विश्व बैंक तथा संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक 21 वर्ष में पानी की खपत दोगुनी हो जाती है। इन आंकड़ों से यह साफ हो जाता है कि अगले कुछ वर्षों के दौरान ही पानी की कमी एक भयावह रूप धारण कर लेगी। इससे बचने के लिये यदि हमने आज से ही पानी के उपयोग के प्रति समझदारी नहीं दिखाई तो इस बात की पूरी संभावना है कि कल हम सभी पानी की एक-एक बूँद के लिये तरह जाएँगे। पानी की घटती उपलब्धता ने हमारे सामने ही जल-संकट उत्पन्न कर दिया है। इस संकट के समाधान के लिये पूरी दुनिया में नए-नए जलस्रोतों की तलाश होने लगी है। लेकिन हमें यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि नए जलस्रोतों की तलाश समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। इसके लिये हमें पानी की बचत करने तथा इसे सुरक्षित रखने के उपाय करने होंगे।
विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि जिस प्रकार 20वीं सदी में खनिज तेल के लिये संघर्ष हुआ था, ठीक उसी प्रकार 21वीं सदी में यदि युद्ध हुआ तो वह जलस्रोतों पर प्रभुत्व के लिये लड़ा जाएगा। पानी के नाम पर आज बड़े-बड़े बाँधों, नदी जल परियोजनाओं एवं जल ग्रिड तैयार करने की बात की जाती है, लेकिन जिस तेजी से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है क्या उसी तेजी के साथ पानी के संबंध में तैयार योजनाओं को समय पर पूरा भी किया जाता है? भविष्य में पानी की मांग को ध्यान में रखते हुए क्या हमने कोई कारगर रणनीति तैयार की है जिससे हम सबकी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें?
हम सभी जानते हैं कि उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर सकारात्मक नहीं हैं। पानी की कमी आज एक समस्या है जो बहुत जल्द भयानक संकट का रूप लेन वाली है। पानी की कमी के लिये सरकार को दोष देने की हमारी आदत पड़ गई है, जबकि आवश्यकता से अधिक पानी की खपत करने के लिये हम सभी बराबर के दोषी हैं। आम धारणा के विपरीत प्रकृति ने हमारे देश को प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध कराया है। इस संबंध में निम्नलिखित आंकड़े हमारी आँखें खोलने के लिये पर्याप्त होने चाहिए-
1. वर्ल्ड रिसोर्सस इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के अनुसार पानी के मामले में भारत एक संपन्न देश है। भारत की गिनती 10 सबसे जल-संपन्न देशों में की जाती है।
2. भारत में पूरे विश्व का 2.45 प्रतिशत भूभाग तथा 4.5 प्रतिशत पानी उपलब्ध है।
3. भारत में प्रतिवर्ष औसतन 1,170 मिलीमीटर वर्षा होती है जो संयुक्त राज्य अमेरिका की औसत वर्षा से लगभग 6 गुना अधिक है।
4. जल के वार्षिक अवक्षेपण (Annual Precipitation) की दृष्टि से दक्षिण अमेरिका के बाद भारत दूसरे स्थान पर आता है।
5. विश्व में सर्वाधिक वर्षा भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित चेरापूँजी में होती है जहाँ अधिकतम वर्षा 2000 से.मी. तक आंकी गई थी।
6. बाँधों की संख्या की दृष्टि से भारत पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर है जहाँ 4291 बड़े बाँध बनाए जा चुके हैं। सबसे अधिक बाँध संयुक्त राज्य अमेरिका में बनाए गए हैं।
अब प्रश्न उठता है कि जब जल के मामले में हमारा देश इतना संपन्न है तो फिर इसकी कमी एक बड़ी समस्या क्यों बनती जा रही है? पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक, तमिलनाडु के बीच पानी को लेकर खींचतान क्यों मची हुई है? पानी को लेकर चारों ओर जो उठा-पटक हो रही है, उसके लिये मुख्य रूप से दो बातें जिम्मेदार हैं।
