" पृथ्वी, वायु, भूमि और जल हमारे पूर्वजों से विरासत में न हीं हैं, बल्कि हमारे बच्चों से हम पर ऋण हैं। इसलिए हमको उन्हें उसी तरह से सौंपना होगा, जैसा हमें सौंपा गया था।" - गांधी
जल, पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए प्रमुख घटक है और इसी कारण यह अनुसंधान का सबसे अधिक अध्ययन किया गया अंतः विषय रहा है। 17 सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) में से एक, सुरक्षित और स्वच्छ पानी तक पहुंच, एक बेहतर विश्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। उपलब्धता की बात करें तो, ताजे पानी के रूप में केवल 2.5% पानी ही उपयोग हेतु उपलब्ध है, जबकि लगभग 96.5% पृथ्वी की सतह पर खारे पानी के रूप में मौजूद है। केवल ताजे पानी का ही 68.7% ग्लेशियर और बर्फ के रूप में जमा है, जबकि 30.1% भूजल के रूप में और 1.2% सतही जल (झीलों, नदियों, मिट्टी की नमी आदि) के रूप में है। सभी जीवित प्राणी, विशेष रूप से मनुष्य, ईंधन और उसकी मांग को पूरा करने के लिए मुख्य रूप से सतह और भूजल पर निर्भर हैं। दिलचस्प बात यह है कि एक वयस्क मानव शरीर का 60% भाग पानी है। जबकि कुछ जीवों में, यह उनके शरीर के वजन का 90% तक है। पानी कई महत्वपूर्ण कार्यों में मददगार है, जैसे- शरीर के तापमान को नियंत्रित करना, पाचन में मदद करना, शरीर से अपशिष्ट को बाहर निकालना, जोड़ों के लुब्रिकेशन आदि ।
यदि हम एक दिन की कल्पना करें जब हमारे पास स्वच्छ पानी की कोई आपूर्ति न हो और हमारे द्वारा दूषित अपशिष्ट जल को ही हमें पीना पड़ें। जिस प्रवृत्ति के साथ हम बढ़ते जल प्रदूषण और भूजल संसाधनों की कमी देख रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब, यह स्थिति आने वाले दशक में और आने वाली पीढ़ियों के लिए वास्तविकता बन जायेगी। आजकल, ताजे पानी को हमारे ग्रह पर एक दुर्लभ संपत्ति के रूप में माना जाता है। आर्थिक विकास के लिए औद्योगिक उन्नति, जनसंख्या वृद्धि, कृषि और शहरी विकास ने पारिस्थितिक असंतुलन को जन्म दिया है, जिससे समुद्र, झील, नालों आदि जल संसाधनों के बढ़ते प्रदूषण के साथ धरती पर पर्यावरणीय क्षति हुई है।
जल प्रदूषण के लिए प्राथमिक कारण जल का अत्यधिक दोहन है जिसने जल प्रदूषण को काफी हद तक बढ़ाया है। पानी की गुणवत्ता संदूषण के विभिन्न कारणों से प्रभावित होती है, जिसमें शहरी और औद्योगिक अपशिष्टों की निकासी और खेतों से जल का बहना शामिल है। नये अपशिष्ट पदार्थ इसी तरह जलमार्गों और झीलों में घुल जाते हैं। इस तरह के प्रदूषण मानव जीवन में प्राकृतिक तरीके से प्रवेश कर प्रभावित करते हैं और तब तक एकत्रित होते हैं जब तक कि वे खतरनाक स्तर तक नहीं पहुंच जाते। जल प्रदूषण जलीय जीवों और कशेरुकियों की मृत्यु का भी कारण बनते हैं। मिश्रित औद्योगिक सुविधाएं स्थिति को और खराब बना देती हैं क्योंकि औद्योगिक उत्पादन लाइन धाराओं से जल का उपयोग उपकरण को नियंत्रित करने या हार्डवेयर को ठंडा करने के लिए करती हैं। जल का तापमान बढ़ाने से विच्छिन्न आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और जल के समीकरण बिगड़ जाते है। अन्य कारक बाढ़ और शुष्क मौसम हैं और अंतिम कारक लोगों के बीच जागरूकता और प्रशिक्षण का अभाव है। जल की गुणवत्ता को बनाए रखने और