जीवन बचाना है तो यमुना बचाओ

Yamuna
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विकास की बुलंदियों की ओर उछलते देश में अमृत बांटने वाली यमुना आज खुद जहर पीने को अभिशप्त है। यमुना की दुर्दशा तो और भी अधिक विचारणीय है, कारण- यह देश के शक्ति-केंद्र दिल्ली में ही सबसे अधिक दूषित होती है। यमुना की पावन धारा दिल्ली में आकर एक नाला बन जाती है। आंकड़ों और कागज़ों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उस धन से एक समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी। ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइड्स और लोहा, जिंक आदि धातुएं भी नदी में पाई गई हैं।

यमुना सफर का सबसे दर्दनाक पहलू इसकी दिल्ली-यात्रा है। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रति यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3,297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूषण का स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुँचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता है। मथुरा से कोई सात-आठ हजार लोग दिल्ली की तरफ कूच कर चुके हैं ताकि यमुना की पवित्रता सुनिश्चित की जा सके। ये लोग 10 मार्च को दिल्ली पहुंच जाएंगे। कुछ अराजक लोग भी इस आंदोलन में जुड़ गए जिन्होंने पथराव व ट्रेनों में तोड़-फोड़ भी की। स्वतः स्फूर्त अभियान जन-जागरूकता का अच्छा प्रयास तो है लेकिन इससे यमुना की गंदगी मिट पाएगी ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए। सरकार में बैठे लोग नदी के सौंदर्यीकरण और उस पर लंबे-चौड़े बजट से नदी के पुनर्जन्म की योजना बनाते हैं जबकि हकीक़त यह है कि यमुना को पैसे से ज्यादा समझकर-रखरखाव की जरूरत है। एक सपना था कि कॉमनवेल्थ गेम्स यानी अक्टूबर-2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह देश की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी। लेकिन अब सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं, दावा है कि यमुना साफ तो होगी लेकिन समय लगेगा। कॉमनवेल्थ गेम्स तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी से लबरेज यमुना के तट पर ही संपन्न हो गए। याद करें 10 अप्रैल, 2001 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 मार्च, 2003 तक यमुना को दिल्ली में न्यूनतम जल गुणवत्ता प्राप्त कर लेनी चाहिए ताकि यमुना को ‘मैली’ न कहा जा सके। पर ग्यारह सालों के बाद आज दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली नदी में ऑक्सीजन का नामोनिशान ही नहीं रह गया है यानी पूरा पानी जहरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है।

जहां-जहां से नदियां निकलीं, वहां-वहां बस्तियां बसती गईं और इस तरह विविध संस्कृतियों, भाषाओं, जाति-धर्मों का भारत बसता चला गया। तभी नदियां पवित्र मानी जाने लगीं- केवल इसलिए नहीं कि इनसे जीवनदायी जल मिल रहा था बल्कि इसलिए भी कि इन्हीं की छत्र-छाया में मानव सभ्यता पुष्पित-पल्लवित होती रही। गंगा और यमुना को भारत की अस्मिता का प्रतीक माना जाता रहा है। लेकिन विडंबना है कि विकास की बुलंदियों की ओर उछलते देश में अमृत बांटने वाली यमुना आज खुद जहर पीने को अभिशप्त है। यमुना की दुर्दशा तो और भी अधिक विचारणीय है, कारण-यह देश के शक्ति-केंद्र दिल्ली में ही सबसे अधिक दूषित होती है। यमुना की पावन धारा दिल्ली में आकर एक नाला बन जाती है। आंकड़ों और कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उस धन से एक समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी।

ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी स्तर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइड्स और लोहा, जिंक आदि धातुएं भी नदी में पाई गई हैं। एम्स के फॉरेंसिक विभाग के अनुसार, 2004 में 0.08 मिग्रा. आर्सेनिक की मात्रा पाई गई जो वास्तव में 0.01 मिग्रा. होनी चाहिए। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यमुना का सर्वे करते हुए आर्सेनिक की मात्रा को नज़रअंदाज़ कर दिया। पानी में मौजूद फास्फेट और नाइट्रेट का भी कोई जिक्र नहीं किया गया है। ऊपरी यमुना का पानी तो किसी लायक नहीं ही रहा। लेकिन यह विडंबना ही है कि यमुना की निचली धारा जहां बहती है, वहां के लोग (मथुरा, आगरा, इलाहाबाद आदि) पीने के पानी के लिए यमुना के पानी पर ही निर्भर हैं।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने जो समय सीमा तय की थी उसके सामने सरकारी दावे थक हार गए। लेकिन अब भी नदी में ऑक्सीजन नहीं है। नदी को साफ करने के लिए बुनियादी ढांचे पर भी दिल्ली सरकार ने कितनी ही राशि लगा डाली, ‘यमुना एक्शन प्लान’ के माध्यम से भी योजना बनाई गई, पैसा लगाया गया। 2006 तक कुल 1188-1491 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है जबकि प्रदूषण का स्तर और ज्यादा बढ़ गया है। इतना धन खर्च होने के बावजूद भी केवल मानसून में ही यमुना में ऑक्सीजन का बुनियादी स्तर देखा जा सकता है।

अधिकांश राशि सीवेज और औद्योगिक कचरे को पानी से साफ करने पर ही लगाई गई। अगर दिल्ली जलबोर्ड का 2004-05 का बजट प्रस्ताव देखें तो इसमें 1998-2004 के दौरान 1220.75 करोड़ रुपए पूँजी का निवेश सीवेज संबंधी कार्यों के लिए किया था। इसके अतिरिक्त दिल्ली में जो उच्चस्तरीय तकनीकी यंत्रों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनकी लागत भी 25-65 लाख प्रति एमआईडी आंकी गई है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सीवेज साफ करने के लिए व्यय की गई राशि पानी के बचाव और संरक्षण पर व्यय की गई राशि से 0.62 गुना ज्यादा है। हिमालय पर्वत श्रृंखला की एक चोटी है बंदरपुच्छ। यह उत्तराखंड के टिहरी-गढ़वाल जिले में आती है। 20,700 फुट ऊंची यह चोटी सुमेर भी कहलाती है। इसका एक भाग है-कलिंद। यही यमुना का उद्गम स्थल है। तभी यमुना को कालिंदी भी कहते हैं। यहां से आठ किलोमीटर नीचे उतर कर यमुना यमुनोत्री की घाटी में आती है। इस घाटी से चांदी-सी चमकती दो पतली धाराएं पहाड़ से नीचे उतरती हैं जो मिलकर विशाल यमुना बन जाती हैं। यह घाटी 10,800 फुट ऊंचाई पर है।

सूर्य की बेटी होने के कारण ‘सूर्य तनया’, यमराज की बहन होने के कारण ‘यमी’, सांवला रंग होने के कारण ‘काली-गंगा या असित’ कहलाई यमुना जब देहरादून की घाटी में पहुँचती है तो वहां कालसी हरीपुर के पास उसमें टौंस (तमसा) आ मिलती है। शिवालिक पहाड़ों में तेजी से घूमते-घामते यमुना फैजाबाद में मैदानों पर आ जाती है। फिर इससे कई नहरें निकलती हैं। पहले-पहल जिन नदियों पर नहरें बनीं, उनमें यमुना एक है। 600 साल पहले दिल्ली के शासक फिरोजशाह तुगलक ने फैजाबाद के पास यमुना में एक नहर खुदवाई थी। पश्चिमी यमुना नहर के नाम से मशहूर यह नहर अंबाला, हिसार, करनाल आदि जिलों के खेतों को सींचती है। यह नहर कुछ सालों बाद बंद हो गई। 200 साल बाद अकबर ने इसे ठीक कराया क्योंकि उससे हांसी-हिसार के शिकार गाहों को पानी पहुंचाना था। शाहजहां इसकी एक शाखा दिल्ली तक ले गया था। 50 साल के बाद इसमें फिर खराबी आ गई थी। सन 1818 में लॉर्ड हेस्टिंग्स के निर्देश पर कप्तान क्लेन ने इसे फिर शुरू करवाया था।

