जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव

जल प्रदूषण के मानवीय कारक
जल प्रदूषण के मानवीय कारक

बढ़ती हुई तीव्र जनसंख्या, औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के कारण स्वच्छ जल की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। आज जल की गुणवत्ता में गिरावट आती जा रही है। जल प्रदूषण तत्वों के दो प्रमुख कारण हैं एक प्राकृतिक और दूसरा मानवीय प्राकृतिक कारणों से जल प्रदूषण इतनी मंद गति से होता है कि सामान्य रूप से इसके कोई भयंकर परिणाम सामने नहीं आते। जल प्रदूषण के प्राकृतिक कारणों में भू-क्षरण और खनिज पदार्थ की अधिक मात्रा का जल में मिल जाना शामिल है।

जल प्रदूषण के मानवीय कारक

जल प्रदूषण में मानवीय कारकों की अहम भूमिका है। मनुष्य अपनी विभिन्न गतिविधियों के द्वारा जल को प्रदूषित करने का कार्य करता है, इसमें औद्योगिक, नगरीय, कृषि तथा सामाजिक एवं घरेलू कारणों को सम्मिलित किया जा सकता है। औद्योगिक तथा नगरीय क्षेत्रों में जल प्रदूषण की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। विभिन्न विषैले रासायनिक पदार्थों से युक्त औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ बहिःस्राव के रूप में जब जल में मिल जाता है, तो वह जल को प्रदूषित करता है। नगरों के मल तथा कूड़े-कचरे की भी जल को प्रदूषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। कृषि कार्यों में अधिक रासायनिक उवर्रकों तथा कीटकनाशकों का प्रयोग भी जल प्रदूषण के प्रमुख कारण बन गये हैं। लोगों द्वारा पूजा की सामग्री, फूल-मालाओं तथा मूर्ति विसर्जन के कारण भी जल प्रदूषित किया जा रहा है।

प्रदूषित जल और बीमारियां

प्रदूषित जल पीने से मनुष्य में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का संचारण होने लगता है। प्रदूषित जल में स्नान करने से चर्मरोग फैलने लगता है। प्रदूषित जल मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। रसायनों के मिलने के कारण पानी में ही गंगा किनारे बसे गांवों-मोहल्लों के जलस्रोत प्रदूषित हो रहे हैं और उसके कारण कुंओं, हैंडपंपों और पेयजल नलकूपों से निकाला जाने वाला पीने का पानी भी जहरीला होता जा रहा है। कानपुर के बिठूर और जाजमऊ के बीच लेदर-इकाइयों से भारी पैमाने पर गंदा पानी गंगा में बहाया जा रहा है। ऋषिकेश, हरिद्वार, गजरौला में फैक्ट्रियां गंगा में जहर बहा रही हैं। गंगा के तट पर नरोरा और ऊँचाहार विद्युत उत्पादन इकाइयां भी गंगा के लिए अभिशाप ही हैं। इनके अलावा रामपुर, मेरठ, गजरौला, मुरादाबाद, बुलंदशहर में डिस्टलरी, पेपर, चीनी व अन्य रसायन इकाइयां गंगा को प्रदूषित कर रही हैं। गंगा का दूषित पानी जलस्रोतों में मिल जाने के कारण पीने के पानी को भी प्रदूषित कर रहा है जिससे आयरन, नाइट्रेट, क्लोराइड और आर्सेनिक प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। इसी कारण पोलियो, पीलिया, कॉलरा, टाइफाइड, दस्त, पेट की बीमारियों, किडनी की समस्या, सांस संबंधी रोग, हड्डियों से संबंधित रोग हो सकते हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।

