जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम में जीविकोपार्जन एक महत्वपूर्ण घटक है। जलछाजन क्षेत्र में महिलाओं, किसानों, कारीगरों के स्वयं-सहायता समूह निर्माण करने होते हैं। स्वयं-सहायता समूह के द्वारा आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने का सफल प्रयास किया जाता है। स्वयं-सहायता समूहों सदस्यों को आय सृजक गतिविधियों से जोड़ कर उनका आर्थिक विकास किया जाता है। ताकि उनकी आमदनी में इजाफा हो, वे अपने जीवन स्तर को सुधार कर बेहतर जीवन जी सकें। केंद्र सरकार के भूमि संसाधन विभाग द्वारा प्रायोजित समेकित जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम का क्रियान्वयन प्रत्येक राज्य के हरेक जिले में किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जल, जंगल, जमीन जन एवं जानवर के विकास एवं संवर्धन के साथ-साथ टिकाऊ जीविकोपार्जन एवं खेती का विकास करना है। इसके सफल क्रियान्वयन के लिए राज्य के ग्रामीण विकास विभाग में राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी बनायी गयी है।
हमारे राज्य झारखंड में झारखंड राज्य जलछाजन मिशन के माध्यम से राज्य के सभी जिलों में एक जलछाजन प्रकोष्ठ -सह-आकड़ा संग्रहण केंद्र बनाया गया है।जहां से विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों (पीआइए) के जलछाजन कार्यक्रम को संचालित किया जा रहा है। मैं जामताड़ा वन प्रमंडल जामताड़ा को स्वीकृत आइडब्ल्यूएमपी -3/2011-12 का सामाजिक उत्प्रेरक हूं। मैं पिछले पांच वर्षों से ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्य कर रहा हूं। सितंबर 2013 से मैं जलछाजन कार्यक्रम से जुड़ा।
यह पहला कार्यक्रम है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों (जल, जंगल, जमीन) की सुरक्षा व टिकाऊ जीविकोपाजर्न आधुनिक कृषि, लघु उद्यमों का विकास इत्यादि कार्य सारे मिल कर ग्रामीण समाज को सशक्त करने का काम करते हैं। हमारे जलछाजन क्षेत्र में कुल 122 गांव हैं, जहां 5506।11 हेक्टेयर उपचारित क्षेत्र है, इसमें 10512 परिवारों के 60108 लोगों के साथ जलछाजन कार्यक्रम को क्रियान्वित किया जा रहा है। पूरे जलछाजन क्षेत्र को 10 अनुजलछाजन क्षेत्र में बांटा गया है।
जलछाजन क्षेत्र के सामाजिक उत्प्रेरक का उत्तरदायित्व मिलने पर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं। मैं अपने इस उत्तरदायित्व के अनुरूप सर्वप्रथम संपूर्ण जलछाजन क्षेत्र के संबंधित गांवों का भ्रमण किया। लोगों से संपर्क कर उनसे कार्यक्रम के बारे में जानकारी साझा की। तदोपरांत विभागीय निर्देशानुसार जन सूचना निकाल कर प्रत्येक जलछाजन गांव में मौके पर उपस्थित समुदाय एवं ग्राम में प्रतिनिधियों को जलछाजन समिति के गठन के लिए बैठक की सूचना दी। साथ ही क्षेत्र के महत्वपूर्ण स्थानों पर जनसूचना चिपका कर लोगों को जलछाजन समिति की बैठक के बारे में अवगत कराया। सभी निर्धारित स्थलों पर ससमय बैठकों का आयोजन कर जलछाजन समिति गठित की। कुछ बैठकों में आये विवाद को दूर कर उनका शांतिपूर्वक हल निकला गया। कालांतर में जलछाजन समितियों से मिल कर समय-समय पर नियमित बैठक एवं एसएचजी गठन पर विचार-विमर्श किया गया।
जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम में जीविकोपार्जन एक महत्वपूर्ण घटक है। जलछाजन क्षेत्र में महिलाओं, किसानों, कारीगरों के स्वयं-सहायता समूह निर्माण करने होते हैं। स्वयं-सहायता समूह के द्वारा आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने का सफल प्रयास किया जाता है। स्वयं-सहायता समूहों सदस्यों को आय सृजक गतिविधियों से जोड़ कर उनका आर्थिकविकास किया जाता है। ताकि उनकी आमदनी में इजाफा हो, वे अपने जीवन स्तर को सुधार कर बेहतर जीवन जी सकें।
इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए हम पानी को बचायेंगे, माटी को बचायेंगे, हम जंगल को बचायेंगे की संकल्पना के साथ सर्वप्रथम मैंने महिला स्वयं-सहायता समूह के गठन पर ध्यान केंद्रित किया एवं जामताड़ा के नारायणपुर एवं आंशिक रूप से गाण्डेय (गिरिडीह जिला का प्रखंड) के कुल 18 गांवो में जलछाजन समिति के सदस्यों के सहयोग से 32 स्वयं-सहायता समूहों का गठन किया। स्वयं-सहायता समूहों से जलछाजन कार्यक्रम एवं स्वयं-सहायता समूह के बारे में जानकारी साझा की।
स्वयं-सहायता समूह का निर्माण गांव में ग्रामीणों की बैठक द्वारा की गयी। गांव के समान वर्ग के एक टोले के प्रत्येक इच्छुक परिवार में से 11 सदस्य चुने गये एवं उन्हीं सदस्यों में से जो पढ़ी-लिखी थीं, उनको सर्वसम्मति से क्रमश: अध्यक्ष, सचिव एवं कोषाध्यक्ष चुना गया। जलछाजन कार्यक्रम के द्वारा दिये जाने वाले फायदों को समझते हुए एवं समूह के एकता के महत्व को जान कर गांवों में स्वयं-सहायता समूह के निर्माण में सहूलियत हुई।
गठित स्वयं-सहायता समूह के सदस्यों ने विभिन्न गतिविधियों में अपनी रुचि दिखायी। आदिवासी समुदाय के सूअर पालन और बकरीपालन में, अल्पसंख्यक समुदाय ने बकरीपालन और बत्तख पालन में एवं अन्य समुदायों ने बकरी पालन और बत्तखपालन एवं सब्जी की खेती, पॉलट्री इत्यादि में अपनी इच्छा जाहिर की। क्योंकि ये परंपरागत कार्य वे पीढ़ियों से वे करते आ रहे हैं। परंतु वे इन व्यवसायों में प्रशिक्षण लेकर आधुनिक ढंग से कार्य करना चाहते हैं, ताकि उत्पादन में वृद्धि हो और कम हानि उठाना पड़े। पंचायत प्रतिनिधियों एवं समुदाय आधारित संगठनों से स्वयं-सहायता समूह के निर्माण में काफी सहयोग प्राप्त हुआ।
कुछ गांवों में स्वयं-सहायता समूह के निर्माण के दौरान पाया कि पूर्व में कई गैर सरकारी संगठनों के द्वारा स्वयं-सहायता समूह के नाम पर एवं बैंक में लोन दिलाने के एवज में ग्रामीण हजारों रुपये ठगे जा चुके हैं। स्वयं-सहायता समूह के नाम पर ठगे गये लोग स्वयं-सहायता समूह के नाम से कतराते हैं। विभिन्न योजनाएं मात्र स्वार्थपूर्ति के लिए बनाये गये हैं।
कई स्वयं-सहायता समूह नियमित मार्गदर्शन, नियमित बैठक, नियमित बचत व लेखा बही की अनियमितता के कारण विघटित हो गये हैं।
कई स्वयं-सहायता समूह बहुत ही अच्छे ढंग से काम करते हुए पाये गये। उनमें बैठक, नियमित बचत, लेखा बही, सब सही सलामत थे। कई स्थानों पर स्वयं-सहायता समूह में पुरुषों की दखलंदाजी, स्वयं-सहायता समूह के पदाधिकारियों की निष्क्रियता एवं एकाधिकार के कारण विघटन हो गया था। उन्हें यह व्यवस्था भारस्वरूप लग रही थी।