1. पानी का असमान वितरण
2. पानी के भूगर्भीय भंडार का दुरुपयोग
पानी के असमान वितरण के कारण देश की अधिसंख्य जनसंख्या को पानी की कमी और पानी से जुड़ी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हमारे देश में कुल जल संपदा का 29 प्रतिशत उत्तर-पूर्वी राज्यों में उपलब्ध हैं। यह हमारे देश के क्षेत्रफल का केवल 6 प्रतिशत है और हमारी आबादी का केवल 3 प्रतिशत ही इन राज्यों में निवास करता है लेकिन यहाँ जल का बाहुल्य है। दूसरी ओर, दक्षिण और पश्चिम के अधिकतर राज्यों में मानव के उपयोग की दृष्टि से साफ पानी की भारी कमी है। लेकिन पानी के संबंध में विशेषज्ञों की जो सबसे बड़ी चिंता है वह इसके दुरुपयोग से संबंधित है जिसके कारण आधुनिक युग में जल-संकट लगातार गहराता जा रहा है।
जल-संकट के समाधान हेतु देश-विदेश के उदाहरणों से हमें अपने लिये उपाय खोजने होंगे। पिछले कुछ वर्षों के दौरान जल की कमी से जूझते अधिकांश देशों ने जल-संरक्षण की दिशा में कई सार्थक प्रयास किए हैं। हमारे देश में जल-संरक्षण हेतु राजीव गांधी पेयजल मिशन चलाया जा रहा है जिसके अंतर्गत जल संसाधन मंत्रालय तथा वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की विभिन्न प्रयोगशालाओं को सम्मिलित किया गया है। इसमें अधुनातन विधियों के द्वारा पानी को उपयोग लायक बनाने की तकनीक का विकास करने के प्रयास किए जा रहे हैं। साफ पानी की कमी वाले क्षेत्रों में लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराना इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य है। जल को शुद्ध बनाने के लिये वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित विभिन्न आधुनिक तकनीक जैसे झिल्ली तकनीक, आयन तकनीक, विद्युत अपोहन तकनीक आदि का विकास किया गया है।
हमारे देश में महासागर तथा समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों में पेयजल की कमी है तथा लोगों को खारे पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। गुजरात के तटवर्ती इलाकों में भूमिगत जल की अंधाधुंध निकासी के परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में समुद्र का खारा पानी घुसता चला जा रहा है। अनुमान है कि सौराष्ट्र के 1100 कि.मी. लंबे तटवर्ती इलाके के 60 प्रतिशत क्षेत्र में खारे समुद्री पानी की घुसपैठ हर साल आधे से एक किलोमीटर की खतरनाक दर से बढ़ रही है। इसके कारण बचा-खुचा भूमिगत जल भी मानवीय उपयोग के लिये लायक नहीं रह गया है और समूचा क्षेत्र तेजी से बंजर होता जा रहा है। भूमिगत जल-भंडार में कमी का सामना कर रहे बहुत से देश आज समुद्री जल को शुद्ध करके पेयजल के रूप में इसका उपयोग कर रहे हैं।
देश में साफ जल की समस्या को देखते हुए महासागर विकास विभाग लोगों को मीठा जल उपलब्ध कराने की कई परियोजनाओं को प्रायोजित कर रहा है। इसमें कई सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी संस्थान/प्रयोगशालाएं अपना योगदान दे रही हैं। केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसएमसीआरआई), भावनगर पिछले पच्चीस वर्षों से जल का खारापन को दूर करने तथा जल के शुद्धीकरण से संबंधित परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, पश्चिम बंगाल एवं राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल-शोधन संयंत्र लगाए गए हैं। जो 1000-5000 लीटर स्वच्छ जल प्रतिघंटा की दर से जलापूर्ति करने में सक्षम सिद्ध हुए हैं। गोवा स्थित राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआईओ) ने खारे जल को पीने योग्य बनाने हेतु तरंग ऊर्जा का उपयोग करने की एक आंतरिक परियोजना प्रारंभ की है जिससे प्रतिदिन 10,000 लीटर जल मिलता है।
भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। 1986 में राष्ट्रीय पेयजल मिशन नामक पेयजल प्रौद्योगिकी मिशन आरंभ किया गया था जिसे 1991 में राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन का नाम दिया गया। इसके प्रमुख उद्देश्यों के अंतर्गत सभी गाँवों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना एवं स्थानीय समुदायों को स्वच्छ पेयजल के स्रोतों के रख-रखाव में सरकारी सहायता देना सम्मिलित है। सरकार द्वारा तैयार त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण बस्तियों में जलापूर्ति करना, जल-स्रोतों/व्यवस्था की निर्भरता सुनिश्चित करना और जलसंभरण विधि से जल की गुणवत्ता एवं इसकी निगरानी को संस्थागत बनाने संबंधी समस्याओं से निपटना है। स्वच्छ जल की आपूर्ति की मुहिम को और मजबूत करने लिये सरकार द्वारा दिसम्बर 2002 में स्वजलधारा कार्यक्रम तथा फरवरी 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
वर्तमान युग में जल-संरक्षण के उद्देश्य से सरकार की ओर से तैयार की गई योजनाओं एवं इनके कार्यान्वयन संबंधी कार्यक्रमों का अपना महत्व है। इन कार्यक्रमों एवं योजनाओं के माध्यम से जल-संसाधन की सुरक्षा को सुनिश्चित करना आसान होता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने देश भर में वर्षा के पानी को इकट्ठा करने और भूमिगत जल स्तर में सुधार लाने के लिये 24,500 करोड़ रुपये का मास्टर प्लान तैयार किया है। इस महायोजना के अंतर्गत ऐसे दो लाख पच्चीस हजार कृत्रिम ढाँचों का निर्माण सम्मिलित है जो वर्षा जल को रोककर भूगर्भ में पहुँचाने का काम करेंगे तथा शहरों में छतों पर संग्रह करने के ढाँचों का निर्माण भी किया जाएगा। इस महायोजना को दस वर्षों की अवधि में पूरा करने का प्रस्ताव है।
उत्तर भारत के जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल और उत्तर प्रदेश में विश्व बैंक की मदद से एक एकीकृत विकास योजना चलाई जा रही है। कांडी परियोजना के नाम से प्रसिद्ध इस परियोजना के अंतर्गत पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में वर्षा के पानी को बहकर जाने से रोकने के लिये उल्लेखनीय कार्य किया गया है। इस योजना में आम लोगों को जल संरक्षण के लिये प्रेरित किया जा रहा है तथा पानी को बचाने के लिये जरूरी बातें बताई जा रही हैं। इस परियोजना को ही इसका श्रेय जाता है कि कल तक पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में आज भरपूर पानी उपलब्ध है।
वर्तमान युग में जब जल से संबंधित समस्याएं बढ़ रही हैं, तो मानव-जाति की सुरक्षा की दृष्टि से हम सबका यह कर्तव्य बनता है कि पानी के प्रदूषण एवं इसके दुरुपयोग को रोकने के हर संभव प्रयास करें। हरी-भरी पृथ्वी को बचाने के लिये जरूरी है कि हम सभी मिलकर पानी की बचत से संबंधित उपायों को अपने दैनिक जीवन में अपनाएं। आज के इस संक्रमण काल में प्रत्येक भारतवासी का यह कर्तव्य है कि अपने घर में ही भूमिगत टैंक बनाकर उसमें बरसात के पानी को एकत्र करें। इस प्रकार, अपने स्तर पर यदि प्रत्येक भारतवासी एक जलागार का निर्माण करे तो प्रत्येक परिवार में सुख-संपन्नता आ सकती है और मानव जाति के कल को सुजलाम्-सुफलाम बनाया जा सकता है। हमें याद रखना होगा कि जल तो हमारा कल है।
लेखक परिचय
संजय चौधरी
जे एंड के- 16बी, दिलशाद गार्डन, दिल्ली-110095
/articles/jaivana-paradaayaka-jala-aura-hamaarai-jaimamaedaarai