‘आज पूरे भारत में पानी की कमी महसूस की जा रही है। देश की कई छोटी-बड़ी नदियाँ सूख गई हैं। भूजल का स्तर निरंतर नीचे सरकता जा रहा है। कई जगहों पर भूजल का इस कदर दोहन किया गया है कि वहाँ आर्सेनिक और नमक तक निकल आया है। पहले वर्षा का पानी पोखरों व तालाबों में इकट्ठा होता था और वहाँ से धीरे-धीरे रिस कर भूजल के स्तर को बनाए रखता था। गाँवों में तालाब व पोखर आज भी मिल जायेंगे परंतु विकास की अंधी दौड़ में शहरों के पोखरों व तालाबों को नष्ट कर उस पर बहुमंजिली इमारतें खड़ी कर दी गयी। यही नहीं गाँवों में भी धीरे-धीरे पोखरों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।’

प्रदूषित जल और जल संकट

जल संकट के कई रूप हैं। हमारे पेयजल में कई कीट तथा वानस्पतिक नाशक घुलते जा रहे हैं। दुनिया में जल से संबंधित सभी समस्याओं में सबसे विकट समस्या उसके प्रदूषण की है। "संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार विश्व की एक चौथाई जनसंख्या को जिस घरेलू जल की पूर्ति की जा रही है वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।" इन समस्याओं को हल करने के लिए अक्सर ऐसे उपाय आजमाए जाते हैं जो अमेरिका तथा अधिकांश विकसित देशों में पहले ही असफल हो चुके हैं। वे लोग ऐसे बांध बना रहे हैं जिसके फायदे के बजाए नुकसान अधिक होता है। नासमझी भरे विकास तथा कृषि के कु-नियोजन से उपलब्ध कृषि भूमि में कमी आने के साथ ही दलदलीकरण, सीलन बढ़ेगी। अल्पविकसित देशों में जनसंख्या की तेज गति के कारण पानी की ये समस्याएँ स्थिति को और भी विकट बना रही हैं।

जलस्रोतों के अस्तित्व का संकट 

आज पूरे भारत में पानी की कमी महसूस की जा रही है। देश की कई छोटी-बड़ी नदियाँ सूख गई हैं। भूजल का स्तर निरंतर नीचे सरकता जा रहा है। कई जगहों पर भूजल का इस कदर दोहन किया गया है कि वहाँ आर्सेनिक और नमक तक निकल आया है। पहले वर्षा का पानी पोखरों व तालाबों में इकट्ठा होता था और वहाँ से धीरे-धीरे रिस कर भूजल के स्तर को बनाए रखता था। गाँवों में तालाब व पोखरे आज भी मिल जायेंगे, परंतु विकास की अंधी दौड़ में शहरों के पोखरों व तालाबों को नष्ट कर उस पर बहुमंजिली इमारतें खड़ी कर दी गयीं। यही नहीं गाँवों में भी धीरे-धीरे पोखरों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।