क्षेत्र में नन बैंकिंग कंपनियों के द्वारा ग्रामीणों की गाढ़ी कमाई लुटने के कारण वे सरकारी कार्यक्रमों से जुड़ने से भी डरते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस कार्यक्रम में जुड़ कर कहीं वे ठगे न जायें।
मेरे विचार से स्वयं-सहायता समूह को टिकाऊ संगठन बनाने के लिए निम्नांकित बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है -
1. गांवों में स्वयं-सहायता समूह के शैक्षिक एवं वित्तीय विकास एवं बेहतर संचालन के लिए दीर्घकालीन कार्यक्रम बने।
2. समान वर्ग, समान आर्थिक व्यवस्था के लोग एक स्वयं-सहायता समूह में हों।
3. स्वयं-सहायता समूह में पंचसूत्र - नियमित बैठक, नियमित बचत, आपसी मेलजोल एवं विश्वास, आपसी लेन-देन, लेखाबही 4. का सही रख-रखाव एवं प्रबंधन का पालन अति आवश्यक किया जाये।
5. ग्राम, पंचायत, प्रखंड, जिला स्तर पर स्वयं-सहायता समूहों की पर्यवेक्षण इकाई हो, जो समय-समय पर गांवों में जाकर स्वयं-सहायता समूह की प्रगति का आकलन करे।
6. विभिन्न आय सृजक गतिविधियों में ग्राम/पंचायत /प्रखंड/जिला स्तर पर प्रशिक्षक - सह - बाजार सुविधा प्रदाता हो, जो स्वयं-सहायता समूहों का समुचित मार्गदर्शन करें।
7. स्वयं-सहायता समूह के गठन से लेकर उनके प्रत्येक अवस्था का माहवार एमआइएस हो।
हमलोगों का कार्यक्रम वर्तमान में प्रारंभिक अवस्था में है।
आशा है कि आनेवाले समय में ज्यों-ज्यों कार्यक्रम की गतिविधियों का क्रियान्वयन (जलछाजन कार्य, जीविकोपार्जन गतिविधियां, क्षमता निर्माण, लघु उद्यम विकास) होगा, त्यों-त्यों जनभागीदारी का स्तर भी बढ़ेगा एवं कार्यक्रम एक बेहतर रूप में क्षेत्र में प्रतिबिंबित होगा। तब कार्यक्रम के लक्ष्य, जल, जंगल, जमीन, जन एवं जानवर का विकास एवं संवर्धन, महिला सशक्तीकरण, उन्नत एवं आधुनिक खेती टिकाऊ जीविकोपार्जन को सफलतापूर्वक हासिल करने की दिशा में अग्रसर होंगे।
( दिनेश कुमार महतो जामताड़ा जिले में जलछाजन अभियान से सामाजिक उत्प्रेरक के रूप में जुड़े हैं।)
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जल, जंगल, जमीन जन एवं जानवर के विकास एवं संवर्धन के साथ-साथ टिकाऊ जीविकोपार्जन एवं खेती का विकास करना है। इसके सफल क्रियान्वयन के लिए राज्य के ग्रामीण विकास विभाग में राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी बनायी गयी है।
हमारे राज्य झारखंड में झारखंड राज्य जलछाजन मिशन के माध्यम से राज्य के सभी जिलों में एक जलछाजन प्रकोष्ठ -सह-आकड़ा संग्रहण केंद्र बनाया गया है।जहां से विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों (पीआइए) के जलछाजन कार्यक्रम को संचालित किया जा रहा है। मैं जामताड़ा वन प्रमंडल जामताड़ा को स्वीकृत आइडब्ल्यूएमपी -3/2011-12 का सामाजिक उत्प्रेरक हूं। मैं पिछले पांच वर्षों से ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्य कर रहा हूं। सितंबर 2013 से मैं जलछाजन कार्यक्रम से जुड़ा।
यह पहला कार्यक्रम है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों (जल, जंगल, जमीन) की सुरक्षा व टिकाऊ जीविकोपाजर्न आधुनिक कृषि, लघु उद्यमों का विकास इत्यादि कार्य सारे मिल कर ग्रामीण समाज को सशक्त करने का काम करते हैं। हमारे जलछाजन क्षेत्र में कुल 122 गांव हैं, जहां 5506।11 हेक्टेयर उपचारित क्षेत्र है, इसमें 10512 परिवारों के 60108 लोगों के साथ जलछाजन कार्यक्रम को क्रियान्वित किया जा रहा है। पूरे जलछाजन क्षेत्र को 10 अनुजलछाजन क्षेत्र में बांटा गया है।
