पानी के मुख्यता दो स्रोत हैं। धरती की सतह पर बहने वाला पानी जैसे नदी, नाले, झरने, तालाब इत्यादि, तथा धरती के नीचे पाये जाने वाला पानी अर्थात भूजल, जैसे कुएँ, हैण्डपम्प इत्यादि का जल। सतही पानी की गुवत्ता मौसम, मिट्टी के प्रकार तथा आस-पास की प्रकृति पर निर्भर करती है। सामान्यता नदी नालों का पानी तब प्रदूषित होता है जब वह घनी आबादी के क्षेत्रों या कारखानों के इलाकों से होकर गुजरता है। भूजल के प्रदूषण की सम्भावनायें कम होती हैं, परन्तु कभी-कभी भूमि पर पड़े हुए कचरे या गंदा पानी धीरे-धीरे धरती में से होता हुआ भूजल तक पहुँच कर उसे प्रदूष्त कर देता है। भूमिगत चट्टानों से फ्लोराइड तथा आर्सेनिक के रिसने के कारण कई क्षेत्रों में भूजल दूषित हो गया है।
प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला जल भी पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होता है। जल वाष्प बन कर ऊपर उठता है, तथा धूल के कण, आक्सीजन, कार्बन डाईआक्साईड, कार्बन मोनोक्साईड तथा अन्य गैसों को अवशोषित कर पुनः नीचे आता है। भूतल पर धूल, कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ इसमें मिल जाते हैं। भूतल में जीवाणु विभिन्न स्रोतों से जल में आते हैं, जबकि कुछ जीवाणु वायु द्वारा भी प्रवेश कर जाते हैं। कार्बनिक पदार्थों के जैव अपघटन से प्राप्त नाइट्रेट, नाइटाड्रटस, अमोनियम इत्यादि, भूजल में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं। वर्षा का जल, भूमि में रिसाव होने पर वह मिट्टी, रेत तथा कुछ मात्रा में जीवाणुओं को छानकर भूमिगत जल में बदल जाता है।
प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला जल भी पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होता है। जल वाष्प बन कर ऊपर उठता है, तथा धूल के कण, आक्सीजन, कार्बन डाईआक्साईड, कार्बन मोनोक्साईड तथा अन्य गैसों को अवशोषित कर पुनः नीचे आता है। भूतल पर धूल, कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ इसमें मिल जाते हैं। भूतल में जीवाणु विभिन्न स्रोतों से जल में आते हैं, जबकि कुछ जीवाणु वायु द्वारा भी प्रवेश कर जाते हैं। कार्बनिक पदार्थों के जैव अपघटन से प्राप्त नाइट्रेट, नाइटाड्रटस, अमोनियम इत्यादि, भूजल में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं। वर्षा का जल, भूमि में रिसाव होने पर वह मिट्टी, रेत तथा कुछ मात्रा में जीवाणुओं को छानकर भूमिगत जल में बदल जाता है।
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