मनुष्य के लिये पेयजल की मात्रा शारीरिक क्रियाकलापों पर निर्भर करती है। अधिक श्रम करने वाले व्यक्ति को अधिक जल पीने की आवश्यकता पड़ती है। सामान्यतया आधा गिलास या 100 मिलीलीटर पानी से 100 कैलोरी ऊर्जा की प्राप्ति होती है अर्थात एक गिलास जल (200 मिली) से 200 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होगी। पर्याप्त मात्रा में जल पीते रहने से शरीर की जैवरासायनिक क्रियाएँ सुचारु रूप से संचालित होती हैं। पाचन तंत्र ठीक से कार्य करता है। चेहरे पर झुर्रियाँ नहीं पड़ती हैं और उसका तेज बना रहता है। इससे मनुष्य स्वस्थ रहता है।
देश के अधिकांश स्थानों पर जल की सुलभता के कारण आमजन उसका उपयोग तो करते हैं परन्तु उसके महत्त्व को समझ नहीं पाते हैं। ऐसी परिस्थिति में जल अपव्यय रोकने, उपयोग में संयम बरतने और जलस्रोतों को प्रदूषण से बचाने तथा उनके संरक्षण की दिशा में सक्रिय योगदान प्राप्त करने हेतु वर्तमान पीढ़ी को क्रियाशील करने की आवश्यकता है।
जल के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते और बिना पानी के इस धरती पर कोई रह भी नहीं सकता है। मानव शरीर में जो खरबों कोशिकाएँ होती हैं, वे परमाणुओं से ही मिलकर बनती हैं। हम जानते हैं कि अणु एवं परमाणु स्वयं में निर्जीव होते हैं, परन्तु ये निर्जीव अणु व परमाणु ही मिलकर जीव का निर्माण करते हैं। जीवों में संचालित सभी प्रकार की महत्त्वपूर्ण जैविक क्रियाएँ जल की उपस्थिति में ही संचालित होती हैं। जल को ‘प्रकृति का संचालक’ भी कहा जाता है।
हमारे जीवन संचालन के लिये जल की आवश्यकता पड़ती रहती है। यह हमारे भोजन का मुख्य भाग है। एक औसत व्यक्ति तीन दिन से ज्यादा प्यासा नहीं रह सकता। हमारा भोजन जल में ही पकाया जाता है। एक व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 2.5 लीटर जल पीता है जिसकी मात्रा गर्मी के दिनों में बढ़ जाती है। शरीर की स्वच्छता, कपड़े धोने तथा विभिन्न कार्यों के लिये नगरीय क्षेत्रों में प्रत्येक व्यक्ति को औसतन 100 से 500 लीटर तक जल प्रतिदिन खर्च करना पड़ता है।
सूक्ष्म जीवाणु से लेकर बड़े से बड़े जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों तक सभी के जीवन की सृष्टि व विकास के लिये जल अत्यन्त ही आवश्यक तत्व है। जीवित कोशिकाओं की जैवरासायनिक क्रियाएँ जल की उपस्थिति में ही सम्भव हैं। जब तक जीव जीवित है तब तक उसके शरीर में जल का सन्तुलन बना रहता है और उसकी मृत्यु के पश्चात उसके शरीर का जल सूखने लगता है।
जल अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है। जल शुद्ध होगा तो स्वास्थ्य भी उत्तम होगा। अतः आवश्यक है कि हम जो जल पीयें वह शुद्ध हो। बरसात के मौसम में जल में संक्रमण बढ़ जाता है क्योंकि सतही जल का कहीं-न-कहीं से सम्पर्क हो जाता है। इसलिये यह जानना आवश्यक है कि हम जो जल पीने जा रहे हैं क्या वह शुद्ध और पीने लायक है? आज बढ़ते प्रदूषण के युग में हमें अपने कपड़ों और घर की साफ-सफाई की तरह ही जल की शुद्धता पर भी ध्यान देना आवश्यक है।
दुनिया की एक बड़ी आबादी को आज भी स्वच्छ जल नहीं मिल पा रहा है और जो जल हम तक पहुँच रहा है वह भी संक्रमित है और जलजन्य बीमारियों के कीटाणुओं से युक्त है। इसके कारण दस्त, आंत्रशोथ, चर्मरोग, पोलियो, हेपेटाइटिस, कैंसर जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं और प्रत्येक वर्ष लाखों लोगों को अपना शिकार बना रही हैं। आज पीने के लिये हमारे पास दो तरह के जल उपलब्ध हैं जो भूमिगत और सतही रूप में हैं। भूमिगत जल 80 फीसदी लोगों की जल आवश्यकता को पूरा करता है जबकि सतही नदियों, झीलों और तालाबों का जल 20 प्रतिशत लोगों की जरूरतें पूरी करता है। भूमिगत जल में काफी मात्रा में कीटनाशक भी मिले होते हैं जो खेती में प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशक होते हैं। जमीन में गहराई तक इन कीटनाशकों के अंश पहुँचने से इनसे दूषित जल एवं इन कीटनाशकों को हमारे शरीर में पहुँचाता रहा है। इसके अलावा औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के अंश भी इस जल में मिले हुए हैं।
