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बहादुर साथियों,
एनटीपीसी से बिजली बनाने के लिए सबसे जरूरी ईंधन कोयला ढोने के लिए रेलवे लाइन के नाम पर अब फिर हमारे किसानों के साथ अन्याय किया जा रहा है। रेलवे लाइन की जद में आ रही जमीन कौड़ियों के भाव लेने की कोशिश की जा रही है। गंगा नदी से पानी लेने के लिए पाइप बिछाने के लिए भी किसानों की जमीन ज़बरदस्ती लेने की साजिश चल रही है। प्रतिबंधित होने के बावजूद एनटीपीसी द्वारा बड़े-बड़े बोरवेलों के माध्यम से जमीन के भीतर से भारी मात्रा में पानी निकालकर निर्माण कार्य किया जा रहा है और इलाके का जल स्तर गिराया जा जा रहा है। हमारे इलाके के किसानों, मज़दूरों, भूमिहीनों, दलितों व हर उन वर्ग के लोगों को, जो अपनी धरती, अपने पेड़-पौधे, अपने पानी, अपने मवेशियों, अपने हरे-भरे चारागाह, नदी, नाले, तालाब, पोखरे, कुएं व ईश्वर द्वारा वरदान के रूप में मिले पहाड़ी-पहाड़ पर परिश्रम करके अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी, रहने के लिए आशियाने व बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए पैसे का इंतज़ाम करके सुखी थे और धीरे-धीरे अच्छी प्रगति कर रहे थे, उनके साथ जिला प्रशासन व एनटीपीसी द्वारा बिजली बनाने का कारखाना लगाने के नाम पर बहुत बड़ा धोखा किया गया। हालांकि देर से सही, लेकिन कंपनी लगाने के लिए भूमि अधिग्रहण के नाम पर पटवारी यानि लेखपाल से लेकर जिलाधिकारी तक ने जो धोखा, अन्याय व जालसाजी किसानों-मजदूरों के साथ की है, अब उसका पर्दाफाश हो चुका है। पांच वर्ष पहले जिला प्रशासन व कंपनी प्रबंधन द्वारा की जा रही धोखेबाजी, चालबाजी व पैतरेबाजी की तस्वीर स्पष्ट नहीं थी, लेकिन आज इलाके का बच्चा-बच्चा जान गया है कि पॉवर प्लांट स्थापित करने के बहाने कैसे उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया गया है।
मित्रों, जब कहीं भी कोई फ़ैक्टरी, कोई कंपनी, कोई कारखाना लगाया जाता है तो उस इलाके के लोग, वहां के बेरोजगार नौजवान, मजदूर, भूमिहीन बेसहारा लोग यही उम्मीद करते हैं कि कंपनी-फ़ैक्टरी लगने से उन्हें नौकरी मिलेगी, काम मिलेगा, मजदूरी मिलेगी, उनके लिए स्थाई रूप से रोजी-रोटी का इंतज़ाम होगा। अगर यह सच नहीं है तो किसानों, मजदूरों की जमीन पर उनके जंगल पर उनके चारागाह पर कोई फ़ैक्टरी, कारखाना लगाना वहां के लोगों के साथ अन्याय है, बहुत बड़ा धोखा है और यदि यह सच है कि कंपनी लगने से इलाके के लोगों का विकास होता है, उन्हें रोजगार मिलता है, उन्हें स्थाई नौकरी मिलती है, तो यह सवाल खड़ा होता है कि एनटीपीसी ने आज तक कितने भू-प्रभावित परिवारों के बच्चों को स्थाई नौकरी दी है। इलाके के कितने बेरोजगारों को रोजगार दिया है। जमीन लेते समय किसानों-मजदूरों से कहा गया था कि उन्हें सरकारी नौकरी दी जाएगी। रोजगार मिलेगा। एक-एक प्रभावितों के साथ न्याय होगा। आज एनटीपीसी बन रही है। हम पूंछते हैं कि कहां गई एनटीपीसी की नौकरी? अब क्यों नहीं दिया जा रहा बेरोजगारों को रोजगार? कहां गए ये एनटीपीसी के दलाल? क्यों नहीं बताते कि एनटीपीसी ने कहां बहा दी है विकास की गंगा?
