जीवन और आजीविका से जुड़ा है नर्मदा का सवाल

Save Narmada
Save Narmada

आज से होगी आरम्भ पदयात्रा, राजघाट में सत्याग्रह
तकरीबन प्रत्येक सभ्यता किसी नदी घाटी या नदी के समांतर विकसित हुई हैं। नर्मदा घाटी की सभ्यता के साथ भी यही हुआ है। इसलिए यहाँ के निवासी अपने परम्परागत निवास को छोड़ना नहीं चाहते और किसी भी जबरदस्ती का प्रतिकार करते हैं। सरदार सरोवर परियोजना का प्रतिकार का संघर्ष पिछले तीस वर्षों से नर्मदा बचाओ आंदोलन के रूप में चल रहा है। सरदार सरोवर बाँध से बने जलाशय की डूब में हर जगह ऐसे लोग हैं जहाँ विस्थापन तथा पुर्नवास के संघर्ष को लेकर मुकदमा दायर नहीं हुआ हो। विस्थापित होने वाले समुदाय में किसान, आदिवासी, खेतिहर मजदूर, छोटे व्यापारी शामिल हैं। इनके जीवन और उससे जुड़े जमीन और आजीविका का सवाल महत्त्वपूर्ण है।

इसी संदर्भ में नर्मदा और उसके लोगों के बचाव के लिए तीस वर्षों का संघर्ष: जीवन, चुनौतियाँ और आगे का रास्ता के संदर्भ में कॉन्सटिट्यूसन क्लब में राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में कई वर्तमान और पूर्व सांसदों सहित सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों, कलाकारों, फिल्म निर्माताओं, लेखकों, तकनीकी विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों, शिक्षाविदों और युवाओं, आदिवासियों, किसानों, मछुआरों, भूमिहीनों ने हिस्सा लिया और 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई 17 मीटर और बढ़ाकर 138.68 मीटर तक पहुँचाने का आदेश के खिलाफ एकजुटता का इजहार किया।

बाँध की ऊँचाई बढ़ने के बाद डूब क्षेत्र में आने के कारण करीब 2.5 लाख लोग अपने जीवन और आजीविका से वंचित हो जायेंगे और इसके साथ ही एक स्थापित सभ्यता के इतिहास का अंत हो जायेगा।

इस सम्मेलन में लाखों लोग जिनका पुनर्वास बाकी है, क्या उनकी सारी सम्पत्तियाँ, संस्कृति और पर्यावरण डूब जायेंगे? क्या होगा इन हजारों परिवारों का? इतनी पुरानी सभ्यता के विनाश के लिए इस राष्ट्र को कितना मूल्य चुकाना पड़ेगा और क्या इसकी क्षति-पूर्ति और राहत कार्य कानून के अनुसार हो पायेंगे? बड़े स्तर पर मानवीय अधिकारों के उल्लंघन और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए कब और कैसे राज्य और उसकी संस्था को जिम्मेदार बनाया जायेगा? इस विशाल परियोजना पर 90,000 करोड़ रूपये तक जा चुका है, उसका लाभ कहाँ तक गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के जरुरतमंदों तक पहुँच पायेगा? जैसे सवालों पर गहन मंथन किया गया।

इस तथाकथित विकास के दौर में जहाँ एक तरफ ‘अच्छे दिन’ और दूसरी तरफ सामाजिक और पर्यावरणीय मामलों पर चिंता बढ़ती जा रही है। भाकपा के सांसद कामरेड डी राजा, माकपा के सांसद रागीश, श्री स्वामी, पूर्व सांसद हन्नान मोल्लाह ने इस सवाल पर संसद से लेकर सड़क तक आंदोलन करने, जनसमर्थन जुटाने की घोषणा की। इनलोगों ने प्रधानमंत्री के जनविरोधी नीति की भ्रत्सर्ना की। साथ ही प्रधानमंत्री से कहा कि वे कानून के दायरे में काम करें।

लोगों ने घाटी से प्रभावित लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के बिना, विस्थापन के बाद क्या होता है पर प्रकाश डाला। चिखाल्डा गाँव की सनोवर बी ने महिलाओं की बुरी स्थिति के संदर्भ को रखा और आजीविका खत्म होने के दर्द को बयां किया। तीन राज्यों मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के प्रतिनिधियों ने तीस वर्षों के संघर्ष और विस्थापन से उत्पन्न सांस्कृतिक विघटन के सवालों को रखा। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, एडमिरल रामदास और पूर्व जस्टिस राजेन्द्र सच्चर ने जाना कि नर्मदा की तरह देश के दूसरे हिस्से में क्या हो रहा है। इनलोगों ने आश्वासन दिया कि वे हर सम्भव मंचों पर इन मुद्दे को उठाएँगे।