स्वच्छता, भंडारण और निष्कासन जैसे विभिन्न दृष्टिकोणों का ध्यान रखने हेतु हितधारकों को शामिल करने की आवश्यकता, जल संपत्ति की प्रकृति को बनाए रखने के लिए बुनियादी घटक हैं। जल प्रदूषण के कारण खराब गुणवत्ता संक्रमण फैलाती है जो मृत्यु का कारण बनती है और वित्तीय उन्नति में बाधा उत्पन्न करती है। दुनिया भर में जलजनित विकृतियों के कारण कम से कम 5 मिलियन व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है (भारत की जल संसाधन सूचना प्रणाली, 2017)। इसके अलावा, जल संसाधनों के आर्सेनिक संदूषण जैसे रासायनिक विषाक्तता से लगभग 220 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की सूचना है, जो दूषित पानी की खपत के कारण 108 देशों में फैले हुए हैं। आर्सेनिक के सेवन से कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जिनमें त्वचा पर घाव, बालों का भंगुर होना, नाखून, प्रजनन संबंधी विकार और कैंसर से मृत्यु हो सकती है।
इसी तरह देश के कई हिस्सों में देखे गए स्वास्थ्य प्रभावों के कारण फ्लोराइड, नाइट्रेट और धातुओं (Pb, Hg Cu, Cr, Cd आदि) का उच्च स्तर भी गंभीर चिंता का विषय है। सेलेनियम, जो मुख्य रूप से अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए जाना जाता है, विश्व स्तर पर एक प्रमुख भूजल प्रदूषक के रूप में उभरा है। सेलेनियम का लंबे समय तक सेवन संरचनात्मक दोष (structural defects), भंगुर बाल (brittle hair), स्तरीकृत नाखून (stratified nails) और प्लमोनरी एडिमा (pulmonary oedem) का कारण बनता है। क्रोनिक सेलेनोसिस को मुख्य रूप से सेलेनियम दूषित पेयजल (भूजल) और दूषित मिट्टी पर उगाए गए भोजन के निरंतर और दीर्घकालिक अंतग्रहण से जुड़ा हुआ माना जाता है। हाल ही में, वर्तमान महामारी में जल संसाधनों के साथ-साथ अपशिष्ट जल में कोरोना वायरस के कण पाए गए हैं। यह वायरस समुदाय में बिना लक्षणों वाले (symptomatic) या हल्के संक्रमित आबादी (mild infected population) से फैला है। इसलिए उपभोग से पहले जल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ समुदाय में बीमारी के प्रसार की निगरानी के लिए भौतिक रासायनिक और जैविक मापदंडों के लिए जल निकायों की निगरानी करना गंभीर रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए विभिन्न नियामक एजेंसियों जैसे भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और रोग नियंत्रण केंद्र (सीडीसी) ने पीने के पानी में विभिन्न भौतिक रासायनिक मापदंडों के मानकों को परिभाषित किया है। आम जनता में साफ पानी की एक सामान्य समझ इसका स्पष्ट रूप है, जो पानी में मौजूद संभावित संदूषक को वास्तविक विशेषता को नहीं दर्शाता है। बल्कि पानी की गुणवत्ता मुख्य रूप से मानव उपभोग के साथ-साथ जलीय जीवन के लिए इसकी स्वीकार्यता के संदर्भ में इंगित की जाती है। पानी की गुणवत्ता का माप आम तौर पर इसकी भौतिक (टर्बिडिटी, तापमान, विद्युत चालकता, रंग, स्वाद और गंध), रासायनिक (पीएच, अम्लता, क्षारीयता, क्लोराइड, क्लोरीन अवशिष्ट, कठोरता, घुलित ऑक्सीजन, बीओडी, सीओडी आदि) और जैविक (बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ, शैवाल, प्लवक आदि) विशेषताओं से जुड़ा होता है।