![मेजा में किसानों का एनटीपीसी के गेट के सामने धरना](http://farm4.staticflickr.com/3805/11903846363_cbb37099ca_o.jpg)
जवान लड़के पूछते हैं कि एनटीपीसी को जमीन क्यों दे दिया? कहां जाएं कमाने के लिए वह? खेती नहीं होगी तो खरीदकर कब तक खाएंगे। जो मुआवजा मिला है, उससे कितनी जमीन खरीदी जा सकती है? इसी बस्ती के जवान लड़के 25-30 की उम्र में बूढ़ों जैसे दिखने लगने लगे हैं। मूलचंद्र यादव भाई के चेहरे पर जो चिंता की लकीरें नजर आ रही हैं, वह इस बात का संकेत है कि जमीन जाने का दुख उन्हें भीतर ही भीतर परेशान कर रहा है। अमहवा से झड़ियाही गांव में नाले के किनारे बसाए गए परिवारों के दो लोग नाले में गिरकर मर चुके हैं। यहां एनटीपीसी के विकास का क्या हाल है, वह भी जान लें- अमहवा से कोहड़ार बाजार जाने वाला रास्ता एनटीपीसी ने बंद कर दिया है, वहां बोर्ड टंगवा दिया गया है कि यह आम रास्ता नहीं है। भाइयों, अब इस बस्ती के लोग सीधे रास्ते से कोहड़ार बाजार नहीं जा सकते हैं। यदि कोई रात-विरात बीमार हो जाए तो उसे कैसे अस्पताल तक पहुंचाया जाए। आगे और सुनिये विकास का हाल, -इस बस्ती के आस-पास शौच जाने के लिए जगह नहीं है। बरसात में यह बस्ती चारों तरफ पानी से घिर जाती है। बस्ती से तब किसी का पेट दर्द करने लगे तो उसे नाव से नाला पार कर शौच करने जाना पड़ता है।
![किसानों का विस्थापन विरोधी मार्च रैली](http://farm4.staticflickr.com/3706/11881865413_e5af25d8f7_o.jpg)
इस बात को एसडीएम मेजा भी स्वीकार करते हैं कि किसानों के साथ न्याय नहीं हुआ। एसडीएम मेजा ने भी माना कि करीब 33 प्रतिशत जमीन काफी उपजाऊ है, जिसका रेट अलग से तय करना चाहिए था। इसके अलावा वह यह भी मानते हैं कि मुआवजा देने में भी देरी की गई है। सभी गृह विस्थापितों का नाम दर्ज नहीं किया गया। मुआवजा की धनराशि समय से न मिलने के कारण आज उसकी ब्याज जोड़ा जाए तो समझ में आता है कि इसकी भरपाई कैसे हो।
एनटीपीसी से बिजली बनाने के लिए सबसे जरूरी ईंधन कोयला ढोने के लिए रेलवे लाइन के नाम पर अब फिर हमारे किसानों के साथ अन्याय किया जा रहा है। रेलवे लाइन की जद में आ रही जमीन कौड़ियों के भाव लेने की कोशिश की जा रही है। गंगा नदी से पानी लेने के लिए पाइप बिछाने के लिए भी किसानों की जमीन ज़बरदस्ती लेने की साजिश चल रही है। प्रतिबंधित होने के बावजूद एनटीपीसी द्वारा बड़े-बड़े बोरवेलों के माध्यम से जमीन के भीतर से भारी मात्रा में पानी निकालकर निर्माण कार्य किया जा रहा है और इलाके का जल स्तर गिराया जा जा रहा है। सलैया गांव में राख डालने के लिए तालाब बनाने व कोयले रखने के लिए रैक रखने की तैयारी हो रही है। इससे इलाके में जो प्रदूषण फैलेगा उससे लोगों का जीना मुहाल हो जाएगा। एनटीपीसी की जो राख उड़ेगी उससे तो 18 से 20 किलोमीटर तक पेड़-पौधे, फसलें व खेती बर्बाद हो जाएगी। इन सारी बातों को जानने के बाद यह भी सोचने की जरूरत है कि आखिर इलाके को एनटीपीसी से क्या मिलेगा? बिजली, लेकिन क्या खेती बर्बाद कर, अपना पानी नष्ट कर, पर्यावरण को जहरीला बनाकर तथा अपने हरे-भरे मैदान, मवेशियों को खोकर हमें ऐसे विकास की जरूरत है। हम किसान बिजली के विरोधी नहीं हैं, लेकिन कोयला और पानी सुखाकर पैदा होने वाली बिजली हमारे लिए फायदेमंद नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह सौर उर्जा तकनीक को विकसित करे। घरों में, नदियों के ऊपर, खेतों के ऊपर, नहरों के ऊपर सौर उर्जा प्लेटें लगाएं और पांच-पांच गाँवों को बिजली दे। सौर उर्जा से चलने वाले पंप को अनुदान पर बांटें। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा। किसानों की ज़मीन नहीं जाएगी। सस्ते दर पर बिजली मिलेगी।
![किसानों का विस्थापन विरोधी मार्च रैली](http://farm3.staticflickr.com/2858/11881905483_ed84afca80_o.jpg)
किसान-मजदूर नेता
बीके निषाद ,
दुर्गा निषाद,
मंसूर अली,
रमाकांत बिन्द,
रामनारायन आदिवासी,
मौजीलाल कोल,
राजकुमार यादव
अध्यक्ष विस्थापन विरोधी मंच
राजीव चन्देल
संयोजक विस्थापन विरोधी मंच।
मोबाइल- 09454125412, 0775381777
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