जल हमारे शरीर के लिये पोषक पदार्थ है और ऊर्जा प्रदान करता है। यह हमारे शरीर के जोड़ों एवं सभी अन्तरंग भागों के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जल की पर्याप्त मात्रा शरीर के व्यर्थ एवं विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक है। मनुष्य अपने शरीर से प्रतिदिन पसीना, मल-मूत्र तथा साँस आदि के द्वारा जितना जल बाहर निकालता है उससे ज्यादा पानी पीना शरीर के लिये हानिकारक हो सकता है।
भोजन के पूर्व अधिक जल पीना लाभदायक नहीं होता है। अजीर्ण या अपच, मिचली, पेटदर्द और उल्टी जैसे लक्षणों में भोजन न करके केवल जल का सेवन औषधि का कार्य करती है, भोजन पच जाने पर अर्थात भोजन के लगभग 3 घंटे बाद सेवन किया हुआ जल पाचन में बाधा उत्पन्न न करने के कारण बलदायक होता है। भोजन के बीच में घूँट-घूँट सेवन किया हुआ जल रुचि उत्पन्न करने के कारण अमृत के समान होता है और भोजन करके तुरन्त सेवन किया हुआ जल पाचक रसों को पतला करके पाचन तंत्र में भोजन को जल्दी आगे बढ़ा देने के कारण विषसम अहितकर होता है। हमारे गलत खान-पान तरीकों और शरीर का वजन बढ़ने से अनेक समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। ऐसे में पेयजल की मात्रा को बढ़ाकर शरीर से यूरिक अम्ल के स्तर को घटाया जा सकता है।
गर्भवती एवं दुग्धपान कराने वाली महिलाओं के लिये जल की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। गर्भावस्था की अवधि में शिशु विकास के अलग-अलग चरणों में जल की विभिन्न मात्राओं की आवश्यकता पड़ती है। यह उन्हें ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ कब्ज, रक्तस्राव, इलेक्ट्रोलाइट असन्तुलन और गर्भक्षति रोकने में सहायता करती है।
जल की कमी हमारे शरीर में चक्कर आना, थकान और कमजोरी महसूस होने जैसे लक्षणों को पैदा करती है। यदि शरीर में 2 प्रतिशत जल की कमी हो जाये तो प्यास लगती है, भूख लगती है, त्वचा शुष्क हो जाती है, मुँह सूखने लगता है, ठंड लगती है और मूत्र का पीलापन बढ़ जाता है। यदि शरीर में 5 प्रतिशत जल की कमी हो जाये तो हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, मल-मूत्र त्याग में परेशानी होती है, माँसपेशियों में जकड़न हो जाती है, थकान बढ़ जाती है, मिचली और सिरदर्द जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
यदि शरीर में 10 प्रतिशत जल की कमी हो जाये तो तत्काल चिकित्सकीय सुविधा प्राप्त करनी चाहिए। ऐसे में चक्कर आना, माँसपेशियों में अकड़न, उल्टी, नाड़ी तेज चलना, शरीर का सिकुड़ना, धुँधला दिखना, साँस लेने में परेशानी, स्मृति दोष, सीने में दर्द, मूत्रत्याग में कष्ट जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
विभिन्न मौसम भी जल पीने की मात्रा को प्रभावित करते हैं। शीत काल में ज्यादा प्यास नहीं लगती जबकि ग्रीष्म काल में ज्यादा जल पीने की आवश्यकता पड़ती है। परन्तु, शुष्क वायु होने के कारण मनुष्य को प्यास न लगने पर भी समय-समय पर जल पीते रहना चाहिए। जल की कमी होने से झिल्लियाँ, फेफड़े, आँत आदि के शुष्क होने का खतरा बढ़ जाता है जिससे संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। जल की उचित मात्रा मोटापा घटाने में सहायक है। यह शरीर में व्यर्थ पदार्थों को निकालने में मदद करती है। पाचन तंत्र को सुचारु रूप से चलाती है और वृक्क को ठीक रखती है।
जल बचायें और संरक्षित भी करें। आज भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में गिरते भूजल स्तर, सूखती नदियाँ और छिछले होते जलाशय सबसे बड़ी समस्या है। आज पानी की समस्या को लेकर सभी लोग गम्भीर रूप से चिन्तित हैं। जल समस्या को देखते हुए ऐसे कदम उठाने आवश्यक हो गये हैं जिससे भविष्य में पानी की प्रचुरता बनी रहे और अगली पीढ़ी को भी स्वच्छ पानी पीने को मिले। अगर हम अभी से नहीं चेते तो अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। आइए, जल बचायें और संरक्षित भी करें।
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