भौतिक मापदंडों में रंग, गंध, स्वाद पानी की स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए विश्व स्तर पर उपयोग की जाने वाली सामान्य विशेषताएं हैं। विश्व स्तर पर उपयोग की जाने वाले भौतिक मापदंडों में टर्बिडिटी, तापमान, विद्युत चालकता शामिल हैं। टर्बिडिटी को पानी की प्रकाश संचारण क्षमता ( light transmitting ability) से आसानी से समझा जा सकता है और आमतौर पर पानी के मटमैलेपन या पानी में निलंबित और अन्य छोटे कणों (particulate material) के स्तर द्वारा दर्शाया जाता है। पीने के पानी में उच्च मैलापन अस्वीकार्य है, जो पानी को पीने योग्य नहीं बनाता है। पारदर्शिता पानी की एक अन्य भौतिक विशेषता है जो रंग और मैलेपन के पारस्परिक प्रभाव के आधार पर तय होती है। यह पानी के माध्यम से प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को संदर्भित करता है। पानी के विभिन्न भौतिक गुणों को प्रभावित करने में पानी के तापमान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चूंकि यह पानी में घुली हुई ऑक्सीजन को नियंत्रित करता है अतः यह जलीय जीवन को नियंत्रित करता है, इसलिये पानी के तापमान को 10-15 डिग्री सेल्सियस के साथ नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है।
पानी में रंग का दिखना भी पानी के प्रदूषण का संकेत है। शुद्ध पानी रंगहीन होता है जबकि एसिड (जैसे- ह्यूमिक, फुल्विक), धातु आयनों (Fe, Cu, Zn, Mn, Na, K आदि) की उपस्थिति, कार्बनिक (अर्थात् प्लवक, खरपतवार) और अकार्बनिक पदार्थ से निलंबित/क्षययुक्त पदार्थ (अर्थात् मिट्टी, पत्थर), और औद्योगिक अपशिष्ट, जल का मूल रंग बदल सकते हैं। पानी की विद्युत चालकता (ईसी) विद्युत प्रवाह को संचालित करने की उसकी क्षमता पानी में आयनों की उपस्थिति के बारे में बताता है, जो इसकी गुणवत्ता का माप है। एक समाधान के रूप में, इलेक्ट्रो-एक्टिव आयन, विद्युत प्रवाह का संचालन करने के लिए जिम्मेदार होते हैं, जो आयन की सांद्रता बढ़ने पर बढ़ते हैं। इसे Siemens/m (S/m) के रूप में व्यक्त किया जाता है। बिल्कुल शुद्ध पानी, पीने का पानी, विआयनीकृत पानी (deionized water) और समुद्री जल की चालकता क्रमश: 5.5×10.6 S/m, 0.005-0.05S/m और 5 S/m हैं।
पानी के रासायनिक गुण मुख्य रूप से पीएच, अम्लता, क्षारीयता, क्लोराइड, अवशिष्ट क्लोरीन, कठोरता, कुल निलंबित ठोस (टीएसएस), कुल घुलित ठोस (टीडीएस), सल्फेट, फ्लोराइड, नाइट्रेट, धातु (Fe, Cu, Zn, Mn, Na, K आदि), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी), बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और घुलित ऑक्सीजन, जल प्रदूषण और इसकी गुणवत्ता नापने के मापदंड हैं। पीएच जल रसायन विज्ञान में अत्यंत महत्वपूर्ण मापदंडों में से एक है और इसे 0-14 से लेकर पैमाने पर अम्लता या क्षारीयता की विशेषता के रूप में दर्शाया जाता है। मुक्त H+ की उपस्थिति को अम्लीय (अर्थात pH< 7) के रूप में व्यक्त किया जाता है, जबकि मुक्त OH- आयनों की उपस्थिति को क्षारीय (अर्थात pH> 7) के रूप में व्यक्त किया जाता है। पानी की अत्यधिक अम्लीयता कार्बन डाइऑक्साइड, एसिड और लवण की उपस्थिति के कारण हो सकती है। इसी तरह पानी की क्षारीयता हाइड्रॉक्साइड आयनों बाइकार्बोनेट आयनों और कार्बोनेट आयनों या इनमें से दो जायनों के मिश्रण की उपस्थिति के कारण हो सकती है।