उद्योग और जल प्रदूषण

गाँवों का भी जल प्रदूषित हो गया है। किसानों ने अधिक उपज लेने के लिए 'रासायनिक उर्वरकों तथा कीटकनाशकों आदि का उपयोग तेजी से बढ़ा दिया है। वे जल प्रदूषण को जन्म दे रहे हैं। नगरीय कूड़े-कचरे, मल-मूत्र, प्लास्टिक और पॉलिथीन तथा विभिन्न उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थों को नदियों तथा अन्य प्राकृतिक जलस्रोतों में बहा देने से भारी मात्रा में जल प्रदूषण पैदा होता है। ये जल प्रदूषक कृषि, उद्योग तथा अन्य मानवीय क्रियाकलापों के द्वारा उत्पन्न हैं। जल औद्योगिक अपशिष्ट के कारण सबसे अधिक प्रदूषित होता है। कीटकनाशक, तेलशोधक, चर्म, रबर तथा प्लास्टिक, अल्कोहल, उर्वरक, कार्बनिक तथा अकार्बनिक रसायन तथा खाद्य प्रसंस्करण आदि उद्योग जल प्रदूषण के प्रमुख कारक है। इससे गाँव का जल और प्रदूषित हो जाता है, गाँवों में पेयजल मुख्यतः  जलस्रोतों से ही प्राप्त किया जाता है। शहरों में तो इस भूमिगत जल को साफ, उपचारित और क्लोरीनीकृत करके इसका लोग उपयोग करते हैं। लेकिन गाँव के लोग ऐसा नहीं करते वे इसे सीधे ही पी जाते हैं। भूमिगत जल प्रदूषण का सर्वाधिक बुरा दुष्प्रभाव ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। सड़े-गले पौधों, पशुओं के अवशेष, मृत शरीर, नाइट्रेटयुक्त उर्वरकों और मल-मूत्र का नाइट्रेट भी वर्षा जल में घुलकर रिसते-रिसते भूमिगत जल तक पहुँच जाता है। इस भूमिगत जल का उपयोग ग्रामीण लोग करते हैं तो उन्हें कई प्रकार के रोग हो जाते हैं। मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ प्रदूषित जल का दुष्प्रभाव पेड़-पौधों पर भी पड़ता है।आज जल गंभीर रूप से प्रदूषित हुआ है। आज अमृत समझा जाने वाला पानी विषैला होने लगा है। आज हमारे देश के अनेक राज्यों के भू-जल में आर्सेनिक, क्लोराइड, कैडमियम, लैड व पारा जैसे सूक्ष्म तत्वों की मात्रा निरंतर बढ़ रही है। आर्सेनिक की बढ़ी मात्रा के कारण त्वचा कैंसर और किडनी फेल होने का खतरा रहता है। भारत की अधिकांश छोटी-बड़ी नदियाँ प्रदूषण की चपेट में आ गई हैं। सर्वाधिक पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी अत्याधिक प्रदूषित हो चुकी है। जल प्रदूषण की समस्या एक जटिल समस्या है। जल प्रदूषण का दुष्प्रभाव केवल मनुष्य ही नहीं अपितु पशुओं, मछलियों, चिड़ियों पर भी पड़ता है। प्रदूषित जल न पीने योग्य, न कृषि के लिए और न उद्योगों के अनुकूल होता है। पेयजल का संकट किस कदर बढ़ता जा रहा है। इसका नमूना है बोतलबंद पानी का फलता-फूलता संसार। नगरों तथा महानगरों में बोतलबंद पीने के पानी की बिक्री आम होती जा रही है। रेलवे स्टेशनों, रेल के डिब्बों, होटलों, बस अड्डों और दर्शनीय स्थलों पर तो यह आम बात है। बोतलबंद पानी की शुद्धता पर भी कई प्रश्न उपस्थित होने लगे हैं। 

पीने लायक पानी की मारामारी

आज गाँव, नगर, शहरों में पीने लायक पानी के लिए सुबह से ही जगह-जगह लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलती हैं। पानी के लिए आम जनता के बीच हिंसात्मक घटनाएँ होने की खबरें टी.बी. और समाचार पत्रों में देखने को मिलती हैं। आज पानी की समस्या केवल शहरों में ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी है। आज देश में खाने के लिए अनाज तो है लेकिन पीने के लिए शुद्ध पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। 

जीवन में जल का विशेष महत्व है। जल के अभाव में जीवन संभव नहीं है। जल की कमी के कारण मृत्यु हो जाती है। जल जीवन का आधार है। आज पूरा विश्व जल से जुड़ी विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है। एक क्षेत्र में जहाँ पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, वहीं दूसरे क्षेत्र में अत्यधिक बारिश, बादल फटने और कुछ अन्य कारणों से बाढ़ का संकट पैदा हो गया है। आज पानी का संकट केवल शहरों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी है। देश में खाने के लिए अनाज है, लेकिन पीने के लिए शुद्ध पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है।

लेखक संपर्क: डॉ. पंडित बन्ने, भारत महाविद्यालय, जेऊर (म. रेलवे), तहसील-करमाला,
जिला - सोलापुर - 413 202 (महाराष्ट्र), मो.नं. 9657240554

स्रोत - जलचेतना, खंड 8, अंक 2, जुलाई 2019

 

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