कोई 200 साल पहले इससे दोआब नहर भी निकाली गई थी। इससे सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ जिलों को पानी मिलता है। यह भी दिल्ली के करीब यमुना में आकर मिलती है। यह नहर भी बार-बार बिगड़ती और सुधरती रही। इसे पूर्वी यमुना नहर भी कहते हैं। नहरों के कारण यमुना का बहाव धीमा हो जाता है। बहुत दूर तक यह हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा निर्धारित करती है। एक ओर पानीपत, रोहतक जिले हैं तो दूसरी ओर मेरठ, मुज़फ़्फरनगर आदि। और फिर यमुना आती है दिल्ली में। यह इस नगर के कई बार उजड़ने-बसने, मुल्क का आज़ादी की जंग और विकास की मूक साक्षी बनती है। यहां से ओखला होते हुए यमुना आगे बढ़ती है तो दनकौर में हिंडन नदी इसके साथ हो लेती है। सनद रहे कि हिंडन भी गाजियाबाद से उपजे प्रदूषण से हलकान है और इसके पानी में अब मछलियां पैदा होनी भी बंद हो गई हैं। एक बार फिर हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा बनी इस नदी के एक तरफ फ़रीदाबाद होता है तो दूसरी ओर बलंदशहर, नोएडा जिला। अब यमुना का पड़ाव होता है कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा। यहां से अब तक दक्षिण दिशा की ओर बहाव वाली नदी की धारा पूरब की ओर हो जाती है। ताजमहल को छूती हुई यमुना की अगली मंजिल इटावा है। रास्ते में बेन गंगा और करवान इसकी गोद में समा जाती हैं। चंबल और सिंध के मिलने से इसकी जल-निधि अथाह हो जाती है। बुंदेलखंड के बांदा के चिल्ला घाट पर इसमें केन नदी आकर मिलती है। गंगा और यमुना हिमालय से साथ-साथ चलती हैं लेकिन जल्दी ही उनकी राहें जुदा हो जाती हैं। 1,065 किलोमीटर के सफर के बाद यमुना इलाहाबाद या प्रयाग में एक बार फिर अपनी सखी गंगा से मिल जाती है।

यमुना के इस सफर का सबसे दर्दनाक पहलू इसकी दिल्ली-यात्रा है। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रति यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3,297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूषण का स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुँचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी मवेशियों के लिए भी अनुपयुक्त कहलाता है। हिमालय के यमुनोत्री ग्लेशियर से निर्मल जल के साथ आने वाली यमुना की असली दुर्गति दिल्ली में वजीराबाद बांध को पार करते ही होने लगती है। इसका पहला सामना होता है नजफगढ़ नाले से, जो कि 38 शहरी व चार देहाती नालों की गंदगी समेटे वजीराबाद पुल के पास यमुना में मिलता है। दिल्ली की कोई डेढ़ करोड़ आबादी का मल-मूत्र व अन्य गंदगी लिए 21 नाले यमुना में मिलते हैं, उनमें प्रमुख हैं- मैगजीन रोड, स्वीयर कॉलोनी, खैबर पास, मेंटकाफ हाउस, कुदसिया बाग, यमुनापार नगरनिगम नाला, मोरीगेट, सिविल मिल, पावर हाउस, सैनी नर्सिंग होम, नाला नं. 14, बारापुल नाला, महारानी बाग, कालकाजी और तुगलकाबाद नाला। आगरा के चमड़ा कारखाने व मथुरा के रंगाई कारखानों का जहर भी इसमें घुलता है। आंकड़ों से पता चलता है कि मथुरा में यमुना के जल में मैगनीज तत्व की मात्रा मानक से बहुत अधिक है, मानकों के अनुसार जल में मैगनीज की मात्रा अधिकतम 0.3 मिग्रा. प्रति लीटर होनी चाहिए परंतु केसी घाट )वृंदावन) से लेकर माधव घाट (मथुरा) तक यह मात्रा 0.5 से 1.3 मिग्रा प्रतिलीटर पाई गई है जो मानक से अधिक है।

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