धातु आयनों के कारण जल प्रदूषण पिछले कुछ वर्षों से चिंता का विषय बना हुआ है। हालांकि ये आयन कुछ हद तक मानव की मेटाबोलिक गतिविधियों के लिए आवश्यक होते हैं और बहुत कम सांद्रता में स्वाभाविक रूप से बाहर निकलते हैं। इसी तरह जल संसाधनों में क्लोराइड, सल्फेट, कार्बोनेट, बाइकार्बोनेट, फ्लोराइड और नाइट्रेट जैसे कई आयनों की उपस्थिति पाई गई है। ये आयन आम तौर पर पानी की क्षारीयता के लिए जिम्मेदार होते हैं और मेटाबोलिक गतिविधियों को विनियमित करने के लिए आवश्यक होते हैं। लेकिन एक सीमा से अधिक उनके सेवन का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए पानी में आयरन और मंगनीज की उपस्थिति किसी भी स्वास्थ्य समस्या को पैदा नहीं करते हैं लेकिन अधिक मात्रा में पानी में इनकी उपस्थिति पानी को कड़वा स्वाद दे देते हैं। उच्च सांद्रता में जिंक आयन पानी को दूधिया रूप दे सकते हैं।
इसी तरह जल प्रदूषण के स्तर को समझने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली अन्य विशेषता इसकी कठोरता, कुल निलवित ठोस (T) और कुल घुलित ठोस (TD) का स्तर है। 1200 टीडीएस से ऊपर का पानी अत्यधिक प्रदूषित है। टीडीएस, घुलित आयनों की सान्द्रता (concentration of dissolved ion) को बताता है, जो आम तौर पर कल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और सोडियम, कार्बोनिट्स नाइट्रेट्स, बाइकार्बोनेट, क्लोराइड और सल्फेट होते हैं। ये आयन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं लेकिन बहुत अधिक मात्रा में ये हानिकारक भी होते हैं। इस प्रकार पीने के पानी के लिए टीडीएस 150-300 की सीमा में होना चाहिए। कम टीडीएस वाला पानी यानी आयनों की बहुत कम सांद्रता ( <100) शरीर के लिए बहुत हानिकारक है। घरों में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश वाटर प्यूरीफायर बेहतर स्वाद के लिए आमतौर पर टीडीएस <100 पर सेट होते हैं। लेकिन जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, कम टीडीएस का मतलब स्वस्थ आयनों की कम सांद्रता है जो बदले में विशेष रूप से बच्चों में, चयापचय गतिविधियों और विकास को प्रभावित करता है। ईसी और टीडीएस एक-दूसरे से संबंधित हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, पानी में उच्च स्तर के डिसइन्फेक्टेन्ट बाइप्रोडक्ट्स (डीबीपी) को एक सामान्य जल प्रदूषण समस्या के रूप में देखा गया है। सूर्य के प्रकाश में अवशिष्ट क्लोरीन के साथ कार्बनिक पदार्थों की प्रतिक्रिया पर डीबीपी का उत्पादन होता है। चूंकि ग्रामीण और शहरी जलापूर्ति वितरण नेटवर्क में कीटाणुशोधन के लिए पानी के उपचार हेतु पानी का क्लोरीनीकरण आम बात है। अवशिष्ट क्लोरीन का निम्न स्तर अपूर्ण कीटाणुशोधन (incomplete disinfection) का कारण बन सकता है जबकि इसका उच्च स्तर डीबीपी के गठन का कारण वन सकता है। पीने के पानी में इष्टतम अवशिष्ट क्लोरीन (CI2) की सांद्रता 30 मिनट के उपचार के बाद 0.2 पीपीएम होनी चाहिए। इस प्रकार कम लागत और सरल तकनीकी समाधान के साथ अवशिष्ट क्लोरीन के स्तर को मापना महत्वपूर्ण है जो कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बताया गया है।
बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ, शैवाल आदि जैविक संकेतक भी पानी की गुणवत्ता के संबंध में महत्वपूर्ण पैरामीटर हैं। अधिक संख्या में सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति से गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं जैसे टाइफाइड और पैराटाइफाइड बुखार, लेप्टोस्पायरोसिस, टुलारेमिया, शिगेलोसिस और हैजा। जल प्रदूषण का एक अन्य प्रमुख रूप पौधों (Phytoplankton) और जीवों (Zooplankton) की उपस्थिति है जो अक्सर जल निकायों में मुक्त तैरते या रुके हुए पाए जाते हैं। ये पानी में प्रकाश के प्रवेश को कम कर देते हैं और इस प्रकार प्रकाश-संश्लेषण कम हो जाता है जिससे घुलित ऑक्सीजन भी कम हो जाती है। जलीय जीवन के लिए ऑक्सीजन बहुत महत्वपूर्ण पैरामीटर है इस प्रकार इसकी सांद्रता जल में जल प्रदूषण को संदर्भित करती है। ऑक्सीजन स्तर को डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन (डीओ), बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और कैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) के संदर्भ में निर्धारित किया जा सकता है। बीओडी एरोविक स्थितियों में पानी में जैविक रूप से विघटित कार्बनिक पदार्थों को स्थिर करने के लिए सूक्ष्मजीवों द्वारा आवश्यक ऑक्सीजन का माप है। दूसरी ओर सीओडी, सैम्पल के कार्बनिक कंटेंट के लिए ऑक्सीजन कॉरिस्पान्डेन्ट है जिसे ओपन रिफ्लक्स प्रक्रिया द्वारा मापा जाता है। बीओडी या सीओडी का स्तर जल निकायों में मौजूद कार्बनिक कटेंट का एक माप है। 100 मिलीग्राम/लीटर से अधिक बीओडी वाले पानी को अत्यधिक प्रदूषित पानी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जबकि अधिक स्वच्छ पानी के लिए यह 1-2 मिलीग्राम/लीटर की सीमा में होना चाहिए। सामान्य तौर पर सीओडी का मान बीओडी के मूल्य से दोगुना होता है और यह बीओडी विश्लेषण के अभाव में जल प्रदूषण की पहचान करने का एक और तरीका है। जल निकायों के बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए बीआईएस ने विभिन्न भौतिक, रासायनिक और जैविक मापदंडों के संदर्भ में पानी के उपयोग हेतु सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिये हैं।
जल प्रदूषण और पानी की गुणवत्ता को व्यापक रूप से समझने के लिए पानी की सुरक्षा/गुणवत्ता तय करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मानदंडों को समझना महत्वपूर्ण है। जल गुणवत्ता सूचकांक (WQI) उसी को मापने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है तथा पानी की गुणवत्ता के मापदंडों पर आधारित है जो कि प्रत्येक पैरामीटर के लिए गुणवत्ता फंक्शन और अंत में उपयोग किए गए गणितीय मॉडल का निर्धारण करता है। डब्ल्यूक्यूआई नंबर जल प्रदूषण की (प्रदूषण की स्थिति और विश्लेषण के समय के साथ) जानकारी एकल मान के रूप में देता है इस प्रकार बड़ी संख्या में मापदंडों को एक सरल अभिव्यक्ति में दर्शाता है। लेकिन एक सार्वभौमिक डब्ल्यूक्यूआई विकसित करना एक चुनौती है और इस प्रकार यह प्रबंध निकाय (governing body) और शोधकर्ताओं के अनुसार बदलता रहता है।