जलछाजन क्षेत्र के सामाजिक उत्प्रेरक का उत्तरदायित्व मिलने पर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं। मैं अपने इस उत्तरदायित्व के अनुरूप सर्वप्रथम संपूर्ण जलछाजन क्षेत्र के संबंधित गांवों का भ्रमण किया। लोगों से संपर्क कर उनसे कार्यक्रम के बारे में जानकारी साझा की। तदोपरांत विभागीय निर्देशानुसार जन सूचना निकाल कर प्रत्येक जलछाजन गांव में मौके पर उपस्थित समुदाय एवं ग्राम में प्रतिनिधियों को जलछाजन समिति के गठन के लिए बैठक की सूचना दी। साथ ही क्षेत्र के महत्वपूर्ण स्थानों पर जनसूचना चिपका कर लोगों को जलछाजन समिति की बैठक के बारे में अवगत कराया। सभी निर्धारित स्थलों पर ससमय बैठकों का आयोजन कर जलछाजन समिति गठित की। कुछ बैठकों में आये विवाद को दूर कर उनका शांतिपूर्वक हल निकला गया। कालांतर में जलछाजन समितियों से मिल कर समय-समय पर नियमित बैठक एवं एसएचजी गठन पर विचार-विमर्श किया गया।
जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम में जीविकोपार्जन एक महत्वपूर्ण घटक है। जलछाजन क्षेत्र में महिलाओं, किसानों, कारीगरों के स्वयं-सहायता समूह निर्माण करने होते हैं। स्वयं-सहायता समूह के द्वारा आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने का सफल प्रयास किया जाता है। स्वयं-सहायता समूहों सदस्यों को आय सृजक गतिविधियों से जोड़ कर उनका आर्थिकविकास किया जाता है। ताकि उनकी आमदनी में इजाफा हो, वे अपने जीवन स्तर को सुधार कर बेहतर जीवन जी सकें।
इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए हम पानी को बचायेंगे, माटी को बचायेंगे, हम जंगल को बचायेंगे की संकल्पना के साथ सर्वप्रथम मैंने महिला स्वयं-सहायता समूह के गठन पर ध्यान केंद्रित किया एवं जामताड़ा के नारायणपुर एवं आंशिक रूप से गाण्डेय (गिरिडीह जिला का प्रखंड) के कुल 18 गांवो में जलछाजन समिति के सदस्यों के सहयोग से 32 स्वयं-सहायता समूहों का गठन किया। स्वयं-सहायता समूहों से जलछाजन कार्यक्रम एवं स्वयं-सहायता समूह के बारे में जानकारी साझा की।
स्वयं-सहायता समूह का निर्माण गांव में ग्रामीणों की बैठक द्वारा की गयी। गांव के समान वर्ग के एक टोले के प्रत्येक इच्छुक परिवार में से 11 सदस्य चुने गये एवं उन्हीं सदस्यों में से जो पढ़ी-लिखी थीं, उनको सर्वसम्मति से क्रमश: अध्यक्ष, सचिव एवं कोषाध्यक्ष चुना गया। जलछाजन कार्यक्रम के द्वारा दिये जाने वाले फायदों को समझते हुए एवं समूह के एकता के महत्व को जान कर गांवों में स्वयं-सहायता समूह के निर्माण में सहूलियत हुई।
गठित स्वयं-सहायता समूह के सदस्यों ने विभिन्न गतिविधियों में अपनी रुचि दिखायी। आदिवासी समुदाय के सूअर पालन और बकरीपालन में, अल्पसंख्यक समुदाय ने बकरीपालन और बत्तख पालन में एवं अन्य समुदायों ने बकरी पालन और बत्तखपालन एवं सब्जी की खेती, पॉलट्री इत्यादि में अपनी इच्छा जाहिर की। क्योंकि ये परंपरागत कार्य वे पीढ़ियों से वे करते आ रहे हैं। परंतु वे इन व्यवसायों में प्रशिक्षण लेकर आधुनिक ढंग से कार्य करना चाहते हैं, ताकि उत्पादन में वृद्धि हो और कम हानि उठाना पड़े। पंचायत प्रतिनिधियों एवं समुदाय आधारित संगठनों से स्वयं-सहायता समूह के निर्माण में काफी सहयोग प्राप्त हुआ।
