100 मीटर लम्बे और 7.2 मीटर ऊंचे ढांचे का निर्माण करने में सिर्फ तीन महीने का समय लगा। इस संबंध में गांव वालों ने एक प्रशंसनीय काम किया है कि उन्होंने उन किसानों की जमीन का मुआवजा देने का फैसला किया है, जिनकी जमीन इसके जलग्रहण क्षेत्र में पड़ती है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : तेज राजदान, अवैतनिक निदेशक झील संरक्षण समिति 113 चेतक मार्ग, उदयपुर 313001 फोन : 0294- 523715, 560400 फैक्स : 0294- 523809, 524961
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