जल निकायों में प्रदूषण के स्तर का आकलन आमतौर पर प्रयोगशाला आधारित परिष्कृत विश्लेषणात्मक प्रणाली (Sophisticated Analytical System) द्वारा किया जाता है, लेकिन इन प्रणालियों के संचालन के लिए महंगे रसायनों और प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता के अलावा क्षेत्र के फील्ड यूटिलाइजेशन और ऑनलाइन मॉनिटरिंग जैसी बाधाएं हैं। दूसरी ओर पोर्टेबल डिवाइस या फील्ड किट एक वैकल्पिक और उपयोगकर्ता के अनुकूल समाधान हैं। सार्वजनिक और निजी दोनों हितधारकों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पानी की गुणवत्ता के मापदंडों की ऑन-लाइन/ऑन-साइट निगरानी के लिए एक पोर्टेबल डिवाइस को विकसित और लगाने के लिए इसमें निम्न विशेषताएं होनी चाहिए-
• त्वरित प्रतिक्रिया ( Quick response)
• बहु प्रदूषकों की खोज (multi pollutants detection)
• आसान नमूनाकरण और स्वचालन ( easy sampling and automation)
• किफायती लागत पर तेजी से डेटा अधिग्रहण, स्थायीकरण और अनुकूलन (fast data acquisition, perpetuation and customization at economical cost)
• उपयोगकर्ता के अनुकूल (user friendliness)
• प्रदूषकों को स्क्रीन करने के लिए पर्याप्त संवेदनशीलता और चयनता ( enough sensitivity and selectivity to screen the pollutant)
• उत्कृष्ट पुनरुत्पादकता (minimal false-positives/false-negatives or excellent reproducibility)
• जल संबंधी परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूती और कठोरता (robustness and toughness for working in water environment)
• क्षेत्र संचालन और समायोजन (field operation and adjustment)
इन प्रौद्योगिकियों को आगे IOT और इमेजिंग सॉल्यूशन्स के साथ एकीकृत किया गया है ताकि सेंसर प्रतिक्रिया में सब्जेक्टिविटी को दूर किया जा सके और साथ ही पानी की गुणवत्ता को विनियमित करने के लिए उपयोगकर्ता के साथ-साथ केंद्रीकृत एजेंसी को रियल टाइम डेटा प्रदान किया जा सके। परिणाम का विश्लेषण एंड्रॉइड स्मार्ट फोन के साथ उपयोगकर्ता के अनुकूल संगत मोबाइल ऐप के साथ किया जाता है। इन पोर्टेबल सिस्टम का लाभ यह है कि इन्हें एकल पैरामीटर के लिए स्टैंड-अलोन के रूप में उपयोग किया जा सकता है और साथ ही कुछ संशोधनों के साथ कई पैरामीटर विश्लेषण तक बढ़ाया जा सकता है। मशीन इंटेलिजेंस और एआई की शुरुआत के साथ इन उपकरणों को रीयल टाइम सेंसिंग, डेटा कैप्चरिंग, विश्लेषण, पैटर्न जनरेशन इत्यादि के लिए और भी स्मार्ट बनाया जा सकता है। इस प्रकार ऐसी और प्रौद्योगिकियों को विकसित करके पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है और उन्हें एकीकृत करके भारत सरकार के जल जीवन मिशन के तहत ऑनसाइट/ऑनलाइन जल गुणवत्ता विश्लेषण और सुरक्षित जल आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक देश के हर ग्रामीण घर में नल के पानी का कनेक्शन प्रदान करना है। तकनीकी के हस्तक्षेप के अलावा यह महत्वपूर्ण है कि हम पानी के मूल्य को समझें जो कि धरती माता द्वारा हमें उपहार में दिया गया बहुमूल्य स्रोत है। हमें इसके सही उपयोग और संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए।
लेखिका डॉ. पूजा देवी, प्रधान वैज्ञानिक सीएसआईआर-केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन, चंडीगढ़ में हैं। ई-मेल: poojaitr@csio.res.in
अनुवादः शुभदा कपिल, सहायक सम्पादक, विज्ञान प्रगति
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