सम्मेलन के शुभारंभ में पूर्व सांसद हन्नान मोल्लाह, पर्यावरणविद् सौम्य दत्ता, वरिष्ठ समाजवादी नेता डॉ सुनीलम, ख्याति प्राप्त जलविशेषज्ञ राज कचरू ने फैक्ट फाइंडिग कमेटी की रिर्पोट को रखा। हजारों परिवार अभी भी सही मुआवजा और पुर्नवास से वंचित हैं और सरकारें इनकी समस्या के प्रति वर्षों से उदासीन है। विरोध के बावजूद सरदार सरोवर बाँध बन गया। मगर अब यह आंदोलन विस्थापितों को बसाने, उन्हें मुआवजा दिलाने के समर्थन और बाँध की ऊँचाई बढ़ाए जाने के विरोध में है। नर्मदा जल ट्रिब्यूनल विवाद जब तक खत्म नहीं होता तब तक बाँध में किसी भी तरह का बदलाव करना गैरकानूनी है। लेकिन केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बाँध की ऊँचाई 17 मीटर और बढ़ा दी। इस बाँध के बनने से तीन राज्यों के दो सौ पैंतालिस गाँवों के ढाई लाख लोग विस्थापित हुए।

गुजरात से आए रोहित प्रजापति, लखन मुसाफिर, सागर प्रजापति और कृष्णकांत ने गुजरात में सरदार सरोवर परियोजना विकास के नाम पर किए गए मजाक को उजागर किया और कहा कि जबकि 15 फीसदी पानी का ही उपयोग हो रहा है और 30 फीसदी चैनल बन चुके हैं तो फिर इतनी जल्दी क्यों ऊँचाई बढ़ाने को लेकर। सारा कुछ कम्पनी हित में किया जा रहा है, लाखों हेक्टेयर भूमि कमांड क्षेत्र से हटाया जा रहा है और लाखों लीटर जल बेचा जाएगा। दिल्ली विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के प्राध्यापक अपूर्वानंद ने कहा कि इस तरह के विकास के मॉडल से समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर कार्यक्रम प्रोजेक्ट एक बहुत बड़ा घोटाला था। इसमें बिना किसी अध्ययन के तीस बड़े और एक सौ सैंतिस मध्यम आकार के बाँध बनाए जाने की योजना बना ली गई। पर्यावरण पर इसके प्रतिकूल असर, वहाँ के आदिवासियों के विस्थापन का अध्ययन नहीं किया गया था। बाँध की ऊँचाई बढ़ने के बाद डूब क्षेत्र में आने के कारण करीब 2.5 लाख लोग अपने जीवन और आजीविका से वंचित हो जायेंगे और इसके साथ ही एक सभ्यता के इतिहास का अंत हो जायेगा।

एडमिरल रामदास ने कहा कि कानून इंसाफ से काफी दूर है और यह धीमी गति से काम कर रहा है।

भूमि और पर्यावरण कानून के विशेषज्ञ डॉ. संजय पारिख ने पूरी हकीकत आँकड़ों और वस्तु-स्थिति के साथ पेश करते हुए कहा कि सर्वोच्च अदालत के पूर्व के फैसले 2000 और 2005 के विरूद्ध बाँध की ऊँचाई बढ़ाने का निर्णय लिया गया, जबकि बाँध की वर्तमान ऊँचाई 122 मी. के नीचे भी हजारों किसानों, मजदूरों, मछुआरों का वैकल्पिक जमीन आजीविका एवं बसाहटों में सभी सुविधाओं से वंचित है। सरकार सोचती है कि संसाधन उसके अपने हैं। यह गलत है। संसाधन लोगों के हैं।

राष्ट्रीय महिला महासंघ की महासचिव एनी राजा, पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव, भूमि मामलों के विशेषज्ञ और भारत सरकार के पूर्व सचिव के.बी सक्सेना और सुभाष बोरकर ने वर्तमान बाँध के काम की वैद्यता पर सवाल उठाते हुए मानवाधिकार के उल्लंघन, पुर्नवास और मुआवजे के मामले पर प्रकाश डाला। सम्मेलन के समापन में फैसला लिया गया कि 6 अगस्त से पूरे घाटी में खालघाट से पदयात्रा आरम्भ की जाए और 12 अगस्त को राजघाट में सत्याग्रह किया जाए।
 

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