कुछ गांवों में स्वयं-सहायता समूह के निर्माण के दौरान पाया कि पूर्व में कई गैर सरकारी संगठनों के द्वारा स्वयं-सहायता समूह के नाम पर एवं बैंक में लोन दिलाने के एवज में ग्रामीण हजारों रुपये ठगे जा चुके हैं। स्वयं-सहायता समूह के नाम पर ठगे गये लोग स्वयं-सहायता समूह के नाम से कतराते हैं। विभिन्न योजनाएं मात्र स्वार्थपूर्ति के लिए बनाये गये हैं।
कई स्वयं-सहायता समूह नियमित मार्गदर्शन, नियमित बैठक, नियमित बचत व लेखा बही की अनियमितता के कारण विघटित हो गये हैं।
कई स्वयं-सहायता समूह बहुत ही अच्छे ढंग से काम करते हुए पाये गये। उनमें बैठक, नियमित बचत, लेखा बही, सब सही सलामत थे। कई स्थानों पर स्वयं-सहायता समूह में पुरुषों की दखलंदाजी, स्वयं-सहायता समूह के पदाधिकारियों की निष्क्रियता एवं एकाधिकार के कारण विघटन हो गया था। उन्हें यह व्यवस्था भारस्वरूप लग रही थी।
क्षेत्र में नन बैंकिंग कंपनियों के द्वारा ग्रामीणों की गाढ़ी कमाई लुटने के कारण वे सरकारी कार्यक्रमों से जुड़ने से भी डरते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस कार्यक्रम में जुड़ कर कहीं वे ठगे न जायें।
मेरे विचार से स्वयं-सहायता समूह को टिकाऊ संगठन बनाने के लिए निम्नांकित बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है -
1. गांवों में स्वयं-सहायता समूह के शैक्षिक एवं वित्तीय विकास एवं बेहतर संचालन के लिए दीर्घकालीन कार्यक्रम बने।
2. समान वर्ग, समान आर्थिक व्यवस्था के लोग एक स्वयं-सहायता समूह में हों।
3. स्वयं-सहायता समूह में पंचसूत्र - नियमित बैठक, नियमित बचत, आपसी मेलजोल एवं विश्वास, आपसी लेन-देन, लेखाबही 4. का सही रख-रखाव एवं प्रबंधन का पालन अति आवश्यक किया जाये।
5. ग्राम, पंचायत, प्रखंड, जिला स्तर पर स्वयं-सहायता समूहों की पर्यवेक्षण इकाई हो, जो समय-समय पर गांवों में जाकर स्वयं-सहायता समूह की प्रगति का आकलन करे।
6. विभिन्न आय सृजक गतिविधियों में ग्राम/पंचायत /प्रखंड/जिला स्तर पर प्रशिक्षक - सह - बाजार सुविधा प्रदाता हो, जो स्वयं-सहायता समूहों का समुचित मार्गदर्शन करें।
7. स्वयं-सहायता समूह के गठन से लेकर उनके प्रत्येक अवस्था का माहवार एमआइएस हो।
हमलोगों का कार्यक्रम वर्तमान में प्रारंभिक अवस्था में है।
आशा है कि आनेवाले समय में ज्यों-ज्यों कार्यक्रम की गतिविधियों का क्रियान्वयन (जलछाजन कार्य, जीविकोपार्जन गतिविधियां, क्षमता निर्माण, लघु उद्यम विकास) होगा, त्यों-त्यों जनभागीदारी का स्तर भी बढ़ेगा एवं कार्यक्रम एक बेहतर रूप में क्षेत्र में प्रतिबिंबित होगा। तब कार्यक्रम के लक्ष्य, जल, जंगल, जमीन, जन एवं जानवर का विकास एवं संवर्धन, महिला सशक्तीकरण, उन्नत एवं आधुनिक खेती टिकाऊ जीविकोपार्जन को सफलतापूर्वक हासिल करने की दिशा में अग्रसर होंगे।
( दिनेश कुमार महतो जामताड़ा जिले में जलछाजन अभियान से सामाजिक उत्प्रेरक के रूप में जुड़े हैं।)
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