"हर घर संचालन और रखरखाव की लागत को कवर करने के लिए प्रति माह बानवे रुपये का भुगतान करेगा"।
मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के धबोती गाँव की ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के एक सदस्य के इस कथन ने मुझे वाकई ही विचलित कर दिया। यहाँ मैं उस प्रक्रिया को समझने की कोशिश कर रहा था जिसके द्वारा उन्होंने अपनी ग्राम कार्य योजना (वीएपी) बनाई थी, लेकिन इस समिति ने वार्षिक आधार पर संचालन और रखरखाव की लागत और प्रति घर की लागत की भी गणना की थी। योजना के कार्यान्वयन से पहले ही सभी शुरू हो गए थे। वे सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग (पीएचईडी) द्वारा लागत अनुमान सहित बनाई गई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट से स्पष्ट रूप से परिचित थे।
टांडा खेड़ा दसई, धार जिले में गर्मियों के महीनों में पानी की उपलब्धता के बारे में अनिश्चितता और महिलाओं पर पानी भरने पर बोझ स्पष्ट था। पूरे वर्ष भर उनके घर पर पानी, उनके जीवन और स्वास्थ्य को काफी बदल सकता है, और फलस्वरूप प्रत्याशा की श्रेष्ठ भावना मूर्त थी। उन्होंने अपनी योजना के लिए पानी के स्रोत के रूप में एक कुएं की पहचान की थी। हालांकि घरों के पास बोर-वेल होने की संभावना मौजूद थी, फिर भी उन्होंने अपने स्रोत के रूप में कुएं की पहचान की थी। मेरी जिज्ञासा बढ़ी और हमने इस कुएँ का दौरा किया। खूबसूरती से अवस्थित, एक बड़े मिट्टी के बांध से ठीक आगे और नीचे पानी से भरा हुआ तथा उसे कई दिशाओं से पानी स्पष्ट रूप से प्रॉप्त हो रहा था।
ग्रामीणों की बात सुनने और उनको अपनी जरूरतों के लिए योजना बनाने की अनुमति देने में ही समझदारी थी। दोनों उदाहरणों में, यह स्पष्ट था कि ग्राम जल और स्वच्छता समिति (वीडब्ल्यूएससी) सक्रिय थी और उनकी योजना भागीदारी प्रक्रियाओं का परिणाम थी। हालाँकि, पीएचईडी की सहायता और भागीदारी तथा गैर-लाभकारी संगठनों की भूमिका (सीहोर में समर्थन और धार में उन्नत अनुसंधान और विकास केंद्र) और उनके समन्वित प्रयास स्पष्ट थे।
मध्यप्रदेश को उम्मीद है कि जनवरी 2021 के मध्य तक इसी तरह की भूमिका निभाने के लिए समर्थन एजेंसियां (आईएसए) मौजूद होंगी। वीडब्ल्यूएससी जल जीवन मिशन की सफलता के लिए केंद्रीय हैं और गाँव की कार्य योजना उनकी आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। चूंकि इन समितियों को अपनी जल योजनाओं का प्रबंधन करना चाहिए, इसलिए डिजाइन, बजट और योजना के लिए अनिवार्यताएं अलग-अलग होनी चाहिए।
यदि किसी योजना की लागत अधिक है, तो ग्रामीणों को अधिक योगदान देना होगा। यदि यह योजना जटिल है, तो बाद में इसमें प्रबंधन की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसे हर घर में पानी उपलब्ध कराने के लिए एक इंजीनियरिंग चुनौती के रूप में ही सोचना पर्याप्त नहीं है यह आसान भाग है। प्रक्रिया के हर चरण का मार्गदर्शन करने वाले प्राथमिक प्रश्न हैं क्या यह वीडब्ल्यूएससी को मजबूत और सशक्त करेगा और क्या इससे उनके लिए काम करना और उसे बनाए रखना आसान हो जाएगा।
पीएचईडी और आईएसए के सामने चुनौती केवल एक योजना को लागू करने या एक योजना के निर्माण को सुविधाजनक बनाने मात्र ही नहीं है। संस्थागत क्षमता में निवेश के बिना बुनियादी ढांचे में निवेश विफल हो जाएगा। चुनौती यह है कि हर गाँव में जीवंत संस्थाएँ बनाने में मदद की जाए,जो पूरे साल भर हर घर में पानी पहुँचाने के लिए अपनी पेयजल व्यवस्था की योजनाएं, डिज़ाइन तैयार कर सकें उनके स्वामित्व का भार ले और उनका प्रबंधन कर सकें।
स्रोत- जल जीवन संवाद, दिसंबर, 2020
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