जीवन की जीत

राजाराम रावत ‘पीड़ित’ पहाड़ी (चिरगांव)बहती जाती थी वेत्रवती, उर विकल किंतु करती कल-कल।
कहती जाती थी वेत्रवती, जागृत जन से चल-चल, चल-चल।।
गति रोक न पल-भर को अपनी, मत कर विराम की तनिक चाह।
जीवन बस तब तक जीवन है, जब तक है उसमें कुछ प्रवाह।।
बनती-मिटती लहरें मानों, बोधित करती है बार-बार।
बनने-मिटने को मत समझो, जीवन की अपनी जीत-हार।।
जीवन की जीत सत्य केवल, जीवन-हित, मरना मन उदार।
मरने के हित जीवित रहना, जीवन की सबसे बड़ी हार।।

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